[gtranslate]
Uttarakhand

प्रयोग उत्कृष्ट, नतीजा निराशाजनक

उत्तराखण्ड में सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के परिणाम प्रदेश के सरकारी स्कूलों के लिए अच्छी खबर लेकर नहीं आए। सरकार ने नया प्रयोग करते हुए राज्य के 155 अटल उत्कृष्ट विद्यालयों में सीबीएसई पैटर्न लागू किया था, लेकिन यह पैटर्न उल्टा पड़ गया। जब नतीजे आए तो अटल उत्कृष्ट विद्यालयों का रिजल्ट फिसड्डी रहा। सरकार ने करोड़ों खर्च कर सीबीएसई पैटर्न के जिन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों से गुणवत्तायुक्त शिक्षा का सपना दिखाया, हकीकत में उनका परिणाम निराशाजनक रहा। क्या वजह थी कि होमवर्क किए बिना ही अटल उत्कृष्ट विद्यालय शुरू कराए गए। क्या सरकार का मकसद अध्यापकों को सिर्फ दुर्गम से सुगम में ही लाने का था जिसके लिए स्थानांतरण नीति तक में बदलाव किया गया। सवाल यह भी है कि जब अध्यापक और छात्र अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई करने-कराने में सक्षम नहीं थे तो उन पर यह भाषा क्यों थोपी गई?

 

उत्तराखण्ड का विद्यालयी शिक्षा विभाग अपने विभाग को तो दुरस्त नहीं कर पाया है लेकिन इसके सुधार के नाम पर हर बार नया प्रयोग करता रहा है। यह बात और है कि ऐसे प्रयोग हमेशा से ही सवालों के घेरे में रहे हैं जिसका खामियाजा स्कूली शिक्षा को ही भुगतना पड़ता रहा है। कुछ ऐसा ही नया प्रयोग राज्य के विद्यालयी शिक्षा विभाग द्वारा अटल उत्कृष्ट विद्यालय के नाम पर किया गया जो कि अपनी पहली ही परीक्षा में बुरी तरह से असफल रहा। साथ ही शिक्षा विभाग के उन अधिकारियों और शिक्षकों पर भी इस नए प्रयोग को सफल न करने पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

वर्ष 2021-22 में सरकार ने निरंतर कम हो रही छात्र संख्या को देखते हुए उत्तराखण्ड बोर्ड से संचालित होने वाले सरकारी स्कूलों को सीबीएसई बोर्ड से चलाने का निर्णय लिया। इसके तहत प्रथम चरण के लिए राज्य के 155 सरकारी स्कूलों को अटल उत्कृष्ट स्कूल बनाया गया। साथ ही इनको उत्तराखण्ड बोर्ड की जगह सीबीएसई बोर्ड से अधिकृत कर इस बोर्ड से मान्यता भी दे दी गई। एक बारगी उस समय यह प्रतीत हो रहा था कि इस नए प्रयोग से बदहाल होती जा रही स्कूली शिक्षा को नई ऊर्जा और नया संचार मिलेगा। जिससे सरकारी स्कूलों की स्थिति में बड़ा सुधार होगा। पंरतु ऐसा कुछ नहीं हुआ। इन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के छात्रों द्वारा पहली बार सीबीएसई बोर्ड से दसवीं और बरहवीं की परीक्षा दी जिसमें दसवी की परीक्षा का परिणाम 60.49 प्रतिशत का ही रहा तो बारहवीं का परिणाम महज 51.49 तक सिमट गया। इससे यह साफ है कि सरकार और शिक्षा विभाग अपने पहले ही प्रयोग में बुरी तरह से फेल होते नजर आ रहे हैं।

यही नहीं इन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के 98 ऐसे विद्यालय है जिनका परीक्षा परिणाम 50 प्रतिशत से भी कम रहा है। इनमें 12 वीं के 59 ऐसे स्कूल हैं जिसमें 50 प्रतिशत या इससे भी कम छात्र पास हुए हैं। दसवीं के 39 ऐसे स्कूल हैं जिनमें 50 प्रतिशत ही छात्र पास हो पाए हैं। सभी छात्रों के पास होने के आंकड़े को देखें तो 12वीं के कुल 12753 छात्रों ने परीक्षा दी जिसमें 6481 ही छात्र पास हो पाए हैं। दसवी में भी कुछ ऐसा ही परिणाम रहा हे। दसवीं में कुल 8625 छात्र परीक्षा में बैठे जिसमें 5142 ही छात्र पास होने में सफल हो पाए। जानकारी तो यह भी सामने आ रही है कि इन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के 35 प्रतिशत छात्र एक ही विषय में फेल हुए हैं। खराब परिणाम देने वाले स्कूलों की समीक्षा में यह जानकारी निकल कर आई है कि 35 प्रतिशत छात्र किसी न किसी एक विषय में ही फेल हुए हैं। जबकि इसके विपरीत जवाहर नवोदय विद्यालयों का परीक्षा पास होने का परिणाम दसवीं में 99.40 तो 12वीं में 98.96 प्रतिशत रहा। केंद्रीय विद्यालयों में भी परीक्षा परिणाम दसवीं में 98.94 रहा तो 12 वीं में 96.24 प्रतिशत रहा।

अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के खराब परिणाम आने के बाद शिक्षा विभाग में खासी हलचल पैदा हो चुकी है। शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं। विभाग इसके लिए कार्यवाही करने की बात करने लगा है। जानकारी के अनुसार अब विभाग खराब परिक्षा परिणाम देने वाले अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के शिक्षकां को अनिवार्य तबादलों में दी गई छूट वापस लेने और उनका स्थानांतरण करने की कार्यवाही करने का मन बना रहा है। जानकारी के अनुसार विद्यालयी शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने जिन-जिन अटल उत्कृष्ट विद्यालयों का खराब रिजल्ट रहा है उनकी जांच करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। इस जांच में अगर संबंधित शिक्षकों की कार्यशैली में कमी पाई जाएगी। तो उनके खिलाफ प्रशासनिक आधार पर कार्यवाही की जाएगी। जिसमें उनका स्थानांतरण भी किया जा सकता है।

अटल उत्कृष्ट विद्यालयों की बात करें तो 2021 में सरकार ने राज्य के 155 स्कूलों को ऐसे प्रयोग के तहत चयन किया। इसमें तैनाती पाने वाले स्कूलों में शिक्षकों के पदों को भरने के लिए पूरी तैयारी की गई। यहां तक कि इनमें चयनित किए गए शिक्षकां को अनिवार्य तबादलों से पांच वर्ष तक के लिए छूट तक दी गई। यानी इन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को पांच वर्ष तक स्थानांतरण नहीं किया जाएगा। यही नहीं इन शिक्षकों के लिए तबादला नीति में भी संशोधन किया गया। जिसमें दुर्गम से स्थानांतरण करके लाए गए शिक्षकों को सुगम में एक वर्ष की सेवा को दुर्गम में मानने का नियम बनाया गया। इसके तहत अनेक शिक्षकों को दुर्गम से सुगम में लाया गया।

इन स्कूलों का रिजल्ट बुरी तरह से खराब होने के कई कारण सामने आ रहे हैं। जिसमें सबसे बड़ा कारण सरकार द्वारा होमवर्क किए बगैर ही अटल उत्कृष्ट विद्यालय बना दिए गए। इसमें ज्यादातर शिक्षकों के बारे में यह कहा जा रहा है कि ये अपने स्थानांतरण से बचने के लिए इन स्कूलों में आए लेकिन अंग्रेजी माध्यम से पठन-पाठन करने में कमजोर थे जिसका असर परीक्षा परिणाम के स्तर में गिरावट सामने आई है।

व्यवस्था की बात करें तो आज एक वर्ष के बाद भी इन स्कूलों में पर्याप्त स्टाफ और शिक्षक नहीं रखे जा सके। कई स्कूलों में जिस विषय को जो शिक्षक पढ़ा रहा है वह उस विषय का विशेषज्ञ ही नहीं है यानी उससे उसके विषय के अलावा अन्य विषय पढ़ाया जा रहा है। हालांकि यह भी सामने आया है कि इन स्कूलों में चयन किए गए शिक्षकों की स्क्रीनिंग परीक्षा भी आयोजित की गई थी। जिसमें पास होकर ही इन शिक्षकों को अटल उत्कृष्ट विद्यालय में तैनाती दी गई। शिक्षा विभाग के सूत्रां की मानें तो ज्यादातर शिक्षकों को बगैर स्क्रीनिंग परीक्षा के ही तैनाती दी गई है। इसके लिए कई शिक्षकों ने राजनीतिक दबाव भी बनाया। जिसके चलते कई शिक्षकां को नियमां की अनदेखी कर तैनाती दी गई। जानकारों की मानें तो सीबीएसई पैटर्न को न तो शिक्षक ही समझ पाए तो छात्र कैसे समझ पाते। वर्षों से जो शिक्षक हिंदी माध्यम से पढ़ा रहे थे वह अचानक से अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने लगे तो न तो वे छात्रों का सही ढंग से पढ़ा पाए और न ही छात्र अंग्रेजी माध्यम को समझ पाए।
इन स्कूलों में तैनाती पाने वाले ज्यादातर शिक्षक दुर्गम से सुगम में आने के लिए इतने लालायित थे कि उन्होंने अपनी क्षमता को भी नहीं देखा और इन स्कूलों में तैनाती पाने के लिए तैयार हो गए। जबकि वे वर्षों से हिंदी माध्यम से ही पढ़ा रहे थे। इस कारण से छात्र भी नए पटर्न से अंग्रेजी, विज्ञान, गणित और अन्य विषयों को भी न तो समझ पाए और न हीं इनके बेसिक कोर्स के विषय-वस्तु को जान पाए। शिक्षकों को इन नए सीबीएसई पैटर्न के नए अपग्रेड को समझने के लिए एक वर्ष का समय मिलना चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिल पाया और सीधे उनको इस पैटर्न में पढ़ाने के लिए उतार दिया गया।

बहरहाल अब शिक्षा विभाग अपने नए प्रयोग के बुरी तरह से फेल होने के बाद जागता नजर आ रहा है। अब इसके लिए जांच और समीक्षाएं की जा रही हैं, साथ ही जिन छात्रों की कंपार्टमेंट आई है उन छात्रों को गर्मियों के अवकाश में पढ़ाई करवा कर परीक्षा की तेयारियां करवाई जाएगी। इससे अनुमान है कि 85 प्रतिशत रिजल्ट हो जाएगा। लेकिन राज्य के शिक्षा विभाग के इस नए प्रयोग से हजारों छात्रों का एक वर्ष खराब हो चुका है इसका जिम्मेदार कौन है, इस पर सभी मौन है। गौरतलब है कि पूर्व में ही इस मामले को लेकर ‘दि संडे पोस्ट’ ने 09 जुलाई 2022 के अंक 03 में ‘अंग्रेजी अक्षर भैंस बराबर’ शीर्ष से एक खबर प्रकाशित की थी। खबर के अनुसार सात साल पहले प्रदेश में जब त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार थी तब शिक्षा विभाग ने एक तुगलकी फरमान जारी किया गया था। इस फरमान में कक्षा 6 से विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने का आदेश हुआ। यह आदेश तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के लिए तो सिरदर्द रहा ही वर्तमान धामी सरकार के लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ है। सरकारी स्कूलों के जिन बच्चों को अंग्रेजी की वर्णमाला तक सही ढंग से नहीं आती हो उनके लिए एक ऐसा नियम बना दिया गया है जो उनके लिए ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ साबित हो रहा है। यह है कक्षा 6 से विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने का फरमान। इस फरमान के आगे कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं है। अगर किसी ने इस मामले का विरोध करता है तो कहा जाता है कि सरकार नई नीति के तहत विद्यालयों का कायाकल्प करने में जुटी है और छात्रों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ रही है लेकिन रूढ़ीवादी लोग इसका विरोध कर रहे हैं।

इसी के साथ सरकारी स्कूलों में अध्यापन कार्य करा रहे शिक्षकों के लिए भी सरकार का यह आदेश असमंजस में डालने वाला था। क्योंकि शिक्षक भी इस नीति का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं। अब तक हिंदी माध्यम की पढ़ाई कराते आए शिक्षकों को अंग्रेजी में पढ़ाना नहीं आता। जबकि हिंदी मीडियम में पढ़ते रहे बच्चे अंग्रेजी पढ़ने में अपने आप को काबिल नहीं पा रहे थे। हालांकि समाचार प्रकाशित होने के बाद विद्यालयी शिक्षा परिषद के महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने अंग्रेजी में ही पढ़ाने के नियम में छूट देते हुए हिंदी को भी माध्यम बनाए रखने के आदेश दे दिए थे। लेकिन बताया जाता है कि तब तक यह शिक्षा सत्र का काफी समय बीत चुका था। इसके अलावा विद्यालयी शिक्षा के बिगड़ते ढांचे पर ‘दि संडे पोस्ट’ ने विगत वर्ष 2022 में अपने अंक 48 में ‘रसातल में उत्तराखण्ड की स्कूली शिक्षा’ शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित किया था जिसमें राज्य की लगभग समाप्ति की ओर जाती स्कूली शिक्षा पर सभी प्रमाणिक तथ्यों के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी कि किस तरह से राज्य में एक ओर लगातार स्कूलों को बंद किया जा रहा है तो वहीं सैकड़ों स्कूलों में शिक्षकों के पद रिक्त हैं। साथ ही स्कूलों की अवस्थापना और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी राज्य के हजारों सरकारी स्कूलों में लगातार बनी हुई है। इसके चलते इन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के पठन-पाठन में बड़ा व्यावधान आ रहा है।

करोड़ों का स्कूली शिक्षा का बजट होने के बावजूद राज्य की स्कूली शिक्षा निरंतर बदहाल ही होती जा रही है। प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का एक वर्ष का सालान बजट 3026 करोड़ 70 लाख है जबकि माध्यमिक शिक्षा के लिए 4958 करोड़ 77 लाख का कुल सालाना बजट है। इस प्रकार से राज्य की स्कूली शिक्षा का कुल बजट 7 हजार 985 करोड़ है जो कि राज्य के 58 हजार करोड़ का 7 प्रतिशत से भी ज्यादा है।

 

बात अपनी-अपनी
पहली बार प्रदेश मे सरकारी स्कूलों मे अंग्रजी माध्यम से पढ़ाई हुई है, इसलिए रिजल्ट बेहतर नहीं रहा। अब सरकार अटल उत्कृष्ट स्कूलों के लिए बहुत बेहतर कार्य करने पर फोकस कर रही है। इसके लिए सभी शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति की जाएगी और अंग्रेजी माध्यम के शिक्षक रखे जाएंगे। इनको विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा।
धन सिंह रावत, शिक्षा मंत्री

अचानक ही रातों-रात इस तरह से एक शिक्षक को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने का आदेश जारी कर दिया जाता है जो कि वर्षों से हिंदी माध्यम से पढ़ा रहा था। साथ ही वह स्वयं हिंदी माध्यम से ही पढ़ता रहा है। उसे एक आदेश पर अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने का हुक्म देना ही खराब रिजल्ट के तौर पर सामने आया है।
मुकेश बहुगुणा, पदाधिकारी शिक्षक संघ, उत्तराखण्ड

सरकार इस अचानक से हिंदी माध्यम शिक्षा को अंग्रेजी माध्यम बना देना कहीं से भी तर्क संगत नहीं है, न तो सरकार शिक्षकों को इसके लिए तैयार कर रही है और न ही विद्यार्थियों को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार कर पाई है। पूरी शिक्षा व्यवस्था को ही अपग्रेड करने की जरूरत है।
रघु तिवारी, समन्वयक, शिक्षा का अधिकार फोरम उत्तराखण्ड

You may also like

MERA DDDD DDD DD