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चमोली जिले का सीमांत क्षेत्र ‘चिपको आंदोलन’ की धरती रही है। यहां से गौरा देवी ने दुनिया के लोगों के सामने जंगल बचाने की मिसाल कायम की है। आज भी कई गांवों की महिलाएं अपने जंगल और चारागाह बचाने के लिए संघर्षशील हैं। पिछले कई दिनों से चमोली जिले का हेलंग गांव सोशल मीडिया की सुर्खियों में है। सबसे पहले इस गांव का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इस वीडियो में पुलिस और सीआईएसएफ के जवान एक महिला से घास छीनते नजर आ रहे हैं। इसके बाद पहाड़ सुलग उठा। देखते ही देखते धामी सरकार के लिए यह घास प्रकरण गले की फांस बन गई है

 

 

25 फरवरी, 2021
तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के शासनकाल में ‘घस्यारी कल्याण योजना’ की घोषणा की गई थी। धामी सरकार ने इसे गत फरवरी में अपनी मंजूरी दी थी। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड राज्य में जो महिलाएं जंगल से घास यानी चारा लाती हैं, उन्हें क्षेत्रीय भाषा में ‘घस्यारी’ नाम से बुलाया जाता है।


30 अक्टूबर, 2021
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस दिन ‘घस्यारी कल्याण योजना’ का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा था कि देवभूमि में पहाड़ की चोटियों से विपरीत मौसम में गाय- भैंस का चारा लाने में महिलाओं को बहुत दिक्कत आती है। इस योजना के तहत लगभग दो हजार किसान दो हजार एकड़ में मक्के की खेती करेंगे। इससे वैज्ञानिक तरीके से पशु आहार बनाया जाएगा। तकरीबन 1 लाख तक किसानों को इस योजना का फायदा पहुंचेगा। हालांकि पशुओं को थोड़ा बहुत गीला-हरा चारा डालना पड़ेगा। लेकिन पशुओं के चारे की व्यवस्था के लिए महिलाओं की ज्यादातर मेहनत समाप्त हो जाएगी। वे अपने बचे हुए समय को बच्चों को पढ़ाने या अन्य कार्यों में इस्तेमाल कर सकेंगी।


15 जुलाई, 2022
चमोली की हेलंग घाटी में घास ले जाती दो महिलाओं (घस्यारी) से सीआईएसएफ और पुलिस जवानों की नोक-झोंक हुई जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। पुलिस कर्मियों ने इन महिलाओं के साथ ही एक बच्चे को भी छह घंटे तक थाने में बैठा कर रखा और फिर 250-250 रुपए का चालान काटा।


21 जुलाई, 2022
जनपद चमोली के जोशीमठ क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं (घस्यारी) द्वारा वन से चारापत्ती लाने को लेकर हुए विवाद से संबंधित घटना का संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा कमिश्नर गढ़वाल को त्वरित रूप से जांच के आदेश दे दिए हैं।


उक्त घटना के सामने आने के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा है। नौ महीने पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जिस घस्यारी योजना का लोकार्पण करते हुए महिलाओं की परेशानी को कम करने का दावा कर रहे हैं वही उनकी उस घास को जबरन छीनकर पहाड़ को राजनीति का दंगल बना दिया गया। हालांकि घटना के छठे दिन मामले को गंभीरता से लेते हुए सीएम धामी ने गढ़वाल कमिश्नर को जांच के आदेश दिए हैं।

महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी को सबसे पहले पत्रकार और खानपुर के विधायक उमेश कुमार ने उठाया। उमेश ने अपने फेसबुक अकाउंट से इस मामले की निंदा करते हुए डीएम चमोली को भी आड़े हाथों लिया। साथ ही उन्होंने इस मामले में सीएम पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन सौंपकर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की। दूसरी ओर राज्य महिला आयोग ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है। भाकपा नेता इंद्रेश मैखुरी ने भी प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर मामले को गंभीरता से लेते हुए दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। महिला कांग्रेस ने इस मामले पर देहरादून में सिर पर घास की गठरी लेकर धरना-प्रदर्शन किया। गत् 24 जुलाई को विरोध स्वरूप हेलंग में सेकड़ों लोग पहुंचे। जहां सर्वदलीय समिति ने एक अगस्त को पूरे प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन करने का ऐलान किया। लोगों का कहना है कि यह बहुत चिंता का विषय है। इससे निश्चित ही लोग आंदोलित होंगे और एक न एक दिन ‘चिपको’, ‘रक्षा सूत्र’, ‘छीना झपटी’, ‘जंगल बचाओ’ जैसे आंदोलन फिर से शुरू हो सकते हैं। हेलंग आंदोलन को इसकी शुरुआत माना जा रहा है।


राज्य बनने के बाद यहां के जल, जंगल, जमीनों से लोगों के हक-हुकूक छीना जा रहा है। पहले गांव वाले जंगलों की रखवाली करते थे। वहां से पशुओं के लिए चारापत्ती, जलाने के लिए लकड़ी लाते थे। लेकिन धीरे- धीरे ग्रामीणों के हक-हुकूक को छीन लिया गया। चमोली जनपद के हेलंग में जो हुआ उसका पूरे उत्तराखण्ड में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। लोगों में इस बात को लेकर बेहद आक्रोश है। उनका कहना है कि महिलाएं उत्तराखण्ड राज्य की रीढ़ हैं, पहाड़ का सम्मान हैं, इस तरह से महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना क्या उचित है? पहाड़ी महिलाओं के बलबूते पर ही उत्तराखण्ड राज्य प्राप्त हुआ है। पशुपालन, खेती उनकी आजीविका का साधन हैं, चारा पत्ती घास लेने के लिए वे वन-भूमि पर ही निर्भर हैं, लेकिन केंद्रीय औद्योगिक पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार किया गया वह उचित नहीं कहा जा सकता है। लोगों का कहना है कि पहाड़ के लोग अपने ही पहाड़ों में बेगाने से हो गए हैं, जिन जंगलों, पहाड़ों को वे अपना मानते थे आज वे भू-माफिया, जल विद्युत कंपनियों की भेंट चढ़ते जा रहे हैं, ये कैसा विकास, जहां के वाशिंदों को अपने हकों के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है। यह तो सीधे पहाड़ के हक-हुकूक पर डाका है। चमोली की भावना अटवाल कहती है कि मान लिया कि हेलंग के ज्यादातर लोगों को सरकार और जल- विद्युत परियोजना ने मैनेज कर दिया हो, ग्राम सभा को विकास का लुभावना सपना दिखा दिया हो और उससे बढ़कर देश के विकास की दुहाई देकर लोगों को जल-विद्युत परियोजना के लिए तैयार कर दिया गया लेकिन डंपिंग जोन के बहाने जो चारागाह छीना गया है, उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती है, ऊपर से पुलिस की बर्बरता ने सरकार को न सही जनमानस को शर्मसार तो किया ही है।


दरअसल, विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना द्वारा अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट की बिजली परियोजना का निर्माण कार्य किया जा रहा है। जिसमें हेलंग साइट पर कंपनी द्वारा बैराज निर्माण का कार्य किया जा रहा है। निर्माण कार्य से निकलने वाले मक (मिट्टी) को डंपिंग करने के लिए टीएचडीसी को भूमि की जरूरत थी, जिसके लिए कंपनी ने हेलंग के कुछ नेताओं और प्रधान से मिलकर गांव वालों की चारापत्ती भूमि पर सौदा कर दिया। जिसका गांव वालों द्वारा निरंतर विरोध किया गया। कंपनी ने राह में रोड़ा बन रही मंदोदरी देवी, लीला देवी को हटाने के लिए गांव के कुछ लोगों को अपने पक्ष में कर रणनीति बनाई और ग्राम प्रधान के साथ ही चमोली जिला प्रशासन से मिलकर इस क्षेत्र में हेलंग के युवाओं के लिए खेल मैदान बनाने का शिगूफा छोड़ दिया। इसके बावजूद गांव की महिलाओं द्वारा वन भूमि से निरंतर चारा पत्ती लगाने के साथ ही डंपिंग का विरोध किया जा रहा था। बताया जा रहा है कि टीएचडीसी कंपनी ने इन महिलाओं को राह से हटाने के लिए ही सीआईएसएफ और जोशीमठ चमोली पुलिस के सहयोग से हेलंग की घास लेकर आ रही दो महिलाओं के साथ छीना-झपटी कर बदसलूकी की थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि टीएचडीसी कंपनी हेलंग में जिस स्थान पर डंपिंग कर खेल मैदान बनाने की बात कर रही है उस स्थान पर खेल मैदान बनाने का कोई औचित्य नहीं है। यह भूमि खेल मैदान बनने लायक है ही नहीं। कंपनी द्वारा केवल ग्रामीणों को गुमराह किया जा रहा है।


टीएचडीसी पर पहले भी लगा जुर्माना
उत्तराखण्ड में जून 15-16, 2013 की आपदा में भी बांध कंपनियों के पर्यावरणीय उल्लंघन के कारण आपदा में वृद्धि हुई थी। विष्णुप्रयाग परियोजना और श्रीनगर परियोजना में भी ऐसा ही हुआ। इसके बाद विष्णुगाड- पीपलकोटी परियोजना में भी यह सिद्ध हुआ कि बांध कंपनियों की मनमानी और नियमों को ताक पर रखने की आदत पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रही है। इसके चलते ही पांच साल पहले 13 अप्रेल 2017 को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) की प्रिंसिपल बेंच ने टीएचडीसी पर 50 लाख का जुर्माना लगाया था।


यह जुर्माना बांध कंपनी पर अलकनंदा नदी में कूड़ा और मक, जो कि विश्व बैंक के कर्ज से बन रहे विष्णुगाड-पीपलकोटी पावर प्लांट के पास बन रही एक रोड से निकला था, डालने पर लगाया गया था। यह फैसला एनजीटी कोर्ट ने जस्टिस स्वतंत्र सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच में विमल भाई बनाम केस में सुनाया। विमल भाई का केस अधिवक्ता ऋत्विक दत्ता और राहुल चौधरी (लीगल इनिशिएटिव फॉर फारेस्ट एंड एनवायरनमेंट) ने लड़ा। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना के पर्यावरणीय उल्लंघनों पर आया आदेश बहुत ही महत्वपूर्ण है। साथ ही बांध कंपनियों तथा विश्व बैंक, राज्य सरकार, केंद्र सरकार के लिए सबक भी है।


साल भर से ज्यादा चली कानूनी लड़ाई में टीएचडीसी बार-बार यह कहती रही की उसने कभी भी नदी मक में नहीं डाली। लेकिन स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता में न्यायायिक पीठ ने वादी द्वारा प्रस्तुत किए गए सबूतों के आधार पर टीएचडीसी को नदी में मक डालने का दोषी माना और 50 लाख का जुर्माना किया। याद रहे कि उत्तराखण्ड में किसी भी बांध कंपनी के पर्यावरणीय उल्लंघनों पर इस तरह का यह पहला आदेश और जुर्माना था।

खेल मैदान में ‘खेला’

पहाड़ के ढलान पर बना खेल मैदान, इसी को बनाया टीएचडीसी का डंपिंग ग्राउंड

हेलंग में जिस डंपिंग जोन को लेकर ग्रामीण विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं उस पर प्रशासन ने खेला कर दिया। जोशीमठ के उप जिलाधिकारी के पत्र में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आ रही है। 23 मई 2022 को उप जिलाधिकारी जोशीमठ द्वारा टीएचडीसी के महाप्रबंधक को लिखा गया पत्र इस कहानी को सामने ला रहा है। सवाल यह है कि किस आधार पर हेलंग गांव में राज्य सरकार की भूमि पर टीएचडीसी को बच्चों के खेल का मैदान बनाने के नाम पर आवंटित कर दिया गया।

 

 


उप जिलाधिकारी का यह पत्र जिसमें खेल मैदान को डंपिंग जोन के लिए दिया गया


इस मैदान में टीएचडीसी का डंपिंग जोन बनाया गया है। इसकी वकालत करते हुए उप जिलाधिकारी जोशीमठ अपने पत्र में कहते हैं कि टीएचडीसी के टनल से निकाले गए मलबे को डंपिंग जोन में डाला जा रहा है, यदि खसरा नंबर 445 में कुछ मलबा डाला जाए तो उक्त स्थान पर खेल मैदान बन सकता है। साथ ही वह यह भी दलील देते हैं कि उक्त संबंध में ग्राम वासियों को कोई आपत्ति नहीं है। उनके द्वारा इस संबंध में अनापत्ति प्रमाण पत्र भी दिया गया है। इस खेल के मैदान को देखने पर पता चलता है कि यह ढलान है। मतलब यह कि यहां पर कोई खेल आयोजित नहीं हो सकता। खेल का मैदान सिर्फ समतल एरिया में ही बनाया जा सकता है। लेकिन टीएचडीसी पर मेहरबान जोशीमठ का प्रशासन इस खेल के मैदान को डंपिंग जोन में तब्दील करने के लिए किस तरह लालायित है यह एसडीएम के पत्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। फिलहाल, इसी डंपिंग जोन पर कंपनी के ट्रक भर-भर कर मलबा डाल रहे थे। जो कि नदी की धारा को प्रभावित कर रहा है। इससे आपदा आने की आशंका प्रबल हो रही हैं। ग्रामीण इससे भयभीत है और प्रशासन तथा टीएचडीसी गठजोड़ से मुकाबला करने में अपने आप को अहसाय महसूस कर रहे हैं।

 


हाट का अनुसुना दर्द

पुनर्वास संबंधित समस्याओं को लेकर धरना-प्रदर्शन करते हाट गांव के प्रभावित लोग


हाट गांव के नीचे विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का विद्युत गृह बन रहा है। प्रभावितों ने अपने पुनर्वास से संबंधित मामले में अधिकारियों को 13 साल से लगातार पत्र भेजे हैं। लेकिन आज तक कोई नतीजा नहीं निकला। जिससे उनका जीवन दूभर हो गया है। हाट गांव का पुनर्वास स्थल तक सही नहीं बन पाया। यही नहीं बल्कि आस-पास के पर्यावरण व संस्कृति पर अनुकुल असर पड़ रहा है। जिसमें शिवनगरी, छोटी काशी नगरी व मठ मंदिर भी आते हैं। हाट गांव के हरसारी तोक के बाशिंदों की समस्याएं भी वैसी ही हैं। प्रभावित लोग परेशान होकर कई बार विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना का काम रोककर धरने पर बैठे हैं। लेकिन उनकी मांग हर बार अनसुनी कर दी जाती है।


गौरतलब है कि हाट गांव के पुनर्वास के लिए टीएचडीसी ने जो विकल्प सुझाए थे उसमें से एक लाख प्रति नाली भूमि का मुआवजा और दस लाख रुपये 3 किस्तों में पुनर्वास सहायता के रुप में मंजूर किए थे। परिस्थिति ही ऐसी थीं कि ग्रामीणों ने स्वयं हाट गांव के सामने नदी पार की अपनी खेती वाली जमीन पर ही बिना किसी योजना के मकान बनाए। बेहतर होता कि लोगों को योजनाबद्ध रुप से बसाया जाता। एक ऐसी रिहायशी बस्ती बनाई जाती जिसमें पानी, बिजली, स्कूल, मंदिर, अस्पताल, डाक घर, बैंक एवं अन्य जरूरत की सुविधाएं उपलब्ध होती। पुनर्वास नीति में लिखा है कि विस्थापन, विस्थापितों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाएगा। किन्तु ऐसा हाट गांव के विस्थापन में नही हुआ। लोग अपनी खेतीहर भूमि पर जगह-जगह बिखरकर रह गए हैं। इन सुविधाओं के अभाव के कारण लोगों का जीवन स्तर ऊपर नही उठा। पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधाएं, जो सहज ही उपलब्ध थी, उनके लिए भी उन्हें प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है।


गांव के लोगों का कहना है कि विश्व बैंक द्वारा लोगों के बनाए मकानों को ‘सुन्दर पुनर्वास’ के रुप में प्रचारित किया गया है। जबकि असलियत यह है कि ज्यादातर मकान कर्जा लेकर बनाए गए हैं और कुछ अभी अधूरे भी हैं। प्रभावितों का शुरू से कहना है कि तत्कालीन हाट ग्राम प्रधान व उनके साथ 9 अन्य लोगों ने 26 जून 2009 को पूरे गांव के विस्थापन का निर्णय बिना गांव की आम सहमति के ले लिया था। हाट गांव से अलग हरसारी तोक में रहने वाले लोगों का कहना है कि यहां टीएचडीसी कंपनी के अधिकारी एवं कर्मचारी और उनके ठेकेदार के लोग अलग-अलग आते हैं। जिससे हमारे गांव की बहनों के मान- सम्मान का खतरा बराबर बना रहता है। वे हमें अलग-अलग तरह से धमकाते हैं। हम यहां डर के साए में जीते हैं। कंपनी के लोग हम पर झूठे और गलत मुकदमे लगाने की कोशिश करते हैं। उन्होंने हमको धमकी दी है कि अदालत से एक मुकदमा खारिज हुआ है। हम तुम पर ढेर सारे मुकदमे लगा कर तुम्हारा जीना हराम कर देंगे।


याद रहे कि इस मामले में 27 मार्च 2019 को चमोली न्यायालय ने टीएचडीसी कंपनी द्वारा डाले गए एक मुकदमें को खारिज किया है। न्यायालय का आदेश बताता है कि किस तरह कंपनी लोगों की उचित मांगों को दबाने के लिए हर अन्याय पूर्ण तरीका इस्तेमाल कर रही है। जब से उक्त बांध की शुरुआत हुई है, तब से हरसारी तोक की खेती, पानी, शांत जीवन खराब हो गया है। अत्यधिक ब्लास्टिंग के कारण तो चैन की नींद लेना भी मुश्किल हो चुका है। लोगों की चिंता यह है कि भविष्य में मकान व आजीविका भी कैसे बचेंगे? जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो फिर बांध का कार्य रोकना लोगों के पास आखिरी तरीका बचा।
गौरतलब है कि प्राकृतिक आपदा के उपरांत प्रभावित लोगों के पुनर्वास नीति 2011 के अनुसार राज्य में कुल 83 गांव एवं 1447 परिवारों को पुनर्वासित किया गया। जिसके लिए 61 करोड़ 02 लाख 35 हजार रुपये की धनराशि प्रदान की गई। जिसमें से वर्ष 2017 से पहले 02 गांवों के 11 परिवारों को जबकि वर्ष 2017 के बाद से 81 गांवों के 1436 परिवारों को पुनर्वासित किया गया। इनमें चमोली जनपद के 15 गांवों के 279 परिवार भी शामिल हैं।

 

विष्णुगाड़ पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना से लगभग 22 गांव प्रभावित हैं। कंपनी द्वारा 15 सालों में पूर्ण प्रभावित हाट गांव के ग्रामीणों का अभी तक सही से विस्थापन नहीं किया गया। लोगों को आज भी उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया गया है। लोग दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। कंपनी ने प्रभावित क्षेत्र में अंग्रेजी विद्यालय, हॉस्पिटल और खेल मैदान बनाने का वादा किया गया था। लेकिन अभी तक बनना तो दूर इसकी नींव तक नहीं रखी गई है। केवल कुछ लोगों से मिलकर लोगों को हमेशा गुमराह किया गया।
पंकज हटवाल, ज्येष्ठ प्रमुख दशोली ब्लॉक

 

परियोजना प्रभावितों की एक भी मांग टीएचडीसी की ओर से पूरी नहीं की गई है। क्षेत्र में मठ-मंदिरों के संरक्षण व सौंदर्यीकरण करने, पुनर्वास स्थल धस्वाणा तोक तक सड़क निर्माण करने, ग्रामीणों को चारा-पत्ती का लाभ देने, हाट गांव के बेरोजगारों को परियोजना में स्थाई नियुक्ति देने, हरसारी तोक का पूर्ण पुनर्वास करने, प्रभावित क्षेत्र के तकनीकी प्रशिक्षितों को परियोजना में नौकरी देने, रास्तों का पुनर्निर्माण करने आदि की मांग वर्षों से लंबित है।
राजेंद्र हटवाल, ग्राम प्रधान हाट


बात अपनी-अपनी
डीएम इस मामले में पीड़ित महिलाओं से व्यक्तिगत रूप से संपर्क करें। डीएम को यह भी कहा गया है कि किसी भी महिला या किशोरी को प्रताड़ित न किया जाए। डीएम ने इस मामले में आयोग को जो रिपोर्ट दी है, उसमें बताया है कि इस भूमि से लगे हुए दो परिवारों ने समय-समय पर खेल के मैदान को बनाने का कार्य रोका।
कुसुम कंडवाल, अध्यक्ष महिला आयोग उत्तराखण्ड


प्रदेश सरकार को यह समझना चाहिए कि उत्तराखण्ड के लोगों ने जल, जंगल, जमीन पर जनता के अधिकार के लिए राज्य की लड़ाई लड़ी थी माफिया का वर्चस्व स्थापित करने के लिए आमजन ने उत्तराखण्ड राज्य की लड़ाई नहीं लड़ी थी। आज भी खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर कांड के घाव हरे हैं और ऊपर से राज्य बनने के दो दशक बाद भी घाव पर नमक छिड़कने जैसा अपमानित करने वाला व्यवहार कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
कामरेड राजा बहुगुणा, राज्य सचिव, भाकपा माले


अपने परंपरागत चारागाहों से घास ले जाने पर जिस तरह पुलिस प्रशासन के द्वारा लुटेरी जल विद्युत परियोजनाओं की हिमायत की जा रही है वह असहनीय है। राज्य में इस तरह की घटनाएं हमें मुजफ्फरनगर कांड की अपमानजनक घटनाओं की याद दिलाती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस घटना में शामिल विद्युत परियोजना अधिकारियों, पुलिस प्रशासन व सुरक्षा बलों के खिलाफ जांच करके सख्त कार्रवाई करे।
पीसी तिवारी, केंद्रीय अध्यक्ष उपपा


उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर हजारों नाली भूमि, जंगल, चरागाह की भूमि, पनघट, पंचायत की भूमि पहले ही कंपनियों को दे दी गई है। इसके बाद भी कंपनियों की नीयत लोगों की सामूहिक हक- हुकूक की भूमि को भी हड़प लेने की है। इससे आम ग्रामीणों के लिए घास, चारा, लकड़ी का संकट पैदा हो गया है।
ज्योति रौतेला, प्रदेश अध्यक्ष महिला कांग्रेस

 

 

मंदोदरी देवी का दर्द


वायरल वीडियो में जिस महिला का घास का गट्ठर पुलिस प्रशासन द्वारा जबरन छीना गया था उस महिला का नाम मंदोदरी देवी है। मंदोदरी देवी की उम्र 57 वर्ष है और हेलंग की निवासी हैं। मंदोदरी देवी ने बातचीत के दौरान बताया कि उनके गांव के पास टीएचडीसी विद्युत परियोजना (भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार का साझा वेन्यू प्रोजेक्ट है) के द्वारा खेल मैदान बनाने की बात चल रही है। एचसीसी नामक कंपनी टीएचडीसी कंपनी की ठेकेदार कंपनी है जो इसके सारे प्रोजेक्ट्स का ठेका लेती है। कंपनी ने पहले गांव लोगों के लिए प्ले ग्राउंड बनाने की बात की परंतु असल में वहां एचसीसी कंपनी मलबा डंप करने की कोशिश कर रही है। हम 10-12 लोग लगातार मई माह के अंत से इस डंपिंग के खिलाफ रात-दिन बारी-बारी से सड़क के किनारे बैठ रहे थे और हमने कई दिनों तक इस डंपिंग को रोका था। परंतु 5 जून के बाद इस जगह पर कंपनी ने पेड़ काटे थे जिसका हमने विरोध किया और विरोध करने पर हमें वहां से धक्का देकर हटाया गया था। इसके बाद भी हमलोग मलबा डंप करने के विरोध में पूर्व की भांति जुटे रहे। इसलिए हम लोग कंपनी की नजर में थे और इस बीच कंपनी ने कई बार समझौता करने के लिए लालच भी दिया। इसके अतिरिक्त कानूनगो, तहसीलदार, रेंजर और पटवारी ने हमें विरोध न करने की सलाह दी और कहा कि यह राजस्व भूमि है। घटना के दिन मैं रोज की तरह सुबह 9 बजे घास लेने के लिए घर से निकली थी और घास का गट्ठर लेकर करीब 11 बजे घर को लौट रही थी। घटनास्थल पर पहुंचते ही केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और पुलिस बल, कानूनगो और पटवारी वहां मौजूद थे। मौजूद महिला पुलिस को आदेश दिया गया कि इन्हें गाड़ी में बिठाओ। मैंने अनुरोध किया कि मुझे घर जाने दिया जाए पर उन्होंने एक नहीं सुनी।


प्रस्तुति भारती पाण्डेय

 

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