शासन-प्रशासन में बैठे अधिकारी मनमानी कर किस तरह भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं, यह रामनगर की फल पट्टी में जाकर देखा जा सकता है। व्यावसायिक गतिविधियों के लिए पूरी तरह प्रतिबंधित इस फल पट्टी में पिछले डेढ़ दशक के दौरान नियम विरुद्ध लैंडयूज चेंज किया जाता रहा। कृषि भूमि को गैर कृषि बनाकर कॉलोनियां काटी जाती रही। इसमें कॉलोनाइजरों, बिल्डरों, स्टोन क्रशर मालिकों को जमकर फायदा पहुंचाया गया। फल पट्टी के आस-पास के बफर जोन को भी नहीं बख्शा गया। रामनगर के उपजिलाधिकारी की दोहरी नीति के चलते गरीब लोग लैंडयूज चेंज कराकर घर तक नहीं बना सके, लेकिन अमीर धड़ल्ले से फल पट्टी में कंक्रीट के जंगल उगाते रहे। इस मामले में जिलाधिकारी की रहस्यमय चुप्पी उन्हें भी सवालों के घेरे में खड़ा कर सकती है
‘‘मैं अपना घर बनाने के लिए लोन लेना चाह रहा था। जिसके लिए मैं बैंक गया। बैंककर्मियों ने कहा कि पहले अपनी जमीन की धारा 143 (अकृषक) करा कर लाइए। मैं अपनी जमीन की 143 कराने जब रामनगर के एसडीएम पारितोष वर्मा के पास गया तो वह कहने लगे कि तुम्हारी जमीन की 143 नहीं हो सकती है। इस पर मकान भी नहीं बन सकता है क्योंकि तुम्हारी जमीन फल पट्टी के अधिसूचित एरिया में आ रही है। मैंने इस बाबत जानकारी लेने के लिए अपने एक अधिवक्ता से सूचना अधिकार अधिनियम के तहत आरटीआई डलवाई। जिसमें पूछा गया कि हमारे गांव सहित कितने गांवों को फल पट्टी और बफर जोन के अधिसूचित क्षेत्र में लाया गया है और यह नियम जब से लागू हुआ है तब से अब तक कुल कितनी ऐसी जमीन पर धारा 143 हुई है? जब आरटीआई का जवाब आया तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। कारण यह कि मैं तो महज अपने दो कमरे का घर बनाने के लिए 850 वर्ग फीट जमीन को धारा 143 के तहत अकृषक नहीं करा पाया। लेकिन दूसरी तरफ कई हेक्टेयर जमीन की धारा 143 करा दी गई। यही नहीं बल्कि जिस जमीन पर बाग-बगीचे लगने थे वहां बड़ी-बड़ी कॉलोनियां काट कर आलीशान मकान बना दिए गए। मैं तो एक अदना सा आदमी था, जो अपने रहने के लिए एक घर बनाना चाहता था। लेकिन दूसरी तरफ वह बड़े-बड़े कॉलोनाइजर थे जो फ्लैट, मकान बनाकर धड़ाधड़ बेचते रहे और इस प्रतिबंधित जमीन पर प्लॉट काट-काट कर कर दुकानदारी चलाते रहे।’’
यह दर्द नैनीताल जिले की रामनगर तहसील के अंतर्गत स्थित गांव चिल्किया निवासी कुंदन सिंह मेहरा का है। मेहरा अकेला ऐसा शख्स नहीं है जो प्रशासन की इस निरंकुशता के चलते अपना घर नहीं बना सकता था, बल्कि ऐसे कई अन्य मामले ममाले हैं। जहां प्रशासन ने गरीब और अमीर के साथ दोहरी नीति अपनाई। गरीबों को जहां उनकी निजी जमीन पर मकान बनाने की स्वीकृति नहीं दी जाती थी, वहीं दूसरी तरफ अमीरों खासकर कॉलोनाइजर और बिल्डरों के लिए अनियमितता करने के सारे रास्ते खोल दिए गए। फलस्वरूप आज रामनगर फल पट्टी और उसके आस-पास बने बफर जोन में विभिन्न पार्टियों से जुड़े नेताओं के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। भ्रष्टाचार का यह खेल आज से नहीं बल्कि वर्ष 2002 में उस समय से ही जारी है जब प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में रामनगर के 26 गांवों को फल पट्टी घोषित किया गया था।
वर्ष 2002 में रामनगर के 26 गांवों को तत्कालीन उत्तराखण्ड सरकार के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की अधिसूचना संख्या 740/उद्यान अनुभाग 2002/18 सितंबर 2002 के जरिये फल पट्टी संरक्षण एवं फलदार वृक्ष संवर्धन के तहत फल पट्टी घोषित किया गया था। इसमें निजी आवास को छोड़कर कॉलोनी, उद्योग, व्यावसायिक निर्माण को प्रतिबंधित किया गया था। इसके अलावा आस-पास के तीन किलोमीटर क्षेत्र को भी बफर जोन में शामिल किया गया। लेकिन वर्ष 2002 के बाद इसका उल्लंघन कर बड़े स्तर पर बगीचों में कॉलोनियों ंकी अनुमति प्रदान कर अवैध रूप से धारा 143 की कार्यवाही की जाती रही। 2002 से लेकर 2017 तक 12 साल में 27 हेक्टेयर भूमि को धारा 143 (अकृषक) किया गया। जबकि पिछले तीन साल में रामनगर के 26 हेक्टेयर भूमि को धारा 143 कर विल्डरों और कॉलोनाइजरों पर मेहरबानी कर दी गई।
हरे पेड़ों पर चलती रही आरियां : रामनगर में फल पट्टी क्षेत्र घोषित होने के बाद भी भूमाफिया द्वारा फलदार वृक्षों का अवैध कटान होता रहा। बेजुबान पेड़ों पर आरियां चलती रही और प्रशासन सोता रहा। हालांकि इस मामले में उद्यान विभाग ने दर्जनों आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज कराए। यहां तक कि मोहल्ला गूलर घट्टी निवासी आरटीआई कार्यकर्ता अजीम खान ने फल पट्टी संरक्षण का मामला राज्य सूचना आयोग तक पहुंचाया। बावजूद इसके बगीचों के कटान होते रहे और इस जमीन पर कंक्रीट के जंगल खड़े किए जाते रहे।
12 साल बनाम तीन साल : अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले पंद्रह साल में रामनगर फल पट्टी के लिए अधिसूचित 26 गांवों में कुल 56 हेक्टेयर जमीन की 143 कर दी गई। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले 12 साल में जहां 27 हेक्टेयर जमीन का लैंडयूज चेंज (भू उपयोग परिवर्तन) किया गया वहीं रामनगर के वर्तमान एसडीएम परितोष वर्मा ने महज तीन साल में ही इतनी ही जमीन यानी 26 एकड़ भूमि को अकृषक कर दिया गया।
क्या कहता है एक्ट : फलदार वृक्ष और बगीचों को संरक्षित करने के उद्देश्य से और फलदार वृक्षों के संवर्धन के लिए उनके आस-पास के क्षेत्रों में हानिकारक उद्योग और बगीचे काटकर कॉलोनियां बनाने की प्रवृत्ति को नियंत्रित करना आवश्यक है। इस अधिनियम की धारा (5) के अनुसार जिस क्षेत्र को फल पट्टी घोषित किया जाएगा, उस क्षेत्र में हानिकारक उद्योगों की स्थापना नहीं की जाएगी। कोई भी हाउसिंग कॉलोनी बनाने के लिए राज्य सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक होगी। व्यक्तिगत उपयोग के लिए बनाए जाने वाले आवास अधिनियम की श्रेणी से बाहर रखे गए हैं। उसके लिए किसी भी प्रकार की पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं होगी। यही नहीं, बल्कि जिस क्षेत्र को फल पट्टी क्षेत्र घोषित किया जाता है उसके अंतर्गत धारा 143 के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

प्रोपर्टी डीलर, कॉलोनाइजर और बिल्डरों की हुई पौ बारह : फल पट्टी और बफर जोन में सबसे ज्यादा लूट मचाने का काम जमीन से जुड़े कारोबारियों ने किया। प्रशासन की शह पर इन्होंने जमीनों की धारा 143 कराई। इनमें कई विहार बना दिए गए, कई बड़े बिल्डर भी इस मामले में पीछे नहीं रहे। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने भी बहती गंगा में हाथ धोए। इसी के साथ नया गांव बतेलीपुरा के फजलूल रहमान पुत्र अब्दुल रहमान ने भी 3 ़65 एकड़ जमीन की धारा 143 कराकर उस पर कॉलोनी काट दी। 16 दिसंबर 2016 को प्रशासन ने नियम विरुद्ध फजलूल रहमान का लैंड यूज चेंज का कारनामा कर डाला।
वर्ष 2011 में डाली जा चुकी है याचिका : वर्ष 2011 में जत्था गांझा गांव के निवासी मनोज कुमार ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने कोर्ट के समक्ष कहा था कि उनके गांव में बगीचों को काटकर कॉलोनियां काटी जा रही हैं। इस पर नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रशासन को फटकार लगाई। यही नहीं बल्कि रामनगर के तत्कालीन तहसीलदार राकेश तिवारी ने कोर्ट में बकायदा शपथ पत्र दिया। जिनमें कहा कि वह बकायदा फल पट्टी के एक्ट के नियमों का पालन कर रहे हैं। तहसीलदार ने यह भी लिखा कि जहां कॉलोनियां बनीं वहां पेड़ नहीं हैं।
उपजिलाधिकारी ने झूठ बोलकर बनाया बचाव का रास्ता : साक्ष्यों की बात करें तो रामनगर के उपजिलाधिकारी परितोष वर्मा ने अपने आपको बचाने के लिए मिथ्या, झूठ फरेब का सहारा लिया। पिछले तीन सालों में जमीन का लैंड यूज चैंज करके प्लॉटिंग करने वालों के संरक्षक बने एसडीएम ने जिलाधिकारी को एक पत्र लिखा। 13 जुलाई 2018 को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि तहसील में फल पट्टी क्षेत्र से संबंधित पत्रावालियां नहीं थी। जिसके चलते उनको इस अधिसूचना का पता नहीं लग सका। इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने पत्र में कबूल किया है कि फल पट्टी संबंधी अधिसूचना उपलब्ध न हाने के कारण उन्होंने भू उपयोग परिवर्तन किया है। फिलहाल उन्होंने उद्यान विभाग से अधिसूचना प्राप्त कर ली है। तदुपरांत फल पट्टी क्षेत्र के गांवों में भू उपयोग परिवर्तन रोक दिया गया है। जबकि आरटीआई में सूचना मांगने वाले कुंदन सिंह मेहरा की ही बात करें तो उन्होंने 9 अगस्त 2027 को उपजिलाधिकारी के समक्ष अपना निजी आवास बनाने के लिए धारा 143 कराने की मांग की थी। जिसे उपजिलाधिकारी ने यह यह कहकर खारिज कर दिया था कि फल पट्टी क्षेत्र में लैंड यूज चेंज नहीं किया जा सकता। ऐसे में उपजिलाधिकारी का जिलाधिकारी के समक्ष 13 जुलाई 2018 को यह कहना कि उनको अधिसूचना का पता नहीं था, उन्हें कटघरे में खड़ा कर रहा है। इससे स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि वह अपने बचाव में उच्चाधिकारियों के समझ झूठ का सहारा ले रहे हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास बकायदा कुंदन सिंह मेहरा का वह पत्र भी है जिस पर उपजिलाधिकारी ने 9 अगस्त 2017 को लिखित में दिया है कि फल पट्टी क्षेत्र होने के कारण धारा 144 संभव नहीं है। आश्चर्यजनक बात यह है कि 16 दिसंबर 2016 को नया गांव बतेलीपुरा में फजलूल रहमान पुत्र अब्दुल रहमान की जमीन का भू-उपयोग परिवर्तित करते समय बकायदा इस बात का लिखित उल्लेख किया गया है कि उक्त जमीन फल पट्टी क्षेत्र में आती है।
जिलाधिकारी की भूमिका पर भी सवालिया निशान : पिछले तीन सालों में जब रामनगर के उपजिलाधिकारी परितोष वर्मा ने भू-उपयोग परिवर्तित कर बिल्डरां को फायदा पहुंचाया था तब नैनीताल के जिलाधिकारी दीपक रावत थे। रावत अपनी सक्रियता और लोकप्रियता के मामले में जितना सुर्खियों में रहते हैं उतना ही वह अधिकारियों पर लगाम लगाने के लिए भी जाने जाते रहे हैं। इस दौरान कई बार उनका रामनगर में आगमन भी हुआ। लेकिन क्या यह संभव है कि रामनगर के फलपट्टी और बफर जोन में जमीन गड़बड़झाले की उनको कानोंकान खबर तक ना पहुंची हो। चर्चा तो यहां तक भी है कि रामनगर के उपजिलाधिकारी ने अपने रसूख के बल पर रावत को प्रभावित किया। जिसके चलते वह रहस्मय चुप्पी साधे रहे।

रामनगर की फल पट्टी और बफर जोन में नियम विरुद्ध हो रहे निर्माण कार्यों और हानिकारक उद्योगों से प्रभावित हो रहे जनजीवन को लेकर ‘दि संडे पोस्ट’ के संपादक अपूर्व जोशी की ओर से नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। जिस पर 31 अगस्त 2018 को हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला दिया। जिसके तहत रामनगर के फल पट्टी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 26 गांवों और उसके आस-पास तीन किलोमीटर की परिधि में पड़ने वाले क्षेत्र में व्यावसायिक निर्माण कार्यों पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। इसी के साथ खनन के स्टॉक और स्टोन क्रशरों पर भी तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है। इस मामले में मुख्य सचिव, उद्यान सचिव, डीएम नैनीताल, एसडीएम रामनगर और जिला उद्यान अधिकारी को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने फल पट्टी के बगीचों में पेड़ काटने पर भी रोक लगा दी है। यचिका में कहा गया कि फल पट्टी के 26 गांवों के आस-पास का तीन किलोमीटर का क्षेत्र बफर जोन है जिसमें किसी भी तरह की व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा सकती है। लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत से फलदार पेड़ काटने के साथ ही कृषि योग्य भूमि को अकृषक घोषित किया जा रहा है। रामनगर का यह फल पट्टी क्षेत्र समाप्ति के कगार पर है। लिहाजा इसका संरक्षण किया जाए।
फलपट्टी की अधिसूचना के अंतर्गत गांव
1. शंकर खजानी, 2 ़ जोगीपुरा , 3. शिवालपुर पांडे, 4. चिल्किया, 5. मंगलापुर, 6. जस्सागंज, 7. लूटारबड़, 8. सावल्दे पश्चिमी, 9. करनपुर, 10. चैनपुरी, 11. शिवालपुर बिरिया, 12. नया गांव चौहान, 13. बेडाझाल, 14. गोबरा, 15. भवानीपुर, 16. धरमपुर धमखोला, 17. सेमखालिया, 18. करिया, 19. शंकरपुरमूल, 20. नया गांव वेलीपुरा, 21. टाडा भावर, 22. भागुवा भांगर, 23. पूछड़ी, 24. मोजासी, 25. सावल्दे पूरब, 26. हिम्मतपुर डोटियाल।
महायोजना की जगह बना फल पट्टी क्षेत्र
वर्ष 1981 में अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौरान रामनगर के चहुमुखी विकास के लिए महायोजना का प्रारूप तैयार हुआ। यह महायोजना वर्ष 2001 तक अमल में लाई जानी थी। महायोजना में रामनगर के आस-पास के सभी गांवों में कोई न कोई सरकारी इमारत बननी थी। जैसे महाविद्यालय, चिकित्सालय प्रशिक्षण संस्थान, लघु उद्योग, राजकीय एवं अर्द्धराजकीय कार्यालय एवं सांस्कृतिक, मनोरंजन, थोक व्यापार केंद्र, प्रखंडीय पार्क एवं क्रीड़ास्थल समेत तमाम विभागों के लिए इस महायोजना को अमल में लाने के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की जानी थी। इसी के डर से क्षेत्र के किसानों ने राज्य सरकार से इन 26 गांवों में फल पट्टी क्षेत्र घोषित करने की मांग की। इस मांग को मानते हुए राज्य सरकार ने वर्ष 2002 में फल पट्टी क्षेत्र घोषित किया।
बात अपनी-अपनी
वर्ष 2002 से फल पट्टी क्षेत्र में 143 होती आ रही है। कहीं पर भी नहीं लिखा है कि फल पट्टी जमीन में 143 नहीं हो सकती है। कॉलोनाइजिंग पर रोक है, लेकिन वह भी राज्य सरकार की अनुमति से की जा सकती है। मेरे द्वारा 26 हेक्टेयर जमीन की 143 तो नहीं की गई लेकिन कुछ की गई है। 143 सारी कार्यवाही पूरी करने के बाद की गई है।
परितोष वर्मा, उपजिलाधिकारी रामनगर
उपजिलाधिकारी कार्यालय में अमीर लोगों के काम धड़ाधड़ हो रहे हैं लेकिन गरीब लोगों की 143 नहीं कराई जा रही है। कुंदन सिंह मेहरा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
विरेंद्र शर्मा, अधिवक्ता रामनगर