[gtranslate]
Uttarakhand

देवताओं के भरोसे वन सुरक्षा

उत्तराखण्ड का भारी-भरकम वन विभाग वनों की सुरक्षा कर पाने में नाकाम रहा है। अब जंगल बचाने की जिम्मेदारी लोगों ने देवताओं के ऊपर छोड़ दी है। जनपद पिथौरागढ़ के मुनस्यारी के मल्ला घोरपट्टा गांव के लोगों ने अपने गांव के जंगल को न्याय की देवी कोटगाड़ी को समर्पित किया है। यहां लंबे समय से जंगलों में अवैध कटान चल रहा था। अब लोगों को उम्मीद है कि देवी के मंदिर में जंगल चढ़ाने से वह बच जाएंगे। यानि ग्रामीणों को अपने जंगलों की चिंता है। लोग तंत्र के बजाय देवी-देवताओं के हवाले जंगलों को समर्पित करना ज्यादा मुनासिब समझते हैं।

वन महकमे की लचर कार्यप्रणाली के चलते लोगों ने जंगल बचाने में वन महकमे की अपेक्षा भगवान पर भरोसा किया है। वन संपदा एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए जनमानस लगातार आस्था का सहारा ले रहे हैं। विकासखण्ड मुनस्यारी के हरकोट के ग्रामीणों ने अपना जंगल न्याय की देवी भगवती भराड़ी को समर्पित किया है। हरकोट का जंगल मुनस्यारी के शीर्ष पर है। इसके लिए ग्रामीणों ने बकायदा स्टाम्प पेपर तैयार कर मां भराड़ी को चढ़ाया है। यहां पर ध्वज पताका फहराई गई है। देवी को जंगल चढ़ाने का एक फायदा यह है कि एक बार देवी को जंगल चढ़ाने के बाद गांव का कोई भी व्यक्ति जंगल में अवैध कटान नहीं करेगा। माना जाता है कि अगर बाहर का कोई व्यक्ति आकर कटान करता है तो देवी उसे दंड देगी। प्रदेश में वन निरंतर उजड़ते जा रहे हैं। वन माफिया बेलगाम है। वहीं उत्तराखण्ड में 4076 हजार टन लकड़ियों का प्रयोग होता है। इस मामले में देश में उत्तराखण्ड नवां राज्य है। एक तो लकड़ियों के लिए पेड़ों की आहुति दी जाती है। दूसरा ईंधन से जमा कार्बन दोबारा पर्यावरण में मिल जाता है, जबकि प्रदेश में 95 हजार करोड़ से अधिक की सेवाएं वनों से मिल रही हैं लेकिन वनों को बचाने के लिए वन विभाग लाचार है। वन बचाने के लिए लोगों को आगे आना पड़ रहा है। वनों को बचाने का उत्तराखण्ड का अपना एक ऐतिहासिक इतिहास रहा है। यहां समय-समय पर लोगों ने वनों को बचाने के लिए कई तरह के अभियान चलाए हैं। प्रदेश में वनों को बचाने की परंपरा लंबे समय से रही है। पहले बड़े वन माफियाओं से वनों को नुकसान था। अब छोटे माफिया पनपने लगे हैं। इसके अलावा भी खुद लोग वनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD