हरक सिंह रावत एक बेहद विवादास्पद लेकिन कद्दावर नेता बतौर बीते तीन दशक से उत्तराखण्ड की राजनीति में मजबूती से जमे हुए ऐेसे नेता हैं जो वर्तमान समय में पूरी तरह हाशिए पर डाल दिए गए हैं। कहने को तो वे कांग्रेस में हैं लेकिन पार्टी उनसे दूरी बनाकर चल रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाली हरक सिंह की पुत्रवधू अनुकृति गोसांई को भाजपा खास तवज्जो नहीं दे रही है। ईडी और सीबीआई का लगातार हरक सिंह पर दबाव बढ़ रहा है। ऐसे कठिन समय में गत् दिनों हरक सिंह ने यह कहकर कि यदि उन्हें ज्यादा परेशान किया गया तो वे कई राज उगल देंगे, प्रदेश की राजनीति को गर्मा दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि हरक सिंह का यह बयान कोरी धमकी है या फिर उपेक्षा का दंश न सह पा रहे हरक सिंह कुछ बड़ा धमाका करने जा रहे हैं
बीते तीन दशक से उत्तराखण्ड की राजनीति का बड़ा चेहरा रहे हरक सिंह रावत का बुरा समय चल रहा है। कभी ‘हरक को नहीं पड़ता फरक’ कहने वाले हरक सिंह को राजनीतिक तौर पर निश्चित ही फरक पड़ा है। भाजपा से बसपा, बसपा से कांग्रेस, कांग्रेस से भाजपा और फिर वापस कांग्रेस में अपना राजनीतिक भविष्य तलाशने वालेे हरक सिंह वर्तमान समय में नाना प्रकार की जांचों के दायरे में कैद हो अपना राजनीतिक कद गंवा चुके हैं। हैरत की बात यह है कि दल बदल करने के बावजूद हरक सिंह की राजनीति में कभी कोई फरक नहीं पड़ा लेकिन मौजूदा समय में हरक सिंह रावत प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से हाशिए पर चले गए हैं।
हरक सिंह रावत बड़े-बड़े विवादों के बावजूद उत्तराखण्ड में मुख्यधारा की राजनीति में बने रहे हैं। गढ़वाल विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से निकले हरक सिंह के चलते कहा जाता हेै कि किसी तरह का अनुशासन और बंदिश उनके लिए बनी ही नहीं है। अपने विवादित बयानों और कार्यशैली के चलते हर सरकार और हर पार्टी में वे अपने ही नेताओं के निशाने पर आते रहे हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय भाजपा की कल्याण सिंह सरकार में पर्यटन राज्यमंत्री हरक सिंह का कुछ ही वर्षों में भाजपा से मोहभंग हो गया और वे बसपा में चले गए। बसपा की मायावती सरकार के दौरान उनको खादी और ग्रामोउद्योग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। इस दौरान उन्होंने रूद्रप्रयाग जिले का गठन करवाकर अपनी राजनीेतिक धाक का परिचय दिया था। हालांकि बसपा से भी हरक सिंह का मोह जल्द ही भंग हो गया और वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।
पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार में हरक सिंह राजस्व मंत्री बने। इस दौरान पटवारी भर्ती घोटाला सामने आया जिसमें हरक सिंह रावत पर भी उंगलियां उठी थी। इसी दौरान हरक सिंह रावत जैनी सेक्स स्कैंडल में भी फंसे। हालांकि वे इससे भी बाहर निकलने में सफल रहे लेकिन इस प्रकरण के बाद उनकी राजनीति में कुछ समय के लिए एक बड़ा ठहराव आ गया और जब तक कांग्रेस सरकार रही तब तक हरक सिंह बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए।
2007 में प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हुआ और भाजपा की खण्डूड़ी सरकार सत्ता में आई। हरक सिंह अपने तमाम विरोध के बावजूद नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पाने में सफल रहे। इसके बाद उनकी राजनीतिक ताकत में तो बढ़ावा हुआ ही साथ ही कांग्रेस पार्टी में उनका दखल और दमखम मजबूत हुआ। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उन्होंने भाजपा सरकार के खिलाफ अनेक मामलों में सदन से लेकर सड़क तक सरकार को घेरने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उनके विरोधी भी स्वीकारते हैं कि जिस तरह से मौजूदा समय में कांग्रेस विपक्ष की राजनीति का प्रदर्शन कर रही है वह हरक सिंह रावत के कार्यकाल के आस-पास भी नहीं है। अब कांग्रेस विपक्ष की भूमिका उस प्रकार से न तो सदन में दिखा पा रही है और न ही सड़कों पर उसका मजबूत प्रदर्शन नजर आता है।
हरक सिंह पहले ऐसे नेता हैं जो दो-दो मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। भाजपा की निशंक सरकार के दौरान उन्होंने सरकार के खिलाफ जमकर मोर्चा लिया और सदन से लेकर सड़क तक आंदोलन करके न सिर्फ सरकार को घेरा, बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी एक नया उत्साह पैदा किया। हालांकि निशंक सरकार के दौरान हरक सिंह पर सहसपुर में करोड़ों की भूमि हड़पने का आरोप भी लगा था जिस पर जमकर राजनीति भी हुई और निश्ंाक सरकार ने जांच के आदेश भी दिए थे लेकिन हरक इससे भी बच निकले।
2012 में हरक सिंह रावत चुनाव जीतकर बहुगुणा सरकार में कृषि और स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री बने। कांग्रेस सरकार के गठन के दौरान चले राजनीतिक गहमागहमी के बीच हरक सिंह रावत विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के कारण इतना नाराज हो गए थे कि मंत्री न बनने के लिए उन्हांेने सार्वजनिक तौर पर धारी देवी तक की कसम खाई लेकिन कुछ ही समय बाद वे अपनी कसम तक भूल गए और बहुगुणा सरकार में मंत्री बन गए।
विवादों ने यहां भी लेकिन उनका पीछा नहीं छोड़ा। 17 सितम्बर, 2013 को उनके सरकारी आवास में एक गोली कांड खूब चर्चाओं में रहा था। इस प्रकरण में विधायक कुंवर प्रणव चैम्पियन किसी बात पर इतना नाराज हो गए कि उन्होंने अपने रिवाल्वर से गोलियां चला दी जिसमें वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विवेकानंद खण्डूड़ी घायल हो गए। हालांकि इस मामले को सत्ता की ताकत ने अचानक से गोली चलने की बात कहकर दबा दिया। इसके अलावा हरक सिंह रावत पर अपनी खास चहेती एक महिला अफसर को बीज प्रमाणीकरण संस्थान में निदेशक बनाने के लिए तमाम नियम- कायदों को ताक पर रखने का आरोप भी लगा। उक्त महिला अधिकारी सहसपुर खंड शिक्षा अधिकारी के पद पर तैनात थी लेकिन उनको निदेशक बनाने के लिए शिक्षा विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र तक नहीं लिया गया।
हरीश रावत सरकार के दौरान भी हरक सिंह और मुख्यमंत्री के रिश्ते बिगड़ते रहे। दोनांे के बीच राजनीतिक मनभेद इस कदर बढ़ गए कि मार्च 2016 में बजट सत्र के दौरान हरक सिंह रावत और आठ अन्य कांग्रेसी विधायकों द्वारा सरकार के खिलाफ जाकर भाजपा का साथ दिया जिससे सरकार सदन में अल्पमत में आ गई और पहली बार राज्य में राष्ट्रपति शासन तक लगा। इस दलबदल के हरक सिंह रावत मुख्य सूत्रधार रहे थे। उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस में बड़ी टूट हुई। हरक सिंह रावत पर अपने ही पुराने मित्र और कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट का स्टिंग ऑपरेशन कराने का भी आरोप इसी दौरान लगा जिसमें उन्होंने अपने आवास पर मदन बिष्ट को बुलाकर सरकार बनने और गिराए जाने के लिए खरीद-फरोख्त का स्टिंग ऑपरेशन किया गया और उसे सार्वजनिक भी कर दिया।
2017 में भाजपा प्रचंड बहुत से सत्ता में आई और त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री बने। हरक सिंह रावत फिर से सरकार में वन मंत्री बने। इस दौरान कई मामलों में हरक सिंह विवादों में घिरे जिसमें सबसे चार्चित पाखरो रेंज में टाईगर सफारी के निर्माण में बड़ा घोटाला होने के आरोप लगे। इसी मामले में हरक सिंह रावत पर ईडी के साथ ही सीबीआई जांच अब चल रही है।
अपने बेबाक बयानी से हरक सिंह त्रिवेंद्र सरकार में भी चर्चाओं में रहे। प्रधानमंत्री कौशल विकास मिशन में हुए बड़े घोटाले सामने आए जिसमें शुरुआती दौर पर हरक सिंह खासे मुखर रहे और इसके लिए वे ईशारों-ईशारों में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को जिम्मदार बताते रहे। बताते चलें कि कौशल विकास योजना मुख्यमंत्री के पास ही थी जो कि एक वर्ष के बाद हरक सिंह रावत को इस विभाग का जिम्मा दिया गया। लेकिन इस विभाग में घपले होने के आरोप लगते ही रहे।
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले हरक सिंह ने यकायक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए भाजपा को अलविदा कहकर फिर से कांग्रेस का दामन थाम लिया और हरिद्वार संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गए। हालांकि इस बीच ईडी और सीबीआई जांच के फंदे में आने के बाद उन्हें कांग्रेस ने हरिद्वार सीट या अन्य किसी सीट पर चुनाव लड़ाने से परहेज किया। न तो चुनाव प्रचार में उनको पार्टी ने बुलाया और न ही हरक सिंह ने स्वयं कोई प्रयास किया।
कांग्रेस में हरक सिंह रावत की भूमिका अब ज्यादा देखने को नहीं मिल रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में महज एक नेता के तौर पर ही देखे जा रहे हैं। न तो उनको कांग्रेस संगठन में जगह मिली और न ही पार्टी कार्यक्रमों में उनकी भूमिका देखी गई है। दिलचस्प बात यह है कि पाखरो टाईगर सफारी के मामले में हरक सिंह पर जांच की आंच आने के बावजूद कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं ने उनके पक्ष में न कोई बयान दिया और न ही हरक सिंह रावत के पक्ष में सड़कांे पर आंदोलन किया गया।
सूत्रों की मानंे तो हरक सिंह रावत अपने ऊपर लगे आरोपों और जांच को लेकर कांग्रेस पार्टी का साथ वैसा ही चाहते थे जैसे राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ ईडी की जांच मामले में कांग्रेस ने रुख दिखाया था और ईडी कार्यालयों का घेराव किया। लेकिन हरक सिंह रावत के साथ ऐसा नहीं हुआ जिसकी पीड़ा उनको हो रही है और वे इस बात को गाहे-बगाहे कहने से चूके नहीं हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में हरक सिंह रावत ने पार्टी द्वारा अपनी उपेक्षा होने पर एक बार फिर से कांग्रेस पर दबाव बनाने का काम किया और अपनी पुत्रवधु अनुकृति रावत को भाजपा में शामिल करवा दिया। हरक के इस बड़े कदम को कांग्रेस में अपनी बड़ी भूमिका बनाने का प्रयास के तौर पर माना गया। लेकिन पार्टी को इससे कोई खास फर्क पड़ा हो ऐसा भी देखने को नहीं मिला।
गढ़वाल संसदीय सीट पर कांग्रेस ने गणेश गोदियाल को टिकट दिया। हरक सिंह रावत की इस पूरे चुनाव के दौरान भूमिका देखने को नहीं मिली। जबकि हरक सिंह रावत गढ़वाल संसदीय सीट पर मजबूत जनाधार रखते रहे हैं। बावजूद इसके उन्होंने गणेश गोदियाल के समर्थन में उतरने से परहेज किया। इसके चलते गोदियाल ने वोटिंग के बाद ईशारों में हरक सिंह रावत पर तंज कसते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस मंे कई ऐसे नेता हैं जो भाजपा के लिए काम करते हैं।
अब हरक सिंह फिर से दोराहे पर हैं। कांग्रेस में बड़े नेता होने के बावजूद वे एक तरह से हाशिए पर ही हैं। लेकिन उनके एक बयान से
भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सांसें फुलाने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है कि उनको ज्यादा परेशान किया जाएगा तो वे सबकी पोल खोल सकते हैं। उनके पास सभी के मामले हैं, वे जब चाहे उनको सार्वजनिक कर सकते हैं।
हरक सिंह के इस बयान से प्रदेश की राजनीति में खासी हलचल देखने को मिल रही है। राजनीतिक जानकार भी इसे सामान्य तौर पर नहीं ले रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस सरकारों में हरक सिंह रावत का बड़ा दखल रहा और दोनों ही सरकारों में वे कैबिनेट मंत्री रहे। इसके चलते वे कई गोपनीय मामलों की पूरी जानकारी रखते हैं। साथ ही हो सकता है कि इनके पीछे कुछ स्टिंग ऑपरेशन भी हो सकते हैं जिनके सार्वजनिक होने से कइयों की राजनीति में हलचल मच सकती है। जबकि कुछ जानकार कहते हैं कि हरक सिंह अपने को हाशिए पर धकेले जाने से खिन्न हैं और इस तरह की बयानबाजी कर वे अपनी राजनीति फिर से चमकाने का प्रयास कर रहे हैं।
बहरहाल हकीकत क्या है यह तो हरक सिंह रावत ही बता सकते हैं लेकिन मौूजदा दौर को देखें तो हरक सिंह रावत पहली बार राजनीतिक परिदृश्य से गायब नजर आ रहे हैं। जिस नेता के पीछे प्रदेश की राजनीति करवट लेती रही हो वही नेता अब अपने राजनीतिक भविष्य के लिए छटपटाता नजर आ रहा है। भाजपा में फिर से शामिल होने की चर्चाएं भी इसी छटपटाहट को दर्शा रही है।