देहरादून के राजपुर रोड स्थ्ति विख्यात सेंट जोसेफ एकेडमी को वर्ष 1934 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा 86 बीघा भूमि 90 वर्ष की लीज पर दी थी। यह भूमि नजूल भूखंड 266 के तहत राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। इस समूचे भूखंड की मियाद इस वर्ष खत्म हो गई है। वर्ष 2012 में सेंट जोसेफ एकेडमी द्वारा लीज के नवीनीकरण और फ्री होल्ड किए जाने की प्रक्रिया के तहत प्रदेश सरकार को आवेदन किया लेकिन राज्य बनने के बाद सरकारी योजनाओं के लिए भूमि की कमी के चलते तत्कालीन नियोजन विभाग द्वारा वर्ष 2012 में शासनादेश संख्या 39/विविध/ रा.यो.आ./2011-12 दिनांक 17-01-2012 के तहत लीज का नवीनीकरण और फ्री होल्ड पर रोक लगा दी गई। इसके पीछे कारण बताया गया कि सचिवालय परिसर के लिए भविष्य की आवश्यकता के लिए इस भूमि का उपयोग राज्य सरकार कर सकती है। बताते चलें कि सेंट जोसेफ एकेडमी सचिवालय परिसर से सटी हुई है और इसके दो मुख्य द्वार भी राजपुर रोड और सुभाष रोड में ही हैं।
18 सितंबर 2024 को सचिव आवास मिनाक्षी सुदंरम द्वारा सेंट जोसेफ एकेडमी की 20 बीघा भूमि को आम जनमानस की सुविधा के लिए पार्किंग हेतु वापस लिए जाने का आदेश जारी कर दिया। इसके लिए सचिव आवास द्वारा संख्या आवास अनुभाग 1 संख्या240870@ V1/E-66684/2024 देहरादून दिनांक 18 सितम्बर 2024 के तहत पत्र जारी कर कि इसके लिए एक जिलाधिकारी देहरादून की अध्यक्षता में जांच कमेटी का बनाई गई जिसमें नगर निगम आयुक्त देहरादून, उपाध्यक्ष मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण देहरादून पुलिस अधीक्षक यातायात देहरादून को सदस्य बनाया गया। कमेटी को स्थ्लीय जांच कर के नजूल भूमि के चिन्हीकरण करके तीन दिनों के भीतर शासन को अपनी रिपोर्ट देने का आदेश का भी उल्लेख किया गया।
सचिव आवास मीनाक्षी सुंदरम के पत्र बाद इस प्रकरण में गठित कमेटी द्वारा त्वरित कार्यवाही करके स्थलीय निरीक्षण कर जांच आरम्भ भी कर दी लेकिन जैसे ही यह पत्र सार्वजनिक हुआ तो खासी हलचल होने लगी। पहली बार सेंट जोसेफ एकेडमी जैसे संस्थान के खिलाफ किसी नौकरशाह द्वारा इस तरह का कड़ा कदम उठाए जाने से हैरत के साथ-साथ मिलीजुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलने लगीं। सूत्रों की मानें तो इस मामले में सेंट जोसेफ एकेडमी के संचालक जिनका प्रदेश के साथ-साथ केंद्र की राजनीति और शासन में मजबूत रसूख रहा है सक्रिय हुए और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के दिल्ली दौरे में होने के बावजूद उनहोंने मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को टेलीफोन पर ही इस आदेश को वापस लेने और सेंट जोसेफ एकेडमी की भूमि की लीज का नवीनीकरण किए जाने का आदेश दे दिया।
इस मामले में एक बात तो साफ हो गई है कि शासन और सत्ता में रसूखदारों का इकबाल हर सरकार में रहा है। किसी भी पार्टी की सरकार हो या सरकार का सिस्टम, किसी ने भी सेंट जोसेफ एकेडमी पर कभी कोई नियम या कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं दिखाई। सचिव आवास मीनाक्षी सुंदरम द्वारा पहली बार ऐसा आदेश जारी किया गया जो सीधे तौर पर सेंट जोसेफ एकेडमी के रसूख को कम करने वाला बना।
सेंट जोसेफ एकेडमी का जलवा इतना बड़ा रहा है कि इस में अपने बच्चों के एडमिशन के लिए बड़ी-बड़ी शिफारिशें लगाई जाती हैं।
सचिवालय से लेकर शासन स्तर के बड़े-बड़े अधिकारियों के बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं। इसके चलते स्कूल का अपना एक बड़ा रसूख रहा है। स्कूल में छुट्टी के समय अभिभावकों की भारी भीड़ चलते सचिवालय के साथ-साथ राजपुर रोड तथा सुभाष रोड पर घंटों भयंकर जाम की स्थिति रहती है। छुट्टी के समय सैकड़ांे वाहन अपने-अपने बच्चों को ले जाने के लिए इन्हीं सड़कों पर खड़े किए जाते हैं जिससे अफरा- तफरी के साथ-साथ लंबा जाम लग जाता है।
जबकि सेंट जोसेफ एकेडमी के पास विशाल खाली भूखंड स्कूल परिसर में ही है लेकिन अविभावकों के वाहनांे को वहां पार्किंग करने की अनुमति स्कूल प्रशासन नहीं देता है और सभी वाहन राजपुर रोड और सुभास रोड पर ही पार्क किए जाते हैं। जब तक स्कूल के बच्चे अपने घर नहीं निकल जाते तब तक इस क्षेत्र में जाम रहता है जिससे निपटने के लिए दर्जनों पुलिस अधिकारी और कर्मचारियांे की तैनाती इस सेंट जोसेफ एकेडमी के आस-पास व्यवस्था बनाए रखने के लिए रहती है।
कुछ वर्ष पूर्व देहरादून के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक यातायात केवल खुराना द्वारा सेंट जोसेफ एकेडमी के प्रशासन के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की गई थी और सड़कों पर किसी भी तरह के अभिभावकों के वाहनों के पार्क होने पर रोक लगा चालान तक करने का आदेश जारी किए गए थे। इसको देखते हुए सेंट जोसेफ एकेडमी को पहली बार कानून का पाठ सीखने को मिला और स्कूल परिसर के विशाल भूखंड पर अभिभावकों के वाहनांे को पार्क किया जाने लगा।
सेंट जोसेफ एकेडमी के रसूख का प्रमाण इस बात से ही लग जाता है कि यह व्यवस्था महज दो-चार दिनों तक ही रही। शासन के दबाव चलते वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक केवल खुराना को अपना ही आदेश वापस लेना पड़ा और सड़कों पर वाहन पार्क की पुरानी व्यवस्था को फिर से मन मार के चलाना पड़ा।
अब सचिव आवास के एक आदेश को शासन और सत्ता द्वारा वापस लिया जाना साफ करता है कि सेंट जोसेफ एकेडमी का कितना बड़ा और मजबूत रसूख है जिसके लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने दिल्ली दौरे के समय ही फोन पर आदेश जारी कर देते हैं और जो भूमि वर्षों से स्कूल के पास खाली पड़ी हुई है, को जनता के हित में पार्किंग बनाए जाने की बजाय सेंट जोसेफ एकेडमी के नाम लीज का नवीनीरण करने के भी आदेश जारी हो जाते हैं। शासन द्वारा सचिव आवास का आदेश वापस लेने के साथ ही एक बात इसमें जोड़ी गई कि अब सेंट जोसेफ एकेडमी अपने परिसर में ही अभिभावकों के वाहनांे को पार्क करेगा न कि सड़क पर। जबकि पूर्व में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक केवल खुराना के आदेश को महज कुछ ही दिनों में वापस लेने को मजबूर होना पड़ा तो मुख्य सचिव के नए आदेश का कितने दिनांे तक पालन किया जाएगा यह सवाल सबके मन में कौंध रहा है। अगर सुभाष रोड और एस्लेहाल जैसी अतिव्यस्तम क्षेत्रों की बात करें तो इन क्षेत्रों में सचिवालय, पुलिस मुख्यालय के साथ-साथ अनेक बड़े-बड़े प्रतिष्ठान और मॉल, अस्पताल आदि हैं जिसके कारण इन स्थानों में वाहनांे का दबाव सबसे ज्यादा रहता है। पार्किंग की कोई व्यवस्था न होने के चलते सुभाष रोड सेंट जोसेफ एकेडमी से लेकर सचिवालय तक सड़क के दोनों ओर वाहन पार्क किए जाते हैं। साथ ही इन क्षेत्रों में नए-नए मॉल और व्यापारिक बहुमंजिला प्रतिष्ठानों का निर्माण हो चुका है और कई निर्माणाधीन हैं। आने वाले समय में इन क्षेत्रों में वाहन पार्किंग एक बड़ी बिकराल समस्या के तौर पर सामने आने वाली है।
पूरे देहरादून नगर में सडकांे को ही अधिकृत पार्किंग के तौर पर उपयोग में लिया जा रहा है। कई वर्षों से बहुमंजिला पार्किंग बनाए जाने के दावे हो रहे हैं लेकिन आज तक वे दावे जमीन पर नहीं उतर पाए हैं। इसका बड़ा कारण भूमि की भारी कमी रही है। सेंट जोसेफ एकेडमी की भूमि का उपयोग बहुमजिला पार्किंग के तौर पर किए जाने से एक बड़ी भारी समस्या से जनता को निजात मिल सकती थी।
चर्चा यह भी है कि सेंत जोसेफ एकेडमी के खाली 20 बीघा भूमि पर वाहनों की पार्किंग बनाए जाने के निर्णय पीछे जनहित की बजाय बिल्डर्स और बहुमंजिला प्रतिष्ठानों के हितों को ही ध्यान में रखा गया है। जिसमें भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का व्यापारिक प्रतिष्ठान भी शामिल है जिसमें पार्किंग की व्यवस्था न होने के चलते स्कूल की भूमि को पार्किंग बनाए जाने के लिए ही सचिव आवास से आदेश जारी करवाया गया। यह आरोप कहां तक सच है यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन इस प्रकरण में एक बात साफ तौर पर सामने आई है कि शासन और सरकार में जिसका रसूख है उसके लिए समूचा सरकारी सिस्टम पलक-पांवड़े बिछाने का काम करने में सबसे आगे रहता है।