प्रदेश की डोईवाला विधानसभा सीट दिग्गजों के चलते काफी हाॅट बन गई है। कांग्रेस-भाजपा के जो बड़े नेता यहां से चुनाव जीतते रहे हैं, वे इस बार भी भाग्य आजमाने के मूड में हैं। यदि दिग्गज खुद मैदान में नहीं हुए तो वे अपने सिपहसालारों पर दांव लगाकर दबदबा बनाए रखने की जंग लड़ेंगे। ऐसे में चुनाव बेहद रोचक होने के आसार हैं। चुनावी घमासान इसलिए भी दिलचस्प होगा क्योंकि इस बार कांग्रेस-भाजपा के साथ ही क्षेत्रीय पार्टी उक्रांद भी मजबूती से ताल ठोककर मैदान में है। कांग्रेस- भाजपा के भीतर प्रत्याशी चयन को लेकर खींचतान होनी स्वाभाविक है, जबकि उक्रांद प्रत्याशी पहले ही अपने मिशन में जुटे हुए हैं
प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है। ऐसे में डोईवाला जैसी वीआईपी सीट को लेकर भला क्यों न चर्चाएं हों। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा, कांग्रेस और उक्रांद तीनों ही दल अपनी-अपनी रणनीति में जुट चुके है। आम आदमी पार्टी का इस क्षेत्र में कोई खास जनाधार तो नहीं है, लेकिन नगर निगम और डोईवाला निकाय क्षेत्र में आप के कार्यकर्ता और नेता सक्रिय हैं।
भाजपा के लिए डोईवाला सीट पर कोई समस्या नहीं है। त्रिवेंद्र रावत भाजपा के सबसे बड़े चेहरे यहां से आज भी हैं। अगर कोई नया राजनीतिक समीकरण या बदलाव नहीं हुआ तो इस क्षेत्र से नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाएं बेहद कम ही हैं।
मुख्यमंत्री रहते हुए ही त्रिवेंद्र रावत इस सीट से 2022 के चुनाव की तैयारी में जुट गए थे। इसके लिए उन्होंने अपने समर्थकों और भाजपा के कार्यकर्ताओं को दायित्व देने और अपने नजदीक करने में कोई कमी नहीं की। लेकिन अब दिक्कत यह है कि त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनके लिए स्थितियां उतनी मजबूत नहीं रह गई जितनी पहले दिखाई देती थी। साथ ही अब यह भी साफ हो गया है कि 2022 के चुनाव में वे मुख्यमंत्री का चेहरा भी नहीं होंगे। भाजपा ने साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर ही पार्टी चुनाव लड़ेगी। इससे त्रिवेंद्र रावत की मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं। अब उनके लिए चुनौतियों के कई रणक्षेत्र खुल गए हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री निशंक की लोकसभा सीट हरिद्वार का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र डोईवाला भी है। सांसद बनने से पूर्व डोईवाला से निशंक विधायक थे। वे लगातार दो बार सांसद भी निर्वाचित हुए हैं। 2014 के डोईवाला विधानसभा उपचुनाव में त्रिवेंद्र रावत के और निशंक समर्थकों के बीच खासा विवाद भी सामने आ चुका है।
इस चुनाव में त्रिवेंद्र रावत की हार का कारण निश्ंाक के समर्थकों को बताने में त्रिवेंद्र के कार्यकर्ता और समर्थकों ने कोई कमी नहीं रखी। यह विवाद इतना बढ़ा कि एक दूसरे के पुतले तक फूंके गए। अब निश्ंाक केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर हैं और त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री पद से चलता हो चुके हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि 2022 में दोनों के बीच अपने-अपने समर्थकांे के राजनीतिक भविष्य को लेकर फिर से तलवारें खिंचने की पूरी संभावनाएं हैं। निशंक को अपने 2024 के बाद के राजनीतिक समीकरण और हालात से भी निपटना होगा जिसके लिए वे डोईवाला को छोड़ना नहीं चाहेंगे।
हालांकि कुछ नए कयास और चर्चाएं राजनीति में होने लगी है जिसमें कहा जा रहा है कि यह भी संभव है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में त्रिवेंद्र रावत चुनाव ही नहीं लड़ें या फिर वे किसी अन्य सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं। इस नई चर्चा और कयास के बाद डोईवाला सीट भाजपा के लिए एक हाॅट सीट भी बन सकती है। इसी को देखते हुए इस सीट पर भाजपा के भीतर टिकट के कई दावेदार उभर रहेे हैं। जिनमें ज्यादातर दावेदार निश्ंाक और त्रिवेंद्र रावत के ही समर्थक बताए जाते हैं।
इन संभावित दावेदारों की बात करें तो इनमें सबसे बड़ा नाम त्रिवेंद्र रावत के ओएसडी रहे धीरेंद्र पंवार और विधानसभा प्रभारी नरेंद्र नेगी का समाने आ रहा है। अगर कोई राजनीतिक बदलाव हुआ तो यह दोनां ही नेता अपनी दावेदारी पार्टी में कर सकते है। माना जा रहा हेै कि त्रिवेंद्र रावत का इनको पूरा समर्थन है। हालांकि धीरेंद्र पंवार ज्यादा मजबूत बताए जा रहे हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री रहते हुए त्रिवेंद्र रावत ने उनको शासन और सत्ता का एक मजबूत केंद्र बनाने में कोई कमी नहीं की थी। माना जाता है कि डोईवाला में कोई भी काम चाहे वह शासन स्तर से हो या जनप्रतिनिधि स्तर का हो बगैर धीरेंद्र पंवार की जानकारी में आए हो नहीं सकता था।
इसके अलावा त्रिवेंद्र रावत के ही खास नरेंद्र नेगी जिनको स्वयं त्रिवेंद्र रावत ने डोईवाला विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाया है, वह भी भाजपा में संभावित दावेदारों की जमात में शामिल हैं। दिलचस्प है कि त्रिवेंद्र रावत ने अपने क्षेत्र में कई युवा चेहरों को इस तरह से प्रस्तुत किया है। अब वे मुख्यधारा की राजनीति में अपने आप को देखने लगे हैं।
निशंक के खास समर्थक रहे और पत्रकारिता में हाथ आजमा चुके पूर्व दायित्वधारी सुभाष बड़थ्वाल भी टिकट के दावेदारों में हेै। साथ ही पेशे से वकील रामेश्वर लोधी भी दावेदारों में शामिल हो सकते हैं।
सबसे चैंकाने बात सामने आई है कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की भी निगाहें डोईवाला सीट पर लगी हुई हैं। 2012 में भी हरक सिंह रावत के डोईवाला से चुनाव लड़ने की खबरों आ रही थी लेकिन कांग्रेस ने उनको रुद्रप्रयाग से मैदान में उतारा था। राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो प्रदेश में हरक सिंह रावत ही एक मात्र ऐसे राजनेता हैं जो कि एक सीट पर चुनाव जीतने के बाद अगली बार दूसरी सीट पर तैयारी रखते हैं। पौड़ी सीट से राजनीतिक सफर आरंभ करने वाले हरक सिंह का कोटद्वार, लैंसडाउन, रुद्रप्रयाग तक का लंबा राजनीतिक सफर रहा है।
माना जाता है कि हरक सिंह रावत ने पिछले पांच-छह वर्षों से डोईवाला में अपने समर्थकों और खास कार्यकर्ताओं को इसी के लिए तेैयार किया है। विगत कुछ माह से हरक सिंह रावत की सक्रियता डोईवाला क्षेत्र में बड़ी तेजी से देखने को भी मिल रही है। अगर त्रिवेंद्र रावत डोईवाला से चुनाव में नहीं उतरते तो हरक सिंह रावत सबसे बड़े और मजबूत दावेदार होंगे।
कांग्रेस में दावेदारों में नए नामों की चर्चा खास नहीं हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट और शिक्षण संस्थान से अपनी बड़ी पहचान रखने वाले पूर्व जिला पंचायत सदस्य एसपी सिंह पार्टी के सबसे बड़े दावेदार हैं। दोनों ही नेता इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ रखते रहे हैं। हालांकि हीरा सिंह बिष्ट को चार बार विधायक होने का ज्यादा फायदा मिलता रहा है जबकि एसपी सिंह अपने क्षेत्र में नामी शिक्षण संस्थान चलाने और जिला पंचायत स्तर पर अपनी लोकप्रियता बनाने में सफल रहे हैं।
2012 के चुनाव में एसपी सिंह कांग्रेस से बागी होकर चुनावी मैदान में उतरे थे जिसका खमियाजा कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को भुगतना पड़ा था। लेकिन 2014 के विधानसभा उपचुनाव में एसपी सिंह की वापसी कांग्रेस में होने पर हीरा सिंह बिष्ट ने त्रिवेंद्र रावत को पटकनी दे डाली थी। अगर इस सीट पर कांग्रेस के भीतर कोई विवाद नहीं हुआ तो कांग्रेस भाजपा से ज्यादा मजबूत दिखाई दे रही है। एसपी सिंह और हीरा सिंह बिष्ट की जुगलबंदी भाजपा को एक बड़ी चुनौती दे सकती है।
इसके अलावा कांग्रेस में पूर्व जिला पंचायत सदस्य और वर्तमान में कांग्रेस सेवा दल की प्रदेश अध्यक्ष हेमा पुरोहित भी एक बड़ी दावेदार हैं। माना जाता है कि हरीश रावत की प्रबल समर्थक हेमा पुरोहित विगत चार वर्षों से डोईवाला क्षेत्र में मजबूती से सक्रिय रही हैं। साथ ही कांग्रेस के युवा नेता सागर मनवाल भी मजबूत दावेदारों की जमात में हैं। डोईवाला नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा की करारी हार हुई थी, जबकि स्वयं तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ चुनाव का संचालन किया था। उनके कई समर्थक और सलाहकारों ने डोईवाला में ही रहकर चुनाव का संचालन किया, लेकिन भाजपा को हार से नहीं बचा पाए। कांग्रेस की इस जीत का श्रेय डोईवाला के कांग्रेसी मनवाल को ही देते हैं। मनवाल भी हरीश रावत समर्थक बताए जाते हैं तो हरीश रावत के लिए टिकट का बंटवारा एक चुनौती तो है ही।
कभी इस क्षेत्र में चैथी राजनीतिक ताकत समझी जाने वाली उक्रांद भी नई ऊर्जा और नए चेहरे के साथ डोईवाला सीट पर अपनी मजबूत दावेदारी करती दिखाई दे रही है। आज अगर कहा जाए कि उक्रांद डोईवाला में तीसरी बड़ी राजनीतिक ताकत है, तो गलत नहीं होगा। पूर्व में उक्रांद के राजपाल सिंह रावत इस क्षेत्र से एक अच्छे नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में राजपाल रावत ने सबको चैंकाते हुए कांग्रेस और भाजपा को कड़ी चुनौती दी थी और 6 हजार से भी ज्यादा मत हासिल किए थे। लेकिन राजपाल रावत के देहांत के बाद उक्रांद एक तरह से हाशिए पर चला गया था। अब फिर से उक्रांद ने इस क्षेत्र में नई ताकत के साथ वापसी की है। पत्रकारिता में अपना बड़ा नाम रखने वाले शिव प्रसाद सेमवाल उक्रांद से इस क्षेत्र में तेजी से उभरते युवा नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने में बड़ी हद तक कामयाब हुए हैं। उक्रांद ने उनको एक नए मजबूत युवा चेहरे और पर्वतीय मूल के होने के चलते अपना उम्मीदवार घोषित किया हुआ है। हालांकि इसके लिए कोई अधिकृत घोषणा उक्रांद की तरफ से नहीं आई है, लेकिन दल के बड़े नेता अनेक बार क्रार्यक्रमों और आंदोलनों में इसका ईशारा कर चुके हैं।
शिव प्रसाद सेमवाल विगत एक वर्ष से इस क्षेत्र में सक्रिय हैं और जनता की समस्याओं को लेकर कई बार धरना प्रर्दशन औेर आंदोलन कर चुके हंै जिनका सुखद परिणाम भी रहा है।
डोईवाला हाईवे के टोल प्लाजा प्रकरण में सेमवाल ने ही सबसे पहले आंदोलन किया था। साथ ही उनके नेतृत्व में युवा पीढ़ी उक्रांद से जुड़ी है। स्कूल, काॅलेज और उच्च शिक्षण संस्थानांे में सेमवाल ने छात्रों और युवाओं के बीच एक बेहतर तालमेल करने में भी कामयाबी हासिल की है। डोईवाला के पर्वतीय और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल, विद्युत और सड़कांे की दुर्दशा को लेकर या फिर कोरोना माहामारी के समय प्रभावितों को मदद पहुंचाने के लिए सेमवाल ने बेहतर काम किया है। रानी पोखरी, थानो, भानियावाला, सिंधवाल गांव आदि में सेमवाल ने अपनी मजबूत पकड़ी बनाई है। भाजपा और कांग्रेस को उक्रांद एक बड़ी चुनौती देता हुआ नजर आ रहा है।
प्रदेश की राजनीति में तीसरी ताकत का सपना संजोये हुए आम आदमी पार्टी इस क्षेत्र में कोई खास नजर नहीं आ रही है। हालांकि ‘दि संडे पोस्ट’ के सर्वेक्षण में मतदाताओं ने आप को भाजपा से ज्यादा तवज्जो दी है, लेकिन नई पार्टी और नया संगठन होने के चलते आम आदमी पार्टी इस क्षेत्र में एक उभरती हुई पार्टी तो दिखाई दे रही है, परंतु राजनीतिक तौर पर कितना कामयाब होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। हालांकि आम आदमी पार्टी से जिला संगठन मंत्री अशोक सेमवाल और डोईवाला विधानसभा प्रभारी गणेश गोदियाल आम आदमी पार्टी से दावेदार हैं।
राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस ने बराबर इस क्षेत्र में प्रतिनिधित्व किया है। जनता का चुनावी मूड भी इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के ही इर्दगिर्द रहा है। कभी
समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में तीसरी ताकत रही लेकिन विनोद बड़थ्वाल के निधन के बाद सपा का अब कोई निशान बाकी नहीं है। जनता में सपा और न उसके नेताओं को लेकर कोई सोच भी नहीं है।
मेरी पूरी दावेदारी है। मुझे पूरी उम्मीद है कि पार्टी मुझे एक बार फिर से डोईवाला से चुनाव में उतारेगी। कांग्रेस के भीतर कोई गुटबाजी नहीं। टिकट को लेकर कोई नाराजगी नहीं है। जिसे भी टिकट मिलेगा सब कांग्रेस के उम्मीदवार के लिए काम करेंगे।
हीरा सिंह बिष्ट, पूर्व विधायक कांग्रेस पार्टी
हर कोई चाहता है कि वह राजनीति में आगे बढ़े। मैं इस क्षेत्र से वर्षों से जुड़ा रहा हूं। कांग्रेस संगठन में काम किया है। जिला पंचायत में चुनाव जीते हैं। मैं 2022 के लिए अपनी दावेदारी जरूर करूंगा। हीरा सिंह जी के साथ मेरे कोई मतभेद नहीं हंै। टिकट किसी को भी मिले, लेकिन दावेदारी का अधिकार तो सबको है। मुझे भी है। अभी इतना कह सकता हूं कि 2022 में डोईवाला से कांग्रेस को भारी जीत मिलने वाली है।
एस.पी. सिंह, पूर्व जिला पंचायत सदस्य
मैं दो बार जिला पंचायत सदस्य रही हूं और वर्तमान में महिला कांग्रेस सेवा दल की प्रदेश अध्यक्ष हूं। यह क्षेत्र मेरा अपना क्षेत्र है। मैं कांग्रेस से 2022 के चुनाव के लिए दावेदारी कर रही हूं। उम्मीद करती हूं कि कांग्रेस पार्टी मुझे टिकट देगी।
हेमा पुरोहित, प्रदेश अध्यक्ष महिला कांग्रेस सेवा दल
मैं कांग्रेस में प्रदेश सचिव के पद पर हूं और कई सालों से डोईवला की जनता के साथ रहा हूं। मैं पूरी दावेदारी कर रहा हूं।
सागर मनवाल, प्रदेश सचिव कांग्रेस
त्रिवेंद्र रावत जी मेरे राजनीतिक गुरु हैं। यह उनका पुराना क्षेत्र है। वे इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिया नेता हैं। दो बार इस क्षेत्र से चुनाव जीते हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जितने काम इस क्षेत्र में किए आज तक कोई नहीं करवा पाया। उनके रहते हुए तो मैं चुनाव लड़ने की सोच ही नहीं सकता, लेकिन अगर कुछ ऐसा हुआ कि वे राष्ट्रीय राजनीति में जाते हैं और डोईवाला से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो मैं 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से अपनी दावेदारी करूंगा। लेकिन यह तभी होगा कि जब त्रिवेंद्र जी डोईवाला से चुनाव नहीं लडं़ेगे।
धीरेंद्र पंवार, पूर्व ओएसडी त्रिवेंद्र रावत
मैं लगातार चार बार से अपने गांव कान्हारवाला का प्रधान हूं। भाजपा का मंडल अध्यक्ष भी रहा हूं। मैं निश्चित ही डोईवाला से 2022 के चुनाव के लिए भाजपा के टिकट की दावेदारी करूंगा।
नरेंद्र नेगी, पूर्व मंडल अध्यक्ष भाजपा
सुविधाओं को मोहताज वीआईपी क्षेत्र की जनता
डोईवाला विधानसभा क्षेत्र को शुरू से ही वीआईपी होने का गौरव रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र ने प्रदेश को मुख्यमंत्री, सांसद और कैबिनेट मंत्री दिए हंै। कांग्रेस और भाजपा के दिग्गजों ने बराबर इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हीरा सिंह बिष्ट इस क्षेत्र से विधायक रहे, तो भाजपा त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री के पद पर पहंुचे हैं। एक तरह से कहा जाए कि डोईवाला विधानसभा क्षेत्र प्रदेश की राजनीति में खास स्थान रखता रहा है तो गलत नहीं होगा। जनता दिग्गजों को चुनकर इसलिए भेजती रही कि क्षेत्र का कायाकल्प होगा, लेकिन इन सबके बावजूद डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के निवासियों के हालात में कोई बड़ा फर्क आया हो, यह आज तक देखने को नहीं मिला।
तकरीबन 1 लाख 20 हजार मददाताओं वाली डोईवाला विधानसभा सीट क्षेत्रफल के हिसाब से दो विकास खंड रायपुर और डोईवाला तथा तीन न्याय पंचायतों थानो, रानीपोखरी एवं मरखम ग्रांट न्याय पंचाय के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है। हर क्षेत्र की अपनी अपनी समस्याएं हैं जिनसे जनता जूझ रही है। क्षेत्रफल और जनसंख्या के आधार से देखा जाए तो डोईवाला ऐसी विधानसभा सीट है जिसमें एक हिस्सा देहरादून नगर निगम और डोईवाला नगर पालिका का शहरी क्षेत्र है। शेष भूभाग ग्रामीण और एक बड़ा हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र का भी शामिल है जिसमें थानो न्याय पंचायत के धारकोट, लड़वाकोट, बडेरना, हल्द्वाड़ी, सिंधवाल गांव, सनगांव और नाहीकला तथा सतेली जेैसे अति दुर्गम क्षेत्र भी है।
वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में क्षेत्र की जनता ने एक बार फिर से त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता का सुख देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनको भारी मतों से विजयी बनाया और वे मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचे। इस सबके बावजूद डोईवाला की जनता तमाम परेशानियों से जूझ रही है। अब डोईवाला के विकास और वीआईपी विधानसभा सीट होने के प्रभाव की बात करंे, तो यह जरूर है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के विधायक बनने और मुख्यमंत्री होने के चलते इस क्षेत्र को अधिक तवज्जो मिली है, लेकिन जितने विकास के काम इस क्षेत्र में होने की उम्मीद जताई गई थी उतना नहीं हो पाया है। केंद्र सरकार के केंद्रीय सड़क अवस्थापना निधि के तहत बड़े- बड़े पुल बनाए गए हैं जिसमें सिरवालगढ़, भोपालपानी और बड़ासी पुल का निर्माण किया गया है। हरिद्वार-देहरादून हाईवे और डोईवाला फ्लाईओवर जैसे पुलों के निर्माण को मंजूरी दी। सड़कों की मरम्मत और निर्माण भी इस क्षेत्र में हुआ है। दुर्गम क्षेत्र को जोड़ने के लिए थानो से सिंधवाल गांव के लिए सड़क और बड़े पुल का निर्माण किया गया है। हालांकि इस पुल के निर्माण पर कई आरोप भी लग रहे हैं, लेकिन इस पुल से जनता को बड़ी राहत भी मिली है। इसी तरह से सूर्यधार में पेयजल और सिंचाई के लिए सूर्यधार झील बनाई गई है।
रोजगार और स्वास्थ्य के नाम पर डोईवाला में कोई नया काम इन बीस वर्षों में नहीं हो पाया है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से चली आ रही एक मात्र सरकारी चीनी मिल और लाल तप्पड़ का औद्योगिक क्षेत्र के अलावा कोई नया क्षेत्र या नया उद्योग स्थापित नहीं हो पाया है।
स्वास्थ के क्षेत्र में सबसे बुरा हाल इस विधानसभा सीट का ही है। हैरत की बात यह है कि त्रिवेंद्र रावत पूरे चार वर्ष मुख्यमंत्री रहे और स्वास्थ्य विभाग भी उन्हीें के पास रहा है, डोईवाला विधानसभा क्षेत्र की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जूझना पड़ रहा है। अस्पताल हैं तो डाॅक्टर नहीं हैं। डाॅक्टर हैं तो सुविधाएं नहीं। दुर्गम के हालात तो बहुत ही खराब हैं। पूर्व में नाहीकला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के हालात का खुलासा ‘दि संडे पोस्ट’ कर चुका है। यहां चार साल से तैनात चिकित्सक को गांव वालों ने देखा ही नहीं है। निर्माण कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार के मामले समाने आ रहे हैं। डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के दो बड़े पुल बड़ासी और भोपालपानी के निर्माण में घोटाला और अनियमिता समाने आ चुकी है, जबकि यह पुल त्रिवेंद्र रावत सरकार की उपलब्धियों का प्रचार करने में शामिल किए गए थे। इसी तरह से डोईवाला हाईवे के पुल में भी दरार और एप्रोच रोड के क्षतिग्रस्त होने से भी कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर त्रिवेंद्र रावत की वीआईपी विधानसभा सीट में निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार क्यों हो रहे हैं।
अवैध खनन का डोईवाला में जमकर बोलबाला रहा है। हालात इस कदर हो चले हैं कि नदियों में दस-दस फिट के गड्ढ़े करके खनन के कारोबार को बढ़ावा दिया जा रहा है। ‘दि संडे पोस्ट’ ने पूर्व में डोईवाला में अवैध खनन और इसको संरक्षण देने का खुलासा अपने समाचार में ‘सरकारी राजस्व पर डाका’ शीर्षक से प्रकाशित किया था। जिसमें जमकर सरकारी सरंक्षण में अवैध खनन के मामलों का खुलासा किया था।