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Uttarakhand

उत्तराखण्ड में हुआ पहला पुस्तक मैराथन

विदेशों में ही ऐसा होता आया है जब किसी स्कूल में आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षा को पुस्तक मैराथन का नाम दिया गया। इस परीक्षा के दौरान प्रतिभागियों को उनकी मनपसंद की किताब पढ़नी होती है और हर पृष्ठ को सौ मीटर की दौड़ के बराबर माना जाता है। उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जनपद के गांव मणिगुह में पहली बार ऐसी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें कई स्कूलों के छात्र शामिल हुए

उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले के मणिगुह गांव में स्थित पुस्तकालय गांव शिक्षा और पठन-पाठन की संस्कृति को विकसित करने के लिए प्रयासरत है। उत्तराखण्ड के इस पहले पुस्तकालय गांव का उद्घाटन इसी वर्ष 26 जनवरी को हुआ जिसमें शिक्षा, कला और रंगमंच की चर्चित हस्तियों ने शिरकत की। यह पुस्तकालय गांव अपने समृद्ध पुस्तकालय और पुस्तक मंदिरों की वजह से लोकप्रिय हो रहा है। इस पुस्तकालय में विभिन्न विषयों पर करीब ग्यारह हजार से अधिक किताबें उपलब्ध हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। इसी दौरान उत्तराखण्ड में पहली बार पुस्तक मैराथन का आयोजन कर मणिगुह गांव चर्चाओं के केंद्र में है। जिसकी काफी सराहना हो रही है।

पंद्रह मई को पुस्तकालय गांव मणिगुह में उत्तराखण्ड में पहली बार पुस्तक मैराथन का आयोजन किया गया। जिसमें निकटवर्ती कई विद्यालयों के बच्चों ने भाग लिया। ऐसे आयोजन विदेशों में होते रहते हैं जहां बच्चों को छब्बीस दिनों तक किताबें पढ़नी होती है और एक पन्ना सौ मीटर चलने के बराबर माना जाता है। इस प्रकार छब्बीस दिनों में छब्बीस किलोमीटर चलना होता है। संस्था के सह संस्थापक सुमन मिश्र बताते हैं कि इस बार हमने यह आयोजन सिर्फ दो घंटे का रखा था, जिसे लघु मैराथन कह सकते हैं लेकिन जैसा उत्साह हमें इस बार दिखा है, हम बहुत जल्द छब्बीस दिनों का मैराथन भी करने की योजना बना सकते हैं। इस आयोजन में पैंसठ बच्चों ने भाग लिया जिन्हें प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक, तीन श्रेणियों में बांटा गया। हर श्रेणी में तीन बच्चों को पुरस्कृत किया गया। इस मैराथन में चमेली, मणिगुह, भौंसाल, स्यालडोभा आदि के विद्यालयों ने भाग लिया। पठन-पाठन की संस्कृति को विकसित करने के लिए ‘हमारा गांव घर फाउंडेशन’ संस्था मणिगुह में कार्यरत है और लगातार शैक्षिक आयोजन कर रही है ताकि इस अनूठे पुस्तकालय गांव को शिक्षा के साथ-साथ आर्थिकी से जोड़ा जा सके। संस्था ने कुछ दिन पहले यहां अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के साथ मिलकर अंबेडकर जयंती भी मनाई थी।

पुस्तकालय गांव की परिकल्पना में एक ऐसे विकसित गांव का स्वप्न शामिल है जिसकी आर्थिकी शिक्षा के आस-पास घूमती हो। उत्तराखण्ड का यह पहला पुस्तकालय गांव इस दिशा में एक सुंदर तस्वीर पेश कर रहा है। यहां बच्चों को मुफ्त कंप्यूटर शिक्षा के साथ-साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए किताबें उपलब्ध करवाई गई हैं साथ ही ऑनलाइन अंग्रेजी कक्षाएं भी आयोजित करवाई जा रही हैं जो निःशुल्क हैं। विगत महीनों में पुस्तकालय में नियमित आने वाले बच्चों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। गांव के लोगों को आर्थिकी से जोड़ने के लिए इस गांव में होम स्टे की व्यवस्था भी की गई है जहां रुक कर बाहर के लोग यहां पुस्तकालय की किताबें भी पढ़ सकते हैं साथ ही प्रकृति की सुंदरता का आनंद भी ले सकते हैं। यहां के स्थानीय उत्पादों को लोकप्रिय करने के लिए भी ‘हमारा गांव-घर फाउंडेशन’ कार्यरत हैं।

राजकीय प्राथमिक विद्यालय देवल बीरों की अध्यापिका सरिता पंवार ने पुस्तक मैराथन की सराहना करते हुए कहा कि रुद्रप्रयाग में यह आयोजन ‘हमारा गांव घर फाउंडेशन’ की पहल से ही संभव हुआ है। बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने इस आयोजन में भाग लिया। बच्चों के लिए पुरस्कार भी रखे गए थे। हालांकि मेरा विद्यालय दूर होने के नाते मैं और मेरे विद्यार्थी इसमें हिस्सा नहीं ले सके। मुझे खुशी है कि हमारे आस-पास इस तरह के आयोजन हो रहे हैं जिससे छात्रों में पढ़ने और प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रवृत्ति प्रफुटित हो रही है।

ऐसे हुई पुस्तक मैराथन प्रतियोगिता

  • पुस्तक मैराथन की कुल अवधि दो घंटे की थी और इस दौरान पढ़ा गया हर पृष्ठ सौ मीटर की दौड़ के बराबर माना गया।
    मैराथन शुरू होने से पूर्व ही प्रतिभागियों को अपनी मनपसंद पुस्तकों का चुनाव पुस्तकालय से करने का विकल्प रखा गया। जबकि मैराथन के बीच में पुस्तक लेने की अनुमति नहीं थी।
    पुस्तक मैराथन की समाप्ति पर पढ़े हुए पृष्ठों की गणना की गई और किताब से प्रश्न पूछे गए।
    सबसे ज्यादा पृष्ठ पढ़ने वाले तीन प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया और बाकी प्रतिभागियों को प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र दिया गया।
    प्रतिभागियों को तीन समूहों में बांटा गया-प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक।

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