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Uttarakhand

हरबंस का जाना एक युग का अंत 

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं विधायक हरबंस कपूर का यूं अचानक दुनिया को अलविदा कह जाने से हर कोई शोक में है। उत्तराखण्ड के साथ उत्तर प्रदेश में उनका लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है। वे लगातार आठ बार देहरादून कैंट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के विधानसभा में पहुंचे। शुरुआत से ही उत्तराखण्ड विधानसभा में वे इकलौते सबसे अनुभवी विधायक थे। हरबंस कपूर का सियासी व्यवहार और कुशलता उन्हें दूसरों से काफी अलग बनाती थी। सियासत की लंबी पारी की वजह से उनकी जितनी पकड़ राजनीति में थी , उससे कहीं ज्यादा प्रशासनिक एवं समाजिक क्षेत्र में था। इसी से उनकी शख्सियत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

कपूर लगातार आठ बार विधायक चुने गए थे। उन्होंने उत्तराखण्ड विधानसभा के अध्यक्ष पद का भार भी संभाला था। उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में विधायक रहे कपूर  ने विभिन्न पदों पर रहकर अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा से निर्वहन किया। वह पक्ष एवं विपक्ष दोनों के लिए ही प्रिय नेता थे। संसदीय प्रक्रिया के गहन जानकार और हमेशा लोक महत्व के अविलंबनीय मुद्दों को सदन में उठाने वाले एक सजग प्रहरी का निधन राज्य के लिए बड़ी क्षति है।

कपूर का राजनीतिक करियर 

 
हरबंस कपूर की अपने क्षेत्र में बहुत अच्छी पकड़ थी। उन्हें वर्ष 1985 में पहली हार मिली थी। इसके बाद विपक्ष के किसी भी नेता ने उन्हें शिकस्त नहीं दे पाया। 1989 में देहरादून निर्वाचन क्षेत्र से 10वीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में शामिल हुए। उसके बाद 11वीं विधानसभा, 12वीं विधानसभा और 13वीं विधानसभा चुनाव में भी वे अच्छे अंतरों से जीत दर्ज किये। वर्ष 2000 में अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने अपनी जीत बरकरार रखा। उत्तराखंड में हुए अब तक चार विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत का परचम लहराया। साल 2007 में उन्हें सर्वसम्मति से विधानसभा का अध्यक्ष भी चुना गया। वह उत्तराखण्ड बीजेपी के सबसे पुराने नेताओं में से एक हैं।

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