- हरीश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री
मैं आपको अपने लेख की विषय वस्तु से जोड़ना चाहूंगा। पहाड़ों में भी नेताओं में कुछ ही लोग खुल कर पृथक् राज्य के पक्ष में थे। उनमें से एक प्रमुख व्यक्ति श्री गोविंद सिंह महरा जी थे। श्री महरा जी के माध्यम से सूचना आई कि गढ़वाल के सांसद श्री प्रताप सिंह नेगी जी स्याल्दे आ रहे हैं और स्याल्दे से पैदल यात्रा करते हुए बैजरो (गढ़वाल) तक जाएंगे। उनकी यात्रा का उद्देश्य पहाड़ी राज्य के लिए वातावरण बनाना है। उत्तराखण्ड आज एक जीवांत प्रेरणास्पद वास्तविकता है। इस वास्तविकता को संभव करने में हजारों लोगों ने अनेक प्रकार से बलिदान दिए। कुछ को हम सब जानते हैं। बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिनको याद करने के लिए राज्य संघर्ष के इतिहास को उकेरना पड़ता है। श्री प्रताप सिंह नेगी, श्री गोविंद सिंह महरा, श्री ऋषिबल्लभ सुन्द्रियाल, श्री सुशील कुमार निरंजन जैसे लोग ‘अनसंग’ हिरोज हैं
मैं अभी-अभी ब्लॉक प्रमुख बना था। प्रमुखी कम सीख रहा था, राजनीति ज्यादा आ रही थी। श्री जसवंत सिंह बिष्ट भी बगल के ब्लॉक स्याल्दे के प्रमुख चुने गए थे। श्री शेर सिंह धोनी लमगड़ा के प्रमुख चुने गए थे। दोनों समाजवादी मिजाज के जन्मजात विद्रोही थे। मेरा रुझान सत्तारूढ़ दल अर्थात् कांग्रेस की ओर था। लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में मैं घोर कांग्रेसी बन गया था। प्रमुख तो इत्तिफाक से बना। प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर युवक कांग्रेस के तात्कालिक नेतृत्व के साथ जुड़ाव के बलबूते जिला युवक कांग्रेस अल्मोड़ा का अध्यक्ष नामजद हो गया। जिला अल्मोड़ा व पहाड़ी क्षेत्रों के स्थापित कांग्रेस नेतृत्व को मेरी नियुक्ति पसंद नहीं आई। उनकी नजर में मैंने कांग्रेस के स्थापित नेता को हराकर प्रमुखी हथियायी थी। कांग्रेस में एक मजबूत तबका पृथक राज्य की मांग का विरोधी था। मगर दो सांसद और कुछ प्रमुख नेता, उत्तर प्रदेश से अलग होने के पक्षधर थे। नए-नए चुने गए सांसद श्री नरेंद्र सिंह बिष्ट जी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं सांसद श्री प्रताप सिंह नेगी पृथक् राज्य के पक्षधर थे। दोनों लोग दिल्ली में पृथक् राज्य के लिए आयोजित एक सर्वपक्षीय रैली में भाग ले चुके थे। देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी को पहाड़ के 8 जिलों का राज्य बनाने हेतु मांग पत्र भी दे चुके थे। उस समय उधमसिंहनगर, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर तथा चंपावत जिले अस्तित्व में नहीं आए थे। हरिद्वार को राज्य बनते वक्त उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक में नये राज्य का हिस्सा बनाया गया था। प्रारंभ में हरिद्वार नए राज्य का हिस्सा बने यह सोच भाजपा व उसके नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी जी की थी। संयुक्त संघर्ष समिति के नेता के रूप में मैंने सन् 1988 में हरिद्वार जोड़ो का मार्च आयोजित किया था। हरिद्वार के कई महत्वपूर्ण नेता श्री हरपाल साथी सांसद, श्री पुरुषोत्तम शर्मा आदि इस कार्य में मेरे सहयोगी थे। हरिद्वार के प्रायः सभी नेता व राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में ही रहना चाहते थे।
मैं आपको अपने लेख की विषय वस्तु से जोड़ना चाहूंगा। पहाड़ों में भी नेताओं में कुछ ही लोग खुल कर पृथक् राज्य के पक्ष में थे। उनमें से एक प्रमुख व्यक्ति श्री गोविंद सिंह महरा जी थे। श्री महरा जी के माध्यम से सूचना आई कि गढ़वाल के सांसद श्री प्रताप सिंह नेगी जी स्याल्दे आ रहे हैं और स्याल्दे से पैदल यात्रा करते हुए बैजरो (गढ़वाल) तक जाएंगे। उनकी यात्रा का उद्देश्य पहाड़ी राज्य के लिए वातावरण बनाना है। श्री जसवंत सिंह बिष्ट आदि कुछ समाजवादी लोग स्वाभाविक रूप से यात्रा के संयोजक बन गए। श्री गोविंद सिंह महरा जी के प्रभाव से काफी लोग इस यात्रा की भावना के साथ जुड़े। जिनमें से एक मैं भी था। श्री शेर सिंह धोनी, श्री विपिन चंद्र त्रिपाठी, श्री गोविंद लाल वर्मा जी जैसे खांटी के समाजवादी इस प्रस्तावित यात्रा से जुड़ गए। स्थानीय कांग्रेस में श्री चंद्र भानु गुप्ता जी का दबदबा था। क्षेत्र के स्थानीय नेता श्री केसी पंत व श्री नारायण दत्त तिवारी जी, उत्तर प्रदेश के विभाजन के घोर विरोधी थे। स्थानीय कांग्रेसजनों का 90 प्रतिशत हिस्सा इस प्रकार की सोच व यात्रा के विरोध में था। हां हम लोग भी श्री लक्ष्मण सिंह अधिकारी व श्री कुंवर सिंह मनराल जी को यात्रा के पक्ष में ले आए। श्री चंद्र भानु गुप्ता के घोर समर्थक होते हुए श्री अधिकारी उत्तर प्रदेश के विभाजन के पक्षधर थे।
श्री प्रताप सिंह नेगी एक मूर्धन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। नम्र मगर साहसी व्यक्ति थे। कॉमरेड ऋषि बल्लभ सुंद्रियाल, कामरेड सुशील कुमार निरंजन जी, श्री कुंवर सिंह मनराल जी को साथ लेकर श्री नेगी निर्धारित दिन स्याल्दे पहुंच गए। एक अच्छी खासी सभा हुई और रात स्याल्दे में उन्होंने विश्राम किया। रात उनके यात्रा मार्ग पर अच्छी खासी चर्चा हुई। 3 दिन का यात्रा रूट बना। पहले दिन उदयपुर से बसई, अगासपुर, मझोड़, सेरा कैलानी, चनौली होते हुए इकूखेत में रात रुकना तय हुआ। दूसरे दिन मग्रूखाल, गिवाईपानी, कुलांटेश्वर से जोगीमणि, सौंपखाल, उप्राईखाल होते हुए रात रसिया महादेव में विश्राम। तीसरे दिन बीरोंखाल, मेठाणाघाट होते हुए स्यूसी तक प्रोग्राम बना। श्री नेगी जी की काया देख कर मुझे कहीं से भी नहीं लगा कि श्री नेगी इतनी चढ़ाई के साथ बहुत लंबी यात्रा कर पाएंगे। श्री महरा जी एवं अल्मोड़ा के लोग उप्राईखाल तक साथ रहेंगे, यह तय हुआ। वहां से आगे पौड़ी से आये लोग यात्रा में रहेंगे। मैंने अपनी शंका अपने मन में रोक ली। दूसरे दिन उदयपुर से अगासपुर को हम लोग चले तो मेरी शंका निर्मूल साबित हुई। यात्रा में नेगी जी के साथ श्री गोविंद सिंह महरा, जसवंत सिंह बिष्ट, शेर सिंह धोनी, कुंवर सिंह मनराल, गोविंद लाल वर्मा, श्री विपिन त्रिपाठी, कॉमरेड सुंद्रियाल, कामरेड निरंजन, घनश्याम दत्त ममगई, देव सिंह, प्रताप सिंह मनराल, दीवानी राम जी, बच्ची राम शर्मा जी, हर सिंह मावड़ी जी, मोतीराम जी, जसपुर के बच्ची राम जी, शेर सिंह जी, मोहन सिंह जी सहित 25 लोग उदयपुर से ऊपर अगासपुर, चनौली की ओर चल पड़े। श्री नेगी जी के पास ढेरों किस्से- कहानियां थी। जहां थोड़ी थकावट महसूस होती थी, नेगी जी रुककर एक किस्सा सुना देते थे। पुराने जमाने के नेताओं के पास काफी किस्से-कहानियां होती थी। सिर्फ सुनने वाले हों। हम लोग अच्छे श्रोता बनकर रास्ता तय कर रहे थे। श्री चंद्र भानु गुप्ता के लिए श्री नेगी की राय अच्छी नहीं थी। श्री नेगी, श्री कमलापति गुट से जुड़े थे। श्री नरेंद्र सिंह बिष्ट जी भी श्री त्रिपाठी के साथ थे। मगर पहाड़ों की कांग्रेस में उस समय श्री गुप्ता का वर्चस्व था। ज्यादातर श्री नेगी, गुप्ता जी को लेकर किस्से सुना रहे थे।
उदयपुर से आराम से चलते हुए हम बसई गांव पहुंचे। बसई मेरे दोस्त महेश बेलवाल जी का गांव है। महेश जी हमारे इलाके के पहले ऐसे उद्यमी थे, जिन्होंने रामनगर के पास हल्दुआ में स्पिनिंग मिल लगाई। सैकड़ों पहाड़ के लोगों को काम दिया। वसई में लोगों से अच्छी बातचीत हुई। चाय पीकर हम लोग अगासपुर की ओर चले। बसई में सांसद बनने के बाद हमने जूनियर हाईस्कूल स्वीकृत करवाया। अगासपुर में जय-जय कार के मध्य कुछ लोग बोले, उत्तर प्रदेश से अलग होने की बात उठाई व लोगों को समझाया। उस समय अगासपुर जूनियर हाईस्कूल था, आज इंटर कॉलेज है। विकास और राज्य, दोनों पर बातचीत हुई। लंबा रास्ता था। लोगों की राय थी कि केवल नेगी जी बोलें। मुझे याद है जसवंत सिंह जी बोले मैं जरूर बोलूंगा। मैं यहां का प्रमुख हूं। उन्होंने थोड़ा लंबा भाषण दिया। अगासपुर से चनौली तक चढ़ाई थी। मझोड़-शेरा कैलानी होते हुए हम चनौली पहुंचे। रास्ते में लोग मिले। जसवंत सिंह जी जोर-जोर से सबका परिचय देते थे और कारवां आगे बढ़ता रहता था। इन गांव के लोग भी हमारे साथ चनौली तक चले। चनौली में ढोल-नगाड़ों के साथ स्वागत हुआ। सालिग्राम नौटियाल जी यात्रा के आयोजक ही थे। बड़ी सभा हुई। चनौली उस समय कृषि विषय के साथ मान्यता प्राप्त हाईस्कूल था। आज कृषि विषय के साथ इंटर कॉलेज है। कालांतर में मैंने कृषि विषय के साथ कुछ हाईस्कूल एवं कॉलेज खुलवाए। लेकिन कृषि विषय वाला आइडिया आगे नहीं बढ़ पाया। शायद विद्यार्थियों को बाद में नौकरी में इस विषय का फायदा नहीं मिल पाया। हमारे समय में जूनियर हाईस्कूल स्तर पर कृषि विषय और इस विषय को पढ़ाने वाले शिक्षक होते थे। चनौली में सभी नेतागण बोले। नेगी जी, महरा जी व बिष्ट जी ने हिमाचल का उदाहरण देकर छोटे राज्य का फायदा बताया। लोगों को उनकी बातें पसंद आई। देर तक सभा चली। रात इकूखेत ही रहना था। दिन छिपने से पहले हम इकूखेत पहुंचे। आज तो इकूखेत अच्छा बाजार बन गया है। उस समय कुछ ही दुकानें थी। कुछ दिन में चलने वाले खोमचे थे, रात को खोमचों के मालिक गांव चले जाते थे। बाद में हमने इकूखेत में पीडब्ल्यूडी का बंगला बनवाया। यह बंगला सांसद और विधायक के तौर पर मेरा और तत्कालीन विधायक श्री पूरन सिंह महरा जी का बड़ा ही पसंदीदा स्थान था। यहां से एक तरफ स्याल्दे घाटी और दूसरी तरफ उत्तरवाहिनी लखौरा की घाटी अपनी रमणीयता को बिखेरती हुई दिखाई देती है। रात खाने को रोटी-साग तो मिल गया। रात रहने का संकट था। नेगी जी व महरा जी के लिए दो खाटों का इंतजाम हुआ। हम लोग एक और स्थान पर फर्श में सोए। कुछ लोग रात रहने वापस चनौली हाईस्कूल में पहुंचे। इकूखेत की भोर बहुत ही आनंददायक थी।
सुबह जल्दी तैयार होकर नेगी जी का कारवां मुंगरोंखाल, गिवायपानी होते हुए कुलांटेश्वर पहुंचा। मां कलिंगा की तलहटी में लखौरा के किनारे शिव परिवार के मंदिर हैं। कुलांटेश्वर में चित्तौड़खाल प्राइवेट जूनियर हाईस्कूल के हेड मास्टर साहब नेगी जी ने सभा की व्यवस्था की थी। जोरदार भाषणबाजी हुई। यहां मुझे भी बोलने का मौका मिला। हेड मास्टर साहब के विशेष आग्रह पर मुझे बुलवाया गया। यहां से हम लोग जो जोगीमढ़ी पहुंचे। पृथक् राज्य समर्थक कारवां अब गढ़वाल में प्रवेश कर चुका था। दोसान है यह क्षेत्र। नेगी जी यहां के सांसद थे और पहले सांसद थे जो इस क्षेत्र में पहुंचे। आज तो यहां सड़क है। उस समय केवल सराईखेत तक कच्ची सड़क थी। सराईखेत, पौड़ी और अल्मोड़ा का साझा बाजार था। अब तो उप्राईखाल का बाजार बहुत बड़ा हो गया है। श्री गणेश गोदियाल जी के प्रयासों से हमारी सरकार ने यहां महाविद्यालय भी खोला है। इस क्षेत्र में पेयजल संकट था वह भी दूर किया है। पहले हमने बड़ा प्रयास कर सराईखेत से उप्राईखाल तक सड़क पहुंचाई थी। अब रसिया महादेव से बीरोंखाल मैठाण घाट तक सड़कें-सड़कें हैं। जोगीमढ़ी में नेगी जी का बड़ा भव्य स्वागत हुआ। लोग गोविंद सिंह महरा जी व जसवंत सिंह बिष्ट जी से भी परिचित थे। मैं उस समय ब्लॉक प्रमुखों की औसत आयु की तुलना में बच्चा था। मैं लोगों में कौतूहल पूर्ण उत्सुकता का केंद्र था। जोगीमढ़ी में नेगी जी को लेने काफी लोग आए थे। बिष्ट जी, शाह जी आदि ने सभी पदयात्रियों का बड़ा स्वागत किया। महरा जी लोग जोगीमढ़ी से लौटना चाहते थे। खाने का बंदोबस्त उप्राईखाल में था। हम लोग सौंपखाल होते हुए उप्राईखाल पहुंचे। यहां सराईखेत से भी काफी लोग आए हुए थे। पहाड़ी राज्य पर बातें भी हुई। लोगों में जोश था। लोगों को यात्रा बहुत पसंद आ रही थी। भाषणों में नेतागण साथ-साथ राजनीतिक छिंटाकसी भी कर रहे थे। यात्रा में दो घोर कम्युनिस्ट और चार घोर सोशलिस्ट भी चल रहे थे।
विचार छोटे राज्य के विषय में समान थे। मगर अन्य मामलों में नेगी जी, महरा जी को खूब व्यंग भी सुनने पड़ते थे। स्थानीय लोग कांग्रेस व विपक्ष के मध्य चल रहे इस मैत्रीपूर्ण वाद-विवाद का बड़ा आनंद लेते थे। लगे हुए सराईखेत, स्याल्दे सल्ट क्षेत्र के श्री चंद्र भानु गुप्ता विधायक रह चुके थे। उन पर सभी का गुस्सा बरसता था। श्री महरा जी, श्री गुप्ता के विरुद्ध दो चुनाव लड़ चुके थे। श्री नेगी भी इस चकल्लस में बड़ा आनंद ले रहे थे। कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में श्री नेगी, श्री गुप्ता के विरोधी कैंप में थे और कांग्रेस के नेता थे। श्री नेगी, श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ थे। श्री चंद्र भानु गुप्ता, इंदिरा जी के घोर विरोधी थे। बैठक के बाद पैदल चलते वक्त श्री नेगी जी कांग्रेस के बंटवारे में घटित घटना क्रम के किस्से भी सुनाते थे। हमारे साथ चल रहे दोनों कम्युनिस्ट नेताओं के भाव इंदिरा जी के प्रति अच्छे थे, सोशलिस्ट लोग आलोचना में इंदिरा जी को भी नहीं छोड़ते थे। यह सारा सिलसिला यात्रा को आनंददायक बना रहा था। मैं भी इस प्रकार की पदयात्रा में पहली बार भाग ले रहा था। पहले मैंने कई पदयात्राएं की थी। मगर उन यात्राओं का मैं केंद्र बिंदु था। यहां नेगी जी, महरा जी व बिष्ट जी आदि मुख्य थे। मेरा मन आगे भी जाने का था। साथी लोग लौटना चाहते थे। हम उप्राईखाल में श्री नेगी व पौड़ी से आए, उनके साथियों को विदा कर लौट आए। इन दो दिनों के अनुभव ने मुझे मन से छोटे राज्य का समर्थक बना दिया। नेगी जी आज स्वर्ग में हैं। इस यात्रा के अधिकांश पात्र स्वर्गवासी हो चुके हैं। इनमें से कुछ ही लोगों ने अपने यात्रागत सपने को साकार होते देखा है। श्री नेगी, श्री महरा जैसे लोग एक चाहत को जगाकर चले गए। वहां चले गए, जहां सबको एक दिन जाना है।
उत्तराखण्ड आज एक जीवंत प्रेरणास्पद वास्तविकता है। इस वास्तविकता को संभव करने में हजारों लोगों ने अनेक प्रकार से बलिदान दिया। कुछ को हम सब जानते हैं। बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिनको याद करने के लिए राज्य संघर्ष के इतिहास को उकेरना पड़ता है। श्री प्रताप सिंह नेगी, श्री गोविंद सिंह महरा, श्री ऋषिबल्लभ सुंद्रियाल, श्री सुशील कुमार निरंजन जैसे लोग ‘अनसंग’ हिरोज हैं। मैं, राज्य आंदोलन के ऐसे व्यक्तियों को इस लेख को समर्पित कर रहा हूं।