रानीखेत शहर अपनी सुंदरता के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। बची सिंह रावत, हरीश रावत, अजय भट्ट सरीखे नेता इसी शहर से राजनीति शुरू कर राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाने में सफल हुए हैं। रानीखेत के नेताओं का कद तो बढ़ा लेकिन जिस शहर ने उनको राष्ट्रीय नेता बनाया उस शहर को वे कैंट की गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाना भूल गए। यहां होने वाले छावनी परिषद् के चुनावों के बहिष्कार से एक आंदोलन की उपज हुई है जिसका मकसद कैंट की कैद से आजाद होना है। ब्रिटिशकाल के कानूनों से जकड़े रानीखेतवासियों के गांधी चौक पर अनिश्चित सत्याग्रह को छह माह हो चुके हैं। रानीखेत विकास संघर्ष समिति के बैनर तले धरनारत लोग ‘करो या मरो’ के मूड में हैं। लग रहा है कि इस बार कैंट की कैद से छटपटाते रानीखेत के लोग आजाद भारत में आजादी का सपना पूरा करके ही दम लेंगे
‘आजाद भारत में छावनियों के नागरिक आज भी दोयम दर्जे की जिंदगी जी रहे हैं। ब्रिटिशर्स के जाने के बाद भी छावनी क्षेत्रों में निवास करने वाले नागरिकों को पूर्ण आजादी नहीं मिली। लोगों को भूमि का मालिकाना हक देने के बजाय उन्हें लीज भूमि में केवल मलबे का ही मालिक बनाया गया। भवन निर्माण, लीज नवीनीकरण, दाखिल-खारिज, भूमि के व्यवसायिक उपयोग में परिवर्तन जैसे पेंचीदा कानून के कारण आम नागरिक आज भी उन्हीं दुश्वारियों से घिरे हैं जो पीड़ा दशकों पूर्व थी। गुलामी की इसी छटपटाहट से बाहर निकलने के लिए जागरूक नागरिक संगठित होकर नगर पालिका में नागरिक आबादी को विलय करने की मांग पर पिछले छह महीने से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल, पहले यह संघर्ष छावनी परिषद चुनाव के बहिष्कार को लेकर शुरू हुआ था लेकिन जब स्वयं रक्षा मंत्रालय ने चुनाव रद्द कर छावनियों की नागरिक आबादी को निकटस्थ राज्य निकायों में समाविष्ट करने का नीतिगत फैसला किया तो आंदोलन हरीश रावत सरकार में स्थापित रानीखेत-चिलियानौला नगर पालिका परिषद में छावनी आबादी के विलय की मांग की ओर मुड़ गया।
हिमाचल प्रदेश की खास योल छावनी परिषद को खत्म किए जाने के बाद एक उम्मीद जगी थी कि अब सभी छावनी परिषद खत्म होंगी लेकिन रक्षा मंत्रालय के शीर्षस्थ अधिकारियों ने सारा मामला भूमि के भूगोल में उलझा दिया। फिलहाल मामला विभिन्न वर्गीकृत रक्षा भूमि को रक्षा संपदा विभाग के पास रखा जाए या नागरिकों को मालिकाना हक दिया जाए इसी बात को लेकर अटका प्रतीत होता है। एक ओर प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश के पुराने व जनविरोधी कानूनों को समाप्त किया जा रहा है तो ऐसे में ब्रिटिश काल के छावनी भूमि प्रबंधन अधिनियम 1937 को नागरिकों के ऊपर लादे रखने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए कि छावनी परिषदों को खत्म करने के अपने नीतिगत फैसले को शीघ्र अमली जामा पहनाए ताकि छावनी परिषद के नागरिक भी आजाद भारत में आजादी से जी सकें। रानीखेत के इतिहास में यह पहला धरना-प्रदर्शन है जो विशुद्ध गैर राजनीतिक तरीके से चल रहा है। इस संघर्ष की जीत आज नहीं तो कल निश्चित है।’
यह कहना है उत्तराखण्ड के वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक चिंतक विमल सती का। सती सहित सैकड़ांे लोग रानीखेत को कैंट से मुक्ति दिलाने का आंदोलन चलाए हुए हैं। यह आंदोलन 16 मार्च 2023 को गांधी चौक से शुरू हुआ था जो तब तक जारी रहेगा जब तक कि शहर के बाशिंदों को कैंट से आजादी नहीं मिल जाती है। ब्रिटिशकाल से ही कैंट की कैद में रानीखेत के लोग छटपटाते रहे हैं जिससे मुक्ति की उम्मीद उस समय से शुरू हो चुकी है जब देश की 62 छावनियों में से एक हिमाचल प्रदेश में योल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी दे दी है। मोदी सरकार के इस कदम से रानीखेत के लोगों में आशा का नया दीप प्रज्वलित हुआ है। केंद्र सरकार हिमाचल प्रदेश के योल से शुरुआत करके बाकी सभी 61 छावनियों को एक-एक करके खत्म करने की योजना पर काम कर रही है। हो सकता है अगले साल की शुरुआत में छावनियों के सैन्य क्षेत्रों को विशिष्ट सैन्य स्टेशनों में बदल दिया जाएगा। इसी के साथ नागरिक क्षेत्रों को निकटवर्ती नागरिक नगर निकायों में मिला दिया जाएगा। शायद इसी दूरदर्शी सोच के चलते ही प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत 2016 में ही रानीखेत- चिलियानौला नगर पालिका का गठन कर चुके हैं।
पिछले दिनों रानीखेत के लोग इस मुद्दे को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मिले हैं। धामी ने लोगों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि वे इस संबंध में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बात करेंगे। गौरतलब है कि छावनी परिषद के संशोधित एक्ट 2006 की धारा 4 व 6 के अनुसार रानीखेत छावनी के सिविल एरिया के कुल 167 एकड़ क्षेत्र को समीप के किसी ऐसे ग्रामीण कस्बे में समाविष्ट किया जा सकता है जिसकी पूर्व से प्रकृति नगर पंचायत अथवा नगर पालिका परिषद की हो। चूंकि रानीखेत के निकटवर्ती ग्रामीण कस्बा चिलियानौला है जो कि पूर्व में ग्रामसभा बधाण में निहित था वह अब नगर पालिका परिषद का रूप ले चुका है। इस बाबत स्थानीय लोगों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अवगत कराया कि समीपवर्ती बधाण ग्राम सभा के चिलियानौला बसासत क्षेत्र को 2016 में तत्कालीन राज्य सरकार ने रानीखेत-चिलियानौला नगर पालिका परिषद इसी उम्मीद से घोषित किया था कि भविष्य में इसमें रानीखेत के सिविल एरिया क्षेत्र को भी समाहित किया जा सकेगा।
लेकिन राज्य मंत्रिमंडल की बैठक से इस बाबत कोई प्रस्ताव आज तक रक्षा मंत्रालय को न भेजे जाने के कारण सिविल एरिया को नगर पालिका परिषद में समाहित करने का मामला लंबित पड़ा है। जबकि रक्षा मंत्रालय की इस 167 एकड़ भूमि के बदले राज्य सरकार रक्षा मंत्रालय को समय-समय पर विभिन्न प्रयोजनों के लिए दी जाने वाली अपनी राज्य भूमि के एवज में समायोजित कर सकता है। इसी के साथ मुख्यमंत्री धामी को अवगत कराया गया कि 27 जुलाई 2009 को प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे और 14 जनवरी 2019 को तत्कालीन नगर विकास सचिव शैलेश बगौली भी रक्षा मंत्रालय को इस बाबत पत्र लिख चुके हैं।
भाजपा के युवा नेता गिरीश भगत की मानें तो कैंट के चुनावों का बहिष्कार से यह आंदोलन शुरू हुआ था। जब तक कैंट से हमें आजादी नहीं मिलेगी तब तक आंदोलन चलाया जाएगा। हमारे क्षेत्र का कैंट में होने के चलते तमाम डेवलपमेंट रूक गए हैं। तमाम भूमि संबंधी अधिकार हमारे पास नहीं हैं। लीज राइट नहीं है। यहां आज भी ब्रिटिश काल के कानून चलते आ रहे हैं। कानूनों के अनुसार नजदीकी नगर पालिका में इसको मिलाया जा सकता है। पूरे देश में कैंटों को हटाने का निर्णय ले लिया गया है। यहां धरने पर बैठने वाले सभी लोग शहर के संभ्रांत लोग हैं। धरने के साथ-साथ रानीखेत के विकास से संबंधित मुद्दों को भी यहां रखा जाता है। सबसे बड़ी बात है कि हमारे प्रोपर्टी के राइट्स तक भी खत्म कर दिए गए हैं। हम अपने क्षेत्र के पूर्व विधायक और वर्तमान में नैनीताल से सांसद अजय भट्ट से भी मिले हैं। डीएम और एसडीएम से भी इस बाबत मिल चुके हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मिल चुके हैं। हम डीएफओ से भी मिलेंगे। रानीखेत विकास संघर्ष समिति के बैनर तले हम रोजाना 12 बजे से यहां धरने पर बैठते हैं। फिलहाल शहर को नगर पालिका में शामिल करने के लिए प्रोसेस शुरू भी हो चुका है।
छावनी-या कैंट, एक नागरिक निकाय है जो छावनी बोर्ड द्वारा शासित होता है। राज्य सरकार के बजाय, ये नागरिक निकाय केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं। इनकी जड़ें ब्रिटिश राज से जुड़ी हैं। ये वे स्थान हैं जहां ब्रिटिश भारतीय सेना ने अपने सैनिक तैनात किए थे। वायु सेना या नौसेना के विपरीत, जिनके पास विशिष्ट ‘अड्डे’ थे, सेना के पास छावनियां थीं जहां नागरिक भी सैन्य प्रतिष्ठानों से दूर स्थानों पर रहते थे, लेकिन पास-पास, जिससे जीवन शैली और संस्कृतियों का मिश्रण हुआ। समय के साथ, ये छावनियां सैन्य और नागरिक भागों के साथ कस्बों और शहरों में विकसित हुईं। जबकि सैन्य भागों का प्रबंधन सैन्य अधिकारियों द्वारा किया जाता है, नागरिक भागों का प्रबंधन छावनी बोर्डों द्वारा किया जाता है। पहली छावनी 1765 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बैरकपुर में स्थापित की गई थी। अगले कुछ दशकों में कई छावनियां अस्तित्व में आईं। कहने को तो यह अधिकारियों और निर्वाचित सदस्यों के मिश्रण वाला एक नागरिक निकाय है। लेकिन इनसे स्थानीय लोगों को वो सुविधाए नहीं मिलती हैं जिनके ये हकदार हैं।
इस बाबत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पीसीसी सदस्य कैलाश पांडेय कहते हैं कि रोजाना 12 बजे से एक बजे तक शहर के 30-35 लोग शहर के विकास की सोच लेकर गांधी चौक पर बैठते हैं जिसमें यह सोचा जाता है कि कुछ ऐसा किया जा सके कि हमारी समस्याओं का समाधान हो सके। हमारी सबसे बड़ी समस्या शहर को कैंट से मुक्ति दिलानी है खासकर जब से यहां छावनी परिषद् बनी थी। छावनी परिषद् तो 1869 में बन गई थी लेकिन जब केआरसी का यहां 1948 के बाद सेंटर बना तब से यहां के नागरिकों के अधिकारों में हमें लगातार छला गया। हम अपने मकानों की मरम्मत नहीं कर सकते, मकानों का म्यूटेशन नहीं करा सकते हैं। हमको मालिकाना हक नहीं मिलता, हमें बैंक से लोन नहीं मिलता। हम प्रदेश सरकार को जमीनों की रेवेन्यू बराबर देते आए हैं बावजूद इसके हमको हमारी जमीनों का ही मालिकाना हक नहीं दिया जाता है। 2016 में रानीखेत नगर पालिका की मांग को देखते हुए एक्ट का प्रावधान किया गया कि सिविल एरिया को अलग से कंटोनमेंट नहीं बनाया जाता लेकिन नजदीक में कोई कंटोनमेंट होती तो उसमें मर्ज किया जा सकता है। उस समय सबके प्रयासों से रानीखेत-चिलियानौला नगर पालिका बनी। यह इस उद्देश्य से बनी थी कि यहां का सिविल एरिया उसमें मिला दिया जाए उसी प्रयास में आज तक हम लगे हुए हैं।
पाण्डेय के अनुसार गवर्नमेंट की ओर से हमें सकारात्मक सहयोग मिल रहा है। सेना भी चाहती है कि सिविल का जो एरिया है वह हमसे अलग हो जाए। उनसे वो मैनेज नहीं हो पाता है। गवर्नमेंट भी अब यही चाहने लगी है कि यहां के नागरिकों को अब आजादी मिलनी चाहिए। मोदी जी बार-बार कह ही रहे हैं कि ‘एक देश, एक कानून’। एक देश है तो ‘एक ही कानून’ होना चाहिए। जब एक ही देश के लोगों को अधिकार मिलते हैं तो हमें भी मिलना चाहिए। अगर जो लोग कब्जे में जबरदस्ती जमीन ले रहे हैं उनको तो आप हक दे रहे हो। हमारी जमीन या तो हमारे बाप दादाओं को मिली है या हमने खरीदी है और उसका पैसा भी दिया है तो हमें हमारा हक दे दिया जाए। मकानों को बनाने की इजाजत दी जाए, म्यूटेशन हो जाए, बैंक वाले हमें लोन देने लगे। दूसरी बात यह है कि आपकी नगर पालिका की बात चल रही है तो नगर पालिका ही बना दो। लेकिन दिया जाए हमको निःशुल्क। ये नहीं कि हमने पहले पैसा दिया है सटाम्प ड्यूटी दी है फिर से गवर्नमेंट हमसे पैसा ले। यहां के वाशिंदों को उनकी जमीनों का निःशुल्क मालिकाना हक देकर उन्हें कैंट से आजादी दे। यहां सभी लोग धरने में बैठ रहे हैं। एक-दूसरे के विचारों को समझ रहे हैं। सभी का एकजुट होकर काम करने का मकसद यही है कि हमें आजादी दी जाए।
रानीखेत व्यापार मंडल की उपाध्यक्ष एवं महिला कांग्रेस की नगर अध्यक्ष नेहा शाह महरा कहती है कि मैं इस आंदोलन के माध्यम से यह अपील करना चाहती हूं कि हमारे देश को आजाद हुए इतने साल हो गए हैं किंतु हम लोग अभी भी आजाद नहीं हैं ऐसा क्यों? हम ‘एक देश एक कानून’ की बात करते हैं जो एक वाक्य बनकर रह गया है। हमारी जमीन का म्यूट्रिशन होना चाहिए। हम सब रानीखेत निवासियों को अपनी जमीन का हक मिलना चाहिए जहां हम स्वेच्छा से अपने घरों का निर्माण कर सकें। अपने शहर का विकास कर सकें। मैं सभी लोगों से अपील करती हूं कि इस संघर्ष में आप सभी अपना योगदान दें।
पूर्व क्षेत्र पंचायत और उत्तराखण्ड जन स्वराज मंच के मुख्य संयोजक कृपाल राम के अनुसार कैंट से आजादी का आंदोलन गांधी पार्क रानीखेत में विगत महीनों से चल रहा है। निश्चित ही यह मांग उत्तराखण्ड निर्माण से भी पूर्व की है। कांग्रेस-भाजपा की सरकारें उत्तराखण्ड के साथ-साथ केंद्र में भी रही है। मजे की बात यह है कि इसकी मांग करने के लिए नेतृत्व भी इन्हीं पार्टी के कार्यकर्ता करते रहे हैं।
मांग पूरी नहीं होने पर भी यही नेतृत्व करने वाले भाजपा कांग्रेस के कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टियों के लिए वोट की सिफारिश भी जनता से करते हैं, यह समझ से परे हैं। आजतक रानीखेत नगर की सम्मानित जनता ने नेताओं के प्रति एक मां की भूमिका निभाई है, क्योंकि मां को बच्चा लात भी मारता है तो सह लेती है, लेकिन अब ऐसे में रानीखेत के नगर वासियों को बाप की भूमिका निभानी चाहिए, और ऐसे नेताओं व सरकारों को रानीखेत से बेदखल कर देना चाहिए। आंदोलन की सुनवाई न होना ये कमजोरी नेताओं व सरकारों की नहीं, बल्कि इनके लिए जो वोट की सिफारिश करने वाले कार्यकर्ता होते हैं उनकी है उन्हें अपनी पार्टियों से इस्तीफा देना चाहिए। बारी-बारी से भाजपा और कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद क्यों आपकी आवाज को दबाया जा रहा है इस सवाल का जवाब भी दिया जाना चाहिए।
उत्तराखण्ड कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा महरा दसौनी का इस बाबत कहना है कि वर्षों से कटक पालिका का हिस्सा होने की वजह से रानीखेत की स्थानीय जनता को काफी सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लंबे समय से रानीखेत की जनता की मांग रही है कि उन्हें नगर पालिका या नगर पंचायत में सम्मिलित किया जाए। रानीखेत के लोगों को 159 दिन हो गए हैं धरने में बैठे हुए हैं, पर शासन प्रशासन मौन है। भाजपा के मंत्री सब्जबाग दिखाने का काम कर रहे हैं और वहां की भोली-भाली जनता के साथ छलावा किया जा रहा है। रानीखेत के लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मिलकर आ गया, उनको झूठा आश्वासन दिया गया कि कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जाएगा परंतु तब से दो या तीन कैबिनेट बैठकें हो चुकी हैं लेकिन रानीखेत की अनदेखी हो रही है और यह अनदेखी भाजपा को महंगी पड़ेगी।
रानीखेत विकास संघर्ष समिति के संयोजक हेमंत मेहरा कहते हैं कि रानीखेत छावनी के सिविल नागरिक क्षेत्र को रानीखेत-चिलियानौला नगर पालिका में शामिल करने हेतु 16 मार्च 2023 से बेमियादी धरना-प्रदर्शन निरंतर जारी है। इस दौरान रानीखेत बंद, मशाल जुलूस, रैली, प्रदर्शन, जन जागरूकता कार्यक्रम काफी सफल रहे। आगे भी मांग पूरी होने तक धरना- प्रदर्शन जारी रहेंगे। जरूरत पड़ी तो आगे आने वाले समय में भी आंदोलन को उग्र करेंगे। यहां तक कि पूर्व में छावनी परिषद् चुनाव बहिष्कार की तर्ज पर आने वाले समय में सभी चुनावों का बहिष्कार किया जाएगा। साथ ही 2024 में लोकसभा चुनाव का भी बहिष्कार करने का निर्णय, संघर्ष समिति द्वारा लिया गया है, जिसके लिए सभी संगठनों, राजनीतिक दलों, प्रबुद्धजनों का सहयोग लिया जाएगा।
रानीखेत भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष दीप भगत का कहना है कि हमारा प्रदेश और केंद्र सरकार से आग्रह है कि अतिशीघ्र से अतिशीघ्र हमारी समस्या का समाधान किया जाए। माननीय मुख्यमंत्री जी से एक शिष्टमंडल मिलने देहरादून गया था। उन्होंने हमें आश्वासन दिया था कि इस मैटर को मैं जल्द ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के पास लेकर जाउंगा। इसी संबंध में उन्होंने रक्षा मंत्री जी से रानीखेत और लैंसडाउन की बाबत बात की है और कहा कि ये लोगों के रहने की छावनियां नहीं हैं। इनका मर्जन किया जाना आवश्यक है। आजादी से आज तक छावनियां जहां भी रही हैं उनका उस तरह से विकास नहीं हो पाया जिस तरह से नगर पालिकाओं का हुआ। बजट की वजह से भी छावनी के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझते रहे हैं। रास्ते, स्कूल, स्वास्थ्य की समुचित सुविधाएं नहीं मिलती हैं। जब से चिलियानौला नगर पालिका बनी है तब से उसका विकास तेजी से हुआ है इसी तरह हमारा भी नगर पालिका में जाने में विकास होगा, यही उम्मीद और आशा है।
बकौल समाजसेवी राजेंद्र अग्रवाल ‘हमें गुलामी से आजादी चाहिए और अपने शहर का विकास चाहिए। चाहे हम यूपी में रहे हों या उत्तराखण्ड में हमारा डिमोशन हुआ है। हमारी जो यह समिति बनी है इसमें हम बिना कोई राजनीति किए यह गहन चिंतन करते हैं कि शहर का विकास कैसे हो सके। हमारी जो आने वाली पीढ़ी है उसको हम क्या जवाब दे सकें कि हमने उनके लिए क्या किया। हमारे यहां बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन नहीं है। युवा बेरोजगार हैं जो नशे की प्रवृत्ति की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन इन सबका निराकरण करने के लिए रानीखेत विकास संघर्ष समिति कृत संकल्प है।
रानीखेत-चिलियानौला नगरपालिका के व्यापार मंडल अध्यक्ष कमलेश बोरा के अनुसार रानीखेत के नागरिक गांधी चौक पर ‘कैंट से आजादी’, ‘नगरपालिका बनाओ’ के नारे के साथ ही धरना चल रहा है। 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत रानीखेत-चिलियानौला नगर पालिका बना गए। उसके बाद से डबल इंजन सरकार एक तरफ 62 कैंट बोर्ड को खत्म करने की बात तो करती है, पर ठोस कदम नहीं उठाती। मुख्यमंत्री धामी ने वायदा किया था कि वो छावनी परिषद के नागरिक क्षेत्र को रानीखेत चिलियानौला नगर पालिका में मर्ज करने का प्रस्ताव कैबिनेट में रखेंगे, पर वो वायदा पूरा नहीं हुआ।
रानीखेत कैंट बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष मोहन नेगी की मानें तो देश की 62 छावनियों के लोग आजादी के बाद लगातार कैंट के जटिल कानून को समाप्त करने के लिए संघर्षरत हैं लेकिन आजादी के 75 वर्ष गुजर जाने के बावजूद भी अभी तक इस विषय पर कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पाया। वर्तमान में छावनियों के उपाध्यक्ष एवं मेंबरों व जनता के लगातार प्रयासों से भारत सरकार ने इस विषय पर कार्य प्रारंभ किया है। इस बाबत कई बैठकें कैंट के कानून को समाप्त करने के लिए व क्षेत्र के सिविल क्षेत्र को निकट नगर पालिका में जोड़ने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। अभी तक इसमें अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है।
एक्सपर्ट कमेटी द्वारा भी सरकार को इस विषय पर काफी सुझाव दिए गए हैं। कैंट उपाध्यक्ष एवं सदस्य संगठन द्वारा भी इस विषय पर लगातार प्रयास किया जा रहे हैं। जनता लगातार इस विषय पर आंदोलनरत है। जनता का आंदोलन निश्चित तौर पर एक दिन छावनी के इन जटिल प्रावधानों से व सिविल क्षेत्र को स्थानीय नगर पालिका में शीघ्र सम्मिलित कर लिया जाएगा। इस विषय पर जिलाधिकारी और राज्य के नगर विकास मंत्रालय द्वारा भी लगातार रक्षा मंत्रालय के साथ पत्राचार जारी है। निश्चित तौर पर एक दिन जनता की वर्षों पुरानी मांग भारत सरकार द्वारा पूरी की जाएगी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी व अजय भट्ट जी ने भी जनता को आश्वस्त किया है कि जनता के अनुरूप ही जनहित में निर्णय लिए जाएंगे। इसमें हमारी कैंट उपाध्यक्ष सदस्य संगठन के अध्यक्ष संजीव गुप्ता द्वारा व महामंत्री मोहन नेगी और सदस्य संजय पंत द्वारा भी विभिन्न संगठनों के माध्यम से भारत सरकार और राज्य सरकार को पत्राचार किया गया है। इसके सार्थक परिणाम भी संगठन के माध्यम से सामने आ रहे हैं।
रानीखेत प्रेस क्लब के अध्यक्ष डीएन बरोला की मानें तो रानीखेत को जिला बनाए जाने की जरूरत है। जिला बनता है तो नगर पालिका अपने आप ही बन जाएगी। हमने आंदोलन चला रहे लोगों से कहा है कि इसमें जिला आंदोलन की मांग भी जोड़ दीजिए लेकिन उन्होंने मना कर दिया। रानीखेत विकास संघर्ष समिति के सदस्य अच्छा काम कर रहे हैं। हम उनके साथ हैं।
रानीखेत का वर्तमान और इतिहास
कभी कत्यूरी शासक राजा सुधारदेव की रानी पद्मिनी का पसंदीदा स्थल रहा रानीखेत का नाम संभवतः रानी के नाम पर ही पड़ा था। रानीखेत की प्राकृतिक खूबसूरती ने रानी पद्मिनी को आकर्षित किया और वह यहीं बस गई। शुरुआत में रानीखेत को अंग्रेजों ने अपने अवकाशकालीन डेस्टीनेशन के रूप में चुना और विकसित किया। लेकिन बाद में ये अंग्रेजों का पसंसदीदा स्थल बन गया। 1815 के युद्ध में पराजय के बाद संपूर्ण कुमाऊं को गोरखों ने अंग्रेजों को सौंप दिया। इस बीच कई अंग्रेजो ने चाय बागानों के लिए जमीन ली जिसमें एक अंग्रेज ट्रूप ने चौबटिया डपट कालिका और होल्म फार्म की जमीन को ग्रामीणों से खरीद लिया। सन् 1868 में रानीखेत को अंग्रेज सैनिकों और फौज के लिए पंसद किया गया। सर हैनरी रेमजे ने 1869 में इसकी स्थापना कर यहां छावनी का गठन किया। 1913 में इसे पाली परगना तहसील का मुख्यालय बनाया गया।
रानीखेत छावनी परिषद का गठन 1924 के छावनी बोर्ड अधिनियम के अंतर्गत किया गया था। छावनी परिषद में सात चुने हुए सदस्य और सात नामित सदस्य होते हैं। स्थानीय स्टेशन कमांडर इसके पदेन अध्यक्ष और छावनी परिषद के मुख्य अधिशाषी अधिकारी इसके पदेन सचिव होते हैं। जबकि उपाध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों का चुनाव सीधे जनता के द्वारा किया गया जाता है। 2015 में यहां छावनी परिषद के चुनाव हुए थे। छावनी परिषद का कार्यकाल 2020 में पूरा हो चुका था लेकिन कुछ कारणों के चलते इसका कार्यकाल 2 वर्षों तक बढ़ाया गया था। 30 अप्रैल 2023 को घोषित चुनावों के बीच बहिष्कार की सुगबुगाहट के चलते फिलहाल इन्हें स्थगित कर दिया गया है। इस बीच बहिष्कार की मुहीम ने एक नया रूप ले लिया। नगर पालिका की मांग के आंदोलन में घोषणा की जा चुकी है कि जब तक यहां नगर पालिका का गठन नहीं होता तब तक आने वाले हर चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा। जिसमें लोकसभा चुनाव भी शामिल हैं। छावनी परिषद का कुल क्षेत्रफल 4,183 एकड़ है। जिसमें 167 एकड़ क्षेत्र सिविल एरिया के नाम से जाना जाता है। इस सिविल क्षेत्र को ही नगर पालिका बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। सबसे बड़ा मुद्दा भूमि के मालिकाना हक का है। यहां के निवासी भूमि के मालिक न होकर सिर्फ लीजधारक हैं। जिसके चलते भवन निर्माण के लिए हाउस लोन की सुविधा तक से यहां के नागरिक महरूम रहते आ रहे हैं।