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Uttarakhand

शुरू हुई अग्नि परीक्षा

केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के दिग्गज भाजपाइयों की ‘किंतु-परंतु’ को दरकिनार कर पुष्कर सिंह धामी के हाथों राज्य की सत्ता सौंप यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि भले ही धामी अपना चुनाव हारे, प्रदेश में भाजपा की सत्ता वापसी का श्रेय उन्हें ही जाता है। धामी के लिए अब आने वाला समय अग्नि परीक्षा का है। भाजपा के ‘संकल्प पत्र’ को अमलीजामा पहनाने के लिए सबसे बड़ी जरूरत प्रदेश की बदहाल आर्थिक स्थिति को दुरुस्त करने की है। यदि धामी इस मोर्चे पर कुछ सार्थक कर पाते हैं तो ही वह इस अग्नि परीक्षा में खरे उतर पाएंगे

सात माह पहले जब पुष्कर सिंह धामी को भाजपा ने तीसरा मुख्यमंत्री बनाया था तो उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दबी जुबान में उनको कम अनुभवी बताते हुए अपने केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय पर प्रश्नचिन्ह लगाने का काम किया था। तब किसी को भी यकीन नहीं था कि सिर्फ दो बार का विधायक जिसे वह अनुभवहीन बता रहे हैं पटरी से उतर चुकी पार्टी को फिर से सत्ता पर काबिज कर देगा। धामी न केवल सत्ता पर दोबारा काबिज हुए बल्कि उत्तराखण्ड में लगातार दूसरी बार भाजपा को जिता लाएं। अपनी सीट हारने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर धामी बाजीगर साबित हुए हैं। धामी के 23 मार्च को शपथ लेने के साथ ही 22 साल पहले अस्तित्व में आए राज्य में एक और मिथक टूटा कि किसी भी मुख्यमंत्री ने लगातार दो बार अपनी पारी नहीं खेली। मेजर जनरल (रिटायर्ड) भुवनचंद्र खण्डूड़ी दो बार मुख्यमंत्री अवश्य बने थे लेकिन लगातार नहीं। प्रदेश में बतौर केंद्रीय पार्टी पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने धामी का नाम घोषित करते हुए उनकी तुलना क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी से की। साथ ही धामी को उन्होंने एक अच्छा ‘मैच फिनिशर’ बताया, जो जरूरत पड़ने पर भाजपा के लिए ताबड़तोड़ रन बना सकता है। कहा जा सकता है कि भाजपा ने धामी को अब टेस्ट मैच खेलने का मौका दिया है। इसमें वह कैसा प्रदर्शन करेंगे यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा। लेकिन फिलहाल उनके अपने 6 माह के अल्पकाल में किए गए 650 से ज्यादा ऐसे फैसले हैं जो उनके सामने पहाड़ की तरह चुनौतियों के रूप में खड़े हैं। इनसे पार पाना इतना आसान भी नहीं है।

पुष्कर सिंह धामी ने जब 3 जुलाई 2001 को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला था तो उनके सामने कोरोना महामारी और आपदाओं के साथ ही नजदीक आते विधानसभा चुनाव जैसी कई बड़ी चुनौतियां थी। यही नहीं बल्कि इसी के साथ उन्हें खुद को साबित करने के लिए मात्र छह माह का समय शेष था। साथ ही कोविड-19 महामारी के चलते पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था, तीर्थ पुरोहितों का चारधाम बोर्ड को लेकर चल रहा आंदोलन, बेरोजगार युवाओं का नौकरियों के लिए धरना-प्रदर्शन और पुलिसकर्मियों के लिए 4600 ग्रेड पे का बड़ा मुद्दा था। इस दौरान कोविड-19 जांच में हुआ भारी घोटाला भी सामने था, जिस पर सरकार कटघरे में थी। इसी के साथ ही सरकार एंटी इन्कमबेंसी पर भी घिरी हुई थी। लेकिन धामी ने अपनी व्यवहार कुशलता और कार्यकुशलता के साथ ही विवादों से बचते हुए भाजपा की सत्ता में दोबारा वापसी का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

देखा जाए तो हर 5 साल बाद विधानसभा चुनावों में प्रत्येक दल लुभावने वादे कर जनता को अपनी और आकर्षित करते हैं। ऐसा ही चुनाव के दौरान भाजपा ने भी किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कई वायदों को सामने रखकर जनता से समर्थन की अपील की। भाजपा ने ‘संकल्प पत्र’ नाम से अपना घोषणा पत्र जारी कर भविष्य के उत्तराखण्ड के विकास का खाका सामने रखा। अपने घोषणा पत्र के माफिक वायदों को पूरा करना तो धामी सरकार के लिए अग्नि परीक्षा समान है ही इसके साथ-साथ खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के चलते सबसे बड़ी चुनौती राज्य के लिए नए वित्तीय संसाधन पैदा करना भी सबसे बड़ी चुनौती है। चुनाव होने से पहले 12 फरवरी को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘भाजपा की नई सरकार के शपथ लेने के तुरंत बाद कानून के जानकारों सेवानिवृत्त अधिकारियों, बुद्धिजीवियों और अन्य हितधारकों के साथ एक समिति बनाई जाएगी जो राज्य में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करेंगे। उत्तराखण्ड की संस्कृतिक, आध्यात्मिक विरासत की रक्षा के लिए भाजपा सरकार द्वारा अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद एक कमेटी गठित की जाएगी। जिसमें सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनेगा। चाहे वह किसी भी धर्म में विश्वास रखते हो। यह हमारे संविधान निर्माताओं के सपनों को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। यह कानून महिला सशक्तिकरण को मजबूत करेगा।’ यह 2016 से भाजपा का लगातार चुनावी घोषणा पत्रों का एक हिस्सा रहा है।

एक और ट्विट में पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि ‘6 महीनों में मेरी सरकार ने 650 से भी ज्यादा फैसले लिए। बेरोजगार युवाओं के लिए हम प्रति माह 3 हजार रुपए की व्यवस्था करेंगे। जो 24 हजार पद सरकारी विभागों में खाली हैं, उसे हम तुरंत भरेंगे। इसके अलावा 50 हजार और पदों को भी भरेंगे।’ लेकिन प्रदेश की स्थिति यह है कि अभी भी हजारों पदों पर भर्तियां रुकी हुई है। इसके साथ ही चुनाव में बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा रहा है। जिसको लेकर विपक्ष हमेशा भाजपा सरकार पर हमलावर रहा है। अब धामी सरकार को सरकारी नौकरियों के अलावा अन्य रोजगार के मुद्दों पर फोकस करना होगा। उनके वादों में पर्वतीय जिलों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं को 40 हजार का मातृत्व अनुदान, वरिष्ठ नागरिकों को वृद्धा पेंशन दिया जाना भी शामिल था। दृष्टि पत्र के माध्यम से धामी ने ‘संकल्प पत्र’ में महिला, युवा, रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यटन सभी को शामिल किया था। साथ ही राज्य में 3 एलपीजी सिलेंडर लोगों को निःशुल्क उपलब्ध कराने का वादा भी किया गया। धामी सरकार पर अब इन वादों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी है। प्रदेश में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने का वादा किया है। प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। खासकर पहाड़ों में अस्पताल रेफर सेंटर ही बनकर रह जाते हैं। सरकारी अस्पतालों की हालत बद से बदतर होकर रह गई है। कोरोना काल में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल सामने आया था। सोशल एक्टिविस्ट और रामनगर से विधानसभा का चुनाव लड़ी श्वेता मासीवाल ने अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को लेकर हाईकोर्ट में याचिका तक दायर की थी। हालांकि इसके बाद सरकार सक्रिय हो गई थी। जिन हॉस्पिटलों में वेंटिलेटर नहीं थे वहां वेंटिलेटर लगाए गए। लेकिन बावजूद इसके आज भी पहाड़ों पर स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं।

उत्तराखण्ड पुलिस कर्मियों का ग्रेड पे का मुद्दा भी धामी सरकार के लिए जी का जंजाल बना हुआ है। पुलिसकर्मियों की 4600 ग्रेड पे की मांग वर्षों से चली आ रही है। मुख्यमंत्री रहते धामी ने पहले पुलिस के 4600 ग्रेड पे पर सहमति जताई थी। लेकिन बाद में एक मुश्त 2 लाख रुपए देने की घोषणा की। जिससे पुलिसकर्मियों के परिजन सरकार से नाराज हो गए थे। परिजनों ने पूर्व में इस मुद्दे पर जमकर आंदोलन किए हैं। कहा जा रहा है कि अब धामी के दूसरे कार्यकाल शुरू होते ही एक बार फिर धरने-प्रदर्शन शुरू होने वाले हैं। जिसमें उनके परिजन भी अपना विरोध शुरू कर सकते हैं। ऐसे में पुलिसकर्मियों के परिजनों को समझाना आसान नहीं होगा। साल 2000 में जब उत्तराखण्ड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था। उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू-माफियाओं के हाथ में न चली जाए। इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई।

राज्य में चुनाव से ठीक पहले कई संगठन और विपक्षी दल मजबूत भू-कानून बनाने की मांग को लेकर अभियान चलाए हुए थे। पुष्कर धामी सरकार ने उत्तराखण्ड में भू-कानून का संशोधित खाका तय करने को कमेटी का गठन करने का फैसला लिया था। पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार को इस समिति का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की गई थी। कहा गया कि यह समिति वर्तमान भू-विधियों का अध्ययन करेगी और सुझाव लेगी। फिलहाल प्रदेश के लोगों की नजर इस मुद्दे पर भी रहेगी कि धामी सरकार का इस पर क्या स्टैंड रहता है। इसके अलावा मतदान से दो दिन पहले राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की घोषणा को 13 .9 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में धामी कैसे लागू करेंगे यह देखने वाली बात होगी। हालांकि पुष्कर सिंह धामी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना अपनी प्राथमिकता में शुमार किया है।

कांग्रेस के बढ़े मत प्रतिशत से चिंतित भाजपा
उत्तराखण्ड में भाजपा को विधानसभा चुनावों की सफलता के बाद अब आगामी सियासी परीक्षाओं में पास होने की तैयारी में लगना पड़ेगा। यह सियासी परीक्षाएं 2024 में लोकसभा और अगले साल निकाय चुनाव की होगी। दोनों चुनाव अगले ढ़ाई साल में होने हैं। इस कारण पार्टी के लिए यह ढ़ाई साल बहुत अहम रहने वाले हैं। यही नहीं बल्कि अगले ढ़ाई सालों में धामी को केंद्रीय हाईकमान की उम्मीदों पर भी खुद को साबित करना होगा। जिसमें 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की पांचों सीटों पर जीत दिलाना धामी की जिम्मेदारी होगी।

इसी के साथ ही भाजपा को कांग्रेस के बढ़े मत प्रतिशत की भी चिंता सता रही है। भाजपा ने उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव जीत तो लिया, लेकिन फिलहाल उसकी चिंता विपक्षी दल कांग्रेस के बढे़ मत प्रतिशत को लेकर है। पार्टी इस बात पर मंथन कर रही है कि सरकार के स्तर पर कहां क्या कमी रह गई जिसके चलते कांग्रेस के मत प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा वो बूथ कौन से हैं, जहां भाजपा को पिछली बार सफलता मिली और इस बार वहां कांग्रेस को पसंद किया गया। इन सभी कारणों का समाधान भी भाजपा वर्ष 2024 से पहले कर लेना चाहती है ताकि आगामी लोकसभा और निकाय चुनाव में भाजपा को होने वाले किसी प्रकार के नुकसान से बचाया जा सके।

गौरतलब है कि भाजपा को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में करीब साढ़े 46 प्रतिशत वोट मिले थे। तब भाजपा ने बंपर जीत हासिल करते हुए 70 में से 57 सीटों पर कब्जा जमाया था। इस बार सीटों की संख्या घटकर 47 रह गई है। साथ ही मत प्रतिशत घटकर साढ़े 44 के आस-पास आ गया है। वहीं कांग्रेस को महज 11 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार आंकड़ा बढ़कर 19 हो गया है। ऐसे में कांग्रेस का मत प्रतिशत 34 से बढ़कर 38 के करीब पहुंच गया है। कांग्रेस का मत प्रतिशत 4 प्रतिशत बढ़ना भाजपा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।

 

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