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हल्द्वानी शहर को कुमाऊं का प्रवेश द्वार होने के साथ उत्तराखण्ड की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है। अगर सिर्फ हल्द्वानी की ही बात करें तो शहर के लिए प्रस्तावित रिंग रोड परियोजना की बात अब कहीं नहीं होती। 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा घोषित रिंग रोड की लागत इतनी बढ़ गई कि राज्य सरकार के संसाधनों द्वारा इसे पूर्ण किया जाना तो संभव नहीं है। तब कहा गया था कि इसके लिए केंद्र सरकार से बजट और वन भूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव भेजे गए हैं। यह प्रस्ताव अभी तक अधर में लटके हुए हैं।

गौलापार में अंतरराष्ट्रीय स्तर का चिड़िया घर, अंतरराष्ट्रीय बस टर्मिनल जैसी परियोजनाएं भी शिलान्यास से आगे नहीं बढ़ पाई हैं। जमरानी बांध बहुद्देशीय परियोजना की स्वीकृति को सांसद अजय भट्ट ने अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया था। यह योजना भी बजट की बाट जोह रही है। 2524 ़10 करोड़ की इस परियोजना को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाईं योजना में शामिल किया गया है लेकिन अभी तक इसे बजट की सैद्धांतिक स्वीकृति ही मिली है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय से इसके लिए बजट का इंतजार है जिससे पुनर्वास जैसे कार्य शुरू कर आगे बढ़ा जा सके। हालांकि 2023 के आम बजट में इसके लिए कोई आवंटन न होना कई सवाल खड़े करता है। सड़क, रेल और हवाई क्षेत्रों में भी नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोकसभा क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नजर नहीं आते। पंतनगर एयरपोर्ट के विस्तारीकरण का प्रस्ताव फिलहाल कागजों तक ही सीमित है।

उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून को राज्य के नगरों की हवाई सेवा से जोड़ने की बातें सिर्फ जुबानी वायदों तक सीमित रह गई हैं। हल्द्वानी को टेली सेवा से जोड़ने की बातें लंबे समय से की जा रही हैं। 2014 से पहले गौलापार में तैयार अत्याधुनिक हैलो ड्रम को नियमित हवाई उड़ानां का इंतजार है। पंतनगर से हल्द्वानी की ओर आते सड़क पर हिचकोले खाते वाहन विकास के दावों से भ्रम को तोड़ देते हैं। 2014 से पहले स्वीकृत रामपुर से काठगोदाम स्वीकृत राष्ट्रीय राजमार्ग 109 (पहले 87) उत्तराखण्ड में अधूरा ही है। लालकुआं से तीन पानी तक सड़क के हालात बदतर है। हल्दूचौड़, मोतीनगर, मोटाहल्दू, गोरापड़ाव, तीनपानी तक सड़क के हालात लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। कई जगह सड़क एक तरफ बनी है तो कई जगह काम अधूरा है। गौलापुल से काठगोदाम तक का काम तो अभी शुरू ही नहीं हुआ है।

हल्द्वानी को चोरगलिया के रास्ते सितारगंज को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण मार्ग में पैचवर्क से काम चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रत्येक सांसद से गांव गोद लेने की सलाह के चलते ‘सांसद आदर्श गांव’ के तहत भीमताल ब्लॉक का जंगालिया गांव और हल्द्वानी ब्लॉक के विजयपुर ग्राम को गोद लिया गया था। जंगलिया गांव के बाशिंदों को उम्मीद थी कि सांसद द्वारा गोद लेने के बाद तस्वीर बदलेगी लेकिन सड़क के इंतजार से थके-हारे ग्रामीणों ने श्रमदान से ही सड़क खोदनी शुरू कर दी। विजय नगर की दूरी हल्द्वानी से पांच किमी है। यहां के बाशिंदे भी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। यहां कि सूखी नदी पर 2013 में कांग्रेस सरकार के समय जिस पुल का शिलान्यास किया गया था उसका निर्माण आज तक शुरू नहीं हो पाया है। लोकसभा और विधानसभाओं के जनसंख्या के आधार पर परिसीमन ने पर्वतीय क्षेत्रों का बड़ा नुकसान किया है। मतदाताओं की मैदान क्षेत्रों में ज्यादा संख्या होने के चलते जनप्रतिनिधियों ने पहाड़ी क्षेत्रों में ध्यान कम दिया है। सुयालवाड़ी, रामगढ़, ओखलकांडा, बेतालघाट के लोगों की शिकायत है कि सांसद तो पहाड़ी क्षेत्रों का रुख गाहे-बगाहे ही करते हैं।

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