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उत्तराखण्ड में सत्तारूढ़ भाजपा के समक्ष सबसे बड़ा लक्ष्य राज्य में दोबारा सत्ता पाने का है। इस लक्ष्य की राह में सबसे बड़ा संकट ‘डबल इंजन की सरकार’ से जनता की भारी नाराजगी है। इस एन्टी इन्कमबेन्सी की तोड़ तलाश रही भाजपा बड़े स्तर पर सीटिंग विधायकों के टिकट काटने जा रही है। पार्टी आलाकमान के इस इरादे की भनक ने प्रदेश भाजपा के भीतर भारी खलबली मचाने का काम शुरू कर दिया है। सीटिंग विधायकों से लेकर पार्टी टिकट के अन्य दावेदारों ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, मुंबई राजभवन और दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय की परिक्रमा शुरू कर दी है

उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद से ही यहां प्रत्येक पांच बरस में कांग्रेस और भाजपा के मध्य सत्ता की अदला-बदली होती रही है। पहली निर्वाचित सरकार वर्ष 2002 में कांग्रेस की बनी थी। 2007 में जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर भाजपा की सरकार बनाई। 2012 में एक बार फिर से कांग्रेस को सत्ता में आने का जनादेश मिला तो 2017 में फिर से भाजपा की राज्य में सरकार बनी। अब इस अदला- बदली के ट्रेड  की भाजपा आलाकमान रोकथाम कर दोबारा प्रदेश में ‘डबल इंजन’ की सरकार बनाने की पुरजोर कोशिश करता नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा लगातार राज्य का दौरा कर भाजपा के पक्ष में माहौल तैयार करने में जुट चुके हैं। संकट लेकिन यह कि जनता का मन रिझाने की कवायद परवान चढ़ती नजर नहीं आ रही है। ‘एन्टी इन्कमबेन्सी’ फैक्टर को कम करने का पहला दांव पार्टी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटा कर चला जरूर लेकिन वह तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी के चलते बेकार चला गया। मात्र 114 दिन बाद ही पार्टी ने तीरथ रावत को भी पैदल कर एक युवा चेहरे पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया लेकिन अपनी तमाम सक्रियता और त्रिवेंद्र रावत सरकार के विवादास्पद फैसलों को वापस लेने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी जनता की नाराजगी को दूर करने में खास सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं।

धामी के सामने सबसे बड़ी समस्या समय की कमी का होना है। उन्हें मात्र 6 माह का समय सरकार चलाने के लिए मिला है। इतने कम समय में साढ़े चार साल की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार से जनता की नाराजगी को समाप्त कर पाना लगभग असंभव कार्य है। हालांकि देवस्थानम् बोर्ड को भंग करने से लेकर सभी 13 जनपदों के लिए करोड़ों की कई विकास योजनाओं की घोषणा करने तक, अनेक लोक लुभावन फैसले धामी सरकार ले चुकी है, इस सबके बावजूद अभी तक माहौल भाजपा के पक्ष में बनता नजर नहीं आ रहा है। इस सबके बीच पार्टी द्वारा कराई गई एक आंतरिक सर्वे ने पार्टी नेताओं की नींद उड़ा डाली है। ‘इस बार 60 के पार’ का नारा बुलंद करने वाली भाजपा की इस आंतरिक सर्वे में ऐसी 30 सीटों को चिन्हित किया गया है जिनमें पार्टी की स्थिति खासी कमजोर है। इन 30 सीटों में से वर्तमान में 20 सीटों पर भाजपा का कब्जा है जबकि 10 सीटें कांग्रेस के पास हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस सर्वे के बाद पार्टी आलाकमान ने ऐसे सभी सीटिंग विधायकों का टिकट काट नए चेहरों को पार्टी प्रत्याशी बनाने की कवायद शुरू कर दी है।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो पार्टी कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की दिनों दिन बढ़ रही एग्रेसिव चुनावी रणनीति के चलते भी भाजपा डिफेंसिव मोड में है। पिछले दिनों भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए यशपाल आर्या और उनके पुत्र संजीव आर्या पर हुए प्राणघातक हमले को दलित राजनीति के साथ जोड़ हरीश रावत ने सत्तारूढ़ दल को बैकफुट पर लाने का काम कर दिया है। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की केदारनाथ यात्रा के दौरान स्थानीय विधायक मनोज रावत संग बदसलूकी के मामले को भी रावत ने बड़ा चुनावी मुद्दा बना डाला। गैरसैंण को प्रदेश की स्थायी राजधानी बनाने, एक मजबूत भूमि अधिग्रहण कानून बनाने और राज्य की नदियों पर बड़े पैमाने पर हो रहे अवैध खनन को लेकर धामी सरकार के खिलाफ हरीश रावत ने जबर्दस्त किलेबंदी कर डाली है। रावत की काट के लिए प्रदेश भाजपा के पास कोई दमदार चेहरा न होना भी एक बड़ी समस्या है। यही कारण है कि पार्टी एक बार फिर से ‘मोदी मैजिक’ के सहारे इस चुनावी समर को जीतने की रणनीति बना रही है। प्रधानमंत्री मोदी की एक बड़ी रैली गत् चार दिसंबर को देहरादून में हो चुकी है। अब कुमाऊं क्षेत्र में 24 दिसंबर को पीएम की बड़ी जनसभा होने जा रही है। पार्टी सूत्रों की मानंे तो कुमाऊं में सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों वाले ऊधमसिंह नगर जिले में यह जनसभा हो सकती है। हालांकि चर्चा इस रैली को हल्द्वानी में कराए जाने की भी हो रही है। गौरतलब है कि अकेले ऊधमसिंह नगर में नौ विधानसभा सीटें हैं। यहां पर किसान आंदोलन और दिग्गज दलित नेता यशपाल आर्या के पार्टी छोड़ने के चलते भाजपा कमजोर हुई है। पार्टी नेताओं का मानना है कि प्रधानमंत्री की रैली बाद यहां भाजपा के पक्ष में माहौल बन सकता है। इस सबके बीच अन्य वरिष्ठ नेताओं का भी प्रदेश में आवागमन बढ़ा है।


भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कुछ अर्सा पहले ही दो दिवसीय दौरे पर उत्तराखण्ड आ चुके हैं। उन्होंने यहां ‘शहीद सम्मान यात्रा’ निकाली थी। साथ ही तराई इलाके में बहुतायत बंगाली समाज के साथ भी संवाद किया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इस दौरान दो दफे राज्य का दौरा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री समेत इन बड़े नेताओं की बढ़ती आवाजाही से स्पष्ट नजर आ रहा है कि भाजपा ‘एन्टी इन्कमबेन्सी’ फैक्टर के चलते भारी दबाव में हैं। पांच बरस में तीन-तीन मुख्यमंत्री देने के बावजूद जनता की नाराजगी को कम न होता देख अब बड़े पैमाने पर
सीटिंग विधायकों का टिकट काट क्या भाजपा राज्य में सत्ता वापसी कर पाएगी, यह भविष्य के गर्भ में छिपा ऐसा उत्तर है जिसने हाल फिलहाल तो प्रदेश भाजपा नेतृत्व से लेकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व तक को हलकान किया हुआ है।

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