दृष्टिहीन लोगो के लिए संजीवनी का काम करने वाली ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल का आज जन्मदिन है, हल्द्वानी स्थित दृष्टिहीन बच्चो के स्कूल में ब्रेल लिपि का अहम योगदान है। दृष्टिहीन लोगों के लिए पढ़ने और लिखने की शुरुआत ब्रेल लिपि से की गई, ब्रेल लिपि के जनक महान शिक्षाविद लुई ब्रेल है, जिनके द्वारा ब्रेल लिपि का अविष्कार कर दृष्टिहीनों के लिए किसी संजीवनी से कम नही है। 4 जनवरी 1809 को फ्रांस में जन्मे लुई ब्रेल ने दृष्टिहीनों के जिस लिपि का अविष्कार किया वह लिपि को आज भी अपनाया जाता है, साथ ही ब्रेल लिपि के अलावा आज तक कोई दूसरी लिपि दृष्टिहीनो के लिए नही है। हल्द्वानी के गौलापार में दृष्टिहीन बच्चो के लिए चलाए जा रहे विद्यालय में ब्रेल लिपि के ज़रिए ही बच्चो की शिक्षित किया जा रहा है ताकि वह आगे चलकर समाज की मुख्यधारा में अपने आप को स्थापित कर सके, इसी विद्यालय से पढ़कर कई दृष्टिहीन बच्चे आज अन्य बच्चों को शिक्षित करने के साथ साथ देश की बड़ी बड़ी मल्टिनैशनल कम्पनियों में अपनी सेवाएं दे रहे है। इसी विद्यालय से पड़ी पूजा ने मुम्बई से डीएलएड करने के बाद यही विद्यालय में रहकर अन्य दृष्टिहीन बच्चों को शिक्षित करने के साथ साथ उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। वही विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों ने बताया कि ब्रेल लिपि के छह डॉट के माध्यम से वह पढ़ना और लिखना दोनो सिख चुके है जो उन्हें दूसरों से बेहतर बनाता है। हल्द्वानी के गौलापार में दृष्टिहीन बच्चो के लिए स्कूल संचालित किया जाता है। जिसमे सैकड़ो दृष्टिहीन बच्चो को पढ़ाने के साथ ही संगीत, क्रीड़ा, कम्प्यूटर, वाद विवाद सहित अन्य प्रतियोगिता के माध्यम से अपनी दिव्य कला को उभारने का कार्य किया जाता है। नेब के संचालक अनिल धनिक ने बताया कि उनके द्वारा संचालित दृष्टिहीन बच्चो के विद्यालय में लुई ब्रेल के नाम से लायब्रेरी की स्थापना की गई है, जिसमे बच्चे अपनी पसंदिता पुस्तक को ब्रेल लिपि के माध्यम से पड़ सकते है। दृष्टिहीन बच्चों के लिए वरदान साबित ब्रेल लिपि आज पूरे विश्व मे अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल आज भी दृष्टिहीन बच्चो के दिलो में राज करते है।