उत्तराखण्ड के कैबिनेट मंत्री और बागेश्वर के चार बार विधायक रहे चंदनराम दास के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन रहा है। कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस में उल्लास है तो वहीं भाजपा को जीत की आस है। ऐसे में कांग्रेस भी इस उपचुनाव को मजबूती के साथ लड़ने की तैयारी कर रही है। लेकिन भाजपा के सामने फिलहाल संकट यह है कि दास परिवार में टिकट किसको दिया जाए। उनके परिवार के कई सदस्य टिकट पाने की उम्मीद में हैं
बागेश्वर की आरक्षित विधानसभा सीट से लगातार चार बार विधायक बन पुष्कर सिंह धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री का ओहदा प्राप्त चंदनराम दास का गत 23 अ्रपैल को निधन हो गया। उनके निधन के बाद खाली हुई इस विधानसभा सीट पर चुनाव कराना भाजपा के लिए फिलहाल चुनौती बना हुआ है। चुनौती इसलिए कि इस सीट पर कांग्रेस कब्जा करने के लिए अभी से जी-तोड़ मेहनत कर रही है जबकि अभी तक न तो चुनावी तारीख का ऐलान हुआ है और न ही चुनाव आयोग के कोई दिशा -निर्देश मिले हैं। हालांकि प्रशासन संभवतः जून-जुलाई में चुनाव होना मानकर अभी से तैयारियों में जुटा है। नियमों के तहत जिस दिन से यह सीट रिक्त हुई है तब से लेकर छह माह तक चुनाव होना जरूरी होता है। राजनीतिक सूत्रों की मानें तो इस सीट पर उपचुनाव को लेकर भाजपा पहले गंभीर नहीं थी। अभी पार्टी इस चुनाव को कई माह आगे टालने के मूड में थी। लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम आते ही भाजपा बागेश्वर उपचुनाव के प्रति अलर्ट हो गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अब जल्द ही इस विधानसभा के चुनाव कराने के पक्ष में है। देहरादून में इस बाबत मुख्यमंत्री प्रशासनिक अधिकारियों संग बैठक भी कर चुके हैं। साथ ही उन्होंने बागेश्वर के पार्टी पदाधिकारियों से चुनावी समीकरण के बारे में भी बात की है। प्रदेश के मुखिया बागेश्वर उपचुनाव कराने से पहले स्वर्गीय चंदनराम दास के परिवार के सदस्यों का फीडबैक ले रहे हैं जिसमें यह देखा जा रहा है कि दास परिवार में कौन-सा सदस्य चुनाव लड़ने में उपयुक्त होगा।
भाजपा फिलहाल इस सीट को अपने पाले में मानकर चल रही है। इसके पीछे इमोशनल कार्ड भी एक कारण माना जा रहा है। प्रदेश का राजनीतिक इतिहास देखें तो अब से पहले विधायक या मंत्री रहते जिस भी राजनेता की मौत हुई है उसके बाद हुए उपचुनाव में उनके परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट दिया जाता रहा है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि राजनेता की मौत के बाद अधिकतर उनके परिवार के सदस्य चुनाव लड़ते हैं तो वे सहानुभूति लहर के बलबूते चुनाव जीत जाते हैं। भाजपा बागेश्वर उपचुनाव को लेकर इतना ओवर कॉन्फिडेंस में दिख रही है कि पार्टी के मुखिया ने तो इस सीट को लेकर यहां तक कह डाला है कि यहां वह निर्विरोध चुनाव जीत जाएंगे। हालांकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का बागेश्वर उपचुनाव को निर्विरोध जिताने का दावा लोगों के गले नहीं उतर रहा है।
बागेश्वर के पत्रकार शंकर पाण्डेय की मानें तो भाजपा बेशक यहां से सहानुभूति लहर की बदौलत जीत सकती है लेकिन उनका निर्विरोध चुनाव जीतने का दावा कमजोर सिद्ध होगा। साथ ही शंकर पाण्डेय भाजपा के लिए चुनाव से पहले स्वर्गीय दास के परिवार से प्रत्याशी के चयन को भी इतना आसान नहीं मान रहे हैं। दास की सीट खाली होने के बाद उनके परिवार में उनकी पत्नी के बाद उनके दो पुत्रों और दामाद में भी चुनाव लड़ने की प्रबल इच्छा है जिसमें से चारों लोगों में से एक को चुनावी मैदान के लिए फाइनल किया जाना अहम है।
हालांकि अगर पिछले चुनाव को ही देखें तो 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पिथौरागढ़ से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ प्रकाश पंत की 5 जून 2019 को मौत हो जाने के बाद उनकी पत्नी चंद्रा पंत को पार्टी ने टिकट दिया था। चंद्रा पंत ही बाद में उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं। हालांकि उस दौरान प्रकाश पंत की मौत के बाद विधानसभा चुनाव लड़ने के प्रबल दावेदार उनके भाई थे। वह राजनीति में सक्रिय भी रहते थे। लेकिन भाजपा ने स्वर्गीय प्रकाश पंत के भाई को टिकट देने की बजाय उनकी पत्नी चंद्रा पंत को प्रत्याशी बनाया था। जबकि प्रकाश पंत के भाई के मुकाबले उनकी पत्नी राजनीति के मामले में बहुत कम दिलचस्पी रखती थी। इसी तरह 2017 के चुनाव में सल्ट के विधायक सुरेंद्र सिंह जीना बने थे। लेकिन 12 नवंबर 2020 में कोरोना महामारी में सुरेंद्र सिंह जीना की मौत हो गई थी। जबकि इससे पहले 28 अक्टूबर 2020 को सुरेंद्र सिंह जीना की पत्नी धर्मा देवी का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद भाजपा ने सल्ट उपचुनाव में सुरेंद्र सिंह जीना के भाई महेश जीना को टिकट दिया था। सल्ट और पिथौरागढ़ में हुए दोनों उपचुनाव भाजपा ने जीत लिए थे। इस बार भी बागेश्वर उपचुनाव में भाजपा के जीतने की संभावनाएं ज्यादा बताई जा रही हैं।
स्वर्गीय चंदनराम दास के परिवार में उनकी पत्नी पार्वती दास को पार्टी द्वारा टिकट दिए जाने की ज्यादा संभावनाएं हैं। इसके अलावा उनके ज्येष्ठ पुत्र गौरव दास का नाम भी चर्चाओं में है। गौरव दास पूर्व में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे हैं। बताया जाता है कि स्वर्गीय चंदनराम दास की अनुपस्थिति में गौरव ही उनके राजनीतिक कार्यों को पूरा करते थे। जब वह अस्वस्थ हुए थे तो गौरव दास ही सबसे ज्यादा जनता के बीच जाते दिखाई देते थे। यही नहीं बल्कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भी चंदनराम दास की अस्वस्थता के दौरान ही चुनावी भागदौड़ में सक्रिय रहते थे। चंदनराम दास के ज्येष्ठ पुत्र गौरव दास के साथ ही उनके छोटे पुत्र भास्कर दास को भी टिकट मिलने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि स्वर्गीय दास ने गौरव और भास्कर को इस तरह काम सौंपा था जिसमें गौरव को बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में जनता के बीच रहना होता था तो भास्कर को अस्थाई राजधानी देहरादून में शासनात्मक कार्य किए जाने की जिम्मेदारी दी गई थी। बताया यह भी जा रहा है कि स्वर्गीय दास के दोनों पुत्र अपनी-अपनी जिम्मेदारी को बखूबी वहन कर रहे थे। ऐसे में अगर दास परिवार में पार्वती देवी टिकट के लिए सहमत नहीं होती हैं तो उनके दोनों पुत्रों में से एक को उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
भाजपा के सूत्रों की मानें तो इस चुनाव में स्वर्गीय दास की पत्नी पार्वती देवी को टिकट आवंटन में प्राथमिकता दी जाएगी। फिलहाल स्वर्गीय दास की पत्नी और उनके दोनों पुत्रों के अलावा एक चौथे शख्स का भी नाम चर्चाओं में है। वह उनके दामाद अक्षय चन्याल का नाम बताया जा रहा है। अक्षय चन्याल चंदनराम दास की पुत्री गुंजनदास जो क्रीड़ा अधिकारी है, के पति हैं। जब से दोनों की शादी हुई है तब से यह चर्चा का विषय बना हुआ था कि चंदनराम दास अपने दामाद अक्षय चन्याल को
राजनीति में लाना चाह रहे थे। शायद यही वजह थी कि चन्याल गरूड़ से जिला पंचायत का चुनाव लड़ने की भी तैयारी कर रहा थे। अक्षय चन्याल बागेश्वर जनपद के भाजयुमो का जिला उपाध्यक्ष भी हैं। अक्षय चन्याल के नाम पर भाजपा के ही नेता फिलहाल इस पक्ष में नहीं हैं कि उपचुनाव में उसे टिकट दिया जाए।
भाजपा की पूर्व सह संयोजक (महिला
मोर्चा) एडवोकेट भगवती धपोला कहती हैं कि अगर पार्टी टिकट देगी तो वह स्वर्गीय दास के परिवार के ही किसी सदस्य को देगी, अगर इनमें से कोई तैयार नहीं होता है जिसकी बहुत कम संभावना है तो ही अक्षय चन्याल का नाम आ सकता है। इस बाबत भगवती धपोला कहती हैं कि चन्याल को वैसे भी दास परिवार में शामिल हुए एक साल भी नहीं बीता है। ऐसे में उनको चंदनराम दास का वारिस कहना अतिश्योक्ति होगा। बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस का प्रत्याशी बनने की सबसे ज्यादा चर्चा पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा की चल रही है। लेकिन कहा जा रहा है कि प्रदीप टम्टा ने अपने आपको इस चुनाव से अलग कर लिया है। सूत्रों के अनुसार पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा ने कहा है कि वह बागेश्वर उपचुनाव ही नहीं, बल्कि कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। वह लोकसभा का अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ क्षेत्र का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि प्रदीप टम्टा का गृह जनपद बागेश्वर ही है। वह इस जिले के गांव लोब के निवासी हैं। उनका राज्यसभा का कार्यकाल पिछले साल ही समाप्त हो गया था। प्रदीप टम्टा के बाद नंबर आता है रणजीत दास का जो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खास माने जाते हैं। जब रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब रणजीत दास उनके पीआरओ हुआ करते थे। वे चंदनराम दास के सामने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। तब वह भाजपा प्रत्याशी के दास से 12 हजार 141 वोटों से चुनाव हारे थे। रणजीत दास के चुनाव हारने की वजह कांग्रेस के ही बागी बालकृष्ण का उनके सामने आना रहा। बालकृष्ण 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुके हैं। तब बालकृष्ण का मुकाबला भाजपा के चंदनराम दास से ही हुआ था। दास ने तब 33 हजार 792 मत पाकर बालकृष्ण को 14 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में बालकृष्ण कांग्रेस के टिकट पर अपनी उम्मीदवारी मजबूत मान रहे थे लेकिन ऐन वक्त पर रणजीत दास बालकृष्ण पर भारी पड़े थे। बागेश्वर के ही एक नेता की मानें तो इस उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी के तौर पर रणजीत दास कमजोर रहे हैं, क्योंकि सहानुभूति लहर का मजबूत पक्ष हावी होना भी एक कारण रहेगा। ऐसे में रणजीत दास की हार भी हो सकती है। लेकिन इसके बावजूद भी रणजीत दास सिर्फ इसलिए टिकट की पैरवी करेंगे कि 2027 में उन्हें पार्टी अपना कंडीडेट घोषित करे। इस तरह देखा जाए तो रणजीत दास इस उपचुनाव को लड़ने की इच्छा रखते हुए 2027 के विधानसभा चुनाव को लक्ष्य में रखते हुए राजनीतिक पारी खलेंगे।
2022 का विधानसभा चुनाव लगभग त्रिकोणीय रहा था। जिसमें चंदनराम दास पहले नंबर पर तो दूसरे नंबर पर कांग्रेस के रणजीत दास थे जबकि तीसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के प्रदेश महासचिव बसंत कुमार रहे। बसंत कुमार को 12 हजार पांच सौ वोट मिले थे। बसंत कुमार 2017 का चुनाव बसपा के टिकट पर लड़े। तब इन्हें 11 हजार 38 मत प्राप्त हुए थे। इसी चुनाव में चंदनराम दास को 33 हजार 792 तो कांग्रेस के बालकृष्ण को 19 हजार 225 वोट मिले। प्रदेश में आम आदमी पार्टी का वजूद फिलहाल ना के बराबर है क्योंकि पार्टी के दिग्गज पिछले साल ही भाजपा का रुख कर चुके हैं। ऐसे में बसंत कुमार के आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बसंत कुमार आम आदमी पार्टी की बजाय किसी दूसरी पार्टी से अपना तालमेल बिठाने में लगे हुए हैं। फिलहाल राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानकर चल रहे हैं कि वे ‘आप’ को छोड़ किसी दूसरी पार्टी के टिकट पर भी चुनाव लड़ सकते हैं तो यह भविष्य की राजनीति में संभव है।
सरकार, संगठन और माताजी ही इस पर निर्णय लेंगी कि उपचुनाव के लिए किसको अधिकृत किया जाए। फिलहाल हमारे सामने स्वर्गीय पापाजी के सपनों का बागेश्वर है। जहां उनके कई विकास के सपने थे जिनको पूरा करना हमारे परिवार की प्राथमिकता में शामिल है।
गौरव दास, पुत्र चंदनराम दास