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Uttarakhand

छोटी सरकार में महिला वर्चस्व

    छोटी सरकार यानी त्रिस्तरीय पंचायत पर कब्जा पाने का सत्ता संघर्ष अब थम चुका है। जीते हुए प्रत्याशियों में अभी भी जश्न का खुमार है, तो हारे हुए प्रत्याशी ‘हारे को हरिनाम’ के सहारे चल रहे हैं। लेकिन पूरे पंचायती चुनावों में राष्ट्रीय दलों से लेकर प्रत्याशियों के स्तर पर घात- प्रतिघात के चलते किसको नफा-नुकसान हुआ, इसका विश्लेषण जारी है। खास बात यह है कि इस बार छोटी पंचायत के सर्वोच्च पदों पर महिलाएं अच्छी खासी संख्या में काबिज हुई हैं। पूरे चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो इस बार के पंचायती चुनाव कई मायनों में अलग रहे। एक तरफ जिला पंचायत एवं ब्लाॅक प्रमुख की सीटों पर कई उम्मीदवार निर्विरोध चुने गये तो महिला प्रतिनिधि भी बड़ी संख्या में पंचायत के सर्वोच्च पदों पर काबिज होने में सफल रहीं। राष्ट्रीय दलों के दृष्टिकोण से देखें तो कुमाऊं मंडल में भाजपा सब पर भारी रही। कांगे्रस पिछले पंचायत चुनावों के मुकाबले काफी पिछड़ गई तो निर्दलियों ने अच्छी बढ़त बनाई। कांगे्रस की दृष्टि से पंचायती चुनाव निराशाजनक रहा। पहले तो पार्टी सिम्बल पर ढूंढे प्रत्याशी नहीं मिले और जो मिले भी तो वह भाजपा की रणनीति के सामने शिकस्त खा गए। प्रदेश के 12 जिला पंचायत अध्यक्ष पदों में से 9 में भाजपा तो 2 में कांगे्रस एवं 1 सीट में कांगे्रस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हुए।
जनपद पिथौरागढ़ में दीपिका बोहरा, चंपावत में ज्योति राय, बागेश्वर में बसंती देवी, नैनीताल में बेला तोलिया, ऊधमसिंह नगर में रेनू गंगवार, टिहरी में सोना देवी, देहरादून में मधु चैहान, पौड़ी में शांति देवी, रुद्रप्रयाग में अमरदेई भाजपा के सिंबल पर जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं तो अल्मोड़ा में उमा सिंह, चमोली में रजनी भंडारी कांगे्रस पार्टी से और उत्तरकाशी से दीपक बिजल्वाण कांगे्रस समर्थित निर्दलीय जिला पंचायत अध्यक्ष बने। यानी पूरे प्रदेश में 12 जिला पंचायत में से 9 सीटों पर महिलाएं जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर पहुंचने में सफल रहीं जोकि एक रिकाॅर्ड है। अल्मोड़ा, ऊधमसिंह नगर, चंपावत, नैनीताल, चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर, टिहरी, देहरादून जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों पर महिलाएं काबिज हैं। पिछले पंचायत चुनावों पर नजर डालें तो जिला पंचायत में कांग्रेस का वर्चस्व था। पिथौरागढ़ से प्रकाश जोशी, अल्मोड़ा से पार्वती मेहरा, बागेश्वर से हरीश ऐठानी, चंपावत से खुशाल अधिकारी, नैनीताल से सुमित्रा प्रसाद, ऊधमसिंह नगर से ईश्वरी प्रसाद, देहरादून से चमन सिंह, पौड़ी से दीप्ति रावत, उत्तरकाशी से जशोदा राणा, रुद्रप्रयाग से लक्ष्मी राणा यानी 10 सीटों पर कांगे्रस विराजमान थी। मात्र टिहरी से सोना विजवाण और चमोली से मुन्नी देवी यानी दो सीटों पर ही भाजपा का कब्जा था। लेकिन इस बार कांगे्रस रसातल में पहुंच गई।
पंचायतों में महिलाओं ने अपना वर्चस्व तो कायम किया, लेकिन सवाल बरकरार है कि क्या पंचायती सत्ता के संचालन में पतियों और परिजनों का हस्तक्षेप खत्म हो सकेगा
जिला पंचायत की तर्ज पर ही कुमाऊं मंडल के 41 विकासखंडों में से 24 में भाजपा कब्जा करने में सफल रही, तो कांगे्रस के हिस्से मात्र 10 सीटें ही आई। 12 ब्लाॅक प्रमुख निर्विरोध चुने गए। जो 07 निर्दलीय जीतकर आए वह भी भाजपा के ही बागी रहे हैं। प्रमुख पदों पर भी महिलाएं खासी संख्या में काबिज हुई हैं। अकेले पिथौरागढ़ जनपद के आठ विकासखंडों में से 07 में महिला ब्लाॅक प्रमुख बनी हैं। जनपद के गंगोलीहाट, विण, डीडीहाट, बेरीनाग, मूनाकोट, कनालीछीना, मुनस्यारी में महिलाएं तो एकमात्र धारचूला विकासखंड में ही पुरुष सीट रही है। राजनीतिक दलों के दृष्टिकोण से देखें तो कनालीछीना में सुनीता कन्याल, धारचूला में धन सिंह धामी, बेरीनाग में विनीता बाफिला, गंगोलीहाट में अर्चना गंगोला, डीडीहाट में बबीता चुफाल भाजपा से तो विण में लक्ष्मी, मुनस्यारी में भावना देवी कांग्रेस तो मूनाकोट में नीमा एवं निर्दलीय ब्लाॅक प्रमुख बनने में सफल रहीं। पड़ोसी जनपद चंपावत की स्थिति को देखें तो वहां पाटी से सुमनलता, बाराकोट से विनीता फत्र्याल और लोहाघाट से नेहा ढेक भाजपा से तो चंपावत से रेखा देवी निर्दलीय ब्लाॅक प्रमुख बनीं। यहां कांगे्रस का सूपड़ा साफ हो गया। जनपद चंपावत में जिला पंचायत से लेकर क्षेत्र पंचायत प्रमुख तक महिलाओं का बर्चस्व रहा।
जिला पंचायत के साथ ही विकासखंड चंपावत, पाटी, बाराकोट, लोहाघाट के साथ ही ज्येष्ठ प्रमुख एवं कनिष्ठ प्रमुख में भी महिलाओं का वर्चस्व रहा। बागेश्वर के कपकोट, बागेश्वर और गरूड़ की क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष की सीटें भी भाजपा की झोली में गई। बागेश्वर से पुष्पा देवी, कपकोट से गोविन्द दानू, गरुड़ से हेमा देवी भाजपा प्रत्याशी के तौर पर विजयी रहीं। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में ग्राम, क्षेत्र एवं जिला पंचायत में महिलाओं का वर्चस्व तो कायम हुआ है लेकिन सवाल यह भी उठा है कि क्या ये महिलाएं पंचायती सत्ता को अपने बलबूते पर चला पाएंगी? जब 73 वें संविधान संसोधन द्वारा पंचायतों में महिलाओं को यह मानकर 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया कि वे स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने और अपनी भागीदारी करने के अधिकार का उपयोग कर सकेंगी। लेकिन आज तक का अनुभव कहता है कि पंचायत में महिलाओं की भागीदारी तो हुई, लेकिन पंचायतों का पूरा संचालन उनके पतियों या परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों द्वारा किया गया। प्रधानपतियों के साथ ही क्षेत्र एवं जिला स्तर पर होने वाले विकास कार्यों में भी पुरुषों की भागीदारी रही है। लेकिन नई पंचायत में जिस तरह से महिला प्रतिनिधियों की भागीदरी बढ़ी है तो यह उम्मीद भी बलवती हुई है कि महिला पंचायत प्रतिनिधि अपने सशक्तीकरण के साथ ही पंचायतों को भी सशक्त बनाने का काम करेंगी।

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