उत्तराखण्ड ऐसा राज्य है जहां राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए शिक्षकों के नाम भेजने में भी फर्जीवाड़ा होता है। नतीजा यह है कि वर्ष 2018 में राज्य के हिस्से न तो कोई राष्ट्रपति पुरस्कार आया और न ही किसी शिक्षक को आईसीटी पुरस्कार मिला। राज्य के भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे होने का इससे बड़ा उदाहरण शायद और कोई दूसरा नहीं है
कहने के लिए उत्तराखण्ड राज्य में जीरो टॉलरेंस वाली डबल इंजन सरकार है। सरकार का एक बड़ा महकमा शिक्षा विभाग किसी न किसी विवाद को लेकर चर्चा में रहता है। सूबे में स्थानांतरण एवं पोस्टिंग एक प्रमुख मसला रहता है, परंतु इस बार यह विभाग किसी और वजह से नहीं, बल्कि शिक्षकों को दिए जाने वाले पुरस्कारों को लेकर चर्चा में है। वर्ष 2018 में उत्तराखण्ड के हिस्से में न तो राष्ट्रपति पुरस्कार आया और न ही आईसीटी के क्षेत्र में दिए जाने वाले पुरस्कार में ही राज्य का नाम आया है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी एवं शिक्षा अधिकारियों की भारी-भरकम फौज ने केंद्र को भेजे जाने वाले नामों में नियमों की अनदेखी कर बड़ा घोटाला किया तथा सारी अहर्ताओं को ताक पर रखकर ऐसे शिक्षकों के नाम भेज दिए दिए जो वहां अपनी चुनौती भी सही तरह से पेश नहीं कर सके। पात्र एवं वरीयता सूची में टॉप पर रहने वाले शिक्षकों की इस तरह अनदेखी की जाएगी इसका किसी को इल्म तक नहीं था।
गौरतलब है कि इस बार राष्ट्रीय पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार की ओर से व्यापक फेरबदल किया गया था। यह प्रक्रिया इस कारण जटिल बनाई गई थी कि पूर्व की तरह अधिकारियों के चहेते अपात्र शिक्षकों को यह पुरस्कार न मिले तथा शिक्षा के क्षेत्र में सर्वांगीण प्रदर्शन कर रहे शिक्षक ही यह पुरस्कार जीत सकें। इसी के तहत राज्यों का कोटा समाप्त करते हुए यह तय किया गया कि जो शिक्षक अच्छा काम कर रहा है तथा जिसका विभिन्न चरणों में प्रदर्शन अच्छा रहेगा उसी को पुरस्कार दिया जाएगा। खेद का विषय है कि उत्तराखण्ड के अधिकारियों ने इसकी भी तोड़ निकाल ली और जिले की वरीयता सूची को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए ऐसे शिक्षकों के नाम आगे भेज दिए जो क्रमशः 18वें, 22वें एवं 30वें नंबर पर थे। इस बार 15 वर्ष की सेवा की अनिवार्यता को खत्म किया गया था तथा यह नामांकन सबके लिए खुला था। उत्तराखण्ड राज्य के समस्त जनपदों से आवेदन करने वाले आवेदकों का जिला स्तरीय भौतिक सत्यापन कराया गया तथा इसके उपरांत जिला स्तरीय समिति ने जिसमें एक निदेशालय के प्रतिनिधि एवं जिलाधिकारी के प्रतिनिधि उपस्थित रहे, आवेदकों की फाइलों पर उनके कार्य एवं प्रदर्शन के आधार पर इस समिति द्वारा अंक दिए लिए। परंतु राज्य स्तरीय चयन समिति में स्थलीय सत्यापन समितियों एवं जिला स्तरीय चयन समितियों की पूरी तरह से अनदेखी की गई अपने चहेतों को एडजस्ट करने के लिए प्रधानाचार्य, माध्यमिक शिक्षक एवं बेसिक शिक्षकों की तीन कैटेगरी बना ली गई एवं केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देशों का खुला उल्लंघन किया गया। सबसे बड़ी हास्यास्पद बात यह रही कि राष्ट्रीय स्तर पर अनेक बार राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुके एवं विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके शिक्षकों की पूरी तरह से अनदेखी की गई।
‘दि संडे पोस्ट’ को मिली जानकारी के अनुसार यह बड़ा खुलासा हुआ है कि उत्तराखण्ड राज्य से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2017 के लिए आवेदक चुने जाने की प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर नियम एवं प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई है। जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक बनाई गई चयन समितियों द्वारा केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मानकों की जबरदस्त अनदेखी की गई है। कई जनपदों में तो आवेदकों के कार्यों का स्थलीय सत्यापन तक नहीं किया गया तथा इसमें महज खानापूर्ति की गई। जिला स्तर पर अपनाई गई चयन प्रक्रिया में राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य करने वाले शिक्षकों एवं राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्राप्त कर चुके शिक्षकों को नजरअंदाज कर ऐसे शिक्षकों को प्राथमिकता दी गई जो अधिकारियों की गुड बुक में थे।
गोलमाल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चयन समितियों के गठन में भी विशेषज्ञों को न रखकर अपनी सुविधानुसार अधिकारियों को नियुक्त किया गया। मुख्य शिक्षा अधिकारियों की अध्यक्षता में जिला स्तर पर गठित चयन समितियों द्वारा अपने जिले से 3 शिक्षकों का चयन कर उन्हें राज्य स्तर पर नामित किया जाना था। पिथौरागढ़ एवं नैनीताल जिले से 2-2 प्रधानाध्यापकों, ऊधमसिंह नगर एवं देहरादून जिले से 3-3 माध्यमिक शिक्षकों का तो पौड़ी, हरिद्वार एवं रुद्रप्रयाग जिले से 3-3 प्राथमिक शिक्षकों का चयन किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य स्तरीय चयन समिति द्वारा जिला स्तरीय चयन समितियों को इस संबंध में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए थे कि शिक्षकों का अलग-अलग श्रेणियों में चयन किया जाए, न ही केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शिक्षकों को अलग-अलग श्रेणियों में नामित करने के निर्देश दिए गए थे। लेकिन जब राज्य स्तर पर चयन की बात आई तो राज्य स्तरीय चयन समिति द्वारा अपने मनचाहे शिक्षकों को एडजस्ट करने के लिए शिक्षकों की तीन अलग-अलग श्रेणियां बना दी गई। पहली श्रेणी में बेसिक शिक्षकों को रखा गया। दूसरी श्रेणी में माध्यमिक शिक्षकों को तथा तीसरी श्रेणी में प्रधानाध्यापकों को रख कर तीनों श्रेणियों में एक-एक शिक्षक को नामित करने का निर्णय लिया गया। अलग-अलग श्रेणियों निर्धारित करने के बावजूद यह आवश्यक था कि प्रत्येक श्रेणी से मेरिट में सर्वोच्च स्थान वाले शिक्षकों का ही चयन राष्ट्रीय स्तर के लिए किया जाए, परंतु राज्य स्तरीय चयन समिति द्वारा जिलों से नामित शिक्षकों की मेरिट सूची को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। तीनों श्रेणियों में 90 अथवा इससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले शिक्षकों को छोड़कर क्रमशः प्रधानाचार्य वर्ग में 70 अंक, माध्यमिक वर्ग में 63 अंक एवं बेसिक वर्ग में 54 अंक लाने वाले आवेदकों को चयनित कर लिया गया। इस प्रकार अधिकारियों ने अपने पसंदीदा शिक्षकों को जो कि राज्य स्तरीय मेरिट सूची में क्रमशः 18 वें, 22वें एवं 30वें स्थान पर मौजूद थे, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार के लिए नामित कर दिया गया तथा एक प्रकार से पात्र शिक्षक जो वरीयता सूची में अव्वल थे उनके साथ अन्याय कर दिया गया। सूचना के अधिकार के अंतर्गत जब चयनित शिक्षकों को राज्य चयन समिति द्वारा दिए अंकों की प्रश्नवार जानकारी मांगी गई तो सूचना को उपलब्ध ही नहीं कराया गया। इससे स्पष्ट है कि चयन समिति द्वारा शिक्षकों के चयन में बड़े पैमाने पर धांधली की गई और इसमें भारी भ्रष्टाचार होने की भी संभावना है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जो आवेदक मेरिट लिस्ट में बहुत पीछे थे आखिर उनका चयन किस आधार पर किया गया और जो आवेदक राज्य स्तरीय मेरिट में सर्वोच्च स्थान पर थे उन्हें नजरअंदाज किए जाने के पीछे क्या कारण थे? राज्य स्तरीय चयन समिति में एनसीईआरटी के द्वारा नामित प्रतिनिधि भी मौजूद थे। यह भी जानकारी में आया है कि राज्य स्तरीय चयन समिति की बैठक में राज्य के सचिव विद्यालयी शिक्षा जो कि चयन समिति की अध्यक्ष भी थी और निदेशक विद्यालयी शिक्षा ने उपस्थित रहना भी जरूरी नहीं समझा। सभी जिम्मेदार अधिकारियों ने अपने स्थान पर अपने किसी प्रतिनिधि को चयन समिति की बैठक में भेज दिया। दिनांक 31 जुलाई 2018 को सचिव विद्यालयी शिक्षा उत्तराखण्ड के कक्ष में आयोजित की गई चयन समिति की बैठक में एनसीआरटी के प्रतिनिधि की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।
ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कारों के लिए शिक्षकों के चयन की प्रक्रिया में राजनेताओं एवं अधिकारियों की मनमानी को रोकने के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार चयन की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए अलग से एक पोर्टल बनाया गया जिस पर शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए स्वयं ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें विभाग से अनुमति लेने की भी आवश्यकता नहीं है। पोर्टल पर शिक्षकों पंजीकरण कराने एवं अपने कार्य का ब्यौरा अपलोड करने के पश्चात जिला एवं राज्य स्तर पर गठित चयन समिति को शिक्षक के द्वारा किए गए कार्यों का स्थलीय सत्यापन करना होता है। इसी के आधार पर उन्हें विभिन्न मानकों पर अंक प्रदान किए जाते हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए सौ अंकों का मानक तय किया गया। जिन्हें क्रमशः 8 एवं 3 प्रश्नों के दो अलग-अलग खंडों कुल 11 प्रश्नों में बांटा गया है तथा प्रत्येक प्रश्न के लिए अंक भी निर्धारित किए गए हैं। इस प्रकार केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार चयन समिति ऑनलाइन पोर्टल पर प्रत्येक शिक्षक के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किए गए कार्यों पर नजर रखती है। कार्यों के लिए जिला चयन समिति द्वारा उन्हें दिए गए अंकों पर समिति सीधी नजर रखती है। इसी आधार पर जिला स्तर से तीन सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले शिक्षकों को राज्य स्तर के लिए नामित किए जाने की व्यवस्था है। राज्य स्तर पर गठित चयन समिति शिक्षक द्वारा विद्यालय स्तर पर किए गए कार्यों का सीधा निरीक्षण नहीं कर सकती है इसलिए राज्य स्तरीय चयन समिति को जिला स्तर से नामित हए शिक्षकों में से ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों का चयन कर उन्हें राष्ट्रीय स्तर के लिए नामित करने का प्रावधान किया गया है। लेकिन उत्तराखण्ड राज्य में गठित राज्य स्तरीय चयन समिति ने जनपद से नामित हुए शिक्षकों की मेरिट सूची को पूरी तरह दरकिनार कर अपने चहेते शिक्षकों को मनमाने ढंग से राष्ट्रीय स्तर के लिए नामित कर दिया। क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया की राष्ट्र स्तरीय चयन समिति द्वारा ऑनलाइन मॉनीटरिंग की जा रही थी इसीलिए राज्य स्तरीय चयन समिति का यह फर्जीवाड़ा तुरंत राष्ट्रीय चयन समिति के संज्ञान में आ गया। यही कारण है कि राष्ट्रीय चयन समिति द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कारों के चयन में उत्तराखण्ड के किसी भी शिक्षक को चयनित नहीं किया गया। इस कारण राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखण्ड राज्य को एक बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। इससे उत्तराखण्ड के अधिकारियों की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लगे हैं। इसी का नतीजा राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कारों के चयन में भी देखने को मिला है। यहां भी उत्तराखण्ड को अपने कोटे के 2 राष्ट्रीय पुरस्कारों में से एक भी राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल नहीं हो सका। राज्य स्तरीय चयन समिति में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आई प्रतिनिधि की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लगा है।
सूत्र बताते हैं कि कुछ जुगाड़बाज शिक्षकों ने निदेशालय के कथित अधिकारियों की मदद से उन्हें शुरू से ही हाईजैक कर रखा था। नियमानुसार उक्त प्रतिनिधि की रहने की व्यवस्था विभाग के ही गेस्ट हाउस में की गयी थी, परंतु प्रतिनिधि अपने पति के साथ देहरादून के एक नामचीन होटल में ठहरी तथा उनको सैर-सपाटे की व्यवस्था भी निजी गाडी से कराई गई। अपने-अपने जनपदों में सीमित संसाधनां के बावजूद बेहतर प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों के हक को मारा गया और अपात्रों के नाम आगे बढ़ा लिए गए। जिससे पूरे सिस्टम की कार्यशैली पर ही प्रश्न-चिन्ह लग गया है। अफसरों की इस फौज के साथ शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे मंत्री अरविंद पाण्डे क्या इस प्रकरण पर अपने अधिकारियों पर कोई कार्यवाही करेंगे, यह बड़ा सवाल है। आखिर इन्हीं के कारण उत्तराखण्ड को शर्मसार होना पड़ा है।
राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए अध्यापकों की सूची तैयार की गई थी जहां तक मेरिट में सर्वाधिक नंबर वाले शिक्षकों के स्थान पर कम नंबर वाले शिक्षकों का चयन करने का सवाल है तो हो सकता है कि व्यवहार के आधार पर किया गया हो।
ज्योति यादव, आईएएस, महानिदेशक विद्यालय शिक्षा उत्तराखण्ड