उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव अब महज डेढ़ माह दूर है। ऐसे में खनन माफियाओं की बन आई है। राज्य की नदियां अवैध खनन से कराह रही हैं लेकिन सरकारी तंत्र के मानों में जूं तक नहीं रेंग रही। हरिद्वार ग्रामीण की रवासन नदी में रिवर टेªनिंग के नाम पर चल रहे अवैध खनन के कारोबार को सीधे सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। राज्य का वन निगम चीख-चीख कर भारत सरकार के निर्देशों का हवाला देते हुए इस खनन को रोकने की गुहार लगा रहा है लेकिन सरकारी तंत्र इस लूट का हिस्सा बन मौज ले रहा है
खनन माफिया की शरणगाह बन चुके उत्तराखण्ड में इन दिनों चौतरफा अवैध खनन का कारोबार चल रहा है। हालात इतने विकट हैं कि राज्य के मुख्य सचिव के कड़े आदेशों तक की परवाह उनके जूनियर अधिकारी करते नजर नहीं आ रहे हैं। स्पष्ट है कि नौकरशाही के सबसे बड़े अधिकारी के आदेशों को दरकिनार करने का साहस माफिया और अफसर वर्तमान सरकार की शह पर कर पा रहे हैं। राज्य विधानसभा के चुनाव अब मात्र दो माह दूर हैं। ऐसे में डबल इंजन की सरकार का एकमात्र फोकस येन-केन-प्रकारेण धन अर्जित करना भर रह गया है।
‘दि संडे पोस्ट’ की टीम ने ऐसेे ही एक अवैध खनन क्षेत्र का दौरा किया। यह क्षेत्र है-धर्मनगरी हरिद्वार की ग्रामीण विधानसभा का गांव-रसूलपुर। इस विधानसभा सीट से विधायक हैं भाजपा नेता और वर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद। यतीश्वरानंद वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बेहद करीबी बताए जाते हैं। हरिद्वार ग्रामीण से सटी लक्सर विधानसभा सीट है। यहां से विधायक भाजपा नेता संजय गुप्ता हैं। कहा जाता है कि संजय गुप्ता भी वर्तमान सीएम के खासे भरोसेमंद साथी हैं। यह जानकारी काबिलेगौर है क्योंकि इन दिनों अवैध खनन का सबसे ज्यादा कारोबार इसी इलाके में पूरे सरकारी तंत्र की मदद से बेरोकटोक किया जा रहा है। इसके चलते ‘सैंय्या भय कोतवाल तो अब डर काहे का’ कहावत यहां पूरी तरह चरितार्थ होती स्पष्ट नजर आती है।
हरिद्वार जनपद के गांव रसूलपुर, मीठीबेरी तहसील में उत्तराखण्ड रिवर ट्रेनिंग नीति की आड़ लेकर एक खनन पट्टे की नीलामी प्रक्रिया 2018 में कराई गई थी। इस नीलामी में यह पट्टा हरिद्वार निवासी आलोक द्विवेदी के नाम किया गया। आलोक द्विवेदी भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता और वर्तमान में लालढांग भाजपा मंडल के अध्यक्ष हैं। 12-06-2018 से 30-06-2018 तक के लिए द्विवेदी को रवासन नदी से उपखनिज निकालने की अनुमति रिपोर्ट दी गई। यहीं से अवैध खनन का ‘खेल’ शुरू हुआ जो इन दिनों अपने पूरे शबाब पर है। आलोक द्विवेदी ने इस अनुमति के बाद बड़े स्तर पर तय सीमा से अधिक खनन करना शुरू कर डाला। शिकायत मिलने पर तत्कालीन डीएम, हरिद्वार ने कार्यवाही करते हुए द्विवेदी को अवैध खनन का दोषी माना। यही नहीं, इस पट्टे पर किए जा रहे खनन को रोकते हुए द्विवेदी पर चौदह लाख बारह हजार का जुर्माना भी लगा डाला।
इस आदेश को द्विवेदी द्वारा कमिश्नर गढ़वाल के यहां चुनौती दी गई है। इस बीच राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया और तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बन गए। आलोक द्विवेदी ने इस दौरान पहले तो खनन पर लगी रोक हटाने के लिए हाईकोर्ट नैनीताल की शरण ली। 28-01-2021 को उच्च न्यायालय ने द्विवेदी की अपील खारिज कर दी। तीरथ सिंह रावत सरकार बनते ही द्विवेदी ने डीएम हरिद्वार के यहां एक अर्जी लगाते हुए कहा कि उसके पट्टे को समय पूर्व ही रोक दिया गया था, उसे पुनः चालू करने की अनुमति दी जाए। तब हरिद्वार के डीएम थे सी रविशंकर। रविशंकर ने अपने कार्यकाल में अवैध खनन पर कड़ाई से रोक लगाई थी। इस अर्जी को उन्होंने कड़ी टिप्पणी के साथ निरस्त कर दिया। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास तत्कालीन डीएम द्वारा जारी आदेश की प्रति मौजूद है। इस आदेश में डीएम की एक टिप्पणी पूरी शासन प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करती है।
डीएम को प्रस्तुत पत्रावली में संबंधित विभागीय अधिकारी ने लिखा कि ‘प्रश्नगत् प्रकरण में यह भी उल्लेखनीय है कि रिवर ट्रेनिंग नीति के अंतर्गत एक अन्य आवेदन पत्र के सम्बंध में उप वन संरक्षक, हरिद्वार वन प्रभाग, हरिद्वार द्वारा पत्रांक 5566/2-3 दिनांक 19-06-2020 के द्वारा अवगत कराया गया है कि प्रश्नगत् क्षेत्र लालढांग से रवासन नदी के पुल के पार अन्य ग्रामों जैसे रसूलपुर, मीठीबेरी, ढंडियानवाला, पीपी पड़ाव, कटियावड एवं रसूलपुर गोठ आदि पर स्थित पुल के अपस्ट्रीम पर लगभग 35 से 40 हेक्टेयर भूमि पर स्थित है, जिसमें लगभग 30 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि मीठीबेरी क्रम संख्या 03 की है। अतः उक्त क्षेत्र में लगभग समस्त भूमि आरक्षित वन क्षेत्र है। नियमानुसार आरक्षित वन क्षेत्र में रिवर ट्रेनिंग/खनन कार्य करने हेतु भारत सरकार से अनुमति लेनी आवश्यक है। बिना भारत सरकार की पूर्व अनुमति के आरक्षित वन क्षेत्र में रिवर ट्रेनिंग/खनन कार्य नहीं किया जा सकता है।’ इस पर डीएम सी रविशंकर ने टिप्पणी लिखी कि ‘यदि उपरोक्त क्षेत्र में रिवर ट्रेनिंग अनुमन्य नहीं है, नीलामी क्यों किया है? यदि वन क्षेत्र में है, रिवर ट्रेनिंग का औचित्य किस आधार पर तय हुआ?’ इस टिप्पणी के साथ ही रविशंकर ने आलोक द्विवेदी के प्रार्थना पत्र को रिजेक्ट कर डाला।
धामी सरकार बनते ही ‘खेला’ हो गया
14-09-2021 यानी पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्रित्वकाल शुरू होते ही और स्वामी यतीश्वरानंद के कैबिनेट मंत्री बनते ही आलोक द्विवेदी एक बार फिर एक्टिव हो गया। उसने हरिद्वार के वर्तमान डीएम विनय शंकर पाण्डेय को खनन की अनुमति दिए जाने के लिए एक पत्र लिखा। द्विवेदी के प्रार्थना पत्र पर सरकारी मशीनरी ने कमाल की तेजी दिखाई है। 10 दिनों के भीतर ही डीएम साहब ने ‘खुलेमन’ से द्विवेदी को खनन करने की छूट देने सम्बंधी फाइल शासन को भेज दी। यहां गौरतलब है कि डीएम ऑफिस में तैनात खनन सहायक नवीन मोहन शर्मा ने 24-09-2021 को फाइल चलाई। 24-09-2021 को ही इस फाइल पर एसडीएम, एडीएम और डीएम ने हस्ताक्षर कर डाले हैं। इस फाइल में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि किन कारणों के चलते इस पट्टे पर खनन रोका गया था।
विनय शंकर से बढ़कर निकले सचिव सुंदरम
डीएम हरिद्वार विनय शंकर पाण्डेय ने आलोक द्विवेदी के प्रार्थना पत्र पर ‘त्वरित कार्यवाही’ का ‘आदर्श’ प्रस्तुत किया। एक ही दिन 24-09-2021 को खनन सहायक से लेकर एसडीएम, एडीएम और डीएम ने फाइल को ओके कर खनन सचिव आर मीनाक्षी सुन्दरम के पास भेज दिया। मीनाक्षी सुन्दरम की गिनती उन ‘सक्षम’ नौकरशाहों में होती है जो हर सरकार के करीबी रहते हुए ‘मलाईदार’ समझे जाने वाले विभागों में बने रहते हैं। खनन सचिव खासे उदार दिल के हैं। आलोक द्विवेदी ने मात्र एक माह का समय खनन के लिए मांगा था। ‘उदारमना’ सचिव आर मीनाक्षी सुन्दरम ने 14-10-2021 के अपने आदेश में एक के बजाय दो माह का समय दे डाला है। अपने आदेश में सुन्दम ने लिखा है कि ‘आप के द्वारा किए गए अनुरोध एवं राजस्व हित में मुझे यह कहने का निर्देश हुआ है कि उत्तराखण्ड रिवर ट्रेनिंग नीति 2020 के अंतर्गत आरबीएम/मलबा निस्तारण हेतु 02 माह की अवधि अथवा अनुज्ञात मात्रा हटाने की अवधि, जो भी पूर्व घटित हो, की अनुमति प्रदान की जाती है। यहां यह भी गौरतलब है कि किस स्तर से सचिव को ‘यह कहने का निर्देश’ मिला? क्या मुख्य सचिव ने उन्हें ऐसा कहा अथवा मुख्यमंत्री के स्तर से उन्हें यह निर्देश मिला। स्मरण रहे कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ही राज्य के खनन मंत्री भी हैं।
राजस्व की खुली चोरी, हाईकोर्ट और केंद्र सरकार की अवमानना
वर्तमान सरकार खनन को लेकर किस कदर ‘उत्साहित’ है, इसे इस मामले से समझा जा सकता है। आलोक द्विवेदी को नीलामी के रास्ते 2018 में मिले खनन के पट्टे से किसी भी सूरत में बगैर भारत सरकार की अनुमति लिए खनन किया ही नहीं जा सकता है। उप वन संरक्षक, हरिद्वार ने 19-09-2020 को इस बाबत तत्कालीन डीएम हरिद्वार सी रविशंकर को भेजे अपने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि ‘प्रश्नगत् क्षेत्र लालढांग से रवासन नदी के पुल के पार अन्य ग्रामों जैसे रसूलपुर, मीठीबेरी, ढंडियानवाल, पीली पड़ाव, कटियावड एवं रसूलपुर गोठ आदि पर स्थित पुल के अपस्ट्रीम पर लगभग 35 से 40 हेक्टेयर भूमि पर स्थित है, जिसमें लगभग 30 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र है। नियमानुसार आरक्षित वन क्षेत्र में रिवर ट्रेनिंग/खनन कार्य हेतु भारत सरकार से अनुमति आवश्यक है। बिना भारत सरकार की पूर्व अनुमति के आरक्षित वन क्षेत्र में रिवर ट्रेनिंग/खनन कार्य नहीं किया जा सकता है।’ इसे ही आधार बनाकर तत्कालीन डीएम हरिद्वार सी रविशंकर ने 2018 में की गई नीलामी पर प्रश्न उठाते हुए आलोक द्विवेदी को खनन की इजाजत नहीं दी थी। वर्तमान डीएम, उनके अधीनस्थ, इस प्रकरण से सम्बंधित सभी अधिकारियों और खनन सचिव की निष्ठा पर इस पूरे प्रकरण के चलते गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
स्वयं वन विकास निगम कह रहा है इसे अवैध खनन
‘दि संडे पोस्ट’ के पास मौजूद उत्तराखण्ड वन विकास निगम के डिवीजनल मैनेजर का एक पत्र इस अवैध खनन की सारी पोल खोलने के लिए काफी है। वन विभाग के डिप्टी फॉरेस्ट कन्सर्वेटर को 11- 11- 2021 को लिखे अपने पत्र में डिवीजनल मैनेजर ने लिखा है ‘दिनांक 09-11-2021 से गंगा की सहायक नदियों (रवासन प्रथम, रवासन द्वितीय एवं कोटावाली) के (गैण्डीखाता, रवासन पुल, कटेबड एवं कोटावाली) खनन गेटों में उपखनिज निकासी कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है। परंतु दिनांक 09-11-2021 एवं 10-11-2021 को वन विकास निगम के खनन निकासी गेट कटेबड पर कोई वाहन उपखनिज निकासी हेतु नहीं आया है क्योंकि रवासन द्वितीय नदी के कटेबड खनन गेट के समीप एक निजी खनन पट्टा जो (आलोक द्विवेदी) के नाम से संचालित है जिससे अनियंत्रित मात्रा में वाहनों द्वारा निकासी की जा रही है। उक्त खनन पट्टे द्वारा निकासी हेतु जो मार्ग प्रयोग हो रहा है वह मार्ग वन विकास निगम के कटेबड निकासी के धर्मकांटें के पास से है जिससे कटेबड गेट पर संचालित वाहनों द्वारा उपखनिज निकासी हेतु पूर्व से ही उपयोग किया जाता है ऐसी स्थिति में वन विकास निगम के खनन गेट कटेबड से उपखनिज निकासी कार्य नहीं हो पा रहा है। जिससे निकासी कार्य एवं राजस्व प्राप्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।’ गौरतलब है कि स्वयं राज्य सरकार की संस्था वन निगम सरकार से इस अवैध खनन को रोकने की बात कहते हुए यह भी कह रहा है कि इसके चलते राजस्व प्राप्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। 11 नवंबर 2021 से पहले भी इस अधिकारी ने 11-11-2021 में डिप्टी फॉरेस्ट कर्न्सवेटर को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बगैर कोई रॉयल्टी दिए प्रतिदिन 500 ओवर लोडेड वाहनों द्वारा खनन सामग्री ले जाए जाने की बात कही। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि ‘400 से 500 कुन्तल के वाहनों में मात्र 60-70 कुन्तल की रॉयल्टी बिना धर्मकांटें पर तुलाई कर कुछ ही वाहन को ई-रवन्ना दिया जा रहा है। नदी में 6 पोकलैंड वाहनों को भर रही है। ऐसी स्थिति में वन विकास निगम के खनन गेट कटेबड जिसमें शीघ्र ही उपखनिज चुगान कार्य प्रारम्भ होने वाला है, पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जिससे वन विकास निगम की लौट में उपखनिज चुगान कार्य में संचालित वाहनों के निकासी में कमी आएगी तथा उपखनिज चुगान कार्य से प्राप्त राजस्व में भी कमी आना स्वाभाविक है। अतः महोदय से अनुरोध है कि खातन द्वितीय के कटेबड खनन गेट के समीप संचालित निजी खनन पट्टे (आलोक द्विवेदी) से अवैध उपखनिज सामग्री ले जाने वाले वाहनों को मोटर मार्ग पर नियंत्रित करने तथा उक्त खनन पट्टे को अन्यत्र मार्ग से निकासी ले जाने हेतु निर्देश करने की कृपा करें।’ सैंय्या लेकिन ‘कोतवाल हैं’ इसलिए वन विभाग की गुहार सुनने को हरिद्वार प्रशासन कतई तैयार नहीं है।
उपसंहार
हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत लालढांग क्षेत्र में अंधाधुध चल रहे अवैध खनन के संबंध में स्थानीय ग्रामीण भी खनन माफिया से त्रस्त नजर आते हैं। ग्रामीणों के अनुसार क्षेत्रीय विधायक यतीश्वरानंद के मंत्री बनने और प्रदेश में धामी सरकार का गठन होने के पश्चात् इस क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर पहली बार अवैध खनन का खुला खेल खेला जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि धर्मनगरी में हाईकोर्ट नैनीताल तथा एनजीटी द्वारा जारी दिशा निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए खनन माफिया खुलेआम अवैध खनन के काले कारोबार से रवासन नदी का सीना चाक करने में जुटे हैं। लालढांग कोटद्वार मोटर मार्ग के कटेवड़ वन चौकी के रास्ते चल रहे खनन के इस खेल में शामिल खनन माफिया जिस प्रकार खुलेआम अवैध खनन का तांडव मचा रहे हैं, वह इस कहावत को चरितार्थ करता नजर आता है कि ‘‘सैंया भय कोतवाल तो डर काहे का।’’ स्थानीय निवासियों का कहना है कि क्षेत्र में अवैध खनन को बढ़ावा मिला है। खनन के चलते आने वाले समय में जंगली जानवरों के लिए नदी के बड़े-बड़े गड्ढे जानलेवा साबित हो सकते हैं। जिम्मेदार विभाग भले ही आंखें मूंद ले, लेकिन ये गड्ढे उनके पैरों में पड़ी बेड़ियों की पोल खोल रहे हैं। अवैध खननकर्ता चांदी कूट रहे हैं और बर्बादी का मंजर छोड़ने के साथ हादसों के गड्ढे छोड़ रहे हैं। बावजूद इसके सत्ता के संरक्षण में सैकड़ों डम्परों और ट्रैक्टर ट्रॉलिओं के माध्यम से पोकलैंड और जेसीबी मशीनें रिवर ट्रेनिंग के नाम पर बैखोफ रवासन का सीना चाक करने में लगी हुई हैं।
(इस समाचार में प्रकाशित सभी सरकारी दस्तावेज श्री जसमिन्दर सिंह द्वारा आरटीआई में प्राप्त प्रमाणिक दस्तावेज है।)
-साथ में हमजा राव
बुरी तरह भड़के डीएम
रसूलपुर में चल रहे अवैध खनन को लेकर पूछे गए सवालों से डीएम हरिद्वार विनय शंकर पाण्डेय खासे भड़क गए। पहले तो उन्होंने आलोक द्विवेदी को खनन के लिए दी गई परमिशन को सही साबित करने का प्रयास किया। फिर खासे उग्र होते हुए बोले सोच-समझकर प्रश्न करिए, आप सामान्य रिपोर्टर हैं। जानते हैं किससे बात कर रहे हैं? मैं आपके प्रति जवाबदेह नहीं हूं। आपको जो भी लिखना है वह लिखिए। मैं आपकी किसी भी बात का जवाब नहीं दूंगा।
खनन का हैरान करने वाला दृश्य
अवैध खनन की स्टोरी कवर करने के लिए जब ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम मौके पर पहुंची तो दृश्य हैरान कर देने वाला था। वन विकास निगम द्वारा खनन के लिए बनाए गए गेट नंबर दो के माध्यम से आरक्षित वन क्षेत्र से खनन से भरे बड़े वाहन और ट्रैक्टर ट्रॉली लगातार बिना तुलाई के वन चौकी के सामने से निकल रहे थे। जब ‘संडे पोस्ट’ की टीम द्वारा बड़े पैमाने पर चल रहे इस खनन के संबंध में फोटोग्राफी करने का प्रयास किया तो खनन माफिया के गुर्गों द्वारा शक होने पर टीम को
रोकते हुए जानकारी की जाने लगी और पत्रकार होने की
जानकारी सामने आने पर माफिया ने कहा कि पत्रकार हो तो इधर आओ, उधर क्या कर रहे हो और यह कहते हुए टीम में शामिल एक सदस्य की जेब में रुपये 5000 डाल दिए। अपने कैमरे बचाने और सच सामने लाने की मंशा के चलते ‘दि संडे पोस्ट’ की टीम और यह संवाददाता खनन माफिया के गुर्गे के द्वारा दिए गए रुपये 5000 लेकर मौके से निकल लिए।
बात अपनी-अपनी
इस प्रकरण पर आप जानकारी मेरे पूर्ववर्ती डीएफओ से पूछें जिन्होंने इस पट्टे के लिए वन विभाग का रास्ता देने की सहमति दी थी। रही बात आरक्षित (रिजर्व) फॉरेस्ट पर अवैध खनन की तो मैं इस पर इतना ही कह सकता हूं कि सरकार यहां से मेरा ट्रांसफर कहीं और कर दे। अवैध खनन को रोकना वैेसे भी एसडीएम और तहसीलदार का काम है, मेरा नहीं।
नीरज शर्मा, डीएफओ, हरिद्वार
जल्द संस्तुति भेजे जाने के संबंध में शासन से निर्देश प्राप्त हुए थे। शासन के निर्देश के क्रम में संस्तुति जल्दी भेजी गई थी।
बीर सिंह बुदियाल, एडीएम, वित्त
अवैध खनन रोकने की जिम्मेदारी वन विभाग और पुलिस प्रशासन की है। अवैध खनन न हो इसीलिए ही वन और पुलिस विभाग की चौकी वहां खोली गई है।
गिरीश चंद्र त्रिपाठी, नायब तहसीलदार, हरिद्वार एवं प्रभारी, एंटी माइनिंग स्क्वायड तहसील, हरिद्वार
माननीय उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड के आदेशानुसार गंगा एवं सहायक नदियों में किसी भी प्रकार के खनन पर पूर्ण पाबंदी है। फिर भी उत्तराखण्ड सरकार कभी रिवर ट्रेनिंग और कभी मत्स्य पालन के नाम पर खनन को स्वीकृति प्रदान कर रही है। इस पर तत्काल रोक लगे। यह स्थापित तथ्य है कि गंगा नदी में कोई भी पत्थर पहाड़ों से नीचे नहीं आता है। इसके बावजूद रिवर ट्रेनिंग के नाम पर खनन किया जा रहा है। रवासन नदी में इसी बाबत पोकलैंड और जेसीबी द्वारा खनन करने के आदेश दे दिए गए। माननीय उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड के आदेशानुसार सभी स्टोन क्रशरों को गंगा नदी के तट से 5 किमी के बाहर करने का आदेश है। एनएमसीजी और सीपीसीबी के भी यही मानक हैं। लेकिन आज भी कई स्टोन क्रेशर गंगा नदी से कुछ ही दूरी पर खनन करवा रहे हैं और अपने मानक भंडारण सीमा से अधिक उपखनिजों का भंडारण कर रहे हैं। ऐसे सभी स्टोन क्रेशरों के भंडारण की जांच हो और तत्काल इन्हें सीज किया जाए। सरकार ने स्टोन क्रशरों को गंगा नदी से 1 किमी दूरी पर लगाने के आदेश दिए हैं। यह गैर कानूनी है। नदियों में खनन पट्टे की अधिकतम गहराई को 1 .5 मीटर से बढ़ाकर 3 मीटर कर दिया गया है। सरकार की यह सभी नीतियां खनन माफियाओं के साथ बैठकर उनके लिए ही बनाई गई हैं। इसमें गंगा के संरक्षण और रख-रखाव के सभी मानकों का बेबाकी से उल्लंघन किया गया है। जोहर में मत्स्य पालन के नाम पर अवैध खनन करके माल को स्टोन क्रेशर तक पहुंचाया जाता है। जबकि जोहर के नियम के अनुसार उससे निकला मलबा उसके इर्द-गिर्द रखने का ही प्रावधान है। मत्स्य पालन के नाम पर 50 से अधिक जोहर बने हैं पर कहीं भी मत्स्य पालन नहीं हो रहा है।
शिवानंद महाराज, संस्थापक एवं अध्यक्ष मातृ सदन
नोट: कई बार मोबाइल पर सचिव श्री मीनाक्षी सुंदरम से बातचीत करने का प्रयास किया गया लेकिन वह उपलब्ध नहीं हुए।