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  •    हरीश रावत
    पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड

मैं 1980 में लोकसभा सदस्य चुना गया, इत्तेफाक था सरकार ने बाडुंग पहले यूथ कांग्रेस में जकार्ता फिर नेपाल में एक डेलिगेशन में भेजा। काठमांडू जाएं और भगवान पशुपति के चरणों में षष्टांग न हो, कैसे हो सकता है! मैंने घर आकर भगवान पशुपति का प्रसाद, बेलपत्रम् में रुद्राक्ष माला मां व दोनों मामाओं को भेंट की। मेरे मामा लोगों ने ही मुझे पढ़ाया एवं इंसान बनाया। बड़े मामा स्वर्गीय श्री दुर्गा सिंह जी, छोटे मामा स्वर्गीय कुंवर सिंह जी। बड़े मामा जी ने कहा भानिज अर्थात् भांजे सांसद बनने से पहले घर व ननिहाल के देवता के चरणों में आना चाहिए फिर उनकी आज्ञा लेकर पशुपतिनाथ जी के मंदिर जाते। मैंने जीवन जीवन भर इस सलाह को गांठ बांधा है। प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना मेरे जीवन का बड़ा अवसर था। मैंने जब राजनीति के सूखे खेत में हल चलाना प्रारंभ किया तो मुझे लगा कि पदयात्राएं व यात्राएं ही, मेरा व कांग्रेस का कल्याण कर सकती हैं। मैंने मामा जी के सूत्र वाक्य को स्मरण कर अपनी पहली कुछ यात्राओं में कोट से बासोट तक यात्रा को सम्मिलित करने का फैसला किया। कोट हमारी पट्टी ककलासों का हृदय स्थल गांव व बासोट ककलासों के दूसरे हिस्से में महत्वपूर्ण स्थान, दोनों जगह आज इंटर कॉलेज हैं।

बरसात जा रही थी। हमने यात्रा जीना स्कूल के प्रांगण से प्रारंभ की। खेतों में मिर्च पक रही थी। उस समय ककलासों के इस तया अर्थात् मैदान खेतों में ढेर सारी हरी मिर्च होती थी। खूब पीली, लाल-लाल खेत दिखाई दे रहे थे। काम धंधों के बावजूद बड़ी संख्या में लोग मेरे उत्साहवर्धन के लिए आए, स्कूल के छात्र भी आ गए, बड़े-बड़े सयाने लोग भी आए। कोट के जगदा व हरदा चौधरी, मोहन थोकदार, नरसिंह मास्टर साहब, ठाकुर दत्त करगेती जी, बढ़ी हुई उम्र के बावजूद आए। खुशाल सिंह गड़ाकोटी, आनंद असवाल, दुर्गा सिंह, जीवन सिंह, सती जी, पितांबर मास्टर साहब, ललित करगेती, चंदन किरौला, मेरे गांव व ननिहाल से भी काफी लोग आए। भिकियासैण से नंदन सिंह व डंगवाल लोग भी आए। भगवती रिखाड़ी जी, गंगा पंचोली जी, मोहनी मोहलेखी, बड़ी संख्या में महिलाएं भी आईं व यात्रा में साथ रहे। विद्युत कर्मचारियों के नेता कृपाल रौतेला भी भतरौजखान, लौकोट के पंत भी शोभायमान थे। रानीखेत से पूर्व विधायक पूरन सिंह महरा जी अपनी पूरी टीम के साथ थे। मिर्च, धान, मडुवे, भट्ट, गहत आदि से भरे-भरे खेतों के बीच कांग्रेस एवं सोनिया जी जिंदाबाद के साथ यात्रा चल पड़ी। कुछ लोग विशेष तौर पर स्थानीय महिलाएं, मेरा एवं महरा जी का संबोधन सुनकर खेतों में चली गई, छात्र कक्षाओं में चले गए, मगर डेढ़ सौ के करीब लोग निगराली, नूना, दनपौ को चल पड़े, रास्ते में ककड़ी खूब खाने को मिली। दनपौ में चाय-पकौड़ी खाने को मिली। रास्ता बहुत दर्शनीय लग रहा था। आज स्थिति बदल गई है। अब खेती लगभग चौपट है। जंगली एवं आवारा, पालतू जानवरों ने खेती करना दुश्वार कर दिया है। शायद यह राज्य बनने के बाद हमारी उपलब्धि है? खेती चौपट है, इसलिए गांव खाली हो रहे हैं। दनपौ के नीचे एक बड़ा सा बंजर खेत है जिसमें पानी व कीचड़ रहता है, यह दलदल है। एक किंदवंती है, एक बारात दूर से आई रात हो गई, उस समय बिजली नहीं थी। शायद टॉर्च व लालटेन अधिक प्रचलन में नहीं थे। कहा जाता है कि 30 बराती दलदल में फंस गए और डूब कर मर गए। किंदवंती हर साल पूस की अमावस्या की रात यहां बारात दिखाई देती है। किस्से हैं, पूर्णतः अवैज्ञानिक हैं। मगर जब मनोरंजन के और साधन नहीं थे तो यही किस्से सुनकर रास्ते कटते थे। दनपौ में चाय पीते-पीते नूना सेठ जी अर्थात् करगेती लोगों के शानदार मकान पर चर्चा होने लगी। उत्तराखंडी काष्ठ व पत्थर तराशी का अद्भुत नमूना है। नूना से हम पुराने भतरौज गांव की ओर मुड़ गए, भोग बाजार से घट्टी की ओर हटकर है। रास्ते में जंगल में बकरी चराते खिमदा अर्थात् खीमराम जी मिल गए। गाय, बैल व बकरियों की खरीद-फरोख्त भी करते थे, साथ-साथ उनकी बड़ी संख्या में बकरियां भी थी। खिमदा एक टक होकर ‘आले बकरी छू-छूका गाना’ भी गा रहे थे, हिरदा राणा का यह प्रसिद्ध गाना है, इसे कांग्रेस की चुनावी सभाओं में विनायक क्षेत्र के कुंवर सिंह अधिकारी बड़ी दिलकश तौर पर गाते थे। खिमदा भतरौजखान गांव के रहने वाले थे। भतरौजखान का बाजार जरा पहले पड़ता है। यहां का आलू-रायता, पकौड़ी व गर्मियों में काफल बहुत प्रसिद्ध हैं। यह स्थान ओदाड़बाबा हीरानंद जी का तप स्थल है, अब यहां उनका मंदिर व धर्मशाला है। मेरे गांव का बाजार भी यही है। मैंने यहां नगर पंचायत स्वीकृत की थी जो आज भी कानूनी पचड़े में पड़ी हुई है। कांग्रेस के बड़े जत्थे को देखकर खिमदा बहुत खुश हुए। मैंने उनको पहली बार बकरियों के साथ देखा था। वह आमतौर पर गाय-बैल, भैंसों का व्यापार व व्यवहार करते थे। मैंने उनसे बकरियों को पालने का ब्यौरा व इसकी आजीविका पूछी! खिमदा ने बड़ा उत्साह पूर्ण विवरण दिया कहा कि चार बकरी, एक बकरा परिवार की गरीबी दूर कर देती है। मैं अपने सार्वजनिक जीवन में इस तथ्य पर फोकस लाता रहा हूं। मेरे मुख्यमंत्री काल में पिथौरागढ़ के युवा आईएएस अधिकारी सीडीओ श्री चौहान ने मुझे बहुत संकोच के साथ पहाड़ों में जैविक बकरी पालन योजना प्रारंभ करने का सुझाव दिया। मैंने देहरादून आते ही बकरी पालन को लेकर 3 योजनाएं प्रारंभ की।

(1)अनुदान आधारित 20 बकरियों को खरीद के लिए ऋण उपादान योजना।
(2) नाबार्ड प्रोत्साहित भेड़-पालन एवं टीन शेड निर्माण योजना।
(3) विधवा व असहाय महिला बकरी पालन योजना में ३ बकरी बकरा खरीदने हेतु पूर्णतः अनुदान आधारित योजना। इस योजना की एक बड़ी लाभार्थी हमारे गांव की एक दलित विधवा महिला है, जिसने इस योजना के सहारे अपनी दो लड़कियों को महाविद्यालय स्तर तक पढ़ा दिया है और एक दुधारू गाय भी खरीद ली है। हमारी सरकार का लक्ष्य इस योजना में पूरे पहाड़ को जैविक बकरी पालन योजना से आच्छादित करना व दिल्ली सहित गल्फ व यूरोप में हिमालयन गोट मीट का निर्यातक बनना था। दुर्भाग्य से हमारी सरकार के बाद विधवा-असहाय महिला बकरी पालन योजना शिथिल पड़ गई। बकरी का दूध व घी कई बीमारियों की औषधि है।

भावावेश में मैं, विधवा की बकरियों की बात कहते-कहते बहुत आगे बढ़ गया। खिमदा खूब बतियाते थे। वह सड़क-सड़क हमारे साथ बकरी हांकते हुए देवरा पानी तक पहुंच गए। देवरा पानी बिनताराली गांव का जंगल वाला हिस्सा है। चारों तरफ खूब घना बांज, देवदार, काफल बुरांस आदि का जंगल है। यहां भगवान शिव का मंदिर भी है। यहां से दनपौ के जंगल तक सड़क के नीचे अद्भुत बजवाड़ है। बांज की वन पंचायत है। आरक्षित वन, इस वन पंचायत के आगे शरमा जाते हैं। यहां मेरे मकोटिया बूड़बूबू का बड़ा सा मकान है। बूबू अंग्रेज परस्त शानदार छड़ी- साफा व लंबा सा कोट व चूड़ीदार पायजामा पहनते थे। यहां के जंगल में दो डांक बंगले एक फॉरेस्ट का व एक पीडब्ल्यूडी का है। यहां के जंगल में जंगली जानवर बहुत हैं। अंग्रेज शिकार खेलने आते रहते होंगे। बूबू उनका शिकार में साथ देते थे। बूबू जी के पास शिकार के ढेर सारे किस्से होते थे। बूबू जी ने हम सभी को खूब नमक-ककड़ी खिलाई। बाद में हमारी यात्रा के वर्ष बूबूजी का स्वर्गवास हो गया।
देवरापानी से हमारा जत्था सड़क-सड़क तल्ली घट्टी पहुंचा, जहां हमारे खाने की व्यवस्था थी। यहां पहुंचते-पहुंचते 01ः30 बज गया था। मछोड़ घट्टी, जाख, डांग सहित तल्ला सल्ट के दर्जनों कांग्रेसजन यहां यात्रा में सम्मिलित हुए। नंदन सिंह
कड़ाकोटी प्रधानाचार्य एवं उनके छोटे भाई (हमारे दामाद) दोनों उपस्थित थे। फाकर सिंह जी, घनश्याम वर्मा जी, ललित सती, गड़ाकोटी सूबेदार साहब, दर्शन राम सहित लोगों ने बड़े उत्साह से हमारी यात्रा का स्वागत किया। मोहनी, मोलेखि आदि पहले से यात्रा के लिए मत बनाए हुए थे। हमने यहां खाना खाने के साथ दनपौ व डांग के प्रधानों का सम्मान भी किया। शानदार वन पंचायतें खड़ी करने के लिए हम सबने दोनों गांवों की खूब प्रशंसा की और आगे बढ़े। गिनाईपानी के गोविंद बल्लभ मास्टर साहब को गांव वालों के साथ प्रणाम किया। चाय पीकर सीम की ओर बढ़ चले। सिम कांग्रेस का मायका रहा है। यहां श्री राम सिंह जमनाल जी के नेतृत्व में चार-पांच गांवों के लोगों ने हमारा स्वागत किया। जमनाल परिवार बहुत लब्ध प्रतिष्ठित परिवार है। कितनी सड़कें व पुल इस परिवार के पहाड़ों पर मैंने बनाई हैं, उनकी गिनती लंबी है। राम के ताऊजी पहाड़ी नदियों में पुल बनाने के विशेषज्ञ रहे हैं। अब उनकी ऋषिकेश ब्रांच यह काम कर रही है। दूर डढूली, नेपाल कोट, बम्योली, जाख आदि गांवों से कांग्रेस के लोगों के साथ आम लोग भी आये हुए थे। मेरे लिए यह सब बड़े उत्साह का सबब था। राम सिंह जी व इनकी जिला पंचायत सदस्य पत्नी की चाय-मिठाई खाकर फिर राम सिंह के नेतृत्व में पदयात्रा आगे बढ़ी। स्यालकोट में जिला पंचायत का अस्पताल जिसे हमारी सरकार ने पूर्ण चिकित्सालय में बदल दिया है। वहां भी लोग मिले। हम लोग भी मंजिल नजदीक देखकर बहुत खुश हुए। यहां रामू डंगवाल अपने जत्थे के साथ मिले। मझेड़ा के आम भी लाए थे। मझेड़ा में एक लेट भराईटी का आम होता है। डंगवाल लोगों के यहां रायबहादुरी रही है उनके बगीचे उस समय सभी प्रकार के आमों से लदे रहते थे। मेरी बड़ी दीदी ‘हरि दी’ का ससुराल मझेड़ा में ही था। रामू डंगवाल, दलीप सिंह डंगवाल, रघुनाथ सिंह डंगवाल ककलासौं व रामनगर, दोनों स्थानों में प्रभावशाली कांग्रेस नेता रहे हैं। रामपाल उनके छोटे भाई थे। हमारे जत्थे का स्वागत करने रामनगर भरत होटल के मालिक किशन सिंह नेता जी भी आए हुए थे। पदम सिंह नेता जी ने अपनी उखड़़ती सांसों के साथ आए हुए थे। गरीब नेता पदम सिंह जी आजीवन मेरे साथी रहे। जीवानंद मैनेजर साहब भी स्यालकोट आए। आज मेरे कई साथी जो यहां यात्रा में आए थे, दिवंगत हो गए हैं। उनकी सहयोग की स्मृतियां निरंतर मेरे साथ हैं।

नए जोश व नारों के साथ कांग्रेस के पदयात्री बासोट की ओर चल पड़े। कांग्रेस जिंदाबाद, सोनिया गांधी जिंदाबाद, मौना देवी मैया की जै-जै कारों से ककलासौं का यह भू-भाग गुंजायमान हो उठा। कांग्रेस पार्टी के लिए अपने घर, गांव के लोगों का जोश देखकर मुझ में नई उमंग पैदा होने लगी। बासोट में मान्यता प्राप्त इंटर कॉलेज था, उसी के प्रांगण में बड़ी सभा हुई। उम्मेद सिंह प्रधानाचार्य थे। बासोट शिक्षण संस्था के इंटर तक की यात्रा में पहले ब्लॉक प्रमुख, फिर सांसद के रूप में मेरा भी निरंतर सहयोग रहा है। हमारी छोटी सी ककलासों पट्टी में आज चौनलिया, पंत स्थली, जीनापानी बासोट में इंटर कॉलेज, सिरमोली व सिनोड़ा में कन्या हाईस्कूल है। यदि गंगोड़ा भतरौजखान व मछोड़ के लाभान्वित क्षेत्र को जोड़ें तो यह तीन और इंटर कॉलेज भी ककलासौं में ही शिक्षा की रोशनी फैला रहे हैं। दो हाई स्कूल व जीनापानी इंटर कॉलेज को छोड़कर सभी संस्थाएं लोगों के चंदे एवं श्रमदान से खड़ी हुई है। ग्रामसभा चनुली, सरपटा, बिनौला, मझोड़, सीम सौरे कुम्हारती, कोटुली, कोटागिवांई, थापला, श्रीकोट माफली, पीपल गैर, चौनात बाखली, कढोली के साथ-साथ तल्ला सल्ट के जोहाड़, तराड़ी, दरमोली, बमोड़ा तथा तया गांव से सैकड़ों की संख्या में लोग, सभा में आए थे। भिकियासैंण से डूंगर सिंह नेगी, नंदन सिंह, गोपाल मनराल, गोस्वामी, उदय शर्मा लोग भी आए थे। लोगों का जोश देखने लायक था।

मामू जी की सीख ‘कोई भी काम घर से प्रारंभ करो’, बड़े काम आई। मामा का माहौल मुझ में जोश की तरंगें पैदा करने लगा। मुझे लगने लगा कि मैं कांग्रेस को खड़ा कर पाऊंगा। जीवानंद जी, पदम सिंह जी, किशन सिंह नेता जी, बिनौली के दान सिंह महरा जी, दीवान सिंह भंडारी जी, चंदन सिंह जी, श्रीकोट के प्रधान, रामपाल डंगवाल, उदे सिंह कुम्हारती, त्रिलोक सिंह सिम, शिव सिंह अस्वाल जी, प्रेम सिंह अस्वाल, पनी राम, सौरे के नर सिंह, चंदन सिंह डंगवाल, बासोट के लालीराम, खीमराम जी सहित सैकड़ों नाम हैं, जिन्हें समय की मार भी मेरे मानस पटल से पूर्ण उज्ज्वल नहीं कर पाई। राम सिंह जंतवाल, मोहन सिंह बिष्ट सहित कई नाम आज भी सक्रिय हैं। इस क्षेत्र में नई पीढ़ी के हमारे नेता के रूप में नंदन सिंह उभर रहा है। जब आज अपनी यात्राओं का स्मरण कर रहा हूं तो कई चेहरे मेरे मानस में उभर रहे हैं। इन धुंधली-धुंधली मगर उमंग व प्रेरणा भरने वाली यादों की मैं सिल्वर जुबली मनाना चाहता हूं, अब उतना चलना संभव नहीं है, फिर भी प्रयास करूंगा।

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