न्याय-अन्याय, नियम और कानूनों पर हाकिम समय-समय पर जनता को आश्वस्त करते दिखते जरूर हैं। लेकिन देखने में यह आता है कि न्याय के कठघरे में खड़े एक फरियादी को वह न्याय नहीं मिल पाता है जिसके दावे किए जाते हैं। प्रदेश में कानून विभाग के अधिकारी न्याय प्रणाली में पारदर्शिता बरतने में सक्षम नजर नहीं आ रहे हैं। कोटद्वार में छह साल पहले दिन दहाड़े हुई अधिवक्ता सुशील कुमार रघुवंशी की हत्या का मामला इसकी एक बानगीभर हैै जहां न्याय, नियम और कानून कठघरे में है। नौकरशाही की उदासीनता निष्पक्ष न्याय में किस तरह बाधक बनती है इसे हाईकोर्ट नैनीताल की तल्ख टिप्पणी से समझा जा सकता है
- तेरह सितंबर 2017 का दिन था जब पौड़ी जिले के कोटद्वार में अधिवक्ता सुशील रघुवंशी की दिन-दहाड़े गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद शहर में न केवल धरना- प्रर्दशन किए गए, बल्कि कई दिनों तक लोगों ने अपने संस्थान -दुकान आदि बंद कर आक्रोश प्रकट किया। इस हत्याकांड में रसूखदार लोगों का हाथ बताया गया। जिन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाड़े के शूटरों से रघुवंशी की हत्या कराने के लिए सुपारी दी। इस मामले में पुलिस की लापरवाही लगातार सामने आती रही। मृतक की पत्नी और आंदोलनकारी लोगों ने सात माह तक एसडीएम कार्यालय में धरना-प्रदर्शन किया तब जाकर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। आरोपियों को पुलिस जांच में मिली ढ़ील उनके लिए जमानत का आधार बनी। सातों आरोपियों को न्यायालय ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि सरकार इस गंभीर प्रकरण में संवेदनहीनता बरतती रही। हत्याकांड के मामले में जिस तरह से सरकार के कानून विभाग की लापरवाही रही उससे हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी नाराज हो गए। हाईकोर्ट ने प्रदेश के प्रमुख सचिव (कानून) को फटकार लगाई है। यहां तक कि न्यायालय ने प्रमुख सचिव (कानून) को भविष्य में सावधान रहने की चेतावनी भी दी है।
गंभीर मामलों में नौकरशाही की उदासीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जनता को निष्पक्ष न्याय दिलाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। अधिकारियों को विवेक का इस्तेमाल करते हुए
पारदर्शितापूर्ण कार्य करना होगा। लापरवाही करने वालों के खिलाफ सरकार कार्यवाही करेगी।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड
- होता यह है कि जब भी किसी गंभीर प्रकरण में कोई मुलजिम बरी होता है तो उसके बाद सीआरपीसी की धारा 374 के तहत राज्य ऐसे मामलों में अपील करता है। ऐसे में जब छोटे-छोटे मामलों में भी राज्य इस धारा का प्रयोग करते हुए न्यायालय में अपील करता है लेकिन कोटद्वार के चर्चित सुशील रघुवंशी हत्याकांड में 30 मार्च 2023 को सातों आरोपियों के बरी हो जाने के बाद भी महीनों तक राज्य द्वारा कोई अपील नहीं की गई। हाईकोर्ट को तो इसका पता ही नहीं चलता अगर मृतक रघुवंशी की पत्नी रेखा रघुवंशी इस मामले में अपील न करती। गौरतलब है कि सीआरपीसी की धारा 374 के तहत जहां राज्य अपील करता है तो वही धारा 372 के तहत पीड़ित पक्ष को भी न्यायालय में अपील करने का अधिकार होता है। इसके तहत ही मृतक की पत्नी ने न्यायालय में अपील की। इस पर न्यायालय ने स्वयं संज्ञान लेते हुए प्रदेश के प्रमुख सचिव (कानून) को तलब कर लिया। हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव (कानून) से जब अपील न करने का कारण पूछा तो उनके द्वारा जो अपना पक्ष रखा गया वह सचिवालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।
मुख्य न्यायधीश विपिन सांधी एवं न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंड पीठ द्वारा इस मामले की सुनवाई करते हुए जब प्रमुख सचिव (कानून) से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर हमारे विभाग के संयुक्त सचिव और अपर सचिव की राय अलग-अलग होती है तो इस पर ही हम हस्तक्षेप करते हैं। अगर दोनांे की राय एक जैसी हो तो इस पर हम टिप्पणी करने के बजाय उनकी राय को स्वीकार लेते हैं। इस पर हाईकोर्ट की नाराजगी तब स्पष्ट देखने को मिली जब प्रमुख सचिव (कानून) से दो टूक कहा कि क्या उनका कोई विवेक नहीं है जिसके अनुसार वे फैसला ले सकें? इस विषयक हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ‘प्रमुख सचिव पद पर तैनात न्यायिक अधिकारी के लिए यह अशोभनीय है। हम प्रमुख सचिव (कानून) द्वारा अपनाए गए रुख से असहमत हैं। न्यायालय के अनुसार सरकारी कार्यालयों में, खासकर सचिवालयों में विचारधीन प्रकरण की विभिन्न स्तरों पर जांच की जाती है। प्रत्येक अधिकारी कार्यालय नोट पर हस्त लिखित टिप्पणी देता है और उनकी टिप्पणी उनकी विचार प्रक्रिया को दर्शाती है। जिसके आधार पर निर्णय लिए जाते हैं। हालांकि विभिन्न स्तरों पर अधिकारी किसी दिए गए विषय पर भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त कर सकते हैं लेकिन अंतिम निर्णय विभाग के सचिव या प्रमुख सचिव लेते हैं। हाईकोर्ट ने कहा इस प्रकरण में दुर्भाग्य से तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इससे संकेत मिलता है कि या तो प्रमुख सचिव (कानून) स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं है या फिर वह निर्णय लेने की जिम्मेदारी से बचते हैं। ‘न्यायालय ने प्रमुख सचिव (कानून) को भविष्य में सावधान रहने की चेतावनी भी दी है। साथ ही कहा कि इस आदेश की एक प्रति प्रमुख सचिव को सूचित करते हुए उनके सेवा रिकॉर्ड में रखी जाए। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 दिसंबर की तारीख तय की हैसुशील रघुवंशी का अंतिम बयान दर्ज करती पुलिस अधिवक्ता सुशील रघुवंशी हत्याकांड कोटद्वार का वह हत्याकांड कहा जाता है जिसके तार भू-माफियाओं से जुड़े हैं। बताया जाता है कि कोटद्वार में एक ऐसा गैंग सक्रिय था जो विवादों की जमीनों की बिक्री कराकर लाखों के वारे-न्यारे करता था। इसी के साथ ही यह गैंग एससीएसटी की जमीनों की खरीद फरोख्त करने में भी शामिल रहता था। जबकि ऐसी जमीनों की खरीद फरोख्त नहीं हो सकती है। अधिवक्ता सुशील रघुवंशी ने भू-माफियाओं की इस हेराफेरी का विरोध किया था। वह उस दूसरे पक्ष के साथ जाकर खड़ा हो जाते थे जो अपने ऐसे ही मामलों में कानूनी पैरवी करने में सक्षम नहीं हो पाते थे। सुशील रघुवंशी न केवल उनकी कानूनी पैरवी करते थे, बल्कि ऐसी जमीनों की खरीद-फरोख्त में आपत्तियां दर्ज करा देते थे। भू-माफियाओं को उनका यही रवैया पसंद नहीं आया। बताया जाता है कि भू-माफियाओं ने सुशील रघुवंशी को ऐसे मामलों से दूर रहने की चेतावनी तक दी थी लेकिन वह अड़े रहे। इस पर आरोपियों ने पश्चिमी यूपी के भाड़े के शूटरों को सुपारी देकर सुशील रघुवंशी की हत्या करा दी। पुलिस की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि वकील सुशील की हत्या में विनोद कुमार गर्ग उर्फ विनोद लाला, सुरेंद्र सिंह नेगी उर्फ सूरी और सर्वेश्वर उर्फ डब्बू मुख्य साजिशकर्ता थे जिन्होंने वकील की हत्या की साजिश तब पौड़ी जेल में बंद शातिर अपराधी एवं शूटर रूपेश त्यागी के साथ मिलकर रची। रूपेश त्यागी ने हत्याकांड को अंजाम देने के लिए बागपत (उत्तर प्रदेश) के दो शॉर्प शूटरों को सुपारी दी। इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी सुरेंद्र सिंह नेगी उर्फ सूरी उत्तराखण्ड के चर्चित सुमित पटवाल हत्याकांड का भी मुख्य आरोपी है। पुलिस ने बाद में अन्य आरोपी अमित नेगी सहित दो शूटर दीपक मान और दीपक शर्मा को भी गिरफ्तार किया था। कुल मिलाकर सात आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। ये सभी आरोपी भी उस समय गिरफ्तार हुए जब मृतक सुशील रघुवंशी की पत्नी रेखा रघुवंशी के साथ ही उत्तराखण्ड विकास पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष मुजीब नैथानी सहित दर्जनों लोगों ने 273 दिनों तक एसडीएम कार्यालय में धरना दिया था। इसके बाद 30 मार्च 2023 को सभी सातों आरोपियों को न्यायालय ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। पुलिस ने साक्ष्य जुटाने में लापरवाही बरती। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पुलिस ने कोर्ट के समक्ष जब साक्ष्य रखे तो उसमें वह महत्वपूर्ण डायरी ही गायब पाई गई जिसमें सुशील रघुवंशी के अंतिम बयान दर्ज थे उनके ये अंतिम बयान उस समय लिए गए जब गोली लगने के बाद अस्पताल के स्टेचर पर गंभीर हालत में थे। अंतिम समय में गंभीर रूप से घायल अधिवक्ता जब अपने ऊपर हमला कराने वालों के नाम बता रहे थे तब उनकी पत्नी रेखा रघुवंशी ने वह दृश्य अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लिया था। लोगों का कहना है कि अगर वह तस्वीर न होती तो शायद पुलिस उनके अंतिम पल के बयान न होने की बात भी कह सकती थी।
- -साथ में अंजना गोयल
बात अपनी-अपनी
रघुवंशी जी की हत्या के मामले को दबाने के लिए शुरू से ही प्रयास किए जाते रहे हैं। कुछ भू-माफिया नहीं चाहते थे कि वे ऐसी जमीनों की खरीद-फरोख्त मामले पर आपत्ति करे जो नियम कानूनों के विपरीत होती थी। लेकिन उन्हें एससीएसटी के लोगों का दर्द देखा नहीं जाता था। उन्हें एक बार पहले भी मौत के घाट उतारने की कोशिश की गई थी लेकिन तब उनकी किस्मत अच्छी थी। 6 साल पहले उनकी सरेआम हत्या कर दी गई। लेकिन पुलिस लापरवाही करती रही। जब पुलिस कुछ नहीं कर रही थी तो मुझे धरने पर बैठने को मजबूर होना पड़ा। मेरे साथ मुजीब नैथानी जी सहित कई लोग थे। हम सब लास्ट टाइम तक न्याय के लिए लड़ते रहे। 273 दिन तक धरना देने के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी हुई तो हमें यकीन था कि अब हमें न्याय मिल जाएगा। लेकिन न्याय आधा-अधूरा मिला। पुलिस ने जब रघुवंशी जी के बयानों की डायरी तक गायब कर दी तो क्या उम्मीद की जा सकती है। जब प्रदेश की तरफ से अपील नहीं हुई तो मुझे अपील करनी पड़ी। जेल से छूटने के बाद आरोपी खुले घूम रहे हैं। हमें पुलिस द्वारा सुरक्षा तक नहीं दी गई। मेरे परिवार को उन लोगों से जान का खतरा है।
रेखा रघुवंशी पत्नी मृतक सुशील रघुवंशी
हमने उत्तराखण्ड में फैल चुकी माफिया संस्कृति के खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया। जिस तरह से वकील साहब को दिन-दहाड़े भाड़े के हत्यारों से गोली मरवाई गई ऐसा तो मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद में होता है। जब हम धरने पर बैठे तो हमें यह कहा गया कि हम ब्लैक मेलिंग करना चाहते हैं। यहां तक कि मृतक की पत्नी पर भी आरोप लगा दिए गए, हमारे साथ एडवोकेट नवनीत नेगी ने मिलकर और रेखा रघुवंशी जी ने यूपी के वरिष्ठ अधिवक्ता ललित शर्मा की मजबूत पैरवी कराई। लेकिन पुलिस की साक्ष्यों में बरती गई लापरवाही से आरोपी बेकसूर मान लिए गए। पुलिस, प्रशासन और शासन सभी आरोपियों के बचाव में जुटे हुए हैं लेकिन जिस तरह से हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव (कानून) को फटकार लगाई है और रेखा रघुवंशी की अपील पर आगामी तारीख मुकर्रर की है उससे हमें उम्मीद है कि न्याय जरूर मिलेगा।
मुजीब नैथानी, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड विकास पार्टी
पुलिस ने साक्ष्य जुटाने में लापरवाही की है जिसका उदाहरण डाइनिंग स्टेटमेंट की डायरी का लापता होना है। साथ ही जिससे हत्या की गई वह पिस्टल भी बरामद हुई थी। लेकिन पुलिस द्वारा उसकी बरामदगी कराते समय कोई गवाह की मौजूदगी नहीं दिखाई थी। साक्ष्य के तौर पर सीसीटीवी की फुटेज भी मिल गई। आरोपियों का कोटद्वार में 10 बजे गोली मारना और 12 बजे हरिद्वार में मौजूद होना मुमकिन है लेकिन कोर्ट ने इसे नहीं माना। अगर कोई टिप्पणी निचले स्तर का अधिकारी करता है तो उसी टिप्पणी पर उच्चाधिकारी अपनी बिना कोई रिपोर्ट दिए ही, बिना टिप्पणी किए ही हूबहू न्यायालय को भेज देता है ऐसा तो तभी होता है जब अधिकारी न्याय प्रणाली की पारदर्शिता में विश्वास नहीं करते हैं। हाईकोर्ट की सख्ती के बाद हमें उम्मीद है कि आरोपी बच नहीं सकते हैं।
प्रकाश चंद पेटशाली, अधिवक्ता, पीड़ित पक्ष