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संत सानंद ने अपनी धर्म बहन उमा भारती को पत्र लिखा कि बचा रहा तो राखी पर याद कर लेना। प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखकर उन्होंने गंगा को बचाने की गुहार लगाई। लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। उत्तराखण्ड सरकार ने संत की भावनाओं को कुचलकर बलपूर्वक उन्हें अनशन स्थल से उठा लिया

 

गंगा आंदोलनकर्ता और पर्यावरणविद् स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ जीडी अग्रवाल 22 जून से गंगा की सफाई और अविरलता के लिए हरिद्वार में आमरण अनशन पर बैठे थे। 10 जुलाई को प्रशासन ने बलपूर्वक उन्हें उपवास से उठा दिया। उन्हें जबरन दून अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्हें एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया। एम्स में भर्ती होने के बावजूद प्रो अग्रवाल अनशन जारी रखे हुए हैं।

गंगा नदी पर बनाए जा रहे हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट के विरोध और गंगा की अविरलता बचाए रखने के लिए उपवास कर रहे पर्यावरणविद् प्रो जीडी अग्रवाल को पुलिस ने जबरन उठा लिया। 10 जुलाई को एसडीएम मनीष सिंह के नेतृत्व में सीओ मनोज कत्याल भारी पुलिस बल के साथ मातृ सदन पहुंचे। प्रो अग्रवाल मातृ सदन में ही उपवास पर बैठे थे। आश्रम में पुलिस बल पहुंचने से पूर्व मातृसदन परिसर में धारा 144 लगा दी गई। ताकि वहां श्रद्धालु इक्ट्ठा न हो सकें। इससे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उमा भारती पत्र लिखकर प्रो अग्रवाल को मनाने की कोशिश कर चुके हैं। लेकिन प्रोफेसर ठोस कार्यवाही किए जाने बगैर मानने को तैयार नहीं हुए।

गडकरी और उमा भारती के पत्र के जवाब में प्रो ने लिखा कि उन्होंने फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी को गंगा की सफाई के लिए पत्र लिखा था। मगर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद ही उन्होंने आमरण अनशन पर जाने का निर्णय लिया है। आमरण अनशन शुरू करने से पहले भी 13 जून को प्रधानमंत्री को लिखकर सूचित किया। फिर भी वहां से कोई जवाब नहीं मिला। उमा भारती प्रो अग्रवाल को अपना बड़ा भाई कहती रही हैं। इसलिए उमा को लिखे पत्र के अंत में प्रो अग्रवाल ने लिखा, ‘अगर जीवित रहा तो रक्षाबंधन में याद कर लेना।’

प्रो अग्रवाल 2009 में भागीरथी पर डैम बनाने को रोकने के लिए पहले भी सफल अनशन कर चुके हैं। प्रो अग्रवाल संन्यास लेकर स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बने। संन्यास लेने से पहले प्रो अग्रवाल सीपीसीबी के पहले मेंबर सचिव रहे हैं। इसके अलावा वे पर्यावरण वैज्ञानिक के रूप में आईआईटी कानपुर सहित विभिन्न संस्थानों में पढ़ा चुके हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्होंने गंगा की अविरलता के लिए संघर्ष को ही अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य बना लिया है। प्रो अग्रवाल पूर्व में अनशन कर भगीरथी नदी पर निर्माणाधीन विद्युत परियोजनाओं पाला मनेरी, लोहारी नागपाला, भैरव घाटी को बंद करवा चुके हैं।

दस जुलाई को उनको जबरन अनशन से उठाए जाने के अगले दिन मातृ सदन की ओर से हाई कोर्ट में केस दाखिल किया गया। उसी दिन सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अशोक सिंह और राजीव शर्मा ने सरकार को आड़े हाथों लिया। इनके आदेश के बाद ही प्रो को दूर अस्पताल से ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया। हाईकोर्ट ने स्वस्थ होने पर पुनः उनकी इच्छा अनुसार मातृसदन भेजने का भी आदेश दिया है। अपने 3 पन्नों के आदेश में हाई कोर्ट ने कहा कि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद पवित्र गंगा नदी की सुरक्षा और संरक्षण के लिए उपवास कर रहे थे। वे गंगा के लिए एक केंद्रीय कानून की मांग कर रहे थे। उनको बलपूर्वक उठाना उचित नहीं था, क्योंकि विरोध करने का हर नागरिक को अधिकार है। प्रमुख सचिव गृह को दिए गए स्पष्ट निर्देशों में हाईकोर्ट ने कहा कि स्वामी सानंद का जीवन बहुत महत्वपूर्ण है। हर कीमत पर उन्हें बचाए रखें। मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने बताया कि फिलहाल स्वामी ऋषिकेश एम्स में नींबू पानी लेकर अपना अनशन और मांगें जारी रखे हुए हैं। हरिद्वार का जिला प्रशासन और उत्तराखण्ड सरकार स्वामी सानंद और उनके इस आंदोलन को पचा नहीं पा रही है। तभी तो जबरन उनको उठाकर हॉस्पिटल में डाल दिया गया।

इंडियन इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रोफेसर अग्रवाल गंगा की सफाई के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित नेशनल गंगा रीवर बेसिन ऑथोरिटी (एनजीआरबीए) के असंतोषजनक तथा अप्रभावी कामकाज से नाखुश थे। इसके अतिरिक्त वह गंगा पर बांध, बैराज, सुरंग बनाने के भी खिलाफ थे। उनका कहना था कि इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह एवं गुणवत्ता प्रभावित होगी। साथ ही गंगा से शहरी और औद्योगिक कचरों की सफाई करने वाली नियामक एजेंसियां भी विफल हो जाएंगी। जानकारी के मुताबिक 2011 से अब तक गंगा की सफाई के लिए 8,454 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। जिसमें 4,094 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, पर गंगा मैली की मैली ही है।

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