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Uttarakhand

‘हमारे पथ प्रदर्शक हैं हरीश रावत’

उत्तराखण्ड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह को झारखंड का सीनियर ऑब्जर्वर बनाने के बाद पार्टी आलाकमान ने उन्हें केंद्रीय चुनाव समिति में जगह दी है जिससे प्रीतम का प्रदेश के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में कद काफी बढ़ गया है। प्रदेश से वे अकेले नेता हैं जिन्हें ये जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनको पार्टी की ओर से दी गई अहम जिम्मेदारी से निश्चित तौर पर उत्तराखण्ड कांग्रेस को एक नई संजीवनी मिल गई है। उन्होंने अपना राजनीतिक सफर 1988 में शुरू किया, तब उन्हें चकराता का ब्लॉक प्रमुख बनाया गया था। वह 6 बार से चकराता विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। एक बार टिहरी लोकसभा का चुनाव भी लड़ा। हालांकि वे हार गए। प्रीतम देहरादून जिले के विरनाड गांव में राजपूत परिवार के घर से संबंध रखते हैं। वे कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे गुलाब सिंह के बड़े बेटे हैं, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे तथा उत्तर प्रदेश विधानसभा के आठ बार सदस्य और मंत्री भी रहे। प्रीतम सिंह वर्ष 2017 से 2021 तक प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके बाद उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी गई। दो बार मंत्री पद पर सुशोभित भी रहे हैं। उनसे देश के साथ ही प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति और भावी रणनीति पर
‘दि संडे पोस्ट’ रोविंग एसोसिएट एडिटर आकाश नागर की बातचीत

कांग्रेस हाईकमान ने आपको बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। आप इस जिम्मेदारी का निर्वहन कैसे करेंगे?

मैं सबसे पहले अपने राष्ट्रीय नेतृत्व का आभार व्यक्त करना चाहता हूं कि हमारे अध्यक्ष जी, सोनिया जी और राहुल जी सहित तमाम नेताओं ने यह जो जिम्मेदारी मुझे सौंपी है इसका निर्वहन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करूंगा। ये सौभाग्य है मेरा कांग्रेस का एक छोटा-सा कार्यकर्ता हूं तब भी राष्ट्रीय नेतृत्व ने मुझे ये बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। जैसा कि आपको विदित है कि इस पद पर मुझे वह कार्य करने का अवसर दिया गया है जिसमें लोकसभा-विधानसभा के चुनावों के लिए योग्य प्रत्याशी का चयन किया जाता है। हमारी कोशिश होगी कि हम ऐसे प्रत्याशियों को टिकट देने का काम करें जिन्हें जीत हासिल हो सके। आज जो हालात हैं, जो परिस्थितियां हैं, निश्चित रूप से मैं कह सकता हूं कि सत्ता में बैठे हुए लोगों ने देश के साम्प्रदायिक सौहार्द को समाप्त करने का काम किया है। भाई से भाई को लड़ाने का काम किया है। देश के संविधान के विपरीत सत्ता में बैठे हुए लोग आचरण कर रहे हैं। इनके खिलाफ जंग लड़ने के लिए ‘इंडिया गठबंधन’ देश के अंदर तैयार हुआ है। यह गठबंधन जबसे बना है तब से सत्ता पक्ष के लोगों में घबराहट है कि 2024 के चुनाव में हम किस तरह से विजय हासिल कर सकेंगे। हमारी कोशिश है, प्रयास है कि अच्छे लोग आएं उनको टिकट दिलवाएं और जीत हासिल हो सके।

देश में आगामी दिनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। जहां पार्टी की गुटबाजी भी देखने को मिलती है। ऐसे में आप उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में कैसे पारदर्शिता निभाएंगे?
आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जो आप अंतर्विरोध की बात कर रहे हैं ये अंतर्विरोध नहीं है। कांग्रेस का एक-एक कार्यकर्ता, नेता पूरी निष्ठा के साथ काम कर रहा है और जब टिकट फाइनल होगा तो सबसे सलाह-मशविरा किया जाएगा। उसकी भी एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के तहत ही टिकट दिए जाएंगे।

ऐसे में जब इंडिया में प्रधानमंत्री पद के बहुत दावेदार हैं। विभिन्न घटकों के मध्य एकता की कमी भी है तब कैसे भाजपा का मुकाबला करेंगे?
‘इंडिया गठबंधन’ में प्रधानमंत्री का कोई दावेदार नहीं है। जब गठबंधन होता है स्वाभाविक बात है कि हर गठबंधन के नेता के समर्थन में ऐसी बातें होती रही हैं। गठबंधन के नेता एकजुट होकर पहले चुनाव लड़ेंगे उसके बाद ही जब कोई नेता तय होगा, वहीं ‘इंडिया गठबंधन’ की सरकार चलाने का अधिकारी होगा।

उत्तराखण्ड में भी पार्टी कलहबाजी का शिकार है। यहां कई गुट हैं आपकी पार्टी में, उसे कैसे दूर किया जा सकता है?
यह आप स्वयं कह रहे हैं। ऐसा कहीं नहीं है। बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देने का काम किया है। अगर पार्टी में कोई अंतरद्वंद होता या मतभेद तो इतने ज्यादा वोट हम हासिल नहीं कर पाते। बागेश्वर में कांग्रेस के एक-एक नेता, कार्यकर्ता ने दिल से मेहनत की। आपने भी देखा होगा सत्ता पक्ष के लोगों ने जिस तरीके से सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया वह सामने है। महंगाई अपने चरम पर है। नौजवान साथियों को रोजगार नहीं मिल रहा है। अंकिता भंडारी हत्याकांड आपके सामने है। बेरोजगार साथियों पर लाठीचार्ज करके उनका दमन किया जा रहा है। किसानों की आय अभी तक दोगुनी नहीं हुई है। अर्थव्यवस्था ध्वस्त है। विकास कार्य अवरुद्ध हैं। ऐसे में बहुत सारे मुद्दे हैं। उसका संज्ञान बागेश्वर की जनता ने लिया। बेशक यह सत्ता पक्ष की जीत है लेकिन वह स्वयं इस बात को कह रहे हैं कि हम इसका विश्लेषण करेंगे। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उत्तराखण्ड सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। उत्तराखण्ड हो या देश दोनों जगह सत्ता में बैठी सरकार का विरोध है। ‘इंडिया गठबंधन’ से केंद्र की सरकार इतनी घबराई हुई है कि अब उन्होंने ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ शब्द का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। सवाल है कि क्यों इंडिया शब्द पर बैन लगाया जा रहा है?

बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव में पार्टी नेताओं की एकता तो दिखी लेकिन आपसी सामंजस्य नहीं दिखाई दिया?

आपका आकलन ठीक है लेकिन मैं समझता हूं कि कांग्रेस के एक-एक साथी ने जो उनसे बन पड़ता था वह उन्होंने किया। अगर यही चुनाव हम जीत गए होते तो फिर कोई सामंजस्य और समन्वय की बात नहीं करता। हम सरकार के खिलाफ लड़ रहे थे। सरकार मशीनरी का दुरुपयोग कर रही थी। कांग्रेस मजबूती से चुनाव लड़ी इसलिए मुख्यमंत्री को वहां डेरा डालना पड़ा। तमाम मंत्रियों को वहां जाना पड़ा। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे प्रत्याशी के खिलाफ सत्ता में बैठे लोगों ने किस तरह का व्यवहार किया।

कांग्रेस मैनेजमेंट के मुकाबले में भाजपा से कमतर क्यों है। कहा गया कि बागेश्वर उपचुनाव में अगर कांग्रेस अपनी मैनेजमेंट ही मजबूत कर लेती तो आज विजेता की भूमिका में होती?
बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव का जो वातावरण था उससे सत्ता में बैठे लोग भयभीत थे और इसके डर से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने चुनाव पर्यवेक्षक की शिकायत की। हम पूरी मजबूती से चुनाव लड़े हैं और उसका परिणाम भी सामने आया है।

सरकार के खिलाफ जनता में आक्रोश है, लोग कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार बहुत बढ़ रहा है बावजूद इसके कांग्रेस इस माहौल को अपने पक्ष में करने में नाकाम क्यों साबित हो रही है?
जनता का आक्रोश मुख्यमंत्री के प्रति नहीं सरकार के प्रति है। भाजपा के प्रति भी लोगों में आक्रोश है। जिस तरह का वातावरण इस राज्य में भाजपा ने और सरकार ने बनाने का काम किया है उसके प्रति लोगों में आक्रोश है। मैं पहले भी कह चुका हूं कि बढ़ती हुई महंगाई पर अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं, बेरोजगार साथियों को रोजगार नहीं दे पा रहे हैं। बेरोजगारों पर लाठीचार्ज किया जाता है। अंकिता भंडारी हत्याकांड में सब कह रहे हैं कि सीबीआई जांच होनी चाहिए, सरकार कहती है कि सीबीआई जांच नहीं होगी। हम जानना चाहते हैं, कि आखिर इस हत्याकांड में किस वीआईपी को बचाने का काम सरकार कर रही है। अर्थव्यवस्था ठप है। विकास के कार्य अवरुद्ध हैं। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है।

बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव का जो वातावरण था उससे सत्ता में बैठे लोग भयभीत थे और इसके डर से ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने चुनाव पर्यवेक्षक की शिकायत की। हम पूरी मजबूती से चुनाव लड़े हैं और उसका परिणाम भी सामने आया है। अगर यही चुनाव हम जीत गए होते तो फिर कोई सामंजस्य और समन्वय की बात नहीं करता। हम सरकार के खिलाफ लड़ रहे थे। सरकार मशीनरी का दुरुपयोग कर रही थी। कांग्रेस मजबूती से चुनाव लड़ी इसलिए मुख्यमंत्री को वहां डेरा डालना पड़ा। तमाम मंत्रियों को वहां जाना पड़ा। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे प्रत्याशी के खिलाफ सत्ता में बैठे लोगों ने किस तरह का व्यवहार किया।

 

जब विधानसभा चुनाव हारने के बाद संगठन में परिवर्तन हो चुका है तो कांग्रेस आलाकमान की ऐसी क्या मजबूरी है कि देवेंद्र यादव को हटाने में संकोच किया जा रहा है?
जहां तक देवेंद्र यादव की बात है मैंने कभी उन पर प्रश्न नहीं उठाया लेकिन मैंने कहा कि जो प्रभारी होता है उनका काम है पार्टी में समन्वय बनाना और समन्वय बनाकर जो प्रदेश की वास्तविकता है उसको हाईकमान के सम्मुख रखना। जब ये बात उठी तो कहा गया कि गुटबंदी हो गई। अब उन्हें हटाने का काम राष्ट्रीय नेतृत्व का है।

कभी प्रीतम सिंह देवेंद्र यादव के समर्थक हुआ करते थे लेकिन अब ऐसा दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है?
मैंने कभी न उनका समर्थन किया, न विरोध। वो प्रभारी हैं। प्रभारी के तौर पर जो भी सामूहिक निर्णय होते थे उस परिप्रेक्ष्य में मैं बात करता था। पहले भी करता था आज भी करता हूं लेकिन मैंने कहा न कि जो सामंजस्य बनना चाहिए था उस सामंजस्य का जब अभाव हुआ तब हमने अपनी बात कही।

उत्तराखण्ड कांग्रेस में युवा नेताओं को वरिष्ठ नेताओं का सहयोग और मार्गदर्शन की जरूरत है वह मिलता नहीं दिख रहा है?

मैं यह नहीं समझ पाया कि आप ऐसा किस संदर्भ में कह रहे हैं? मैं तो अपने उन साथियों को जो चुनकर आए हैं उनको सपोर्ट करने का काम करता हूं।

मतलब यह कि कांग्रेस में दो पीढ़ियां दिखती हैं एक युवा और दूसरी वरिष्ठ नेताओं की, लेकिन दोनों ही समानांतर चलते नहीं दिखते हैं?

वो तो घर में भी दिखता है जो उम्र में बड़ा होता है वह बड़ा दिखता है जो छोटा है वह छोटा दिखता है। हम छह बार के विधायक हैं इसमें हमारा दोष थोड़ी ही है। हमें जनता ने चुनकर भेजा है। हमारे जो युवा साथी हैं विधानसभा में जब सत्र चलता है तो हम उनको मार्गदर्शन दिखाने का काम करते हैं और उन्हें मौका भी देते हैं कि वो अपनी वाकपटुता के बल पर सत्ता पर वार करे। सदन के अंदर कार्य स्थगन के प्रस्ताव हो या प्रश्नकाल हो, हमारा हर विधायक साथी उसमें पूरी तत्परता के साथ भाग लेता है। इस तरह की बात न हमारे दिल में है, न ही हमने सोची है। कल हम उस दहलीज पर खड़े होंगे जब हमको वानप्रस्थ की ओर जाना पड़ेगा ऐसे में यही लोग तो हमारी जगह लेंगे। प्रीतम सिंह उन आदमियों में से नहीं है जो मैं किसी का मार्ग रोक कर खड़ा हो जाऊं। मैं तो कहता हूं कि नौजवान पीढ़ी आगे बढ़नी चाहिए। वो आगे नहीं बढ़ेगी तो कैसे नया नेतृत्व आगे बढ़ेगा।

ऐसे में जब सब नेता अपने बच्चों को राजनीति में आगे कर अपनी विरासत को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं लेकिन इस राजनीतिक विरासत में आपके पुत्र की कहीं भागीदारी नहीं दिखाई देती है?
मेरे पिताजी सन् 1957 में कांग्रेस को पराजित करके चुनाव जीते और सन् 1958 में उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी के कहने पर कांग्रेस ज्वाइन की। वो आठ बार विधायक रहे। तब समय मेरे पास भी था। मेरे सामने दो रास्ते थे कि मैं जनसेवा का रास्ता चुनूं या दिल्ली में बैठकर राजनीति करूं। मैंने जनसेवा के माध्यम को चुना। मैं जिला पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख बनकर छह बार विधायक चुना जा चुका हूं। ये तो मेरे बेटे पर निर्भर करता है कि वह कैसी राजनीति करता है। वो आज मेरा सहयोग करता है। लोग अगर उससे संतुष्ट होंगे तो वो आगे बढ़ेगा, लोग असंतुष्ट होंगे तो वो कैसे आगे बढ़ेगा। कोई राजनीति में किसी को जबरदस्ती ला देता है तो उससे बात बनने वाली नहीं है। जनता उसे राजनीति में स्वीकार करती है या नहीं करती है यह महत्वपूर्ण होता है। जनता अगर उसको स्वीकार करेगी तो अपना हुनर दिखाएगा।

आप नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष रहते पूरे प्रदेश में सक्रिय रहते थे। लेकिन कहा जा रहा है कि अब आप चकराता विधानसभा तक ही सिमट कर रह गए हैं?
मुझे राष्ट्रीय नेतृत्व में दस साल मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। लेकिन प्रदेश का कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि हमने उनका कोई कार्य नहीं किया या मिलने में रूचि नहीं रखी। उसके बाद राष्ट्रीय नेतृत्व ने हमें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी तो उसका पूरी ईमानदारी से निर्वहन किया। यह आप प्रदेश में किसी से भी पूछ सकते हैं कि जब मैं साढ़े चार साल अध्यक्ष रहा तो मैंने कोशिश की, प्रयास किए कि मैं सभी को साथ लेकर चलूं। इसे मैं एक विडंबना कहूंगा कि एक ऐसी घटना घटी कि हमारी नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश जी हमारे बीच नहीं रहीं। उसके बाद मुझे नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गई। उसका भी निर्वहन किया। उसके बाद चुनाव हुआ। चुनाव होने के बाद कोई जिम्मेदारी मेरे पास नहीं थी। जो कार्य मेरा था उसको मैंने पूरे मन से करने का काम किया। 21 नवंबर 2022 को इसी देहरादून के अंदर अंकिता भंडारी हत्याकांड हो, बेरोजगारी, महंगाई और या किसानों का मामला हो, जो भी प्रदेश की समस्याएं थी उसको लेकर हमने सचिवालय कूच किया। मैं कह सकता हूं कि उस कूच में प्रदेश के हर हिस्से से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। जब समय आता है तब हम सड़कों पर उतर कर भी संघर्ष करते हैं। बाकी जो मुझसे जो अपेक्षा की जाती है मैं उसको पूरा करने का काम करता हूं। आपने कहा कि मैं चकराता तक सीमित हूं, मैं तो चकराता के लोगों का आभार व्यक्त करता हूं, बहुत- बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं। आज जिस मुकाम पर प्रीतम सिंह है उसे मैं कभी भुला नहीं सकता हूं। मैं अगर उनके बीच न रहूं तो फिर कहां रहूं। छह बार उन्होंने मुझे विधायक बनाया, तभी तो आज राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी मुझे जिम्मेदारी सौंपी है। जो मेरा मूल है उस मूल को मैं भूल नहीं सकता। यही वह चकराता के लेाग हैं जो जब मसूरी विधानसभा थी तो मेरे पिताजी को आठ बार यहां से विधायक बनाया। यह भी लोगों का स्नेह और प्यार रहा कि वे निर्विरोध विधायक चुने गए। वहां से छह बार मैं विधायक बनकर इस प्रदेश की सेवा करने का काम कर रहा हूं। ऐसे में कैसे हम चकराता के लोगों को भूल सकते हैं, कभी भी नहीं। प्रदेश का कोई भी व्यक्ति अगर प्रीतम सिंह के पास आया हो और वह मेरे दर से निराश लौटा हो तो बताएं। तो मैंने कभी यह नहीं सोचा कि मैं पूर्व में दस साल मंत्री रहा, पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रहा, मैं लीडर ऑफ अपोजिशन रहा, मैं आज विधायकों में बहुत सीनियर हूं। आज भी अगर कोई प्रदेश का व्यक्ति मेरे पास आता है तो मैं चलकर के जिस अधिकारी से काम होता है वहां जाता हूं और उनका काम कराता हूं। मेरी प्रचार-प्रसार करने की आदत नहीं है।

जनता का आक्रोश मुख्यमंत्री के प्रति नहीं सरकार के प्रति है। भाजपा के प्रति भी लोगों में आक्रोश है। जिस तरह का वातावरण इस राज्य में भाजपा ने और सरकार ने बनाने का काम किया है उसके प्रति लोगों में आक्रोश है। मैं पहले भी कह चुका हूं कि बढ़ती हुई महंगाई पर अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं, बेरोजगार साथियों को रोजगार नहीं दे पा रहे हैं। बेरोजगारों पर लाठीचार्ज किया जाता है। अंकिता भंडारी हत्याकांड में सब कह रहे हैं कि सीबीआई जांच होनी चाहिए, सरकार कहती है कि सीबीआई जांच नहीं होगी। हम जानना चाहते हैं कि आखिर इस हत्याकांड में किस वीआईपी को बचाने का काम सरकार कर रही है। अर्थव्यवस्था ठप है। विकास के कार्य अवरुद्ध हैं। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है।

मीडिया में अक्सर देखने को मिलता है कि हरीश रावत और प्रीतम सिंह दोनों के अलग-अलग सुर होते हैं। दोनों के विचार अक्सर नहीं मिलते हैं। आखिर इसकी वजह क्या है?
आपने कब देखे मेरे सुर अलग। कभी का भी बता दो। एक उदाहरण ही दे दो। मैं तो हमेशा राष्ट्रीय नेतृत्व के दिशा-निर्देशों पर चलने वाला व्यक्ति हूं। आपने देखा होगा कि प्रीतम सिंह बहुत ज्यादा मीडिया में आता भी नहीं है। आज भी मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि प्रदेश के अंदर हरीश रावत अलग मुकाम रखते हैं। वे हमारे पथ प्रदर्शक होने का काम करते हैं और करते रहेंगे?

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बने करण माहरा को डेढ़ साल से अधिक का समय हो गया है। ऐसे में अभी तक भी सांगठनिक ढांचा खड़ा नहीं हो पाया है?
जब मैं अध्यक्ष बना उसके काफी दिनों बाद मेरी कार्यकारिणी बनी थी। फिलहाल जो कार्यकारिणी में है वो तो कांग्रेस के ही लोग हैं। वो बाहर के लोग थोड़े हैं। करण माहरा उसी कार्यकारिणी के बलबूते प्रदेश को मजबूत करने का काम कर रहे हैं।

आपकी चकराता विधानसभा क्षेत्र का एक युवा बॉबी पवार युवाओं के मुद्दों को लेकर पिछले सात महीने से संघर्षरत है उसके बारे में आप क्या कहेंगे?
आज बेरोजगार साथी रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस प्रदेश के अंदर जो भर्तियां हुई उन भर्तियों में जिस तरह से नकल का साम्राज्य रहा वह आपके सामने है। जो व्यापम घोटाला मध्य प्रदेश में हुआ उससे बड़ा घोटाला उत्तराखण्ड के अंदर हुआ है। यहां पर सारी जांच हाकम सिंह तक ही है। सरकार के हाथ क्यों उच्च आरोपियों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं? इसलिए तो हम कह रहे हैं कि सीबीआई जांच होनी चाहिए ताकि तमाम वो लोग जो नकल का गिरोह यहां चलाते थे उन सब पर कानून का शिकंजा कसा जाए। बॉबी पवार हमारा साथी है वह संघर्ष कर रहा है उसका साथ कांग्रेस पार्टी ने दिया है और देती रहेगी।

जहां तक देवेंद्र यादव की बात है मैंने कभी उन पर प्रश्न नहीं उठाया लेकिन मैंने कहा कि जो प्रभारी होता है उनका काम है पार्टी में समन्वय बनाना और समन्वय बनाकर जो प्रदेश की वास्तविकता है उसको हाईकमान के सम्मुख रखना। जब ये बात उठी तो कहा गया कि गुटबंदी हो गई। अब उन्हें हटाने का काम राष्ट्रीय नेतृत्व का है। मैंने कभी न उनका समर्थन किया, न विरोध। वो प्रभारी हैं। प्रभारी के तौर पर जो भी सामूहिक निर्णय होते थे उस परिप्रेक्ष्य में मैं बात करता था। पहले भी करता था आज भी करता हूं लेकिन मैंने कहा न कि जो सामंजस्य बनना चाहिए था उस सामंजस्य का जब अभाव हुआ तब हमने अपनी बात कही।

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आपने कब देखे मेरे सुर अलग। कभी का भी बता दो। एक उदाहरण ही दे दो। मैं तो हमेशा राष्ट्रीय नेतृत्व के दिशा-निर्देशों पर चलने वाला व्यक्ति हूं। आपने देखा होगा कि प्रीतम सिंह बहुत ज्यादा मीडिया में आता भी नहीं है। आज भी मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि प्रदेश के अंदर हरीश रावत अलग मुकाम रखते हैं। वे हमारे पथ प्रदर्शक होने
का काम करते हैं और करते रहेंगे

 

2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पार्टी और आपकी क्या रणनीति होगी?
2024 में कांग्रेस मजबूती से चुनाव लड़ने का काम करेगी। मैं समझता हूं कि 2024 में ‘इंडिया गठबंधन’ को कामयाबी मिलेगी और यह गठबंधन राष्ट्र के अंदर एक नई सरकार बनाएंगे।

मुझे दस साल मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। लेकिन प्रदेश का कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि हमने उनका कोई कार्य नहीं किया या मिलने में रूचि नहीं रखी। उसके बाद राष्ट्रीय नेतृत्व ने हमें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी तो उसका पूरी ईमानदारी से निर्वहन किया।

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