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Uttarakhand

जनता से जुड़ने की छटपटाहट

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत आम जनता से किस कदर जुड़े रहते हैं इसका अंदाजा महज एक माह के कार्यकाल में लिए गए कड़े फैसलों से लगाया जा सकता है। जनता से जुड़े रहने की चाहत में उन्होंने बुलेटप्रूफ के बजाय साधारण वाहन में चलना पसंद किया

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर जनता से दूर होने और नौकरशाही पर ज्यादा भरोसा करने के आरोप लगते थे। यहां तक कि कोरोना महामारी के दौरान भी त्रिवेंद्र रावत अपने आवास से ही शासन का काम करने में रुचि लेते रहे। कोरोना का रौद्र रूप होने के बावजूद राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की असल हकीकत जानने के बजाय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी को ही सही मानते रहे। जिसके चलते हालात इस कदर बिगड़े कि खुद त्रिवेंद्र को कोरोना संक्रमित होने के बाद दिल्ली एम्स में भर्ती होना पड़ा, जबकि वे स्वयं राज्य के स्वास्थ्य मंत्री थे। इसके ठीक उलट मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अपनी खास कार्यशैली अपना रहे हैं। वे जनता के सवालों और जनता की अपेक्षा के अनुरूप कदम उठा रहे हैं। साथ ही कोरोना महामारी की इस दूसरी लहर में जमीनी हकीकत देखने के लिए स्वयं मैदान में डटे हुए हैं।

दस मार्च को सूबे की कमान संभालते ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपनी कार्यशैली प्रदेश की जनता के सामने रख दी। दुर्भाग्य से तीरथ सिंह रावत को कोरोना हुआ, लेकिन संक्रमण के दौरान भी वे अपने अधिकृत आवास बीजापुर से ही शासन का कामकाज और अधिकारियों के साथ काॅन्फ्रेंसिंग के जरिए कामकाज पर निगाह रखे हुए थे। इस एक माह में तीरथ सिंह रावत ने कई निर्णय ओैर घोषणाएं की जिन पर पूर्व सरकार के समय में भारी विवाद और जनता की नाराजगी बनी हुई थी।

जनता से सीधे जुड़ने और जनता की इच्छाओं पर मुख्यमंत्री ने राज्य की नौकरशाही को साफतोैर पर पहला संदेश यह दिया कि आप लोग किताबंे देखते रहें, मैं जनता के चेहरों को देखूंगा। यानी साफ कर दिया कि शासन में तमाम ऐसे नियमां और कायदों का सरकार जनता के हक में बदलाव कर सकती है जिनके कारण विकास के काम रुक जाते थे। नंद प्रयाग घाट मोटर मार्ग चैड़ीकारण का मामला सबसे ज्यादा चर्चित माना जा सकता है। इस मोटर मार्ग के लिए क्षेत्र की जनता आंदोलनरत थी और शासन ने इसके चैड़ीकरण के प्रस्ताव को ही रद्द कर दिया, जबकि सरकार के ही निर्णय में इसका प्रस्ताव भेजा गया था। इसका मुख्य कारण सड़कों के चैड़ीकरण के मानकों पर खरा नहीं उतरना बताया गया। जनता में इसके चलते भारी नाराजगी और असंतोष पनता रहा, लेकिन सरकार और प्रशासन इसको अनदेखा करते रहे। अपनी सड़क के लिए हजारों आंदोलनकारी गैरसैंण विधानसभा का घेराव करने के लिए एकत्र हुए तो त्रिवेंद्र सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए जबर्दस्त लाठीर्चाज किया। तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री बनते ही लोक निर्माण विभाग को नंदप्रयाग घाट मोटर मार्ग के चैड़ीकरण के आदेश जारी कर दिए।

पिछली त्रिवेंद्र रावत की सरकार के चार साल के कार्यकाल में कुछ ऐसे निर्णय लिए गए जो कि जनता में नाराजगी के कारण बन रहे थे। उन फैसलांे को भी तीरथ सिंह रावत से बदलने या उन पर विचार करने की बात कहकर यह बताने का प्रयास किया है कि जनता के चेहरांे को पढ़ने में उनकी सरकार किस तरह से अमल करती है। बदले गए निर्णयों को देखंे तो सबसे पहले देवस्थानम् बोर्ड में शामिल 51 मंदिरों को बाहर करने का निर्णय लिया गया। देवस्थानम् बोर्ड के बारे में फिर से विचार करने की बात भी कही गई। हालांकि देवस्थानम् बोर्ड विधानसभा से पारित अधिनियम है और इसको कोई भी राज्य सरकार समाप्त नहीं कर सकती। विधानसभा के द्वारा ही प्रस्ताव लाकर समाप्त किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह से बोर्ड में नौकरशाही को अधिक तबज्जो और अधिकार दिए गए हंै उससे बोर्ड पर सवाल उठना लाजमी है। फिर हाईकोर्ट से सरकार के पक्ष में ही निर्णय आया। जानकारों की मानंे तो तीरथ रावत बोर्ड को लेकर कोई बड़ा निर्णय आने वाले समय में कर सकते हैं।

इसी तरह से गैरसैंण को कमिश्नरी बनाए जाने के त्रिवेंद्र सरकार के फैसले पर पुनर्विचार की बात तीरथ सिंह रावत ने कही है। हालांकि इस मामले मंे कोई खास समस्या सरकार के सामने नहीं है। क्यांेकि गैरसैंण को कमिश्नरी बनाये जाने की घोषणा ही हुई है, उसका कोई शासनादेश जारी नहीं किया गया है। इसलिए यह मामला वैसे भी समाप्त हो चुका है। तीरथ रावत पहले ही इस पर पुनर्विचार की बात कह चुके हैं जिससे यह साफ हो गया है कि गैरसैंण कमिश्नरी का मामला अब खत्म हो चुका है। कोटद्वार स्थिति निर्माणाधीन मेडिकल काॅलेज को त्रिवेंद्र सरकार के समय निरस्त कर दिया गया था, लेकिन तीरथ सिंह रावत ने मेडिकल काॅलेज को न सिर्फ स्वीकृति दी, बल्कि साथ ही टोकन मनी भी जारी कर दी। सहकारी बैकों में भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े होते ही भर्ती को निरस्त किया गया। पर्वतीय जिलों में प्राधिकारण में बदलाव करके 2016 की स्थिति को बहाल कर जनता को बड़ी राहत दी है। माना जा रहा है कि जल्द ही सरकार जिला प्राधिकरणांे को भी समाप्त कर सकती है।

इस एक माह के कार्यकाल में तीरथ सिंह रावत ने तीन ऐसे बड़े निर्णय भी लिए है जो खासे चर्चाओं में रहे है। इनमें सबसे बड़ा निर्णय कुंभ मेला क्षेत्र में संचालित होने वाली शराब की दुकानों को बंद करने और विपक्षी विधायकांे के विधानसभा क्षेत्रों में विकास कार्यों की समीक्षा करने का निर्णय माना जा रहा है, जबकि पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय में विपक्षी कांग्रेस का आरोप रहता था कि सरकार विपक्षी विधायकों के क्षेत्रों में विकास कार्यों पर भेदभाव कर रही है। तीरथ सिंह रावत ने सबसे पहले कांग्रेस के दबंग और चर्चित विधायक हरीश धामी की विधानसभा सीट धारचुला की समीक्षा बैठक की जिसकी सरहाना स्वयं हरीश धामी भी कर चुके हैं।

इसी तरह से त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय मुख्यमंत्री के लिए बुलेटप्रूफ कार थी। इस कार को छोड़कर सामान्य इनोवा कार से चलने का निर्णय भी तीरथ रावत द्वारा लिया गया है। बुलेटप्रूफ कार सुरक्षा की दृष्टि से बनाइ गई है और इसकी खिड़कियों के शीशे खुलते नहीं थे जिस कारण से मुख्यमंत्री जनता से नहीं जुड़ पाते थे। तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री बनने के बाद इस स्थिति को पहचाना और कार बदलने का निर्णय लिया। हालांकि यह कोई बड़ा निर्णय नहीं है, लेकिन इसे एक मुख्यमंत्री के अपनी जनता से सीधे जुड़ने को बड़ी पहल माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पिछली सरकार के अनुभवों से सबक लेते दिखाई दे रहे हैं। जनता से जुड़ने की उनकी यह छटपटाहट कम से कम यह तो साफ कर रही है कि तीरथ सिंह रावत जिस तरह से सरल स्वभाव के हैं, वे उसी सरलता से अपनी जनता के बीच अपने आप को रखना चाहते हंै। नए मुख्यमंत्री की यह कार्यशैली जनता को किस तरह से प्रभावित करती है और जनता इसको किस रूप में लेती है यह तो आने वाला समय बता पाएगा, लेकिन इतना तो तय है कि त्रिवेन्द्र रावत के ठीक उलट तीरथ सिंह रावत की कार्यशैली फिलहाल प्रदेश की जनता को भा रही है और शायद यही सोच प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का कारण भी रही हो।

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