- के.एस. असवाल
उत्तराखण्ड की संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व रहा है। इसी महत्व को देखते हुए चमोली जिले में लगने वाला गौचर मेला इस बार नए रंग-रूप में होगा। जिसका शुभारंभ 14 नवंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी करेंगे
गढ़वाल में औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए गौचर मेले की शुरुआत हुई। इसके चलते ही आज औद्योगिक क्षेत्र में कई कीर्तिमान भी स्थापित हो चुके हैं। औद्योगिक क्षेत्र के विकास के साथ ही पौराणिक सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण रखने के निमित्त आयोजित इस मेले का अपना अनूठा इतिहास भी रहा है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन से शुरू होने वाला यह मेला इस बार 70वें बसंत को पार करेगा। इस काल अवधि में इस मेले ने कई रंग-ढंग देखे और उतार-चढ़ाव देखे हैं। किन्तु इसकी जीवंतता अभी भी बनी रहने से इसके गौरवमयी इतिहास की यादें भी ताजा होती हैं।
सीमांत जनपद चमोली के गौचर के विशाल मैदान में लगने वाले इस मेले का इतिहास हमारी प्राचीन सभ्यता से जुड़ा हुआ है वहीं औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने लिए यह मेला मील का पत्थर भी साबित होता आया है। ऐसा ही मेला अंग्रेजी हुकूमत के समय कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ जनपद के जौलजीबी में शुरू किया गया था। इस मेले में भारत तिब्बत के व्यापार का आदान-प्रदान किया जाता था। सन् 1943 में गढ़वाल के प्रख्यात पत्रकार स्व गोविंद प्रसाद नौटियाल, नाथू सिंह पाल,जमन सिंह सयाना, भोपाल सिंह सयाना, आदि सुदूरवर्ती हिमालयी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के एक शिष्टमंडल ने गढ़वाल के तत्कालीन जिलाधीश आरडी वर्नीडी से भेंटकर औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए गढ़वाल क्षेत्र के केंद्र बिंदु गौचर के विशाल मैदान में ऐसा ही मेला आयोजित करने का आग्रह किया। जनप्रतिनिधियों के आग्रह को गंभीरता से लेते हुए उन्होंने जौलजीबी की तर्ज पर गौचर में भी व्यापारिक मेला आयोजित करने का निर्णय लिया।
1943 से 1947 वर्ष तक यह मेला एक से सात सितंबर तक आयोजित होता रहा, किंतु देश के स्वतंत्र होने के बाद मेला भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्म दिन 14 नवंबर से आयोजित करने का निर्णय लिया गया। तब से आज तक मेले की तिथि एकाध बार छोड़कर अनवरत जारी है। शुरुआती दौर में इस मेले में भोटिया जनजाति के लोग तिब्बत से बकरियों में लादकर ऊन, नमक, सोने-चांदी के आभूषण के अलावा भी कई चीजों को यहां लाकर बेचते थे। बदले में यहां से गुड़, कीमती जड़ी-बूटियों का निर्यात करते थे। तब इस मेले को भोटिया मेला भी कहा जाता था।
वर्ष 1960 में जनपद चमोली के अलग सीमांत जनपद के रूप में सृजित होने और भारत तिब्बत व्यापार पर प्रतिबंध लग जाने से यहां के लिए नमक एवं अन्य वस्तुएं सीधे मैदानी भागों से आने लगीं और मेले का स्वरूप ही बदल गया। तब इस मेले को और व्यापक स्वरूप देने के लिए विकास के आयामों से जोड़ा गया। मेले में विकास से संबंधित प्रदेश स्तरीय खेल-कूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाने लगे और मेला निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता गया। तब इस मेले को भोटिया मेले की जगह गौचर औद्योगिक एवं विकास प्रदर्शनी नाम दिया गया। उत्तर प्रदेश में रहते हुए इस मेले को राज्य की राजधानी लखनऊ से जोड़ा गया। मेले में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, मद्य निषेध के अलावा उच्च कोटि की सांस्कृतिक समितियां शिरकत करती थीं। सन 60 के बाद कुछ सालों तक मेले का आयोजन जिला पंचायत के हाथों में रहा। धन की कमी की वजह से जिला पंचायत ने हाथ खड़े किए तो नगर निकाय ने इसे अपने हाथों में ले लिया। लेकिन वह भी ज्यादा बार मेले का आयोजन नहीं कर पाया। 1994 से इस मेले का आयोजन जिला प्रशासन ने अपने हाथों में लिया। लेकिन जनप्रतिनिधियों की सहभागिता बनी रहे इसके लिए विभिन्न समितियां गठित की गईं। तब से अब तक मेला समितियों के साथ मिलकर जिला प्रशासन इस मेले का आयोजन करता आ रहा है।
यह बात अलग है अधिकारियों ने इस मेले को प्रयोगशाला के रूप में आयोजित किया है। नब्बे के दशक में मेले का नाम बदलकर गौचर औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेला कर दिया गया था। लेकिन 2018 व 19 में मेले को गौचर फेस्टिवल के नाम से आयोजित किया गया। इसके निमंत्रण पत्र भी ‘जतो नाम ततो गुण’ के आधार पर अंग्रेजी में छपवाए गए। पिछले कालखंडों में यह मेला कभी उत्तरकाशी भूकंप, कभी उत्तराखण्ड आंदोलन तो कभी कोरोना बीमारी व अन्य कारणों से नौ बार स्थगित रहा। इस बार मेले को बहुआयामी अंदाज में मनाने का निर्णय लिया गया है। कोरोना बीमारी की वजह से दो सालों के अंतराल के बाद इस बार शुरू होने जा रहे 70 वें मेले के लिए जहां जिला प्रशासन ने अभी से सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है वहीं लोगों में खुशी का माहौल देखने को मिल रहा है।
जिला प्रशासन ने मेले को भव्य बनाने के लिए सभी तैयारियां शुरू कर दी है। वहीं नगर पालिका गौचर भी मेले की तैयारियों में जुट गया है। पालिका अध्यक्ष अंजू बिष्ट ने कहा कि मेले को भव्य बनाने के लिए सभी तैयारियां शुरू कर दी गई है। जिससे मेलार्थियों को किसी भी तरह की असुविधा न हो। वहीं कर्णप्रयाग विधायक अनिल नौटियाल भी मेले को भव्य व आकर्षक बनाने के लिए खासे गंभीर दिखाई दे रहे हैं। इसके लिए विधायक मेला अधिकारी एवं जिला प्रशासन संग पहले ही बैठक कर चुके हैं। विधायक नौटियाल मेले की सफलता के लिए पुरी तरह से सक्रिय बने हुए हैं।