मानव ने जंगली जीवों के आशियाने छीने तो वे खाने-पीने की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। इसी आवाजाही में वे हाइवे पर दुर्घटनाओं का शिकार भी हो जाते हैं
राष्ट्रीय राजमार्ग 74 पर वन्य जीव आए दिन वाहन दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। हाल के वर्षों 53 गुलदार, 304 अन्य जंगली जीव, सात फीट लंबा व 180 किलो वजनी एक युवा टाइगर तथा एक भालू हाइवे पर वाहन दुर्घटनाओं में मारे गए। इन सब वन्य जीवों की गलती केवल ये थी कि वे भोजन या जीवन की अन्य आवश्यकता पूर्ति के लिए अपने ही इलाके में सड़क पार कर रहे थे।
वन्य जीवों के मारे जाने का ये वो आंकड़ा है, जो वन विभाग के रिकॉर्ड के हिसाब से है। असलियत में इससे कई गुना ज्यादा संख्या वो भी है जो रिकॉर्ड में नहीं आ पाई। हरिद्वार से बरेली तक जाने वाले 325 किलोमीटर लंबे एनएच 74 का हरिद्वार से कोटावाली नदी तक जो इलाका हरिद्वार जिले में है उसकी लंबाई करीब 30 किलोमीटर है। इसी 30 किलोमीटर पर ये सारे वन्य जीव वाहन दुर्घटनाओं का शिकार हुए हैं।
वन्य जीवों की दुर्घटनाओं में मौत का सिलसिला कम नहीं, बल्कि आने वाले दिनों में यहां और बढ़ेगा क्योंकि अब एन एच 74 का चौड़ीकरण कर इसे फोरलेन किया जा रहा है जिसके लिए हाइवे के नजदीक खड़े हजारों पेड़ों को काट दिया गया है। इसके कारण वाहन दुर्घटना में वन्य जीवों के मरने की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ है।
इस चौड़ीकरण से यहां के वन्य जीवन पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा इसके लिए वन्य जीव विभाग की ओर से सर्वे भी कराया गया था जिसमें जो आंकड़े आए वो वाकई चौंकाने वाले थे। भारतीय वन्य जीव संस्थान के सर्वे के मुताबिक केवल 6 महीने के दौरान 222 वन्य जीव रोड एक्सीडेंट में अपनी जान गवा चुके हैं।
हरिद्वार से नजीबाबाद तक जाने वाले इस राष्ट्रीय राजमार्ग-74 का करीब 904 भाग वन क्षेत्र से होकर गुजरता है। इस हाइवे पर कई जगह हाथियों तथा अन्य वन्यजीवों के कॉरिडोर भी हैं और वो पीढ़ी दर पीढ़ी इसी रास्ते का इस्तेमाल करते आए हैं। वन्य जीव वन क्षेत्र में घूम- घूमकर अपने लिए भोजन तथा अपने उपचार के लिए जड़ी-बूटी खोजते हैं।
ये भोजन, अपने लिए औषधि और रास्तों की जानकारी उन्हें विरासत में अपने पूर्वजों से मिलती आई है और वो अपना जीवन जीने के लिए इसी जानकारी का प्रयोग करते आए हैं। शाम ढलने के बाद कीड़े- मकोड़े से बचने के लिए भी कई वन्य जीव घने जंगलों से बाहर खुले इलाकों का रुख करते हैं। ये भी इनकी अकाल मौत का कारण बनता है। बता दें कि इस हाइवे पर वन्य जीवों की सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं गैंडीखाता से कोटावाली नदी के बीच स्थित संबलगढ़ कम्पार्टमेंट में हुई हैं। इस इलाके में सबसे ज्यादा जैव विविधता पाई जाती है।
डीएफओ आकाश वर्मा बताते हैं कि दिन प्रतिदिन सिकुड़ता वन क्षेत्र वन्य जीवों की मौत का कारण बन रहा है। मानव ने उनके घरों यानी जंगलों को साफ कर वहां कब्जा कर लिया है। उनके कॉरिडोर भी सीमित रह गए हैं। पहले यहां के हाथी जिम कॉर्बेट होते हुए असम तक जाते थे और फिर अगले वर्ष तक वापस लौट आते थे, पर अब जगह-जगह वन क्षेत्र पर मानवों की बस्तियों ने कब्जा कर लिया है जिसके चलते अब उनका घर भी छोटा हो गया है। यही कारण हैं कि वो आबादी वाले इलाकों में घुस जाते हैं।
चिड़ियापुर रेंज और पथरी के विशाल वन क्षेत्र को काटकर वहां विस्थापितों को बसाया गया जिससे वन क्षेत्र सिकुड़ने के साथ-साथ वन्य जीवों का परम्परागत कॉरिडोर भी नष्ट हो गया। अब एन एच 74 के चौड़ीकरण के बाद यहां सड़क दुर्घटनाओं में जीवां की मौतों में और भी ज्यादा इजाफा होगा।
चिड़ियापुर में एक स्थानीय व्यक्ति इरफान ने बताया कि चिड़ियापुर वन रेंज के घने जंगल अलग-अलग तरह के जंगली जानवरों का बड़ा ठिकाना थे, पर जंगलों को बड़े पैमाने पर काटकर यहां विस्थापितों को बसाया गया है जिससे यहां रहने वाले जंगली जानवर अब बेघर हो गए हैं।
2002-03 में यहां राजाजी नेशनल पार्क से लाए गए 1600 परिवार बसाए गए। हर परिवार को घर और 2-2 एकड़ की जमीन दी। इसके बाद वर्ष 2013-14 में कुमाऊं मंडल के कालागढ़ से करीब 157 परिवारों को जंगल काटकर फिर यहां स्थापित किया गया। इन्हें भी घर और 2-2 एकड़ जमीन दी। यानी वन क्षेत्र के इतने बड़े भू-भाग को मैदान में बदल दिया गया। अब यहां रहने वाले वन्य जीव तो जिंदा रहने के लिए और कहीं जाएंगे ही।
यही जीव वाहन दुर्घटनाओं का भी शिकार होते हैं। बसाए गए सभी लोग वन गुज्जर हैं जो अपने पशुओं के चारे के लिए भी जंगलों पर ही निर्भर होते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जब मानवों ने वन्य जीवों के घरों पर कब्जा कर लिया है तो उनका जंगलों से बाहर आना स्वाभाविक है। इसी के चलते वो वाहन दुर्घटनाओं का शिकार भी होते रहते हैं।
ये जीव होते हैं दुर्घटनाओं के शिकार चीतल, जंगली सूअर, गुलदार सांभर, टाइगर, जंगली बिल्ली, बंदर, सांप, नेवला, लंगूर, बिज्जू भालू, पेंगु, इंडियन स्माल सीबैट, नीलगाय, ये वो जंगली जानवर है जो अब तक यहां वाहन दुर्घटनाओं का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठे हैं। इनमें से अधिकांश जीव अतिसंरक्षित प्रजाति के जीव है।
-अरुण कश्यप