उत्तराखण्ड में यह पहली बार देखने को मिला कि सरकार ने अपने ही सिस्टम में बैठे शीर्ष अधिकारियों पर ‘जीरो टाॅलरेंस’ दिखाते हुए कठोर कार्रवाई की। हरिद्वार जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा 3 जून को की गई यह कार्रवाई एक सकारात्मक कदम के रूप में सराही जा रही है। वरिष्ठ अधिकारी रणवीर सिंह चैहान की रिपोर्ट के आधार पर जिन अधिकारियों पर गाज गिरी उनमें हरिद्वार के जिलाधिकारी, नगर आयुक्त समेत 12 अधिकारी और कर्मचारी हैं। लेकिन यह कार्रवाई सिर्फ आधी सच्चाई को सामने लाती है। जांच की जड़ में मौजूद वे अफसर जिन्होंने जमीन के भू-परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू की, बचा लिए गए। उनकी भूमिका नजरअंदाज कर दी गई। यही नहीं, उनमें से एक अधिकारी को तो जांच के बीच ही पदोन्नति का
तोहफा भी दे दिया गया
प्रकरण – 1: आदेश के पालन में निलम्बन
अधिकारी: राजेश मारवाह, रजिस्ट्रार कानूनगो, कमलदास, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, विक्की, उपजिलाधिकारी का स्टेनो।
भूमिका
सराय गांव की उस भूमि की फाइल, जिसे कृषि से अकृषि (धारा 143) में बदला जाना था, उपजिलाधिकारी ने प्रक्रिया शुरू की। स्टेनो विक्की ने फाइल तहसील कार्यालय भेजी, वरिष्ठ अधिकारी कमलदास ने रजिस्ट्रार कानूनगो को निर्देशित किया और मारवाह ने उसे रजिस्टर्ड किया। इन तीनों ने केवल उपजिलाधिकारी के आदेश का पालन किया, लेकिन उन्हें घोटाले की संलिप्तता में आरोपी बनाकर अन्य 12 अधिकारियों के साथ निलम्बित कर दिया गया। यह वे कर्मचारी थे जिन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया, सिर्फ फाइल आगे बढ़ाई।
प्रकरण – 2: झूठी भू-रिपोर्ट और असल ‘खेला’।
अधिकारी: प्रियंका रानी,
तहसीलदार, रमेश चंद, कानूनगो, सुभाष चैहान, पटवारी।
भूमिका
इन अधिकारियों ने हरिद्वार के सराय गांव की जमीन का मौका- मुआयना कर रिपोर्ट दी थी। वह भूमि कृषि उपयोग की थी और वहां कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं थी, इसके बावजूद इन अधिकारियों ने अपनी 8 अक्टूबर 2024 की हस्ताक्षरित रिपोर्ट में लिखा कि जमीन पर व्यावसायिक गतिविधियां संचालित हो रही हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर 16 अक्टूबर 2024 को उपजिलाधिकारी ने धनपाल सिंह, जितेंद्र कुमार और सुमन देवी की कुल 33 बीघा भूमि को धारा 143 के तहत अकृषि घोषित कर दिया। यहीं से इस घोटाले की नींव पड़ी। गौरतलब है कि तीनों भूमि स्वामियों का आपसी सम्बंध एक ही परिवार से है। धनपाल और जितेंद्र सगे भाई हैं और सुमन देवी, जितेंद्र की पत्नी हैं।
जांच की प्रक्रिया और निष्कर्ष
इस घोटाले की जांच वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह चैहान द्वारा की गई, जिसके आधार पर 3 जून को कार्रवाई हुई। कार्रवाई में वरुण चैधरी, तत्कालीन नगर आयुक्त, कर्मेंद्र सिंह, तत्कालीन जिलाधिकार, अजय वीर, पीसीएस अधिकारी, निकिता बिष्ट, वरिष्ठ वित्त अधिकारी, रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी सहायक नगर आयुक्त (सेवा समाप्त), आनंद सिंह मिश्रवाण, अधिशासी अभियंता, लक्ष्मी कांत भट्ट, कर एवं राजस्व अधीक्षक, दिनेश चंद्र कांडपाल, अवर अभियंता वेदपाल, सम्पत्ति लिपिक (सेवा विस्तार रद्द), राजेश कुमार, कमलदास, विक्की, तहसील के तीन अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया गया।
जांच में दो आईएएस, एक पीसीएस और अन्य अधिकारियों पर तो कार्रवाई हुई, लेकिन भूमि के भू-परिवर्तन की ‘मुख्य रिपोर्ट’ देने वाले अधिकारी, प्रियंका रानी, रमेश चंद और सुभाष चैहान, को किसी भी तरह की कार्रवाई से बाहर रखा गया। यही नहीं, तहसीलदार प्रियंका रानी को तो डिप्टी कलेक्टर पद पर प्रमोशन भी दे दिया गया। यह चैंकाने वाला तथ्य उस समय सामने आया जब जांच अधिकारी 25 मई 2025 को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपने की तैयारी कर रहे थे। ठीक उसी दौरान प्रियंका रानी को पदोन्नत कर दिया गया। यह ‘‘इनाम’’ उस अधिकारी को मिला जिसने धारा 143 की कागजी जमीन तैयार की।
एनएच-74 की पुनरावृत्ति?
यह घोटाला 2017 में उजागर हुए एनएच-74 भूमि अधिग्रहण घोटाले की याद दिलाता है। तब भी भूमि की श्रेणी बदलकर मुआवजा कई गुना बढ़ा दिया गया था। स्मरण रहे बहुचर्चित एनएच-74 घोटाले ने राज्य की प्रशासनिक प्रणाली, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया और न्यायिक व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए थे। यह घोटाला मुख्यतः वर्ष 2011 से 2016 के बीच ऊधमसिंह नगर जनपद में सामने आया था जब हरिद्वार से बरेली तक फैले राष्ट्रीय राजमार्ग एच-74 के चैड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चलाई गई। इस अधिग्रहण के दौरान बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ और सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया।
भूमि अधिग्रहण के तहत जिन जमीनों को कृषि भूमि के रूप में अधिग्रहित किया जाना था, उन्हें फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से ‘गैर-कृषि भूमि’ घोषित किया गया, ताकि उनका मुआवजा कई गुना अधिक मिल सके। यह मुआवजा कुछ मामलों में 10 से 20 गुना तक अधिक दिया गया। प्रारम्भिक तौर पर घोटाले की राशि लगभग 300 करोड़ रुपए आंकी गई थी, लेकिन एसआईटी और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में यह राशि 400दृ500 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। कुछ रिपोर्टों में यह आंकड़ा 2000 करोड़ रुपए से भी अधिक बताया गया है। इस घोटाले में सरकारी अधिकारियों की गहरी संलिप्तता सामने आई। दो आईएएस अधिकारियों, पंकज कुमार पांडेय और चंद्रेश कुमार यादव को निलम्बित किया गया। इनके साथ ही कई पीसीएस अधिकारियों और राजस्व विभाग के
कर्मचारियों पर भी एफआईआर दर्ज हुई थी।
इस बार भी निकाय चुनाव के दौरान, जब हरिद्वार में आचार संहिता लागू थी, नगर निगम ने कूड़ा डम्पिंग क्षेत्र के पास 33 बीघा कृषि भूमि खरीदी। वहां कोई स्पष्ट प्रयोजन नहीं था, लेकिन धारा 143 लगाकर उसे महंगे दाम में खरीदा गया और 56 करोड़ का नुकसान सरकार को सहना पड़ा। मुख्यमंत्री धामी ने कार्रवाई का साहसिक निर्णय लिया, लेकिन जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई में स्पष्ट दोहरा रवैया दिखा जिन्होंने आदेशों का पालन किया, वे दोषी बना दिए गए, लेकिन जिनकी जमीनी रिपोर्ट से पूरा खेल शुरू हुआ, वे बच निकले। अब उम्मीद बस यही है कि विजिलेंस जांच इस अधूरी कार्रवाई को पूर्ण करेगी और असली दोषियों को कटघरे में।
प्रियंका को मिला प्रमोशन का इनाम
वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह चैहान जब 25 मई 2025 को हरिद्वार नगर निगम जमीन घोटाले की जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंपने की तैयारी कर रहे थे तो दूसरी तरफ इस घोटाले के दौरान महत्वपूर्ण पद पर तैनात रही एक अधिकारी को प्रमोशन का ‘इनाम’ दिया जा रहा था। यह अधिकारी हैं प्रियंका रानी। प्रियंका उस समय हरिद्वार में तहसीलदार के पद पर तैनात थी जब 56 करोड़ के घोटाले को अंजाम दिया जा रहा था। इस घोटाले की जांच रिपोर्ट आने से पहले ही प्रियंका रानी को प्रमोशन का इनाम दे दिया गया। उन्हें तहसीलदार से डिप्टी कलेक्टर बना दिया गया। एक तरह से कहा जाए तो तहसील कार्यालय से ही नगर निगम जमीन पर धारा 143 के ‘खेल’ की फील्डिंग जमाई गई। धारा 143 की शुरुआती जांच पर अपनी मोहर लगाने वाली तत्कालीन तहसीलदार प्रियंका रानी को इस पूरे प्रकरण में कहीं पर भी संलिप्त न पाया जाना रणवीर चैहान की निष्पक्ष जांच पर सवालिया निशान लगा रहा है।
इस घोटाले के आरोपियों को बिल्कुल भी नहीं बख्शा जाएगा। अगर कोई भ्रष्टाचारी किसी वजह से रणवीर सिंह चैहान की जांच के दायरे में नहीं आया है तो वह विजिलेंस जांच में आ जाएगा। इसलिए ही विजिलेंस जाांच की जा रही है। प्रदेश में कोई भी, कहीं भी गड़बड़-घोटाला नहीं हो रहा है। अगर कहीं से कोई शिकायत मिलती है तो सरकार निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों पर कार्रवाई कर रही है।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड सरकार