जंगली जानवरो से फसल को बचाने के साथ साथ आर्थिकी मजबूत करने में अदरक की खेती वरदान साबित हो रही है, पहाड़ एवं हल्द्वानी गौलापार के किसान जंगली जानवरों के आतंक से बेहद परेशान है, बंदर और सुअर समेत अन्य जंगली जानवरों द्वारा पर्वतीय काश्तकारों की प्रतिवर्ष लाखों हेक्टयर फसल बर्बाद की जाती है। सरकार द्वारा जंगली जानवरों पर लगाम लगाने के लाख दावे तो किये जाते है पर धरातल पर कुछ नही। जंगली जानवरों से निजात पाने के लिए किसानों ने अपनी परम्परागत खेती छोड़ अदरक की फसल उगानी शुरू कर दी है। अदरक की फसल को बंदर और सुअर समेत अन्य जंगली जानवर नुकसान नही पहुचाते है। बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद… कहावत सही साबित होने लगी है, यानी सही में बंदर को अदरक का स्वाद अच्छा नही लगता हो इसीलिए वह इसकी फसल को नुकसान नही पहुचाता है। किसानों द्वारा किया गया यह प्रयोग सफल होने के साथ साथ उनकी आर्थिकी को भी मजबूत करने में सहायक साबित हो रहा है। जंगली जानवरों द्वारा फसल को बर्बाद करने जैसी चुनौतियों के सामने गौलापार विजयपुर के काश्तकारो ने अदरक की खेती कर सफल प्रयोग किया। आर्थिक रूप से जूझते पर्वतीय काश्तकारो की आय में बढ़ोतरी के साथ साथ पलायन को रोकने में कारगर साबित होगा। वही उत्तराखण्ड की अदरक दिल्ली के अलावा पूरे देश मे प्रसिद्ध है। सर्दी में अदरक की खपत ज्यादा होने लगती हैं, अदरक की खेती बढ़ने से हल्द्वानी मंडी में पिछले सालों के मुकाबले अधिक आवक होने लगी है। अदरक की खपत बढ़ने से काश्तकारों को अच्छा मुनाफा हो रहा है। जंगली जानवरों के डर से ही सही पहाड़ के काश्तकारों ने अदरक की खेती को अपनाकर आर्थिकी मजबूत करने की शुरुआत की है। इस पहल को लेकर प्रदेश सरकार गम्भीरता के साथ ठोस नीति बनाए और पहाड़ो से हो रहे पलायन को रोकने में अपना योगदान दें। जंगली जानवरों से परेसान काश्तकारों के लिए इन दिनों अदरक की खेती वरदान साबित हो रही है।
किसानो के लिए वरदान साबित होती अदरक की खेती…
