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Uttarakhand

हरि भरोसे हरिद्वार की स्वास्थ्य सेवाएं

स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल/भाग-पांच

पिछले दिनों गैरसैंण में सम्पन्न हुए विधानसभा सत्र के दौरान सदन के पटल पर रखी गई सीएजी (कैग) की रिपोर्ट में राजकीय चिकित्सालयों की तमाम खामियों का खुलासा हुआ था। कैग ने ऑडिट के दौरान पाया कि स्वास्थ्य सेवाओं में नीतिगत कई फैसले समय से नहीं लिए गए और मानकों को सही तरीके से लागू नहीं किया गया। राज्य में अस्पतालों के भवनों को बेहतर व्यवस्थित करने की कमी दिखाई दी। साथ ही डाॅक्टर्स, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी सामने आई। राज्य में मुफ्त दवाइयां दिए जाने की व्यवस्था सही ढंग से लागू नहीं की गई है। ऑडिट के अनुसार 59 प्रतिशत रोगियों को अपने खर्च पर दवा खरीदनी पड़ रही है। राज्य में विशेषज्ञ डाॅक्टर्स, डायग्नोस्टिक सेवाएं, ओपीडी, रेडियोलाॅजी, आपातकालीन व प्रसूति सेवाएं, मनोचिकित्सा और स्त्री रोग जैसे विषयों पर भी कैग ने भारी कमियों का खुलासा किया है। आडिट में प्रदेश के चिकित्सालयों में उपकरणों की भारी कमी नजर आई। सामान्य उपकरण भी चिकित्सालय में नहीं होने जैसी बातें सामने आई। चिकित्सालयों के लिहाज से चिकित्सा उपकरणों में 50 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक की कमी देखी गई

धर्मनगरी, कुंभनगरी जैसे नामों से दुनियाभर में मशहूर हरिद्वार जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली राज्य सरकार के दावों की पोल खोल रही है। जिले की लाखों आबादी और देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यहां डाॅक्टरों के महज 214 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से भी 149 ही कार्यरत हैं। ज्यादातर डाॅक्टर संविदा पर हैं, महीनों तक वेतन न मिलने के कारण वे अस्पतालों में आने में दिलचस्पी नहीं लेते। महिला चिकित्सालय सिर्फ रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। जनता के प्रति चुने हुए जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का आलम यह है कि जिस गांव को स्थानीय सांसद डाॅ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने गोद लिया, वहां के लोग भी एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए तरस रहे हैं। चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद करोड़ों का बजट खर्च होने पर कुंभ मेला अस्पताल भी फिसड्डी नजर आ रहा है।

पिछले दिनों गैरसैंण में सम्पन्न हुए विधानसभा सत्र के दौरान सदन के पटल पर रखी गई सीएजी (कैग) की रिपोर्ट में राजकीय चिकित्सालयों की तमाम खामियों का खुलासा हुआ था। कैग की रिपोर्ट 2014 से 2019 के बीच जिला चिकित्सालय, संयुक्त चिकित्सालय और महिला अस्पतालों का अध्ययन करते हुए तैयार की गई। रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य के मामले में उत्तराखण्ड कुल 21 राज्यों में से 17वें नंबर पर है। कैग ने ऑडिट के दौरान पाया कि स्वास्थ्य सेवाओं में नीतिगत कई फैसले समय से नहीं लिए गए और मानकों को सही तरीके से लागू नहीं किया गया। राज्य में अस्पतालों के भवनों को बेहतर व्यवस्थित करने की कमी दिखाई दी। साथ ही डाॅक्टर्स, नर्स और पैेेेरामेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी सामने आई। राज्य में मुफ्त दवाइयां दिए जाने की व्यवस्था सही ढंग से लागू नहीं की गई है।

कैग ने अपने ऑडिट  में पाया कि अस्पतालों में लोगों को बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं। मुफ्त दवा दिए जाने की योजना का लोगों को फायदा नहीं मिल रहा है। आॅडिट के अनुसार 59 प्रतिशत रोगियों को अपने खर्च पर दवा खरीदनी पड़ रही है। राज्य में विशेषज्ञ डाॅक्टर्स की कमी डायग्नोस्टिक सेवाएं, ओपीडी, रेडियोलाॅजी, आपातकालीन सेवाएं समेत प्रसूति सेवाएं और मनोचिकित्सा, स्त्री रोग जैसे विषयों पर भी कैग ने भारी कमियों का खुलासा किया है। आॅडिट में प्रदेश के चिकित्सालयों में उपकरणों की भारी कमी नजर आई। सामान्य उपकरण भी चिकित्सालय में नहीं होने जैसी चीजें सामने आई। चिकित्सालयों के लिहाज से चिकित्सा उपकरणों में 50 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक की कमी देखी गई। ऑडिट  के अनुसार जरूरत के हिसाब से चिकित्सकों और दूसरे स्टाफ की तैनाती नहीं की गई है। प्रसूति विभाग के लिहाज से भी कैग ने भारी कमियां पकड़ी। जिसमें साफ-सफाई और मरीजों को बेहतर सुविधाओं की कमी का साफ-साफ उल्लेख किया गया है। प्रसूति विभाग में दवाइयों की कमी के साथ-साथ इलाज के दौरान लापरवाही और अनदेखी का भी खुलासा कैग ने अपनी आॅडिट रिपोर्ट में किया है। इसने सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाआंे को लेकर किए जा रहे तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी है।

पिछले वर्ष नीति आयोग ने ‘स्वस्थ राज्य प्रगतिशील भारत’ शीर्षक से जारी अपनी रिपोर्ट में राज्यों की इक्रिमेंटल रैकिंग दी थी। इसमें 21 बड़े राज्यों की सूची में उत्तराखण्ड को 19वां स्थान दिया गया है। जिसके अनुसार 2015-16 की तुलना में 2017-18 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्तराखण्ड के अंकों में 5.02 की गिरावट दर्ज की गई है। मतलब साफ है कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं में पूर्व के मुकाबले सुधार के बजाय गिरावट आई है।

राज्य की बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं का आलम यह है कि हरिद्वार जनपद में स्वीकृत चिकित्सकों के 214 पदों के सापेक्ष वर्तमान में 149 चिकित्सक ही कार्यरत हैं। उसमें भी संविदा चिकित्सकों की संख्या ही अधिक है। पीएचसी पर तैनात संविदा चिकित्सक समय से अस्पतालों में नहीं पहंुच रहे हैं जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। ‘दि संडे पोस्ट’ ने जिला मुख्यालय की नाक के नीचे स्थित पीएचसी के हालात जानने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के पनियाला, सिकरोढ़ा, बुग्गावाला, सुमननगर स्थित स्वास्थ्य केंद्रों का भी हाल जानने का प्रयास किया तो बड़ी हैरानी हुई। सभी स्वास्थ्य केंद्रों में सिर्फ खांसी, नजले तक का ही उपचार ग्रामीणों को मिल रहा है। गंभीर बीमारी से पीड़ित रोगियों को ग्रामीण क्षेत्र से इलाज के लिए सैकड़ों किमी तक का सफर करना पड़ता है। कई बार चिकित्सा सुविधा न मिलने के आभाव में रोगी रास्ते में ही दम तोड़ देता है। उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लचर होने का ही परिणाम है कि ग्रामीण क्षेत्रों की जनता को छोटी-मोटी बीमारियों के उपचार के लिए भी सैकड़ों किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है।

हरिद्वार जिला मुख्यालय से सटा ज्वालापुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बदइंतजामी के चलते यहां उपचार के लिए पहंुचाने वाले रोगियों के लिए नासूर बनकर रह गया है। यहां स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव मरीजों को ऐसा जख्म दे रहा है जिसका इलाज निकट समय में संभव नजर नहीं आ रहा है।

इस समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, ऑपरेशन , मेडिको लीगल रिपोर्ट सहित विभिन्न प्रकार की सुविधाएं नहीं है। कहने को तो यहां पांच एमबीबीएस डाॅक्टर और दो महिला चिकित्सकों की तैनाती बताई जाती है, परंतु दावे के विपरीत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सिर्फ एक चिकित्सक, एक महिला चिकित्सिक और एक फार्मासिस्ट ही उपस्थित रहता है। हालांकि स्वास्थ्य केंद्र में आयुष मेडिकल की सुविधा भी उपलब्ध है, परंतु आयुष विभाग द्वारा तैनात डाॅक्टर कभी-कभार ही इस स्वास्थ्य केंद्र पर मिलते हैं। ‘दि-संडे पोस्ट’ टीम ने जब ज्वालापुर के इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जाकर वहां की स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल जानने की कोशिश की तो मौके पर प्रभारी चिकित्सा अधिकारी की कुर्सी खाली मिली। जानकारी प्राप्त करने पर सामने आया कि प्रभारी चिकित्साधिकारी को मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा कहीं और भी सम्बद्ध किया गया है जिस कारण प्रभारी चिकित्साधिकारी स्वास्थ्य केंद्र पर कम ही मिलते हंै। स्वास्थ्य केंद्र पर पुरुष चिकित्सा अधिकारी के रूम में ताला लगा मिला। मौके पर एक ही डाॅक्टर दूर-दराज से आए रोगियों को देखते मिले। उपचार के नाम पर रेफरल सेंटर बन चुके इस स्वास्थ्य केंद्र पर जब एम्बुलेंस के बारे में जानकारी प्राप्त की गई तो वहां मौजूद एक मात्र चिकित्सक ने बताया कि केंद्र पर एम्बुलेंस की सुविधा नहीं है। एम्बुलेंस थाने में खड़ी रहती है जब हमें जरूरत पड़ती है हम वहीं से फोन कर बुला लेते हैं। मौके पर ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम को नजर आई एक मोटर बाइक एम्बुलेंस हीरो मोटरकाॅप कंपनी द्वारा भेंट स्वरूप दी गई थी। उस पर भी धूल जमी पड़ी मिली। इसी स्वास्थ्य केंद्र की अलग बिल्डिंग में चल रहे जच्चा बच्चा अस्तपाल की बदहाली का भी यह आलम है कि प्रसव के लिए पहंुचने वाली महिलाओं का सामान्य प्रसव तो यहां करा दिया जाता है, लेकिन ऑपरेशन द्वारा किए जाने वाले प्रसव के लिए इसी स्वास्थ्य केंद्र के ठीक सामने स्थित एक निजी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया जाता है। खुलेआम गरीबों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। पिछले दिनों महिला चिकित्सकों द्वारा की गई ऐसी हरकतों के चलते एक बच्चे की मौत होने पर काफी हंगामा भी खड़ा हो चुका है।

जब ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम भगवानपुर विधानसभा क्षेत्र के गांव सिकरोड़े स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पहुंची तो स्वास्थ्य केंद्र पर ताला लगा मिला। जब टीम ने वहां तैनात चिकित्सक से फोन किया तो डाॅक्टर ने बताया कि ‘‘अपने क्लीनिक पर हूं जो कि मक्खनपुर में स्थित हैै। मुझे आने में टाइम लगता है इसलिए मैं लेट हो जाता हूं। कोई और डाॅक्टर हैं जो स्वास्थ्य केंद्र की सारी जिम्मेदारी देखते हैं वो आएंगे तभी मैं आ पाऊंगा।’’ इस संबंध में ग्रामीणों ने बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कभी-कभार ही खुलता है। डाॅक्टर भी कभी-कभार ही आते हैं। स्वास्थ्य केंद्र पर सिर्फ एक महिला कर्मचारी डाॅक्टर के इंतजार में बैठी हुई थी। इलाज के लिए उसकी पर्ची तक नहीं बन पाई। इस संबंध में सिकरोड़ा स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात चिकित्सक से जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि ‘‘हम ˘संविदा पर तैनात चिकित्स हैं और विभाग द्वारा 6 माह का वेतन भी हमें नहीं दिया गया है, ज्यादा कुछ होगा तो हम रिजाइन कर देंगे।’’ सिकरोड़ा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सा सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। सिर्फ नजले, खांसी की दवाई यहां दी जाती है, वह भी डाॅक्टर आ जाए तो ठीक, नहीं तो ग्रामीणों को मजबूरी में निजी चिकित्सकों से अपना महंगा इलाज कराना पड़ता है।

भगवानपुर ब्लाॅक के ग्राम खेड़ी शिकोहपुर को हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने गोद लेकर तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के लंबे-चैड़े दावे किए थे, लेकिन सांसद के वादे आज भी हवा-हवाई होते नजर आ रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि गांव को गोद लेने के बाद सांसद ने कभी भी वापस मुड़कर गांव की ओर नहीं देखा। सांसद द्वारा किए गए वादों के पूरा न होने पर निराश लोग गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष गुहार लगा रहे हैं। भगवानपुर के अतिरिक्त ज्वालापुर, सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र जिसमें घाड़ क्षेत्र का इलाका पड़ता है, वहां के दादूपुर जैसे बड़े गांव आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम हैं। बुग्गावाला जैसे दूरस्थ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कोई सुविधाएं नहीं हैं। यहां के ग्रामीण रुड़की या हरिद्वार जैसे शहरों में इलाज के लिए भाग-दौड़ करने को मजबूर हैं।

बुग्गावाला एक बहुत बड़ा घाड़ क्षेत्र है जिसमें तकरीबन 20 से 25 गांव लगते हैं, परंतु स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर यहां एक मात्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। इस स्वास्थ्य केंद्र पर एम्बुलेंस जैसी जरूरी सुविधाएं नहीं हैं और न ही इमरजेंसी में कोई उपचार की सुविधा है। दिन के समय सिर्फ एक डाॅक्टर एवं फार्मासिस्ट उपस्थित रहते हैं जो खांसी, नजले एवं बुखार जैसी मामूली बीमारियों के इलाज तक सीमित हैं। अगर कोई अन्य समस्या आती है तो मरीज को अपने निजी वाहन से 25 किमी दूर इलाज कराने जाना पड़ता है। अगर किसी को इमर्जेंसी में भी जाना हो तो उसे शहर पहंुचते-पहुंचते अपनी जान गंवानी पड़ जाती है, क्योंकि क्षेत्र की सड़कें भी खस्ताहाल हैं।

गढ़मीरपुर स्वास्थ्य केंद्र पर भी हफ्तों तक डाॅक्टर नहीं आते। अगर ग्रामीणों द्वारा शिकायत की जाती है तो बताया जाता है कि डाॅक्टर को अन्य स्थानों पर भी सम्बद्ध किया गया है। जिसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। रानीपुर विधानसभा क्षेत्र के टिहरी विस्थापित सुमन नगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक महिला चिकित्सक, एक फार्मासिस्ट और पुरुष चिकित्सक उपस्थित रहते हैं, परंतु सुविधाओं केेेे नाम पर यहां मात्र मौसमी बीमारियों की ओपीडी चलती है। इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में न तो एक्से-रे की सुविधा है और न ही अल्ट्रासाउंड की। सरकारी दावों के विपरीत यह महत्वपूर्ण स्वास्थ्य केंद्र आज भी एम्बुलेंस जैसी सुविधा से महरूम नजर आ रहा है। प्रसव और पैथोलाॅजी की सुविधाएं भी नहीं हैं। बच्चों के टीकाकरण तक की सुविधा उपलब्ध न होने के चलते लोगों को अन्यत्र चक्कर लगाने पड़ते हैं।

धर्मनगरी होने के चलते प्रतिवर्ष हरिद्वार में लाखों श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। कांवड़ यात्रा के दौरान करोड़ों कांवड़िए हरिद्वार पहंुचते हंै। बावजूद इसके हरिद्वार में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं कोसों दूर नजर आती हैं। वर्ष 2004 के अर्द्धकंुभ में तत्कालीन तिवारी सरकार द्वारा निर्मित कराया गया 200 बेड का मेला अस्पताल आज सरकारी उदासीनता के चलते सुविधाओं के नाम पर सफेद हाथी बना नजर आता है। मेला अस्पताल में प्रत्येक वर्ष करोड़ों का बजट खर्च किए जाने के बावजूद स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में यह अस्पताल फिसड्डी नजर आता है। करोड़ों का बजट होने के बावजूद इस मेला अस्तपाल में एक्स-रे तक की सुविधा नहीं है। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि ओपीडी के नाम पर यहां मात्र अल्ट्रासाउंड एवं डेंटल की सुविधा ही उपलब्ध है, जो सरकारी दावों की पोल खोलने के लिए काफी है।

मेला अस्तपाल से थोड़ी ही दूरी पर बने टीबी अस्पताल में भी सुविधाएं नहीं हैं। यहां आने वाले रोगी डाॅक्टर के इंतजार में घंटों खड़े रहकर कई बार बिना उपचार के ही वापस जाने को मजबूर होते हैं। अस्पताल में सफाई व्यवस्था बदहाल है। यहां थोड़ी दूर पर बने जिला अस्पताल की हालत भी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में सरकारी दावों के विपरीत नजर आती है। इस जिला अस्पताल में आईसीयू, बर्न यूनिट तथा नवजात बच्चों तक को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए जाने संबंधी चिकित्सा उपकरण नहीं हैं। त्वचा रोग विशेषज्ञ, ईएनटी एवं डेंटिस्ट जैसे स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की कमी के चलते राज्य सरकार के तमाम दावे यहां हवा-हवाई साबित होते हैं। अस्पताल के वार्डों में गंदगी का साम्राज्य है, तो शौचालय भी बहुत बुरी अवस्था में हैं।

यहां भर्ती होने वाले मरीज बदबू से परेशान रहते हैं। जिला अस्पताल से सटे महिला चिकित्सालय की बिल्डिंग बनाने में सरकार ने करोड़ों खर्च कर दिए, परंतु यहां सुविधाओं के अभाव में प्रसव के दौरान प्रसूता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। खासतौर से रात्रि के समय प्रसव के लिए पहंुचने वाली प्रसूता की अगर आॅपरेशन के माध्यम से डिलीवरी करवानी पड़े तो जिले का एक मात्र महिला अस्पताल फेल नजर आता है। यहां तैनात चिकित्सक द्वारा प्रसूता को हायर सेंटर रेफर के नाम पर पर्चा थमाकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। जिस कारण करोड़ों रुपए की लागत से बना यह महिला अस्पताल सुविधाओं के नाम पर मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है।

वर्ष 2004 के अर्धकुंभ में तत्कालीन तिवारी सरकार द्वारा निर्मित कराया गया 200 बेड का मेला अस्पताल आज सरकारी उदासीनता के चलते सुविधाओं के नाम पर सफेद हाथी नजर आता है। करोड़ों का बजट होने के बावजूद इस मेला अस्तपाल में एक्स-रे तक की सुविधा नहीं है। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि ओपीडी के नाम पर यहां मात्र अल्ट्रासाउंड एवं डेंटल की सुविधा ही उपलब्ध है, जो सरकारी दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। मेला अस्तपाल से थोड़ी ही दूरी पर बने टीबी अस्पताल में भी सुविधाएं नहीं हैं। यहां आने वाले रोगी डाॅक्टर के इंतजार में घंटों खड़े रहकर कई बार बिना उपचार के ही वापस जाने को मजबूर होते हैं। अस्पताल में सफाई व्यवस्था बदहाल है। यहां थोड़ी दूर पर बने जिला अस्पताल की हालत भी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में सरकारी दावों के विपरीत नजर आती है। इस जिला अस्पताल में आईसीयू, बर्न यूनिट तथा नवजात बच्चों तक को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए जाने संबंधी चिकित्सा उपकरण नहीं हैं। त्वचा रोग विशेषज्ञ, ईएनटी एवं डेंटिस्ट जैसे स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की कमी के चलते राज्य सरकार के तमाम दावे हवा-हवाई साबित होते हैं

भगवानपुर ब्लाॅक के ग्राम खेड़ी शिकोहपुर को हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने गोद लेकर तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के लंबे-चैड़े वादे किए थे, लेकिन सांसद के वादे आज भी हवा-हवाई होते नजर आ रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि गोद लेने के बाद सांसद ने कभी भी वापस मुड़कर गांव की ओर नहीं देखा। सांसद द्वारा किए गए वादों के पूरा न होने पर
निराश लोग गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना के लिए
प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष गुहार लगा रहे हैं

हम संविदा पर तैनात चिकित्सक हैं और विभाग द्वारा छह माह का वेतन भी हमें नहीं दिया गया है, ज्यादा कुछ होगा तो हम रिजाइन कर देंगे।
डाॅ. हबीब सिद्दीकी, सिकरोड़ा स्वास्थ्य केंद्र

अपने क्लीनिक पर हूं जो कि मक्खनपुर में स्थित हैै। मुझे आने में टाइम लगता है इसलिए मैं लेट हो जाता हूं। कोई और डाॅक्टर हैं जो स्वास्थ्य केंद्र की सारी जिम्मेदारी देखते हैं, वो आएंगे तभी मैं आ पाऊंगा।
डाॅ. राहुल, सिकरोड़ा स्वास्थ्य केंद्र

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