मातृ सदन में तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन
जोशीमठ में भू-धंसाव और हिमालय में आ रही भीषण आपदाओं को लेकर हरिद्वार स्थित मातृ सदन में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसमें देश-विदेश के गंगा-प्रेमी और पर्यावरणविदों ने भाग लिया। यहां न्यायपालिका, विधायिका, संत समाज और आमजन की भूमिका पर विचार- मंथन कर जवाबदेही तय की गई
गंगा, हिमालय और उत्तराखण्ड खासकर जोशीमठ बचाने को लेकर मातृ सदन आश्रम में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन मातृ सदन के परामाध्यक्ष स्वामी शिवानंद के सान्निध्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में जुटे सभी वक्ताओं ने एक स्वर में उत्तराखण्ड को बचाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार से विकास के नाम पर प्रस्तावित परियोजनाओं पर तत्काल रोक लगाने की मांग की। उन्होंने जोशीमठ आपदा को सरकार के अनियोजित विकास का जीता-जागता उदाहरण बताया।
अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए स्वामी शिवानंद ने कहा कि उत्तराखण्ड की स्थिति पर पूरे विश्व की नजर है। जिस प्रकार सरकारों ने उत्तराखण्ड में विकास के नाम पर विनाश की पटकथा लिखी है उसका दुष्परिणाम सबके सामने है। हिमालय के पहाड़ दरक रहे हैं, गंगा का जल स्तर घटता जा रहा है। इनका अस्तित्व खतरे में है, लेकिन सरकार को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है। उन्होंने कहा कि विनाश की
पटकथा का जोशीमठ आपदा जीता-जागता उदाहरण है। आज जोशीमठ के लोग सर छुपाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। ऐसे में हिमालय, गंगा के साथ जोशीमठ बचाने की जिम्मेदारी समस्त देशवासियों की है। इसलिए मातृ सदन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में देश-विदेश के लोगों को आमंत्रित किया गया है। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि जोशीमठ आपदा को लेकर उन्होंने केंद्र सरकार को आगाह किया था। कांग्रेस सरकार के शासनकाल में इस पर रोक लगाने की सहमति भी बनी थी। लेकिन भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद सभी योजनाओं को शुरू कराया गया। उन्होंने कहा भाजपा सरकार अपने अहंकार के सामने किसी की नहीं सुन रही है। पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि यूपी की तर्ज पर उत्तराखण्ड का विकास किया जा रहा है जबकि उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थितियां यूपी से पूरी तरह भिन्न हैं। ऐसे में सरकार को विकास की योजनाएं उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनानी चाहिए। बाबा हठयोगी ने कहा कि मातृसदन के संत निःस्वार्थ भाव से, बिना किसी दबाव के समर्पित होकर गंगा संरक्षण के लिए संघर्ष करते चले आ रहे हैं। स्वामी निगमानंद के समान अनुशासित, शिष्य बिरले ही मिलते हैं।
जिन्होंने अपने गुरु के आदेश पर मां गंगा की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उन्होंने कहा कि वे स्वयं चुगान के पक्ष में थे, किंतु चुगान के नाम पर भी 20-20 फिट गहरे गड्ढे खोद देना अनुचित है। ‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ के सदस्य अतुल सती ने कहा कि जोशीमठ में जमीन धंस रही है, मकानों में दरार आ रही है। प्राचीन शहर बदरीनाथ फूलों की घाटी था। लेकिन पावर प्रोजेक्ट शुरू होने से दुर्दशा का दौर शुरू हो गया। मिश्रा आयोग की संस्तुति को सरकार ने नहीं माना। इसके चलते लामबगड़, पांडुकेश्वर तबाह हो गए। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 में उत्तराखण्ड बनने के बाद जोशीमठ में परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई गई। 2005 में सीएम नारायण दत्त तिवारी का बहुत विरोध हुआ और जोशीमठ में उद्घाटन समारोह में पहुंचने नहीं दिया। इसके परिणाम स्वरूप उन्होंने देहरादून से ही उद्घाटन किया। जोशीमठ में 867 घरों में जहां हल्की दरारें हैं वहीं पूरा जोशीमठ प्रभावित है।
एनटीपीसी को सुरंग बनाने के लिए दोषी नहीं माना गया है जिसके चलते सरकार ने आपदा का ठीकरा ड्रेनेज सिस्टम पर फोड़ दिया है। अनियोजित विकास का ही परिणाम है कि बदरीनाथ तक जगह-जगह लगातार संवेदनशील जोन बनते जा रहे हैं जिससे कभी भी किसी बड़ी आपदा की घटना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे अनियोजित विकास पर राज्य सरकार को तत्काल रोक लगाने की मांग पर्यावरण सम्मेलन में दोहराई गई। पर्यावरणविद् डॉ रवि चोपड़ा ने कहा कि जल से भरे हुए 100 किमी धौली गंगा के आखिरी 50 किमी पर 6 बांध प्रस्तावित किए जाना खतरे से खाली नहीं है। 1993 में ओली के विकास से पहाड़ नष्ट हुआ। 2003 में तपोवन लोक विज्ञान से लोगों ने आवाज उठाई, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। 2013 में आई केदारनाथ आपदा से विष्णु प्रयाग बांध नष्ट हो गया।
जबकि इस जोन में कोई बांध नहीं बनना चाहिए था। 2021 से पहले 2009, 2012 की दो घटनाओं से भी सरकार ने सबक नहीं लिया। एनटीपीसी परियोजना पर लार्सन टर्बा ने कहा की सुरंग के बाहर दरारें पड़ गईं और अंदर की और चौड़ी हो गई। बावजूद इसके एनटीपीसी ने पूरी पड़ताल नहीं की। जोशीमठ आपदा को लेकर पूरे देश में पर्यावरण का महत्व समझा जा सके, इसी उद्देश्य के साथ अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह कम चिंताजनक नहीं है कि इसरो के खुलासे से सरकार भी डरी हुई है। पहाड़ की धरती बहुत ही तेजी से दरक रही है। पिछले 22 महीनों से आ रही दरारें मात्र 14 दिनों में ही बढ़कर 11 गुना हो गई हैं। टिहरी पर वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है जिसमें हिमालय क्षेत्र अतिसंवेदनशील है।
सम्मेलन के द्वितीय सत्र में दूसरे दिन की शुरुआत एक्टिविस्ट सुशीला भंडारी के गंगा भजन से हुई। इस अवसर पर स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि गंगा, हिमालय और उत्तराखण्ड को बचाने के लिए मातृ सदन आश्रम में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य सरकार के साथ आम आदमी की अंतआर्त्मा को जागृत करना है, प्रकृति और मानव का सीधा संबंध है। इसका संतुलन बिगड़ने से विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है और उत्तराखण्ड में भी ऐसा ही हो रहा है।
समाजसेवी अनिल गौतम ने आस्था को वैज्ञानिक रूप से समझाया कि किस तरह गंगा जल में पशु गोबर मिलाया और 24 घंटे छोड़ दिया गया। हैरानी हुई देखकर की मलयुक्त गंगा जल साफ हो गया। वर्तमान में गंगा शुद्ध करने में एसटीपी ऊपरी सफाई पर ध्यान केंद्रित है जिससे कभी भी गंगा का भला नहीं हो सकता। मुकुंदा दास स्वामी (हरे कृष्णा) ने स्वामी निगमानंद जी को याद करते हुए गंगा की महिमा का वर्णन करते हुए साध्वी पद्मावती के जज्बे को नमन किया कि वह कहती हैं कि ठीक होने पर वह फिर से अनशन करेंगी। उन्होंने दुख भरे स्वर में कहा कि पूजन इत्यादि धार्मिक कार्यों में जिस मां को सबसे पहले याद करते हैं उसी का अनादर करते हैं।
नेल्सन मंडेला की सरकार में मंत्री रहे जयसीलन नायडू ने कहा कि मैं साउथ अफ्रीका से आया हूं, 1860 में मेरी ग्रेट ग्रैंड मदर को वेल्लोर तमिलनाडु से गुलाम बनाकर अफ्रीका ले जाया गया। उनको गंगा पूजा न करने का दुख था इसलिए यहां आने पर सबसे पहले गंगा को प्रणाम किया। गंगा की हालत देख कर बहुत दुख हुआ जो प्लास्टिक से अटी पड़ी थी। गांधी जी का सत्याग्रह का आरंभ साउथ अफ्रीका से भारत में आया। आपने गांधी को अफ्रीका भेजा और हमने उन्हें महात्मा गांधी बना कर भेजा। अगर हम नदियों को साफ नही रखेंगे तो बीमार पड़ जाएंगे। मुझे नेल्सन मंडेला के साथ काम करने का सौभाग्य मिला जिन्होंने गुलामी को खत्म किया।
अफ्रीका से आए पर्यावरणविद् रूटेन्डो नगारा ने कहा कि अफ्रीका में ऐसा मानते हैं कि हर नदी की आत्मा होती है। उनसे आज्ञा लेकर ही किसी भी नदी पर बांध बनाना चाहिए। किंतु ब्रिटिश सरकार ने बिना आज्ञा बांध बनाया तो दुर्घटना हो गई जिससे 80 ब्रिटिश मर गए। प्रफुल्ल ध्यानी ने कहा कि जो अंकिता भंडारी के साथ हुआ वही गंगा जी, पेड़ां और पहाड़ों के साथ हो रहा है। बद्रीनाथ कॉरिडोर के द्वारा गंगा और प्रकृति का विनाश हो रहा है। हम सबको गुरुदेव से प्रेरणा लेकर प्रकृति पर्यावरण के प्रति
संवेदनशील रहना चाहिए।
भाजपा की दूरी, क्या थी मजबूरी
मातृ सदन में चले तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में जहां एक ओर कांग्रेस नेताओं हरीश रावत, हरक सिंह रावत के साथ ही सैकड़ों कांग्रेसियों ने भागीदारी की, वहीं हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के दो दिन हरिद्वार में मौजूद रहने के बावजूद पर्यावरण सम्मेलन में भागीदारी न करने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं? निशंक ही नहीं जिस प्रकार हरिद्वार के अधिकतर सत्तापक्ष के नेताआें एवं विधायकों ने
अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन से दूरी बनाई उससे जोशीमठ आपदा को लेकर भाजपा द्वारा किए जा रहे प्रयासों की मंशा पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं?