[gtranslate]
Uttarakhand

सजता-संवरता उत्तराखण्ड बनाम सुंदरखाल

उत्तराखण्ड सरकार का दावा है कि ‘उत्तराखण्ड सज और संवर रहा है।’ राज्य सरकार का यह भी दावा है कि डबल इंजन की सरकार प्रदेशवासियों की समृद्धि के लिए सतत् प्रयत्नशील है। इन दावों के सच को समझने के लिए ‘सुंदरखाल का दर्द’ समझना काफी है। सुंदरखाल के जरिए केवल एक गांव नहीं, बल्कि सैकड़ों उन गांवों की पीड़ा और डर को महसूसा जा सकता है जो इस ‘सज और संवर’ रहे उत्तराखण्ड में नरक समान जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। नैनीताल जिले के रामनगर में कोसी किनारे बाढ़ की विभीषिका से पल-पल सहमे जीवन जीने को अभिशप्त बहू-बेटियां, बच्चे और पशु कब बाघ का निवाला बन जाए इसके डर से रात भर थरथर कांपते रहने वाले लोगों का गांव है सुंदरखाल। आबादी ढाई हजार। न बिजली न पानी, जिंदगी की कठिन कहानी। पांच दशक से विस्थापन का सपना। नेताओं के वायदे और घोषणा सिर्फ वोट पाने का बना हथियार। हर बार उनके हाथ लगती है सिर्फ मायूसी और निराशा। जी-20 बैठक का जब बीते मार्च माह रामनगर में आयोजन किया गया तब सुंदरखाल के निवासी कहीं विदेशा मेहमानों के समक्ष अथवा उनकी उपस्थिति में कुछ ऐसा न कर दें कि राज्य सरकार को शर्मिंदा होना पड़े। इस आशंका चलते हुक्मरानों को सुंदरखाल की याद हो आई। कुमाऊं मंडल के आयुक्त ने सुंदरखालवासियों संग बैठक कर उन्हें भरोसा दिलाया कि अब डबल इंजन सरकार उनके पास उनका दर्द समझने और उसका निराकरण करने पहुंचने वाली है। जी-20 की बैठक बाद लेकिन एक बार फिर से सुंदरखाल को भुला दिया गया है। सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा का नायाब उदाहरण बन चुके सुंदरखाल के दर्द को सामने लाती हमारे सहयोगी संपादक आकाश नागर की खास रपट

इक्कीसवीं सदी में जब सरकार ‘स्कूल चलो’ का नारा देकर देश के भविष्य को उज्जवल करने का दावा करती है वहीं नैनीताल जिले के सुंदरखाल में इस दावे की पोल खुल जाती है। यहां ढाई हजार की आबादी पर बना एकमात्र स्कूल इसलिए बंद हो जाता है कि उसे सरकार से मान्यता नहीं मिली। आज भी लालटेन युग में जी रहे अनुसूचित जाति बाहुल्य इस गांव से महज दो किलोमीटर की दूरी पर ही कॉर्बेट के नाम पर बने भव्य होटल और रिसॉर्ट की चकाचौंध इस गांव के वाशिंदों को जैसे चिढ़ाती दिखती है। पिछले 51 सालों से अपने जमीर और जमीन की जंग लड़ रहे सुंदरखाल के लोगों की पीड़ा हरने की हवाई घोषणाएं होती रही हैं लेकिन जमीनी हकीकत पर उनका विस्थापन जैसे एक सपना बन गया है। जब से यह गांव बसा तब से इसके विस्थापन की लड़ाई लड़ी जाती रही है। इनकी चौथी पीढ़ी अब इस लड़ाई को जारी किए हुए है। रामनगर वन प्रभाग के अंतर्गत सुंदरखाल अनुसूचित जाति बाहुल्य गांव है। गांव में 823 परिवार निवास करते हैं। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने इन्हें अतिक्रमणकारी मानते हुए यहां से इस गांव को खाली कराने के आदेश दिए थे। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में दायर ‘वात्सल्य फाउंडेशन’ की जनहित याचिका चलते ग्रामीणों को हटाए जाने पर रोक लगा दी गई है।

अतीत की ही बात करें तो तत्कालीन उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत) के नेताओं से लेकर वर्तमान में उत्तराखण्ड की कांग्रेस- भाजपा की सरकारें सुंदरखाल को वायदे और आश्वासन की घुट्टी पिलाते रहे हैं।

12 जून 1972 : अल्मोड़ा, नैनीताल और पौड़ी गढ़वाल जिलों के अनुसूचित जाति के भूमिहीनों ने सत्तर के दशक में सत्याग्रह किया। इसके बाद इन भूमिहीनों को रामनगर के मालधनचौड में जमीन आबंटित की गई। लेकिन इसमें कई परिवार ऐसे थे जिन्हें वहां जमीन उपलब्ध नहीं हो पाई। बाद में लोगों को इस दिन सुंदरखाल में बसा दिया गया।

4 जून 1974 : संयुक्त प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा, वनमंत्री अजीत प्रताप सिंह, राज्यपाल अकबर अली, स्वास्थ्य मुख्य सचिव नरेंद्र सिंह भंडारी, उपाध्यक्ष विधानसभा परिषद, देवेंद्र प्रताप सिंह, विधायक गोविंद सिंह मेहरा से पर्वतीय भूमिहीन शिल्पकार संघर्ष समिति का शिष्टमंडल मिला, शिष्टमंडल को आश्वस्त करते हुए उक्त लोगों ने कहा कि आपकी मांग पर सरकार सहानुभूतिपूर्वक गौर करेगी तथा संबंधित मंत्री एवं विधायक मौका-ए-मुआयना करेंगे। साथ ही वनमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने वन विभाग को आदेशित करते हुए कहा कि सत्याग्रही लोगों पर कार्यवाही रोक दी जाए। तत्पश्चात मालिकाना हक के लिए लड़ाई लड़ रहे सुंदरखाल के उन लोगों को काशीपुर जेल से रिहा कर दिया गया जो आंदोलनकारी नेता गंगाराम लगड़ा के नेतृत्व में लड़ाई लड़ते हुए सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए थे।

14 सितंबर 1975 : उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा वन एवं संरक्षण सचिव के साथ सुंदरखाल इलाके में पहुंचे थे। तब लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब उन्हें जमीनों पर मालिकाना हक मिल जाएगा। लेकिन लोगों की उम्मीदों को तब झटका लगा जब तत्कालीन सरकार द्वारा वायदा कर और मौके पर आकर आकलन करने के बाद भी उन्हें उनके वाजिब हक नहीं मिल सके।

8 जुलाई 2003 : तत्कालीन मुख्यमंत्री और रामनगर से विधायक बने नारायण दत्त तिवारी के समय सुंदरखाल के लोगों ने जमीनों पर मालिकाना हक की मांग की। तब उन्हें तिवारी द्वारा आश्वस्त किया गया कि जल्द ही उन्हें विस्थापित किया जाएगा। 2007 तक सुंदरखाल के लोग कई बार उस मांग को तिवारी के समक्ष दोहराते रहे लेकिन बार-बार उन्हें आश्वासन का लॉलीपॉप दिया जाता रहा। यह लॉलीपॉप प्रदेश की सत्ता पर बारी-बारी से सुशोभित हुई भाजपा और कांग्रेस के मुख्यमंत्री देते रहे हैं लेकिन मामला जस का तस बना हुआ है।

2010-11 : दो सालों में सुंदरखाल में 10 महिलाओं को बाघ के हमले से मौत होने पर यह मामला देश भर की सुर्खियों में रहा था। तब सुंदरखाल के बाशिंदों ने तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ लगातार धरना-प्रदर्शन किए थे। यहां तक कि कॉर्बेट पार्क में देश के बाघ विशेषज्ञों की बैठक तक को निरस्त कर दिया गया था। तब देश के पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश ने सुंदरखाल के वाशिंदों को दिल्ली बुलाया। जहां उनकी आपबीती सुनने के बाद जयराम रमेश ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को नियम बनाने के आदेश दिए। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने तब एक गाइड लाइन तय की जिसमें सुंदरखाल के प्रति व्यस्क व्यक्ति को 10 लाख रुपए आर्थिक सहायता देकर विस्थापित करने की योजना बनाई थी। इस विस्थापन में पूरे 65 करोड़ का पैकेज तैयार किया गया। तब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने एक सर्वे किया था जिसमें सुंदरखाल को वन प्रभाग डिवीजन के अंतर्गत होना पाया गया। इसके चलते सुंदरखाल के वाशिंदो को पैकेज नहीं दिया गया।

14 सितंबर 2013 : उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना के बाद नारायण दत्त तिवारी के बाद कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्री हरीश रावत थे जिन्होंने सुंदरखाल के वाशिंदों के दर्द को समझा। मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत ने सुंदरखाल की समस्या का निराकरण करने के लिए एक समिति का गठन किया। जिसमें कहकशां नसीम, प्रभागीय वनाधिकारी रामनगर वन प्रभाग की अध्यक्षता में 12 फरवरी 2014 को चार सदस्यीय समिति गठित की गई। इस समिति में उक्त समस्या के अलावा कॉर्बेट फाउंडेशन के हरेंद्र बर्गली, डब्ल्यूटीआई के डॉ संदीप तिवारी, संस्कारा संस्था की सुश्री राईकी मल्होत्रा, डब्ल्यूटीआई के सुमंतो कुन्दू, उप प्रभागीय वनाधिकारी रामनगर, उमेश चंद जोशी एवं वन क्षेत्राधिकारी कोसी, आनंद सिंह रावत ने 14 अप्रैल 2014 को निर्णय लिए कि राजस्व विभाग से सुंदरखाल में बसे हुए ग्रामीणों की सूची लिखित रूप से प्राप्त की जाए। विस्थापन कार्य (गुर्जर पुनर्वास नीति 2004) भारत सरकार की पुनर्वास एवं विस्थापन नीति 2003 (एनपीआरएस 2003) के दिशा-निर्देशों की सहायता लेते हुए निर्धारण किया जाए। पुनर्वास पैकेज हेतु राजस्व विभाग एवं समाज कल्याण विभाग द्वारा लिया जाने वाला निर्णय संबंधित पक्ष के अनुसूचित जाति एवं भूमिहीन होने की दशा को ध्यान में रखते हुए किया जाए। सुंदरखाल की संपूर्ण आबादी के अनुसूचित जाति एवं भूमिहीन होने के आधार पर पुनर्वास पैकेज का निर्धारण किया जाए। साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि उक्त कमेटी में राजस्व एवं समाज कल्याण विभाग के घटकों के सम्मिलित होने उपरांत ही पुनर्वास पैकेज का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाए। समिति ने यह भी प्रण लिया कि सुंदरखाल पुनर्विस्थापन स्थानीय निवासियों के सुरक्षित एवं उज्जवल भविष्य तथा कॉर्बेट लैंड सेल में बाघों के संरक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

4 सितंबर 2018 : सुंदरखाल की जमीन वन विभाग की होने के चलते तत्कालीन डीएफओ नेहा वर्मा ने सुंदरखाल को अतिक्रमण बताते हुए हाईकोर्ट नैनीताल में एक याचिका दायर की थी जिसकी सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इसे अतिक्रमण मानते हुए इसके खिलाफ कार्यवाही करने के आदेश दिए थे। नैनीताल हाईकोर्ट ने कॉर्बेट पार्क से लगे सुंदरखाल गांव को एक माह में खाली कराने के आदेश पारित किए थे। साथ ही गांव की इस वन भूमि को हाई कोर्ट ने कॉर्बेट प्रशासन को अपने कब्जे में लेने के लिए कहा था। बेघर होने के डर से ग्रामीण परेशान थे। विस्थापन के विरोध में कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को हाथों-हाथ लेते हुए आंदोलन किया था। इसके बाद गांव के मनोनीत प्रधान एवं वन ग्राम संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष चंदन राम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका स्वीकार होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गांव के विस्थापन पर यथा स्थिति के आदेश दे दिए हैं।

7 फरवरी 2022 : उत्तराखण्ड की सोशल एक्टिविस्ट श्वेता मासीवाल ने इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में दस्तक दी। जिस पर उनके द्वारा वत्सल फाउंडेशन की ओर से याचिका दायर की गई। उसपर पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली संयुक्त पीठ ने कहा गया है कि 1971 में नैनीताल जिले के रामनगर तहसील के अंतर्गत सुंदरखाल में पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को बसाया गया है। इन परिवारों के विस्थापन की कवायद हुई लेकिन अब तक विस्थापित नहीं किया गया। यहां तक कि वन अधिनियम के अंतर्गत इन परिवारों को बिजली, पानी, शिक्षा के अधिकार से भी वंचित किया गया जबकि यहां के लोग लोकसभा व विधानसभा चुनाव में मतदान करते हैं।

राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर प्रत्येक परिवार को दस- दस लाख की धनराशि का प्रस्ताव दिए जाने की जानकारी दी गई। कहा कि इन परिवारों ने प्रस्ताव खारिज करते हुए जमीन के बदले जमीन मुहैया कराने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां वह कई पीढियों से रह रहे हैं, इसलिए उन्हें विस्थापित किया जाए। इस पर कोर्ट ने वन सचिव को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में विस्थापन के लिए वैकल्पिक जमीन चिÐत कर रिपोर्ट देने को कहा है। लेकिन आज तक भी वह जमीन वन विभाग द्वारा चिन्हित नहीं की जा सकी है।

28 अप्रैल 2023 : जी-20 बैठक से ठीक पहले कुमाऊं मंडल के आयुक्त दीपक रावत ने सुंदरखाल वासियों से मुलाकात कर उन्हें विस्थापन का सपना दोबारा से दिखाया था। लेकिन उनके इस वायदों के कुछ दिनों बाद ही एक बार फिर से उन्हें अतिक्रमणकारी बताने की कवायद नैनीताल के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा अपर पुलिस महानिदेशक, देहरादून को एक पत्र के जरिए कर दी गई। पत्र में नैनीताल जिले में 72 अतिक्रमणों का उल्लेख किया गया है। अतिक्रमण में रामनगर क्षेत्र के सुंदरखाल, रिंगोड़ा, शिवनाथपुरी, पटरानी एवं 3 टोंगिया गांव समेत दो दर्जन से भी अधिक वन ग्राम शामिल हैं। जिसमें सुंदरखाल के अलावा देवीचौड़ खत्ता, रिंगौड़ा खत्ता, आमडंडा खत्ता, टेड़ा खत्ता, चोपड़ा, लेटी, रामपुर, बेलगढ़ गठिया, किशनपुर छोई, अर्जुन नाला, कारगिल पटरानी, पटरानी, कुंभगडार, शिवनाथपुर नई बस्ती, शिवनाथपुर पुरानी बस्ती, नत्थावली, तुमड़िया डामपार, कुंभगडार खत्ता, मालधन नंबर 8 एवं 10, हनुमानगढ़ी, कालूसिद्ध, नई बस्ती, बेलघट्टी, पूछड़ी नई बस्ती आदि वनग्राम हैं।

सुंदरखाल की कहानी लोगों की जुबानी

गौराव देवी के अनुसार ‘गांव के बगल से एक नदी कोसी गुजरती है। जब बारिश होती है तो उसमें बाढ़ आ जाती है और यह नदी आगे की ओर आकर गांव को तबाह कर देती है। बाढ़ से पूरा गांव तबाह हो जाता है। यहां के निवासी बहुत परेशान हैं। 2021 में यहां भयंकर आपदा आई थी। जिसमें पानी लोगों के घरों में घुस गया था। इस बाढ़ में गांव के लगभग 50 घर बह गए। लोगां ने अपने घरों की छत पर चढ़कर अपनी जान बचाई थी। हालात यह हो गए कि लोगां को हेलीकॉप्टर के जरिए बचाया गया था। हमसे कहा गया कि यहां डैम बना दिया जाएगा लेकिन कुछ कार्य नहीं हुआ। हमें विस्थापित करने की बाबत सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती है। यहां कोई मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है।’

बकौल खुशहाल राम ‘हमारे पास कोई रोजगार नहीं है। एकमात्र मजदूरी करके गुजर बसर करते हैं। सुबह जब हम काम पर निकल जाते हैं तो हमें यह चिंता रहती है कि हमारा परिवार सुरक्षित है या नहीं। इस गांव में सुरक्षा की भी कोई व्यवस्था नहीं है। अक्सर गांव में बाघ के हमले होते रहते हैं। गांव की 10 महिलाएं बाघ के हमले में स्वर्ग सिधार चुकी हैं। जिस कारण पूरा गांव दहशत में रहता है लोग शाम 6ः00 बजे के बाद से बाहर नहीं निकलते हैं। देश के गांव जब खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं तब भी इस गांव में शौचालय की सुविधा नहीं है। घर के बच्चां और महिलाआें को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में बाघ की दहशत के माहौल में उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है।’

मोतली देवी कहती हैं कि ‘यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि इस गांव के निवासियों को विधायक और सांसद चुनने का अधिकार तो है लेकिन ग्राम प्रधान चुनने का अधिकार नहीं है। जब-जब चुनाव होते हैं तब-तब नेता लोग इधर का रुख करते हैं। वह चुनावों में वोट पाने के लिए बड़े-बड़े वायदे करते तो हैं लेकिन जैसे ही चुनाव सम्पन्न होते हैं वे इधर भूलकर भी नहीं आते। चुनाव से पहले यहां पर नेता आते हैं और बिजली देने का वायदा करते हैं लेकिन चुनाव के बाद कोई भी नजर नहीं आता है। इस गांव में बिजली भी नहीं है। जब भी विधायकों को चुनाव जीतना होता है तो यहां बिजली के खंभे लगा देते हैं लेकिन बिजली की सुविधा नहीं दी जाती है। गांव में बिजली के खंभों को लगे 6 साल हो गए हैं बाढ़ में कुछ खम्भे बह गए। क्यांकि यह गांव अनुसूचित जाति का है। इसके चलते ही गांव के लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। इस गांव के बच्चे शिक्षा की व्यवस्था से भी वंचित हैं।’

गोविंदी देवी कहती हैं कि ‘हमने तीन बार भाजपा विधायक को वोट देकर जिताया है। लेकिन उन्होंने आज तक हमारे लिए कुछ भी नहीं किया है। हमने अपनी समस्याओं को लेकर उनके घर तक 27 सितंबर 2022 को जुलूस निकाला था और अपनी मांगे सामने रखी थी। लेकिन विधायक ने हमारी समस्याओं को सुनने की बजाय उल्टा हमें ही दुत्कार कर भगा दिया। विधायक के घर एसडीएम की मंजूरी लेकर गए थे लेकिन वहां हमें घेर लिया गया और डराया-धमकाया गया। यहां के विधायक दलित कहकर हमारे साथ भेदभाव करते हैं।’

अंग्रेजी शासन काल से आजाद भारत तक संघर्ष
पर्वतीय क्षेत्र के भूमिहीन लोग कई वर्षों से सरकार के आगे अपनी भूमिहीनता की समस्या उठाते रहे लेकिन किसी भी सरकार पर इसका कोई भी असर नहीं पड़ा। सन् 1925 और 1926 में तत्कालीन विधायक खुशीराम ने अंग्रेजों के सामने भी मांगें रखी थी। सन् 1947 में देश आजाद हुआ। तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने भाषणों में कहा, जब तक भारत के गरीब व भूमिहीन लोगों की समस्या हल नहीं होती है, तब तक भारत की आजादी अधूरी समझनी चाहिए। सन् 1954 में भूमिहीन आंदोलन गुसाईं लाल वकील द्वारा चलाया गया जिसमें समाज सेविका आनंदी देवी पुत्री श्री हरकराम (सल्ट) निवासी ने यह आंदोलन अपने हाथ में लिया और धारा 144 का उल्लंघन कर स्वर्गीय विधायक खुशीराम के पास पहुंची। खुशीराम इस संघर्ष को लेकर सयुक्त प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद के पास पहुंचे और अपनी पिछली मांग को दोहराया। जिसमें 50 हजार एकड़ भूमि की मांग की गई जो कि विधानसभा में दोहराई गई। जिसमें सरकार ने 5 हजार एकड़ भूमि मालधन रामनगर जिला नैनीताल में स्वीकृति दी जोकि एक नाम मात्र के लिए थी जिसमें से 45 हजार एकड़ भूमि की मांग ज्यों की त्यों पड़ी रही। 50 हजार एकड़ भूमि में से 25 हजार एकड़ भूमि पर्वतीय और 25 हजार एकड़ भूमि की मांग तराई भावर के लिए थी। पर्वतीय क्षेत्र में भूमिहीन शिल्पकारों को बसाने के बजाय वहां पर ढाई लाख एकड़ भूमि में पेड़-पत्थर-घास की योजना सरकार ने बनाई, जिसमें लाखों रुपए का नुकसान हुआ। इसके बाद पर्वतीय क्षेत्र के भूमिहीन-शिल्पकार लोग मजबूर होकर तराई भावर में 19 वर्षों के बाद अपनी मांग को लेकर सत्याग्रह में बैठे। तब मेजर उम्मेदसिंह मनराल का भी इस कार्य क्षेत्र में काफी सहयोग रहा। जिसमें गंगाराम लगड़ा को अपने 9 साथियों के साथ 13 जून1974 को जेल में रहना पड़ा।

इसके अलावा सन् 1956 में दुमवाडुंगा के साथ ही सुंदरखाल के लोगां का भी आंदोलन हुआ था। बताया गया कि उसी वक्त लेटी भलौना एवं पाटकोट में भी लोग बसे जो कि जंगलात की मजदूरी करते थे। मजदूरी के बदले में लोगों को सिर्फ निमित मात्र जगह दी गई। ये आंकड़े तराई क्षेत्र के हैं, जिनका निरीक्षण करने के बाद आनंदी देवी के द्वारा भूमिहीनों के लिए पर्वतीय क्षेत्रों के 11,000 मील की पैदल यात्रा करके जगह- जगह सभाएं आयोजित की गई। यही नहीं बल्कि वह भूतपूर्व मंत्री चौधरी चरण सिंह, डॉ सीताराम एवं बलदेव सिंह आर्या से भी मिली और अपनी मांगों से अवगत कराया। उसके बाद भी आनंदी देवी सयुंक्त प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्र भानु गुप्ता सहित कई मंत्रियों को लगातार सन् 1964 तक मिलती रही। इसके अलावा उनके द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ राजेंद्र प्रसाद को भी अपनी मांगों से अवगत करवाया गया।

सुंदरखाल के लोगों की मानें तो तब आनंदी देवी के सत्याग्रह आंदोलन के सकारात्मक परिणाम भी आने लगे थे जिसके अनुसार वन विभाग उच्चाधिकारियों ने उक्त स्थान से हटाने को कहा परंतु 5 जुलाई 1974 को तत्कालीन वन मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार के हस्तक्षेप से उक्त स्थान पर रोका गया जिसकी पत्र संख्या- 1306/9 है। इसके अलावा 21 सितंबर सन् 1974 को भूतपूर्व मुख्यमंत्री से सुंदरखाल के भूमिहीनों का शिष्टमंडल रामनगर में मिला। तब शिष्टमंडल को आश्वासन दिया गया कि आपको उक्त स्थान से नहीं हटाया जाएगा। इसी दिन तत्कालीन सामुदायिक विकास मंत्री बलदेव सिंह आर्य और प्रशासन के उच्चाधिकारियों तथा विधायक शिवानंद नौटियाल के सुंदरखाल में आने से लोगों को उम्मीद जगी थी। 16 अक्टूबर 1974 को वन विभाग के उच्चाधिकारियों देवेंद्र प्रसाद और अन्य अधिकारियों का सुंदरखाल में आकर आम जनता के बीच आकर वायदा किया कि आपको उक्त स्थान से नहीं हटाया जाएगा। 30 नवंबर 1974 को सयुक्त प्रांत के तत्कालीन पर्वतीय भूमि मंत्री अश्वनी राम आर्य के आदेशानुसार यह फैसला हुआ कि उक्त स्थान पर लोगां को लीज पर पट्टे दिए जाए। सुंदरखाल के लोगों का दावा है कि 6 फरवरी 1975 को झोपड़ियां बनाने तथा 24 फरवरी 1975 को रामनगर डिवीजन का उक्त स्थान के झाडी काटने का भी लिखित आदेश उनके पास है।

बात अपनी-अपनी
सुंदरखाल के लोगों से मेरी इस संबंध में दो बार मुलाकात हो चुकी है। इन लोगों में फिलहाल एक राय बनाई जा रही है कि ये न्यूनतम कितनी भूमि लेने पर राजी हो सकते हैं। इन्हें हम प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास दिलाने की तरफ भी सोच रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि उन्हें पहाड़ में जमीन नहीं चाहिए। इसलिए हम रामनगर और काशीपुर में ही जमीन तलाश रहे हैं। क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी विचाराधीन है इसलिए मुझे सरकार से भी बात करनी पड़ेगी।
दीपक रावत, कमिश्नर कुमाऊं मंडल

सुंदरखाल गांव मूल रूप से पर्वतीय लोगों का बसा हुआ गांव है जो 1982 से अपने लिए हक मांग रहा है। आज 2023 में मनुष्य चांद और मार्स तक पहुंच गया और हमारे अपने लोग उस जगह अंधेरे और बाकी खतरों में बैठे हैं जहां से कुछ ही दूर सैंकड़ों रिजॉर्ट्स वन एथिक्स की धज्जियां उड़ाते हैं। चाहे संगीत हो, तेज रोशनी हो। मामला जबसे मेरे संज्ञान में आया, मैं माननीय कोर्ट के माध्यम से इनके अस्तित्व और अस्मिता की लड़ाई वीके शुक्ला जी और दुष्यंत जी के साथ मिलकर लड़ रही हूं। मैं माननीय मुख्यमंत्री जी और कुमाऊं मंडल आयुक्त जी का आभार प्रकट करती हूं कि इतने वर्षों में पहली बार कुछ ठोस होता नजर आ रहा है। मुझे भरोसा भी है और मेरी प्रार्थना भी है कि हमारे सुंदरखाल के सभी परिवार किसी सुरक्षित स्थान पर मूलभूत सुविधाओं के मध्य अपना जीवन-यापन कर आने वाली पीढ़ी का जीवन रोशन करें ताकि ये तबका मुख्यधारा से जुड़ सके।
श्वेता मासीवाल, सोशल एक्टिविस्ट एवं सचिव ‘वात्सल्य फाउंडेशन’

श्वेता मासीवाल जी ने चुनाव से पहले ही हमें एक बड़ी राहत दे दी। वह राहत थी सुप्रीम कोर्ट की। सुप्रीम कोर्ट में श्वेता मासीवाल ने याचिका दायर करके विस्थापन के मुद्दे को पूरे देश तक पहुंचा दिया। इस पर माननीय न्यायालय ने सरकार को जवाब -तलब कर लिया जिसमें सरकार से पूछा गया कि उन्होंने सुंदरखाल के लोगों के विस्थापन के लिए कहां जमीन चिÐत की है। अब से पहले जितनी भी सरकारें आई उन्होंने जमीन चिÐत करने के मामले में औपचारिकताएं की है। लेकिन अब श्वेता मासीवाल के प्रयासों से जमीन चिÐीकरण पर सरकार गंभीरता से सोच रही है। हमसे सरकार ने एकमत होने का प्रमाण पत्र मांगा है जिसमें गांव के सभी लोगों की राय ली जा रही है कि सुंदरखाल को छोड़कर अन्य जगह विस्थापन के लिए तैयार है या नहीं। इसके लिए लगभग 100 प्रतिशत लोग तैयार हैं। कुछ लोग हमारे लोगों को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। तरह-तरह की अफवाह फैला रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि विस्थापन के लिए हमसे प्रति व्यक्ति 500-500 रुपए लिए जा रहे हैं। जबकि श्वेता मासीवाल जी ने कहा है कि विस्थापन निःशुल्क कराएंगे। हमारी महिला शक्ति गौरा देवी को विरोधियों द्वारा धमकाया जा रहा है। जिससे कि हमारा आंदोलन कमजोर हो जाए। लेकिन ऐसे समय पर हमें श्वेता मासीवाल जी का मजबूत साथ मिल रहा है।
चंदन राम, ग्राम प्रधान सुंदरखाल

You may also like

MERA DDDD DDD DD