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Uttarakhand

अधिकारी को कहीं से भी खोज लाओ, कहो कि मंत्री ने तलब किया है

देहरादून। उत्तराखण्ड पशुपालन, महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्य एक बार फिर चर्चाओं में हैं। इस बार मंत्री महोदया ने अपने विभाग के निदेशक बी षणमुगम को अगवा किए जाने की आशंका जताते हुए देहरादून के डीआईजी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अरुण मोहन जोशी को निदेशक की खोज करने के लिए पत्र लिखा है। 22 सितंबर को लिखे गए पत्र में साफ लिखा गया है कि अपर सचिव और महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास निदेशक बी. षणमुगम 20 सितंबर से अपना फोन बंद करके अचानक गायब हैं। ऐसे में प्रतीत होता है कि किसी ने उनका अपहरण कर लिया है या वे स्वतः ही भूमिगत हो गए हैं।

इसी पत्र में रेखा आर्य ने अपने ही निदेशक पर एक तरह से आरोप लगाते हुए लिखा है कि वर्तमान में महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग में निविदा प्रक्रिया गतिमान थी जिसमें घोर अनियमितताएं और धांधली होने पर वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। ऐसे में इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता हे कि वे स्वयं को बचाने के लिए भूमिगत हो गए हों।

पत्र के अंत में मंत्री महोदया निर्देश देती हुई लिखती हें कि ‘‘अतः बी षणमुगम अपर सचिव/ निदेशक महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास की खोजबीन कर उन्हें सकुशल लाए जाने के लिए कार्यवाही सुनिश्चित करें। साथ ही उन्हें यह भी अवगत कराया जाए कि आपको विभागीय मंत्री जी द्वारा तत्काल तलब किया गया है।

राज्य मंत्री रेखा आर्य द्वारा दिए गए पत्र के बाद से प्रदेश में हलचल मच गई और मामले में तमाम तरह की चर्चाएं होने लगी। एक मंत्री द्वारा अपने ही निदेशक पर भ्रष्टाचार और धांधली के आरोप लगाते हुए उसका अपहरण होने की आशंका जताने से प्रदेश की नौकरशाही के अलावा राजनीतिक गलियारों में जमकर कयास और चर्चाएं शुरू होने लगी।

रेखा आर्य की सभी आशंकाएं तब धूल में मिल गई जब महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास सचिव सौजन्या द्वारा मंत्री को ज्ञात करवा दिया कि निदेशक बी. षणमुगम कोरोना की आशंका के चलते अपने घर में होम क्वारंटीन में हैं जिसके लिए उन्होंने सचिव से बकायदा स्वीकृति ली थी।

 

निदेशक बी. षणमुगम के सुरक्षित होने की जानकारी मिलने के बाद सभी ने राहत की सांस ली। लेकिन इस पूरे मामले में एक बात फिर साबित हो गई है कि विभागीय मंत्री रेखा आर्य और उनके विभाग के अधिकारियों के बीच लंबे समय से जो मतभेद और तनाव के मामले थे वे फिर से सामने आ गए हैं।

रेखा आर्य के पत्र की भाषा से यह साफ हो गया है कि वे अपने निदेशक को भ्रष्टाचार और धांधली का मुख्य आरोपी मान चुकी हैं और जिसकी जवाबदेही से निदेशक बचने का प्रयास कर रहे हैं। अपना फोन बंद करके गायब हो गए हैं जिससे उन पर कोई जिम्मेदारी न आयत की जाए।

हैरत की बात यह है कि सरकार में शमिल एक राज्यमंत्री को अपने ही विभाग के उच्चाधिकारी की जानकारी तक नहीं है, जबकि राज्य में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और इसकी जद में सचिवालय औेर सरकार तक आ चुकी है। बावजूद इसके रेखा आर्य ने इस मामले में अपने ही विभाग के अन्य उच्चाधिकारियों से जानकारी लेने के बजाय सीधे पुलिस को निदेशक के लापता और अपहरण होने की आंश्का जताते हुए उनकी खोज-खबर करने का आदेश जारी कर दिया।

जिस तरह से मंत्री रेखा आर्य ने पत्र में निदेशक बी. षणमुगम को ढूंढ़ने औ पुलिस को यह आदेश दिया कि निदेशक को यह बताया जाए कि विभागीय मंत्री ने उनको तत्काल तलब किया है। इससे यह साफ हो जाता है कि मंत्री महोदया को अपने निदेशक की परवाह नहीं थी, बल्कि वे निदेशक को तलब करना चाहती थीं। लेकिन निदेशक उनको मिल नहीं पा रहे थे।

इस हास्यास्पद मामले के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो राज्य मंत्री रेखा आर्य और उनके विभाग के उच्चाधिकारियों के साथ उनका तालमेल बैठ नहीं पा रहा है। पशुपालन विभाग में भी मतभेद और आपसी नाराजगी की खबरें आ चुकी हैं। महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री जी का अपने ही अधिकारियों के साथ मतभेद कई बार सामने आ चुका है।

पूर्व में जमीन खरीद के मामले में भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद जिम्मेदार अधिकारी का मंत्री द्वारा जिले से बाहर स्थानांतरण करने का आदेश जारी किया गया था। लेकिन विभागीय अधिकारियों द्वारा उक्त आरोपित अधिकारी का स्थानांतरण देहरादून में ही अन्य विभाग में कर दिया गया। एक तरह से अधिकारियों द्वारा अपनी विभागीय राज्य मंत्री के आदेश को रद्दी में डालते हुए मनमाफिक स्थान पर स्थानांतरण कर दिया।

रेखा आर्य कई बार चर्चाओं में रही हैं। पूर्व में पशुपालन विभाग के एक चिकित्सक को भ्रष्टाचार और सरकारी धन के गबन के आरोप की जांच में दोषी पाए जाने पर भी उक्त अधिकारी का स्थानांतरण चमोली से हरिद्वार जिले में करवाने के लिए पत्र लिखा था, जबकि उक्त अधिकारी ऊपर भ्रष्टाचार के मामले हरिद्वार में तैनाती के समय में ही लगे थे और विभागीय दंड के चलते उक्त अधिकारी को चमोली जिले में स्थानांतरित कर दिया गया था। अचानक ही रेखा आर्य को उक्त अधिकारी बेहद कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार लगने लगा जिसके चलते उनके द्वारा स्थानांतरण के लिए पत्र लिखा गया था।

इस मामले में भी कुछ ऐसा ही सामने आ रहा है। मामले की असल कहानी महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्रालय में कर्मचारियों की आउट सोर्सिंग भर्ती के लिए एजेंसियों के चयन को लेकर सामने आई है। बताया जाता है कि जिस एजेंसी का चयन किया गया है उस पर कई नियमों का पालन नहीं करने की बात रेखा आर्य द्वारा कही गई है। बताया जाता है कि जिस एजेंसी को महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग में मानव संसाधन की आपूर्ति के लिए चयन किया गया है उनके टेंडर प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया गया। स्वयं मंत्री रेखा आर्य द्वारा निदेशक को पत्र लिखकर जवाब मांगा गया। पत्र में साफ किया गया है कि निदेशक द्वारा 19 सितम्बर को ही एजेंसी का टेंडर खोला गया और उसी दिन वर्क ऑर्डर जारी कर दिए गए, जबकि एजेंसी को वर्क ऑर्डर जारी करने की सूचना 21 सितम्बर को दी गई।

इस मामले में साफ है कि एजेंसी के चयन में कहीं कोई बड़ी चूक की गई है जिसे रेखा आर्य द्वारा धांधली माना गया है। यह जांच का विषय है कि इस मामले में किस पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया। रेखा आर्य ने भ्रष्टाचार और धांधली के आरोप निदेशक पर लगाए हैं। इस मामले में एक बात यह भी सामने आई है कि जब लगातार निदेशक बी0 षणमुगम से मंत्री रेखा आर्य का संपर्क नहीं हो पाया तो उन्होंने सचिव महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास को भी फोन किया लेकिन उनके द्वारा भी मंत्री का फोन नहीं उठाया गया, जबकि यह स्पष्ट हो गया है कि निदेशक बी0 षणमुगम सचिव से ही अनुमति लेकर होम क्वांरटीन में गए हैं।

अब यह मामला ओैर भी दिलचस्प हो गया है। राज्य मंत्री रेखा आर्य द्वारा अपने निदेशक पर भ्रष्टाचार और धांधली के आरोप लगाए जा चुके हैं। अब इस मामले में जांच होना तय माना जा रहा है। यह भी माना जा रहा है कि अगर इस तरह का रुख सामने नहीं आता तो संभवतः यह मामला समाप्त हो जाता। लेकिन जिस तरह से पूरे मामले को निदेशक की छवि को धूमिल करने का प्रयास के तौर पर देखा जा रह है उससे कई कयास लगाए जा रहे हैं। जिनमें अपने-अपने स्तर से चहेती और खास एजेंसी को महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग में आउट सोर्सिंग का काम देने का प्रयास किया गया है।

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