पिथौरागढ़ स्थित सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज लंबे समय से अपने कारनामों के लिए चर्चा में रहा है। कॉलेज की स्थापना के बाद से ही यहां एक के बाद एक अनियमितताओं का दौर जारी है। इन दिनों कॉलेज के स्थाई परिसर में करोड़ों रुपए खर्च कर बनाए गए आधे-अधूरे भवन व अब यहां से इंजीनियिरिंग कॉलेज को संचालित न करने की चर्चा से स्थानीय जनमानस भड़क गया है। इंजीनियरिंग कॉलेज के स्थाई परिसर के लिए मड़धूरा में जो भवन बनाए गए हैं उनमें जमकर गड़बड़झाला किया गया है। स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों का आरोप है कि भवन निर्माण में जमकर मनमानी की गई है। भवन निर्माण का पैसा एप्रोच रोड बनाने में खर्च कर दिया गया। यही नहीं भू-विज्ञानियों की रिपोर्ट को दरकिनार कर भवन निर्माण हेतु चयनित जगह को ही बदल दिया गया। कॉलेज के लिए जो भूमि हस्तांतरित की गई थी, उस पर भवन का निर्माण न कराकर दूसरे स्थान पर करा दिया गया
सीमांत जनपद पिथौरागढ़ तक विकास की किरणें यूं तो पहुंच ही नहीं पाती हैं। यदि पहुंचती हैं तो भ्रष्टाचार रूपी बादल उसे अपनी गिरफ्त में लेते देर नहीं लगाते हैं। स्थानीय निवासियों के लंबे संघर्ष के बाद यहां स्थापित किया गया सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज संग भी इन दिनों कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। भ्रष्टाचार इस कॉलेज की नींव के साथ ही यहां रोपित कर दिया गया है। इस कॉलेज का निर्माण ऐसी जमीन पर किया गया है जिसे कॉलेज योग्य नहीं पाया गया था। स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों का आरोप है कि भवन निर्माण में जमकर मनमानी की गई है। भवन निर्माण का पैसा एप्रोच रोड बनाने में खर्च कर दिया गया। यही नहीं भू-विज्ञानियों की रिपोर्ट को दरकिनार कर भवन निर्माण हेतु चयनित जगह को ही बदल दिया गया। कॉलेज के लिए जो भूमि हस्तांतरित की गई थी, उस पर भवन का निर्माण न कराकर दूसरे स्थान पर करा दिया गया। भवन निर्माण के लिए भू विज्ञानियों की रिपोर्ट का भी पालन निर्माण निगम ने नहीं किया। भवन निर्माण का कार्य बगैर सड़क स्वीकृत के कर दिया गया। बाद में नए स्थल के लिए सड़क का निर्माण हुआ जिसे भवन निर्माण के लिए अवमुक्त धनराशि से कर दिया गया। इससे भवन निर्माण के लिए धन की कमी हो गई। जहां पर भू वैज्ञानिकों की रिपोर्ट सही पाई गई कार्यदायी संस्था ने वहां पर निर्माण नहीं किया। भवन निर्माण से पहले सुरक्षा दीवार लगनी थी फिर भवन निर्माण होना था। लेकिन पहले भवन बना दिया गया।
सुरक्षा दीवार व पानी की निकासी की व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई है। नई जगह पर भू वैज्ञानिकों की रिपोर्ट को अमल में नहीं लाया गया। भू वैज्ञानिकों की रिपोर्ट कहती है कि भवन निर्माण से पहले सुरक्षा दीवार, पानी की निकासी हेतु नालियां व चाहरदीवारी बनाई जानी चाहिए। वर्ष 2019 से अभी तक कोई धनराशि न मिलने से भवन निर्माण व अन्य काम आधे-अधूरे ही पड़े हैं। यहां अजब-गजब यह है कि जिले के एक पूर्व जिलाधिकारी आशीष चौहान शासन को आख्या भेजते हैं कि यहां पर बिजली, पानी व रोड की सुविधा नहीं है, जबकि यह सारी चीजें यहां पर उपलब्ध हैं। वहीं दूसरी तरफ उनसे पहले के जिलाधिकारी डा. विजय कुमार जोगदंडे के कार्यकाल में यहां कक्षाएं तक संचालित हो चुकी हैं। अब तो 1 करोड़ 67 लाख खर्च कर सड़क डामरीकरण का कार्य भी हो चुका है। वहीं पूर्व में सचिव, तकनीकी शिक्षा का कहना है कि दो बार डीएम की रिपोर्ट व कुमाऊं कमिश्नर की स्थलीय जांच में इस स्थल को खतरनाक घोषित किया गया है, इसलिए इसे आपदा प्रबंधन विभाग को देने का निर्णय लिया गया है। जहां तक जनता के प्रत्यावेदनों का सवाल है तो जिले के सभी राजनीतिक दलों के विभिन्न प्रतिनिधियों, पंचायत प्रतिनिधियों व सामाजिक संगठनों का कहना है कि इंजीनियरिंग कॉलेज का संचालन मड़धूरा से ही होना चाहिए। तमाम पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि जिला प्रशासन भी जनता की मांग व वास्तविक स्थिति को ही शासन तक पहुंचाये, बीच में भ्रम की स्थिति पैदा न करे। जनता इस बात पर आक्रोशित है कि जब कॉलेज की बिल्डिंग पर करोड़ों खर्च कर दिए गये तो अब तकनीकी शिक्षा विभाग कॉलेज के संचालन में आनाकानी कर रहा है और कॉलेज की बिल्डिंग को ‘एनडीआरएफ’ को दिए जाने की साजिश चल रही है।
जिले के विकास कार्यों की समीक्षा बैठक में भी माना गया है कि भवन निर्माण के लिए जो भूमि हस्तांतरित की गई थी उसके इतर भवन का निर्माण हुआ है। भवन निर्माण में भू-गर्भवेत्ता की आख्या का शत-प्रतिशत पालन नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री ने इसके लिए कुमाऊं कमिश्नर को विस्तृत जांच के निर्देश भी दिए थे। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना के आधार पर संस्थान के स्थाई भवनों में वर्तमान तक 1419.25 लाख खर्च हो चुका है। जबकि शासन द्वारा स्थाई भवन निर्माण हेतु 2273.25 लाख स्वीकृत हैं। कॉलेज के स्थाई परिसर हेतु मड़धूरा में 4.2 हेक्टेयर जमीन स्वीकृत है। कॉलेज के स्थाई परिसर का निर्माण कार्य 29 जून 2014 से शुरू हुआ। आठ साल बाद भी अब तक ब्लाक-1 में 90 प्रतिशत व ब्लॉक-2 में 20 प्रतिशत काम ही पूरा हो पाया है। जबकि दूसरा ब्लाक धनराशि के अभाव में लटका पड़ा हुआ है। वहीं दूसरी तरह केएनयू राजकीय इंटर कॉलेज में चल रहे इसके परिसर में भी 2.34 करोड़ की धनराशि अब तक खर्च की जा चुकी है जबकि 22.73 करोड़ की लागत से इस स्थाई परिसर को बनना है। भवन निर्माण एंजेसी पर कॉलेज निर्माण में कई तरह की अनियमिताएं करने का आरोप है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद इस इंजीनियरिंग कॉलेज की समीक्षा कर चुके हैं। ग्रामीण इसके लिए कई बार जिलाधिकारी से भी मिल चुके हैं। कोरोना काल में यहां पर कक्षाएं संचालित हुई थी, बाद में उसे यहां से जीआईसी में शिफ्ट कर दिया गया। अब तर्क यह दिया जा रहा है कि यह शहर से 10 किमी दूर निर्जन क्षेत्र में है। यहां पर कई तरह की सुविधाओं का अभाव है। इसीलिए कॉलेज का संचालन नगर के मध्य में स्थित जीआईसी से ही संचालित किया जाय। इसके लिए बकायदा जीआईसी से 1 हेक्टेयर भूमि कॉलेज के लिए ली गई है। करोड़ों की धनराशि खर्च होने व भवन निर्माण होने के बाद भी यहां इंजीनियरिंग कॉलेज शुरू नहीं हो रहा है, इससे स्थानीय ग्रामीण खासे नाराज हैं। भवन बने दो वर्ष हो गए हैं लेकिन अभी तक कक्षाएं संचालित नहीं हुई हैं। क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधियों ने इस बावत एक ज्ञापन मुख्यमंत्री को भी प्रेषित किया है।
स्थानीय विधायक मयूख महर भी लंबे समय से जीआईसी में चल रहे सीमांत इंजीनियिरिंग कॉलेज की कक्षाओं के संचालन को मड़धूरा में बने भवन में कराने की मांग करते रहे हैं। 2022 में मयूख महर ने विधानसभा में अतारांकित प्रश्न संख्या-62 के तहत पूछा कि क्या इस परिसर में पठन-पाठन का कार्य प्रारंभ न होकर शहर में स्थित केएनयू इंटरकालेज परिसर में सरकार इसका संचालन करना चाहती है। यदि हां तो स्वीकृत परिसर के निर्माण के उपरांत कॉलेज को अन्यत्र ले जाने का क्या औचित्य है? क्या सरकार व्यापक जनहित में मड़ नामक स्थान पर ही इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने तथा छात्रों के पठन-पाठन करने पर विचार करेगी, यदि नहीं तो क्यों? लेकिन उत्तर संक्षिप्त में यह दिया गया कि इस संबंध में जिलाधिकारी पिथौरागढ़ की आख्या एवं जनसामान्य से प्राप्त प्रत्यावेदनों के क्रम में कार्यवाही, विचाराधीन है, जो अभी तक चल रही है। वहीं लगातार यह तर्क सामने आ रहे हैं कि वर्तमान निर्माणाधीन इंजीनियरिंग कॉलेज के चारों और भूस्खलन हो रहा है, इसलिए यहां कक्षाओं का संचालन संभव नहीं है। जनपद के सभी राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता मड़धूरा से इस कॉलेज का संचालन करने की मांग करते आ रहे हैं। कई जनप्रतिनिधियों का तो यह भी आरोप है कि भू माफियाओं के प्रभाव में मड़धूरा में इंजीनियरिंग कॉलेज बंद करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। एक तरह से करोड़ों रुपयों का दुरुपयोग हो रहा है लेकिन शासन-प्रशासन इस पर कोई निर्णय नहीं ले पा रहा है। जिलाधिकारी रीना जोशी का कहना है कि इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालन के लिए शासन स्तर से निर्णय होना है, जिसके लिए शासन को रिपोर्ट भेज दी गई है। जिस स्थान पर इंजीनियरिंग कॉलेज बना है उसे ‘एनडीआरएफ’ को देने के लिए भी शासन को प्रस्ताव भेजा गया है।
गड़बड़झाला यहीं तक सीमित नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार इंजीनियिरिंग कॉलेज का भवन मड़धूरा में बनाया गया है लेकिन गेट दस किमी दूर जीआईसी के अस्थाई परिसर में बनाया गया है। गेट के निर्माण के लिए अनटाइड फंड का इस्तेमाल किया गया है जिसे आपदा प्रभावित क्षेत्रों में इस्तेमाल में किया जाता है। इसमें देवी आपदा मद से 8 लाख का प्रवेश द्वार बना दिया गया। जबकि इंजीनियरिंग कॉलेज के गेट का निर्माण स्थाई परिसर मड़धूरा में बनना चाहिए था लेकिन इसे जीआईसी में बना दिया गया। लोगों का कहना है कि जिस स्थान पर इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए करोड़ों खर्च कर भवन निर्माण किया गया, कायदे से गेट भी वहीं बनना चाहिए था। निर्माणाधीन भवन के पास सुरक्षात्मक कार्य भी होने चाहिए थे। एक और कारनामा देखिए कि एक वर्ष पूर्व इसी सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज से 30 लाख किताबें भी गायब होने की बात सामने आई थी। तब जिलाधिकारी स्तर पर हुई जांच में इस बात की पुष्टि हुई थी। बाद में संस्थान के सहायक प्राध्यापकों की जांच समिति का गठन किया गया जिसने अपनी जांच आख्या में 25.95 लाख मूल्य की 3298 पुस्तकें गायब होने की बात कही है। जांच समिति ने संस्थान की पुस्तकों के रखरखाव, पुस्तकों के क्रय तथा पुस्तकों के पुस्तकालय में न होने जैसी अनियमिताएं पाई। इसके लिए
पुस्तकालय सहायक पद पर कार्यरत गीतिका महर को दोषी मानते हुए गाज गिराई गई। इस पर तब गीतिका महर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि जो पुस्तकें गायब हुई एवं उनके कार्यकाल से नहीं हुई। न ही मेरे द्वारा पुस्तकों का वर्गीकरण एवं क्रमांकन किया गया। यह मेरी अनुपस्थिति में किया जा चुका था।
गीतिका का कहना था कि जब किताबें मेरे को चार्ज में मिली ही नहीं तो इसका दायित्व मेरे ऊपर कैसे थोपा जा सकता है। बहरहाल दोषी व कारण जो भी हो लेकिन यह तय है कि यहां पर अनियमितता हुई है। इसके अलावा पूर्व में कॉलेज के एक निदेशक के खिलाफ 15 लाख की वित्तीय अनियमितता व अनुशासनहीनता के लिए उत्तराखण्ड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के कुल सचिव को मुकदमा दर्ज करना पड़ा। नन्हीं परी सीमान्त प्रौद्योगिकी संस्थान के तत्कालीन निदेशक डॉ अम्बरीश शरण विद्यार्थी के खिलाफ उत्तराखण्ड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के कुलसचिव डॉ. हेमन्त कुमार जोशी को भ्रष्टाचार, उत्पीड़न, शोषण, अनुशासनहीनता व वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ कोतवाली में तहरीर देनी पड़ी। इस पर एक प्रशासनिक जांच हुई, जिसमें डॉ विद्यार्थी पर 15,35,111 की वित्तीय अनियमितता की बात सामने आई। सूचना के अधिकार के तहत मिली सूचना के अनुसार संस्थान ने ऑल इंडिया कांउसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन से 2022-23 में विस्तार के लिए आवेदन तक नहीं किया गया। जबकि वर्तमान में इस कॉलेज से कम्प्यूटर साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन, मैकेनिकल, इलेक्ट्रीकल, सिविल इंजीनियरिंग में 285 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं।
क्षेत्र के लोगों ने इस उम्मीद से इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए भूमि दी थी कि इससे क्षेत्र को नई पहचान मिलेगी व यहां का विकास होगा। इंजीनियरिंग कॉलेज के निर्माण में कई तरह की अनियिमिताएं हुई हैं। इन पर पर्दा डालने के लिए विद्यालय को यहां से संचालित नहीं किया जा रहा है। निर्माण एजेंसी ने भवनों के तमाम निर्माण कार्य अधूरे छोड़े हैं। सुरक्षा दीवार व नाली नहीं बनाई है। रखरखाव न होने से बने हुए भवनों को क्षति पहुंच रही है। संस्थान की मान्यता का सवाल हो या फिर पुस्तकालय से किताबों का गायब होना इसे संस्थान की छवि भी खराब हो रही है और विद्यार्थियों के भविष्य से भी खिलवाड़ हो रहा है।
हेमा देवी, ग्राम प्रधान, मड़खड़ायत