देश में बढ़ते प्रदूषण को लेकर भले ही हमारे माननीय सांसद पराली जलाने वाले किसानों का बचाव कर रहे हो, लेकिन यह हकीकत है की आग जलने से जो धुआं उठता है प्रदूषण बढ़ाने में सबसे बड़ा हाथ उसी का है, क्योंकि एक सर्वे में यह बात साफ हो चुकी है कि चूल्हे से उठने वाले धुँए का पीएम 2.5 स्तर 900 से भी ऊपर तक चला जाता है, जिससे अस्थमा और सांस संबंधी अनेक बीमारियां जन्म लेती है, लेकिन इस बात पर अभी तक किसी का भी ध्यान नहीं गया कि खुले में आग जलाने और धुआं फैलाने वाली घटनाओं को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि भारत में पीएम 2.5 का सबसे सुरक्षित स्तर 50 है, लेकिन जो हरी भरी वादियां प्रदूषण के लिहाज से सबसे महफूज मानी जाती है वही पीएम 2.5 का स्तर 50 से 55 के बीच जा रहा है जबकि हल्द्वानी जैसे शहर में रोजाना शाम को पीएम 2.5 का स्तर 270 से 300 के बीच पहुंच रहा है।
उत्तराखंड की हरी भरी वादियां, जहां आने के लिए पर्यटक हर हमेशा उत्सुक रहते हैं, शायद इसलिए कि कुछ दिन शांत वादियों में रहेंगे और महानगरों में फैलते प्रदूषण से थोड़ा निजात मिल सकेगी, लेकिन अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आपको सावधान होने की जरूरत है, क्योंकि अब तक सारे देश का ध्यान दिल्ली और एनसीआर में फैले प्रदूषण पर है, लेकिन हकीकत यह है कि उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रदूषण की स्थिति ठीक नहीं है, एक सर्वे के दौरान जब गांव में चूल्हा जलाने वाले घरों में पीएम 2.5 का स्तर जांचा गया तो 900 के पार निकला जबकि हल्द्वानी जैसे शहर में पीएम 2.5 का स्तर औसतन रोजाना 270 से 300 के बीच जा रहा है, समझने वाली बात तो यह है की हरे भरे जंगलो का कटान, गांव में जलने वाले चूल्हे, खुले में लगाई जाने वाली आग से पीएम 2.5 का स्तर लगातार बढ़ रहा है, और उत्तराखंड की हरी भरी वादियां भी प्रदूषण से अछूती नही हैं। भारत में पीएम 2.5 का मानक 50 है, लेकिन हकीकत यह है की हल्द्वानी से ऊपर पहाड़ी इलाको में पीएम 2.5 का स्तर 50 से ऊपर है, जिसके लिए ओपन फायर को जिम्मेदार माना जा रहा है, लेकिन प्रदूषण के लिहाज़ से केवल शहर को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, गांव में चूल्हे औऱ खुले में लगाई जाने वाली आग से होने वाले प्रदूषण, निर्माण कार्यों से होने वाले प्रदूषण की तरफ कोई ध्यान नही दे रहा है, जबकी हक़ीक़त यह है की चूल्हों में काम करने वाली महिलाये अक्सर दमा, टीवी, एलर्जी की चपेट में हैं या अपनी जान गवा चुकी हैं, नैनीताल जिले में प्रदूषण का यह सर्वे हरे भरे जंगलों के बीच बसे कई गांव में किया गया, इसके अलावा हल्द्वानी टचिंग ग्राउंड, गौलापार और अन्य साफ-सुथरी जगहों भी प्रदूषण की जांच की गई तो आंकड़े चौकाने वाले निकले हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक हालात बहुत ही चिंताजनक हैं, क्योंकि रोज हो रहे कंस्ट्रक्शन, रोजाना बन रही नई सड़कों से धूल की परतें पेड़ पौधों पर नई पर बना रही हैं जिससे पेड़ पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा उत्पन्न हो रही है, और ऑक्सीजन बहुत कम रिलीज हो पा रही है, यही नहीं हल्द्वानी के अंदर गौला नदी में हो रहा खनन और गांव के नजदीक बड़े पैमाने पर जलते चूल्हे से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण एक बड़े पैमाने पर प्रभावित हो रहा है, हाल के दिनों में जब दीपावली के पहले हफ्ते और दीपावली के बाद वाले हफ्ते में तर्क प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने अपना सर्वे करवाया था तो प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक निकली है, हालांकि पीसीबी की तरफ से रोजाना तो प्रदूषण का डाटा कलेक्ट नहीं होता लेकिन उनके मुताबिक जो रिपोर्ट सामने आई वह भविष्य के लिहाज से बेहद चिंताजनक साबित होने वाली नजर आ रही है। कभी केंद्र सरकार तो कभी दिल्ली सरकार, कभी हरियाणा सरकार तो कभी कोई अन्य सरकार सब जगह प्रदूषण पर हंगामा बरपा है, पिछले दिनों संसद में भी प्रदूषण को लेकर चर्चा हुई लेकिन प्रदूषण कम कैसे होगा इसका कोई समाधान नहीं निकल सका, जब तक सरकारें समाधान का तरीका निकालती है तब तक प्रदूषण कंट्रोल से बाहर हो जाएगा क्योंकि पहाड़ों की हवाओं में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने का मतलब यही है कि अगर आप उत्तराखंड में आकर अपने आप को पर्यावरण के प्रति सुरक्षित महसूस कर रहे हैं तो आप सावधान हो जाइए, क्योंकि आप दिल्ली एनसीआर ही नहीं उत्तराखंड की हरी-भरी वादियों की हवा भी जहरीली हो रही है लिहाजा प्रदूषण पर चर्चा का समय नहीं है, अगर कुछ शेष बचा है तो वह है पर्यावरण के प्रति कोई ठोस निर्णय लेने का जिससे फिजाओं में घुल रहे जहर को नियंत्रित किया जा सके।