हल्द्वानी की बनभूलपुरा-गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर किए गए अतिक्रमण को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिस पर अतिक्रमणकारियों को एक सप्ताह के अंदर नोटिस देकर ध्वस्तीकरण करने के आदेश दिए थे। हजारों लोग अपने घरों से बेघर होने के डर से सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। लोगों की मांग है कि पहले उन्हें बसाया जाए फिर उजाड़ा जाए। इस मुद्दे पर फिलहाल भाजपा-कांग्रेस में सियासत जारी है
उत्तराखण्ड के हल्द्वानी शहर स्थित बनभूलपुरा पर पूरे देश की नजर टिकी हुई है। यहां के 4365 परिवारों पर बेदखल की तलवार लटकी हुई है। करीब 50,000 लोगों पर आरोप है कि उन्होंने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर अपने घर बना लिए। इस मामले पर हाई कोर्ट नैनीताल ने उन्हें बेदखल करने के आदेश कर दिए थे। प्रभावित लोग कपकपाती ठंड में अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ सड़कों पर उतर कर अपने आपको बेघर न होने की गुहार लगा रहे थे। हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार और रेलवे को नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की पीठ ने कहा कि यह एक मानवीय मुद्दा है और कोई समाधान निकालने की आवश्यकता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि पुनर्वास के लिए क्या 7 दिन का समय देना उचित है। जो लोग सालों से वहां रह रहे हैं उनके लिए क्यों पुनर्वास योजना नहीं है? सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी। तब तक अतिक्रमणकारियों में बुलडोजर का डर नहीं रहेगा। लेकिन सवाल यह है कि आगे क्या होगा? क्या सरकार महज एक माह में अतिक्रमणकारियों के लिए पुनर्वास की स्थाई या अस्थाई व्यवस्था करेगी?
हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का मुद्दा बरसों से चला आ रहा है। इससे प्रभावित क्षेत्र बनभूलपुरा, इंदिरा नगर हैं जहां रेलवे, रेल पटरी से लगे लगभग ढाई किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा करता है, वह बात अलग है। रेलवे को अपनी इस जमीन की याद तब आई जब उस पर अतिक्रमण होकर उस भूमि में हजारों आलीशान भवन खड़े हो गए। खास बात यह है कि 2007 में गफूर बस्ती से हटाए गए अवैध अतिक्रमण वाली भूमि को रेलवे संरक्षित नहीं कर पाया और आज उस गफूर बस्ती में फिर से अतिक्रमणकारी बस गए हैं। इस भूमि से अतिक्रमण हटाने की पहल भी रेलवे द्वारा स्वयं नहीं की गई। आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी की उत्तराखण्ड हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका के परिपेक्ष्य में उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए हैं जिसको हटाने के लिए रेलवे ने नैनीताल जिला प्रशासन के साथ मिलकर तैयारियां शुरू कर दी हैं।
बनभूलपुरा में पिछले सत्तर सालों से रह रहे लोगों के रेलवे के दावों के इतर अपने दावे हैं। हालांकि उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्णय पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है लेकिन अधिकांश लोगों का कहना है कि रेलवे ने अपनी भूमिका सही तरह से नहीं निभाई पीपी एक्ट के तहत जारी नोटिसों में उनकी सुनवाई गंभीरतापूर्वक नहीं की गई। जो पट्टे आवंटित किए गये थे, जो भूमि फ्री होल्ड थी और जो जमीन उत्तराखण्ड सरकार की थी उस पर भी रेलवे ने अपना दावा किया है। हालांकि राज्य सरकार ने यहां पर अपनी भूमि न होने की बात कही है लेकिन सवाल है कि राज्य सरकार द्वारा यहां सरकारी विद्यालयों, अस्पतालों को रेलवे की भूमि पर कैसे स्थापित कर दिया गया। क्या राज्य सरकार ने रेलवे से इस संबंध में अनापत्ति ली थी? राजकीय बालिका इंटर कॉलेज बनभूलपुरा जहां 1087 छात्राएं, राजकीय इंटर कॉलेज बनभूलपुरा जहां 410 छात्र, राजकीय प्राथमिक विद्यालय इंद्रानगर जहां 467 छात्र, राजकीय प्राथमिक विद्यालय बनभूलपुरा जहां 271 छात्र और राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय बनभूलपुरा जहां 72 छात्र पढ़ते हैं ये राज्य सरकार की ही संपत्तियां हैं तो क्या ये सभी अवस्थापनाएं राज्य सरकार ने रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण करके स्थापित की थी? इस इलाके में 1970 में सीवर लाइन की नींव भी पड़ी थी। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनभूलपुरा का भी अपना भवन है। स्थानीय निवासी और बनभूलपुरा संघर्ष समिति के अध्यक्ष उवैस राजा का कहना है कि उच्च न्यायालय के निर्णय का सब सम्मान करते हैं लेकिन रेलवे अपना दावा उस जमीन पर जता रहा है जो उसकी है ही नहीं। यहां पर दो व्यक्तियों की जमीन फ्री होल्ड हो चुकी हैं कई लोगों को सरकार ने पट्टे आवंटित किए हैं तथा सैकड़ों आवेदन फ्री होल्ड के नगर निगम में लंबित हैं। साथ ही सरकार ने पानी, बिजली, सीवर की सुविधाएं दी हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को मिलता है। यहां के निवासी वर्षों से भवन कर सहित कई कर नगर निगम को देते हैं। राज्य सरकार को इस संबंध में आगे आकर बिना भेदभाव के यहां के लोगों की पैरवी करनी चाहिए। हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश का कहना है उन्हें न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है और उम्मीद है बनभूरपुरा वासियों को न्याय मिलेगा। हमने उच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना पक्ष-विपक्ष में निर्णय आने वाली परिस्थितियों के अनुरूप अपनी तैयारी की थी उसी के तहत मैंने व्यक्तिगत रूचि लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद के माध्यम से याचिका दाखिल की थी।
प्रशासन की अतिक्रमण हटाने की तैयारी के बीच स्थानीय लोगों का विरोध दिखने लगा है। स्थानीय लोग मौन जुलूस, कैंडिल मार्च जैसे आयोजनों से अपना विरोध जता रहे हैं। वहीं इसमें राजनीतिक दलों एवं नेताओं के कूदने से सरगर्मियां बढ़ गई हैं। स्थानीय लोग अपने स्तर से मुख्यमंत्री एवं अन्य नेताओं से मिलकर सरकार से हस्तक्षेप का आग्रह कर रहे हैं। कांग्रेस और उसके नेता पूरी शिद्दत के साथ इस प्रकरण पर पीड़ित पक्ष के साथ खड़े दिखाई देते हैं। हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश जहां सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए जुटे रहे तो वहीं प्रदेश स्तर पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, राष्ट्रीय सचिव काजी निजामुद्दीन, पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह इस मामले में सक्रिय हैं। हरीश रावत का कहना है कि यह मानवीय समस्या है और उनका राज्य सरकार से निवेदन है कि इसे केवल कानूनी या राजनीतिक समस्या के रूप में न देखा जाए। हमने मलिन बस्ती नियमितीकरण कानून बनाया था सरकार उस पर अमल कर पीड़ितों को बचा सकती है। छत टूटेगी तो लोग कहां जाएंगें लोगों का पुनर्वास तो होना ही चाहिए। हरीश रावत चार जनवरी को इस संबंध में उपवास पर बैठे। प्रीतम सिंह ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर सरकार से मलिन बस्तियों के तर्ज पर अध्यादेश लाने की मांग की। उन्होंने भी सरकार से इसे सिर्फ प्रशासनिक नजरिया न अपना कर मानवीय समस्या के रूप में हल करने की मांग की।
समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी का कहना है कि सरकार इस मामले में पहल करे। बनभूलपुरा में पचास हजार से अधिक लोगों पर छत छिनने का खतरा मंडरा रहा है। सरकार को इस समय मानवीय संवेदनाओं की भी कद्र करनी चाहिए। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने अपने बयान में सरकार से इस मामले में पहल करने की अपील की है। इन सब घटनाओं के बीच जिला प्रशासन एवं पुलिस उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में अपनी तैयारियों में जुटा है। रेलवे पटरी के किनारे तारबाड़ के साथ सार्वजनिक मुनादी कराई जा रही है और लोगों को नोटिस भी जारी कर दिए गए हैं। इस अभियान को संचालित करने में पैंतीस करोड़ रुपए खर्च का अनुमान है जिसे रेलवे विभाग वहन करेगा। शासन-प्रशासन को इस चुनौती से निपटने की कवायद से जूझना उसके राजनीति कौशल को दिखाएगा। इसमें राज्य सरकार की भूमिका क्या होगी यह देखना होगा। आने वाले दिन बनभूलपुरा वासियों के लिए चिंता और चुनौतियों के हैं क्योंकि हर कोई अपने आशियाने को महफूज चाहता है। बैंकों से लोन लेकर बनाए गए घर, व्यवसाय पर आए संकट ने उनके सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बनभूलपुरा पर अतिक्रमण को साम्प्रदायिक नजरिये से देखना शायद इस समस्या को छोटा करके देखना होगा। भले ही वनभूलपुरा मुस्लिम बाहुल्य इलाका हो लेकिन रेलवे के अतिक्रमण के दावों में मस्जिद के साथ मंदिर भी आ रहे हैं और स्थानीय हिंदू निवासी भी। इतना जरूर है कि आने वाले समय में कई अतिक्रमण विरोधी अभियानों की जद में बिन्दुखत्ता, दमवादूंगा सहित कई क्षेत्र आ सकते हैं जो कि सरकारी भूमि में ही बसे है वहां के बाशिंदे भी लंबे समय से इन क्षेत्रों को नियमित करने की लंबे समय से मांग कर रहे हैं।
बात अपनी-अपनी
सर्वोच्च न्यायाल सर्वोपरि होता है और आज उसने मानवीयता का पक्ष लेते हुए अपना संतुलित निर्णय सुनाया। हमें उम्मीद है कि आगे भी यह फैसला पीड़ितों के पक्ष में आएगा।
सुमित हृदयेश, विधायक, हल्द्वानी
भाजपा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करती है। हमारी सरकार का रुख पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि जो भी न्यायालय का आदेश होगा उसका पालन किया जाएगा। सरकार न्यायालय में विस्तृत रिपोर्ट रखेगी।
हेमंत द्विवेदी, प्रवक्ता, प्रदेश भाजपा
सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद। उसने गरीबों-मजलूमों की आवाज को सुना। फिलहाल जो हमें अभी एक महीने की राहत मिली है वह स्थाई नहीं है। इस दौरान हमें अपनी बात रखने का मौका मिला है। रेलवे जिस जमीन को अपनी बता रहा है उसका सच अभी हमें कोर्ट के समक्ष रखना बाकी है।
उवेश राजा, अध्यक्ष, बनभूलपुरा संघर्ष समिति