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उत्तराखण्ड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार भले ही विकास के कितने ही दावे क्यों न करे, लेकिन हकीकत यही है कि इस सरकार के पास विकास का विजन नहीं है। हालत यह है कि हल्द्वानी और देहरादून रिंग रोड सहित कई अन्य सड़कों के विकास का प्रस्ताव खुद केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने राज्य की सोयी हुई सरकार से मांगा। राज्य में बायोफ्यूल हब जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं की सलाह भी गडकरी ने त्रिवेंद्र सरकार को दी है। प्रधानमंत्री मोदी भी राज्य के लिए कई विकास योजनाओं की घोषणाएं कर चुके हैं। इससे साफ है कि केंद्र सरकार राज्य को विकास की सौगात देना चाहती है। लेकिन लगता है कि राज्य सरकार न तो विकास योजनाओं को धरातल पर उतार पाने में सक्षम है और न ही उसमें विकास का विजन है
कें द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने स्वयं देहरादून और हल्द्वानी में रिंग रोड बनाए जाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से मांगा। इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि राज्य के किसी भी अन्य स्थान के लिए सड़क आदि की जरूरत  हो तो उसके भी प्रस्ताव शीघ्र दें ताकि समय पर इन प्रस्तावों पर काम किया जा सके। गडकरी ने मुख्यमंत्री को प्रदेश के विकास की कई अन्य योजनाओं पर काम करने की भी सलाह दी है।  इसमें प्रदेश को बायोफ्यूल हब बनाए जाने की बात प्रमुख है। आश्चर्यजनक है कि केंद्रीय मंत्री खुद विकास के प्रस्ताव मांग रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार सोयी हुई है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि राज्य सरकार विकास के कितने ही दावे करती रहे, लेकिन इस सरकार के पास विकास की ठोस नीति और विजन (दृष्टि) की भारी कमी है।
 भाजपा की त्रिवेंद्र रावत सरकार के कामकाज पर सवाल खड़े होते रहे हैं। गठन के दो वर्ष बाद भी सरकार का विजन कहीं धरातल पर उस तरह नहीं है जितना कि सरकार दिखाने का प्रयास करती रही है। सरकार का विजन राजनीतिक विजन में सिमटता हुआ प्रतीत हो रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के पास विकास के विजन की कमी का यह पहला मामला नहीं है, बल्कि पूर्व में भी सरकार के एक कैबिनेट मंत्री ‘दि संडे पोस्ट’ को ऑफ द रिकॉर्ड बता चुके हैं कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री के पास कोई ठोस विजन नहीं है। यह हाल तब है कि जब केंद्र सरकार राज्य को बड़ी- बड़ी योजनाएं स्वयं परोस कर दे रही है। विडंबना है कि सरकार अपने आप कोई ठोस विजन और प्रस्ताव केंद्र सरकार तक नहीं पहुंचा पा रही है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि वे उत्तराखण्ड को बहुत कुछ देना चाहते हैं, लेकिन उत्तराखण्ड की लीडरशिप सुस्त है। उनको उत्तराखण्ड की सरकार से उस तरह के प्रस्ताव नहीं मिल पा रहे हैं जैसे कि अन्य राज्यों की सरकारें दे रही हैं।
 देखा जाए तो केंद्र सरकार की ओर से उत्तराखण्ड को एक के बाद एक कई सौगातें दी गई हैं। जानकारों की मानें तो इसके पीछे भले ही राजनीतिक पहलू रहा हो, लेकिन इतना तो तय है कि राज्य को इन अठ्ठारह वर्षों में शायद पहली बार किसी केंद्र सरकार ने जमकर केंद्रीय योजनाओं की सौगातें दी हैं। स्वयं प्रधानमंत्री ने राज्य के लिए करोड़ों-अरबों की योजनाओं की घोषणाएं की हैं जिन पर अमल भी हो रहा है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी राज्य में करोड़ां की सड़क योजनाओं का शिलान्यास किया है। जिसमें 209 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण होना है। इन योजनाओं की कुल लागत 2 हजार 501 करोड़ है। साथ ही उन्होंने 54 करोड़ की सड़क योजनाओं का लोकार्पण भी किया है। जिसमें सड़क और पुल शामिल हैं।
केंद्र सरकार की ओर से राज्य में इतनी बड़ी योजनाओं के शिलान्यास से एक बात तो साफ हो जाती है कि वह उत्तराखण्ड को जमकर अपनी योजनाओं का लाभ दे रही है। जानकारां की मानें तो केंद्र सरकार का फोकस उत्तराखण्ड में इन दो वर्षों में बढ़ा है। प्रधानमंत्री 13 हजार करोड़ की योजनाओं की घोषणाएं उत्तराखण्ड में आकर कर चुके हैं। अभी हाल ही में उत्तराखण्ड के संक्षिप्त दौरे के वक्त प्रधानमंत्री कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए बड़ी घोषणाएं कर गए हैं। जल्द ही इन पर काम आरंभ होने की पूरी संभावनाएं हैं। ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेल मार्ग के निर्माण में जिस तेजी से केंद्र सरकार की एजेंसियां काम कर रही हैं, वह प्रदेश के लिए अच्छा संकेत माना जा रहा है।
अब राज्य सरकार की बात करें तो विकास कार्यों के लिए धन की कमी का रोना यहां हमेशा से ही रोया जाता रहा है। राज्य सरकार ने अपने बजट में भले ही लोक-लुभावन वादां की झड़ी लगा दी हो, लेकिन इसके पीछे सरकार को सबसे ज्यादा उम्मीद केंद्रीय मदद की ही बनी हुई है। सरकार अपने बजट में केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित योजनाओं जो कि तकरीबन 8500 करोड़ की हैं, से आशा लगाए हुए है।
राज्य सरकार के बजट में यह साफ तोर पर उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2019-20 में सरकार 11 हजार 78 करोड़ रुपए तो केंद्र सरकार की सहायता ओैर अनुदान से ही अपना काम चलाए जाने की उम्मीद पाले हुए है। जबकि दूसरी तरफ सरकार अपने बजट को ही पूरा खर्च नहीं कर पाई है। साथ ही वर्ष 2017 -18 के लिए राजस्व प्राप्ति अनुमानित आय से 13780 करोड़ 28 हजार लाख में से कुल 10164 करोड़ 92 लाख रही जो कि तकरीबन 3 हजार 600 करोड़ कम रही। साफ है कि राज्य सरकार अपने ही राजस्व की प्राप्ति में पिछड़ रही है।
हालांकि एक दम ऐसा भी नहीं है कि राज्य सरकार ने विकास के कोई प्रयास नहीं किए, लेकिन उसके प्रयास धरातल पर नहीं उतर पा रहे हैं। इन दो वर्षों में सरकार के सभी जतन चाहे वह राज्य में निवेश को बढ़ावा देने के लिए ‘इन्वेस्टर समिट’ का आयोजन रहा हो या फिर किसानों की आय दुगनी करने की बात हो, इस पर अभी तक धरातल में प्रगति नहीं दिखाई दे रही है। भले ही मुख्यमंत्री अपने विज्ञापनों में राज्य में दस हजार निवेश किए जाने की बात कर रहे हैं। जल्द ही राज्य में सभी निवेश प्रस्तावां के धरातल पर उतरने की बात कर रहे हैं, लेकिन यह भी साफ है कि जिस उम्मीद से सरकार ने ‘इन्वेस्टर समिट’ का आयोजन किया था उसका लाभ अभी तक राज्य को नहीं मिल पाया है। जानकारों की मानें तो डेढ़ लाख करोड़ के प्रस्तावों पर काम होने में अभी कई वर्ष लग सकते हैं।
इसी तरह किसानों की आय दुगनी करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी योजना में भी राज्य में कोई खास प्रगति नहीं दिखाई दे रही है। सरकार के दावां पर तब सवाल खड़ा हो जाता है कि जब पलायन आयोग द्वारा ही कहा गया है कि राज्य में खेती- किसानी छोड़कर रोजगार के लिए सबसे ज्यादा पलायन हुआ है। यानी न तो राज्य में किसानों के लिए और न ही रोजगार के लिए कोई ऐसा माहौल सरकार ने बनाया है जिससे रोगगार के अवसर पैदा हो पाएं।
रोजगार के लिए चलाई जा रही योजना कौशल  विकास मिशन पर ही प्रदेश में सवाल खड़े हो चुके हैं। इस योजना में जमकर भ्रष्टाचार और अनियमितताएं सामने आ चुकी हैं तो सरकार के रोजगारपरक दावों पर सवाल तो खड़े होने लाजिमी हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ ने राज्य में चल रहे कौशल विकास मिशन को लेकर बड़ा खुलासा किया था। जिसमें स्वयं विभागीय मंत्री हरक सिंह रावत द्वारा इस योजना में बहुत बड़ी अनियमितताएं और घपले की बात स्वीकार की गई थी। अब हालात यह हैं कि राज्य में कौशल विकास मिशन ही ठप्प पड़ा हुआ है, जबकि केंद्र सरकार द्वारा इस योजना को मील का पत्थर घोषित किया गया था। स्वयं प्रधानमंत्री इस योजना की समीक्षा कर चुके हैं।
अब नितिन गडकरी की सलाह को देखें तो उन्होंने साफ कहा है कि उनकी डिक्शनरी में ‘नहीं’ शब्द का कोई स्थान नहीं है। उत्तराखण्ड में बायोफ्यूल का हब बनाने के लिए उन्होंने कई उदाहरण दिए हैं। साथ ही गन्ने के सीरे और टॉयलेट की गंदगी से बायोगैस बनाए जाने की योजना पर काम करने की भी सलाह दी है। राज्य में पर्यावरण के अनुकूल विद्युत वाहनों के लिए काम करने और इसके लिए निवेशकों को आमंत्रित करने की सलाह भी नितिन गडकरी ने मुख्यमंत्री को दी है। एक और महत्वपूर्ण बात गडकरी ने यह कहीं है उनका सपना है कि वे गंगोत्री से गंगा सागर तक बोट से यात्रा करें। इसके लिए उनके द्वारा रूस से एक बोट मंगवाई जा रही है। उत्तराखण्ड को भी वे ऐसी बोट देना चाहते हैं।
अब देखना होगा कि प्रदेश सरकार कब और किस तरह से नितिन गडकरी की सलाह पर अमल करती है। क्या राज्य  सरकार अपना विजन ठोस तरीके से सामने रख पाएगी और उस पर सही तरीके से अमल भी कर पाएगी? यह अभी कहा नहीं जा सकता है, क्योंकि अभी तक देखा गया है कि राज्य सरकार अपना जो भी विजन रखती रही है उस पर कोई भी काम वह पूरा नहीं कर पाई है। पूर्व मुख्यमंत्री निशंक द्वारा प्रदेश की जनता को विजन ट्वेंटी-ट्वेंटी दिया गया था, लेकिन इसके बाद की सरकारों ने इस पर न तो कोई ध्यान दिया और न ही कोई प्रयास किए। स्वयं निशंक सरकार के समय की बड़ी और दीर्घकालीन लाभ देने वाली अटल आदर्श ग्राम योजना का निशंक शासन के दौरान ही बुरा हाल दिखाई दिया था। जानकारों के अनुसार इस योजना पर अगर सही तरीके और ईमानदारी से काम किया जाता तो प्रदेश की तस्वीर वास्तव में बदल सकती थी। पलायन जैसी समस्या को भी एक बड़ी हद तक दूर किया जा सकता था। जिस तरह से केंद्र सरकार की निर्माणाधीन योजनाओं पर केंद्र सरकार की एजेंसियां तेजी से काम कर रही हैं, उतनी तेजी से प्रदेश सरकार की एजेंसियां काम नहीं कर पा रही हैं। कई सड़कों के प्रस्ताव केंद्र सरकार द्वारा स्वीकøत हो चुके हैं। यहां तक कि बजट भी अवमुक्त हो चुका है, लेकिन काम शुरू न होना कहीं न कहीं राज्य सरकार की कार्यशैली पर सवाल तो खड़े करता ही है।
जानकारों के मुताबिक मौजूदा समय में प्रचंड बहुमत की त्रिवेंद्र रावत सरकार सत्ता में है। इस सरकार द्वारा कई बड़े-बड़े दावे किए गए हैं, लेकिन इन दो वर्षों में कितना काम उन दावों और घोषणाओं पर हुआ यह सरकार को खुद देखना होगा, नहीं तो फिर नितिन गडकरी को ही सरकार और मुख्यमंत्री को सलाह देने पर मजबूर होना पड़ेगा।

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