यादों का सिलसिला-पदयात्राएं/भाग-5
- हरीश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
मैंने इस पदयात्रा के माध्यम से उन संबंधों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। आज की विपरीत परिस्थितियों में भी कांग्रेस हरिद्वार में एक शक्ति के रूप में स्थापित है। इसका कम या ज्यादा श्रेय इस प्रकार की पदयात्राओं को जाता है। हमारा संघर्ष अपने पुराने गौरवपूर्ण स्थान को पुनः पाने का है। इस संघर्ष में हमारा मुकाबला ऐसे शस्त्रधारियां से है जिनके तूणीर में अत्यधिक प्रभावी हथियार हैं। उनका मुकाबला हम अपने परंपरागत अस्त्र-शस्त्रों से ही कर सकते हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव से मैं थोड़ा कमजोर हो गया हूं। फिर भी एक-दो किलोमीटर चलने के लिए मेरे पांव मचलते हैं
नौ नवंबर, 2000 में उत्तराखण्ड राज्य अस्तित्व में आया। सारे राज्य में बहुत उत्साहपूर्ण माहौल था। हम कांग्रेसजन भी उत्साहित थे। राजनीतिक रूप से हम इस स्थिति का फायदा उठाने की स्थिति में नहीं थे। संगठन कहीं था ही नहीं। उत्तराखण्ड में भी कांग्रेस की वही स्थिति थी जो उत्तर प्रदेश में है। उत्तराखण्ड में कांग्रेस के कंधों पर एक अनचाहा बोझ था। अविभाजित उत्तर प्रदेश में श्री मुलायम सिंह और माननीया मायावती जी की सरकार को समर्थन देने का। एक बार तो लोग हमसे इतने नाराज थे कि उत्तराखण्ड में नारे लगते थे ‘उत्तराखण्ड का काव (काल) नरसिम्हा राव’। कांग्रेस के प्रति जनता के ढेर सारे सवालों के मध्य पार्टी ने मुझे उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। मैं पहला अध्यक्ष था। राज्य विधानसभा में हमारे दो विधायक थे, एक तिवारी कांग्रेस से चुने गए थे, दूसरी सम्मानित विधायका शिक्षक दल से आई थी। अत्यधिक दुर्घर्षपूर्ण चुनौती थी। देहरादून में जिला कांग्रेस का दो कमरों का कार्यालय पहला अध्यक्षीय मुकाम बना।
हरिद्वार और उस दौर की कांग्रेस की स्थिति को समझने के लिए आपको कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मेरे प्रथम हरिद्वार आगमन की पड़ताल करनी पड़ेगी। अध्यक्ष के रूप में मैं जब उत्तराखण्ड के प्रवेशद्वार नारसन पहुंचा, तो जिला अध्यक्ष सहित 13 लोग मेरे स्वागतार्थ खड़े थे। हरिद्वार पहुंचने तक केवल मंगलौर में लगभग ढाई सौ लोगों के साथ श्री सरवत करीम खड़े थे। मैंने उनके इस उपकार का पुरस्कार उन्हें प्रदेश कांग्रेस का महामंत्री नियुक्त कर दिया। हरिद्वार जनपद में कांग्रेस खड़ी करने के लिए मैंने दर्जनों ग्राम परिक्रमाएं की। कारों के साथ भी, कभी-कभी पैदल भी चले। आज मैं आपसे एक ऐसी ही पदयात्रा जो लौटते वक्त कार से यात्रा में बदल गई, की चर्चा करना चाहता हूं।
घाड़ क्षेत्र आज से कुछ वर्ष पहले तक सर्वाधिक पिछड़ा क्षेत्र था। लगभग 4 माह घाड़ क्षेत्र के गांव भी एक-दूसरे से कट जाते थे। रानी रौ से लेकर मोहण्ड रौ तक कई बरसाती नदी-नाले इस क्षेत्र को आवागमन शून्य बना देते थे। जब हमारी सरकार ने रानीपुर-अनेकी से टीराहजारा होकर बुग्गावाला, बिहारीगढ़ तक सड़क बनाने का निर्णय किया तो हमें 14 पुल भी स्वीकृत करने पड़े। इस क्षेत्र को लेकर एक कहावत प्रचलित थी कि इस क्षेत्र के लड़के के साथ शेष हरिद्वार क्षेत्र के लोग अपनी लड़की का विवाह नहीं करते हैं। अपने लड़के के लिए दुल्हन यहां से खुशी- खुशी तौर पर लाएंगे, मगर लड़की नहीं देंगे। लड़की से कोई त्यौहार में भेंट करने जाना चाहे तो इस क्षेत्र में आवागमन बहुत ही कठिन था। मेरी सभाओं में स्थानीय वक्ता इस कष्ट का बड़े ही मार्मिक तौर पर जिक्र करते थे। जमीनें यहां इतनी सस्ती थी कि बाहर के लोगों ने यहां बड़े-बड़े फार्म हाउस बनाकर रखे हैं। उपरोक्त सड़क बनने के बाद आज यहां की भूमि का मूल्य सौ गुना बढ़ गया है। अब शनैः शनैः घाड़ क्षेत्र चारों तरफ से बारामासी सड़कों से जुड़ गया है। अब इस क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, कॉलेज, आईटीआई आदि सब कुछ हैं। भूमि का मूल्य भी अब आसमान में है। बगीचों के साथ-साथ गन्ने सहित सभी फसलें एवं सब्जियां उगाई जा रही हैं।
मैंने सन् 2009 के सितंबर में बंदरजूड़ तक जाने का प्रोग्राम बनाया। उस समय इस क्षेत्र में ढूंढने पर भी कांग्रेस कार्यकर्ता नहीं मिलते थे। मैंने रुड़की में सलीम खान जी से अपना इरादा बताया और कहा कि मुझे बंदरजूड़ में सभा करनी है। आप वहां जाकर व्यवस्था करें। मैंने उन्हें यह भी बताया कि मैं बिहारीगढ़ से प्रातः 9 बजे बजे चलूंगा। पदयात्रा करते हुए ग्राम तेलपुरा, बुधवा शहीद, कुड़कावाला, बुग्गावाला में जनसंपर्क करते हुए बंदरजूड़ पहुंचूंगा। लोगों ने सलाह दी कि मैं गाड़ी से सीधे बंदरजूड़ पहुंचू। मैंने पैदल जनसंपर्क करते हुए जाने का निश्चय किया। श्री खान एवं उनके भाई फकरे आलम साहब, श्री एसपी सिंह इंजीनियर आदि बड़ी कठिनाई से मेरे प्रस्ताव को मानने को तैयार हुए। उनका तर्क था इन गांवों में हमारा कोई कार्यकर्ता नहीं है, व्यवस्था कौन करेगा? मेरे जोर देने पर वो मान गए। हां यात्रा का आधा भाग पैदल एवं बंदरजूड़ से कलियर तक गाड़ियों से जाएंगे, यह तय हुआ। उस समय इस क्षेत्र में केवल तीन पार्टियां थी, भाजपा, सपा और बीएसपी। कांग्रेस इस क्षेत्र में थी ही नहीं।
निर्धारित दिन जब हम बिहारीगढ़ पहुंचे तो आगे के रास्ते खराब हैं, इसकी सूचना मिली। हमने गाड़ियां वापस कलियर होकर बंदरजूड़ पहुंचने के लिए भेज दी। हम चार-पांच लोग पैदल चल पड़े। तेलपुरा में जैसे-तैसे 15-20 लोग मिले, उनसे बातचीत के बाद नासिर प्रधान हमारे साथ चलने को राजी हुए, वह बुधवा शहीद एवं बुग्गावाला तक आए। दोनों जगह स्थानीय चाय की दुकानों में बैठकर हमने चाय भी पी और अपना परिचय दिया। लोग बोले साहब आजकल यहां कांग्रेस से कोई जुड़ा हुआ नहीं है। यहां तो समाजवादियों का जोर है और दलित बीएसपी के साथ है। कुछ पंडित व चौहान भाजपा में हैं। खैर हमने बातचीत कर 10 ऐसे नाम ले लिए जो किसी पार्टी में नहीं थे, उनमें से 2 लोगों को हम बुलवा पाए और यह लोग बुग्गावाला से आगे तक हमारे पथ प्रदर्शक बने और आज उस क्षेत्र में हमारे नेता हैं, नासिर भाई, कालू भाई अब बहुत सक्रिय हैं। बुग्गावाला में हमें खबर मिली की सलीम खान व उनके साथियों ने जैसे-तैसे वहां टेंट व माइक लगा दिया है और प्रधान जी के यहां हमारे खाने का बंदोबस्त हो गया है। हमारी गाड़ियां शाम तक ही आ पा रही थी, क्योंकि स्थानीय नालों में बहुत कीचड़ बन गई है।
रास्ते में हमने भी दो स्थानों में पेंट उतार कर कंधे में रख रास्ता पार किया था। हमें इसी बात की आशंका थी। हमें रास्ते में जो लोग भी मिले सबका सड़क और रास्ते को लेकर बड़ा गुस्सा था। हमने भी सारा दोष सपा, बसपा व भाजपा पर मढ़ा और उन्हें समझाया कि हमारे साथ जुड़ो हम सड़क बनाएंगे। एक और नाले को पार कर जैसे-तैसे कुड़कावाला होकर बंद़रजूड़ पहुंचे। हमारे पैदल चलने के संकल्प को लेकर लोगों में बड़ी गहमा-गहमी थी। बंदरजूड़ में काफी लोग जुड़ गए थे। सलीम खान साहब की कोशिशों से एक धड़ा हमारे पक्ष खुलकर आ गया। नारेबाजी के बीच हम बंदरजूड़ पहुंचे। बहुत सारे लोग दूर छिटके खड़े थे। मैं सबसे पहले उनके पास गया। मेरे इस भाव ने उनका विरोध ठंडा कर दिया। वह लोग भी मीटिंग का हिस्सा बन गए। खैर दुनिया जहान की बातों के साथ मैंने उन्हें बताया कि सपा, बसपा केवल हरिद्वार में है। कांग्रेस ही उत्तराखण्ड में सरकार बना सकती है। थोड़ा लोग समझे, थोड़ा देखेंगे का भाव रहा। मगर हमारी सभा अच्छी हो गई। सभा के बाद अशरफ भाई ने हम सब को भोजन कराया। मुझे उनका प्रेम भाव हमेशा याद आता है। अशरफ भाई के साथ इनाम भाई, नूरा प्रधान, फरीद प्रधान, रियासत प्रधान, काला प्रधान ने सभा सफल बनाने में बड़ा योगदान दिया।
लगभग 2 बजे हम बंदरजूड़ से लाम की ओर पैदल चले। लाम में हमारी गाड़ियों के चारों तरफ लोग व बच्चे एकत्र थे। हमारे साथियों ने उनसे कांग्रेस पार्टी जिंदाबाद के नारे लगाने को कहा। वहां चुप्पी छा गई। कुछ देर की चुप्पी के बाद हरीश रावत जिंदाबाद के नारे लगने लगे। मेरी पदयात्रा का यह बोनस था। लालवाला, मजाहदपुर, लामग्रांट, दादूवास, मानूवास, फतेहपुर, हद्दीवाला, सोहलपुर होते हुए हमारा कारवां अंधेरा होते-होते पिरान कलियर पहुंचा। रास्ते में सभी स्थानों पर छोटी-छोटी मीटिंगें हुई। लालवाला व शोहलपुर में हमारे कुछ कार्यकर्ता थे। जिन्होंने अच्छी संख्या जोड़ रखी थी। चाय-नाश्ता भी करवाया। हमारी पदयात्रा की सोहरत सब जगह पहुंच चुकी थी। उनकी नजर में किसी भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का उस क्षेत्र में आना और वो भी घुटनों- घुटनों तक कीचड़ में पैदल आना बड़ी बात थी। पदयात्रा ने लोगों के मन में कुछ उत्सुकता, कुछ अपनापन पैदा कर दिया। वर्षों बाद जब भी मैं उस क्षेत्र में जाता हूं लोग मेरी पहली यात्रा का जिक्र करते हैं। सातवें दशक के बाद इन क्षेत्रों में कांग्रेस पार्टी का सफर कितना कठिन रहा होगा, इस बात की कल्पना इस तथ्य से की जा सकती है। कांग्रेस विधानसभा के चुनावों में 45 साल के बाद जीती है। इस बार इस क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार श्री रवि बहादुर जीते हैं। अच्छे वोटों से जीते हैं। युवा हैं, उत्साह व समझ का सामंजस्य है रवि में। बहुत दूर तक चलेंगे। इनके पिता श्री किरणपाल बाल्मीकि मेरे अच्छे दोस्त हैं।
यात्राएं, यात्रा में भी पद यात्राएं अच्छा साथ बनाती हैं। राजनीतिक कार्यकर्ता को इस राजनीतिक चाबी का इस्तेमाल करना चाहिए। मैं बहुधा ऐसा करते-करते यहां तक पहुंचा हूं। मेरे साथ साथियों की कभी खत्म न होने वाली कतार खड़ी करने में मेरी पदयात्राओं का बहुत बड़ा योगदान है। इस यात्रा के दौरान एक बड़ी संख्या में हरिद्वार के नेतागण श्री एस.पी. सिंह इंजीनियर, रणविजय सिंह सैनी, डॉ . गौड़, सलीम खान, डॉ . रकम सिंह, सुधीर शांडिल्य, मनब्बर खान, राशिद ठेकेदार, असलम, इरशाद अहमद, सूरजभान गिरी, अरविंद कश्यप, साधुराम, मुमताज खान, सुरेश सैनी, राव इनाम, राममिश्रा, इनाम त्यागी, सुखबीर चौहान आदि मेरे साथ पैदल चले, कारवां का लगातार हिस्सा बने रहे। इसी क्षेत्र में मेरी दूसरी पदयात्रा फतेहपुर से खेड़ी शिकोहपुर होते हुए हुई। इस यात्रा में भी बहुत सारे हमारे साथी यात्रा का खुशी- खुशी हिस्सा बने। मैंने अपने पदयात्रा उत्सुक साथियों का उपयोग हरिद्वार की अपनी छोटी-बड़ी पदयात्राओं में मुक्तभाव से किया। हरिद्वार से उत्तर प्रदेशी स्वभाव की राजनीति के असर को घटाना कोई मामूली चुनौती नहीं थी। हरिद्वार के उत्तराखण्ड में सम्मिलित होने से राज्य की अर्थव्यवस्था को बड़ी ताकत मिली है। राज्य आंदोलन अंतिम दौर में मैंने यहां हरिद्वार जोड़ो पदयात्रा निकाली थी, श्री पुरुषोत्तम शर्मा, महेश गौड़ सहित तत्कालिक सांसद हरपाल साथी इस पदयात्रा के संयोजक थे। हरपाल साथी जी उस समय भाजपा के सांसद थे। अभी-अभी लगभग सवा साल पहले भी मैंने श्रमिकों के उत्पीड़न के विरोध में सिडकुल में पदयात्रा निकाली, श्री राजवीर चौहान ने संयोजन संभाला। हरिद्वार के सभी नेतागण श्री सतपाल ब्रह्मचारी, अरविंद शर्मा, पुरुषोत्तम शर्मा, मनीष कर्णवाल, विक्रम खरोला, श्रीमती संतोष चौहान, महावीर रावत, ग्रेस कश्यप, रवीश भटीजा, किरणपाल बाल्मीकि, ओ.पी. चौहान, पूरन सिंह रावत, अरुण चौहान, राजीव चौधरी, रावअफाक, धर्मेंद्र चौहान, तेलूराम आदि-आदि भ्रमण भर साथ रहे। लंबे समय से श्रमिकों के मध्य हमारे संपर्क कमजोर हो रहे थे। मैंने इस पदयात्रा के माध्यम से उन संबंधों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। आज की विपरीत परिस्थितियों में भी कांग्रेस हरिद्वार में एक शक्ति के रूप में स्थापित है। इसका कम या ज्यादा श्रेय इस प्रकार की पदयात्राओं को जाता है।
हमारा संघर्ष अपने पुराने गौरवपूर्ण स्थान को पुनः पाने का है। इस संघर्ष में हमारा मुकाबला ऐसे शस्त्रधारियां से है जिनके तूणीर में अत्यधिक प्रभावी हथियार हैं। उनका मुकाबला हम अपने परंपरागत अस्त्र-शस्त्रों से ही कर सकते हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव से मैं थोड़ा कमजोर हो गया हूं। फिर भी एक-दो किलोमीटर चलने के लिए मेरे पांव मचलते हैं।
देखते हैं, कांग्रेस का नया नेतृत्व किस प्रकार का एजेंडा तैयार करता है! मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं।