[gtranslate]
Uttarakhand

उत्तराखण्ड का अपना लोकपर्व बनता ईगास

अन्य राज्यों की तर्ज पर उत्तराखण्ड का अपना कोई लोक पर्व नहीं है। दीपावली के ग्यारहवें दिन मनाया जाने वाला लोक पर्व ईगास धीरे- धीरे इस खालीपन को भर रहा है। इस साल पूरे प्रदेश में बड़े धूमधाम से इसे मनाया गया है

पृथक राज्य उत्तराखण्ड बने हुए 21 वर्ष हो चुके हैं। इन वर्षों में उत्तराखण्ड की एक अलग सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान तो बनी है लेकिन राज्य का अलग कोई विशेष पर्व नहीं बन पाया। जिसे पूरी तरह से उत्तराखण्ड का पर्व कहा जा सके। कई राज्यों के अपने विशेष त्योहार हैं। हालांकि पर्यावरण औेर प्रकृति के सरंक्षण के लिए हरेला पर्व पूरे प्रदेश में मनाया जाता है लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को एक सूत्र में बांधने के लिए कोई पर्व नहीं है, जो पूरे प्रदेश में मनाया जा सके। ईगास ही एक ऐसा पर्व है, जो अब धीर-धीरे उत्तराखण्ड का अपना विशेष पर्व बनता जा रहा है। कुमाऊं और गढ़वाल दोनों ही क्षेत्रों में ईगास की धूम विगत कुछ वर्षों से बढ़ रही है। इस वर्ष प्रदेश सरकार ने ईगास पर्व के दिन सार्वजनिक अवकाश की भी घोषणा की है। इसलिए आने वाले समय में इसे उत्तराखण्ड का विशेष पर्व के तोैर पर मान्यता मिलने की पूरी संभावना है।

दीपावली के तर्ज पर मनाया जाने वाला यह पर्व गढ़वाल क्षेत्र में तकरीबन चार सौ वर्षों से मनाया जाता रहा है। दीपावली के ग्यारहवंे दिन यानी एकादशी तिथि को ईगास मनाने की परंपरा है। जहां देश भर में सनातन धर्म के अनुयायी इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी के रूप में मनाये हैं वहीं उत्तराखण्ड में ईगास मनाने की परंपरा है। ईगास को लेकर कई मान्यताएं हैं। इनमें सबसे मजबूत मान्यता गढ़वाल नरेश महाराजा महिपति शाह के सेनापति माधो सिंह भंडारी द्वारा तिब्बत की जीत पर मनाया गया जश्न है। इतिहासकारों के मुताबिक तिब्बत के दापा रियासत के सैनिक गढ़वाल के सीमांत क्षेत्रों में लूटपाट, मारकाट करते थे। समय-समय पर गढ़वाल राजाओं ने इन्हें सबक भी सिखाया था। गढ़वाल के राजा मान शाह ने तिब्बत के अनेक ठकुराइयों और जमींदारों को सबक सिखाया था। इस कारण प्रति वर्ष गढ़वाल रियासत को एक पाथा स्वर्ण चूर्ण और चौ सिंघिया खाडू कर (टैक्स) के तोैर पर दिया जाता था। राजा मान शाह के पोते महाराजा महिपति शाह के शासन में गढ़वाल के सीमांत क्षेत्रों में तिब्बती सैनिक हमला कर लूटमार और गढ़वाल के नागरिकों को दास बनाने का काम करने लगे थे। उसे रोकने के लिए महिपति शाह ने अपने सेनापति माधो सिंह भंडारी को तिब्बतियों से युद्ध करने के लिए दापा भेजा।

बताया जाता है कि माधो सिंह भंडारी ने दापा नरेश को बंदी बनाकर उसे उसके ही किले में कैद कर लिया उसके बाद भंडारी अनेक मूल्यवान वस्तुएं सोना, सुहागा तिब्बती भेड़, कपड़े आदि कर के रूप में लेकर वापस राजधानी श्रीनगर लौटे। जिस दिन माधो सिंह भंडारी राजधानी श्रीनगर लौटे उस दिन कर्तिक मास की एकादशी थी। तिब्बत पर मिली इस बड़ी जीत को यादगार और चिर स्थाई बनाने के लिए महाराज महिपति शाह ने अपने नागरिकों को दिवाली मानने की आज्ञा दी। राजधानी श्रीनगर को दीपों से सजाया गया। बाद में समूचे गढ़वाल रियासत में इस दिन दीपावली मनाई जाने लगी। एकादशी को इस दीपावली को मनाने के कारण इसे ईगास कहा जाने लगा। कुछ जानकार मानते हैं कि गढ़वाल के जौनसार बावर क्षेत्र में यह समाचार दीपावली के एक महीने बाद पहुंचा। इसलिए जौेनसार में दीपावली के एक माह बाद दीपावली मानने की परंपरा शुरू की गई। मत यह भी है कि भगवान राम के अयोध्या पहुंचने का समाचार दीपावली के एक माह बार जौेनसार पहुंचा। इसलिए जौनसार में दीपावली एक माह बाद भी मनाई जाती है।

ईगास पर्व को महाभारत से भी जोड़ा जाता है। मान्यता हेै कि भीम ने दीपावली के ग्यारहवंे दिन फिर से पकवाने खाने की इच्छा जताई। इसलिए भीम ने एकादशी के दिन फिर से दीपावली मनाई। पांडवांे का संबंध हिमाचल, उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी और रवांई जौनसार क्षेत्र से माना जाता है। इस कारण इस मान्यता को बल मिलता है। उत्तराखण्ड के जनमानस में दीपावली एक बड़ा और अति महत्वपूर्ण पर्व है। विवाहित बेटियों को दीपावली के पर्व में नहीं बुला सकते। इसलिए ईगास मनानेे की परंपरा आरंभ की गई। इस पर्व में विवाहित पुत्रियों को मायके में दीपावली मनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनके लिए वे सभी पकवान बनाए जाते हैं। दीपावली के दिन बनते हैं। कई स्थानों पर इसे ध्याण दीपावली भी कहा जाता है। मान्यताएं अनेक हैं। परंपराएं भी अनेक हैं। लेकिन इतना जरूर है कि अब ईगास समूचे उत्तराखण्ड का एक विशेष पर्व के रूप में पहचान बनने लगा है। इसका सबसे ज्यादा श्रेय सोशल मीडिया को जाता है। विगत कुछ वर्षों से ईगास को मनाने की मुहिम सोशल मीडिया पर चलाई जा रही है।

राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी दो वर्ष से ईगास मनाने का आह्नान सोशल मीडिया पर करते रहे हैं। विगत वर्ष बलूनी अपने पैतृक गांव नकोट में ईगास मनाने की बात कही थी लेकिन बीमारी के कारण वे अपने गांव नहीं आ पाए। इसलिए उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संदीप पात्रा और विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को अपने पैतृक गांव नकोट ईगास मनाने के लिए भेजा था। इस साल बलूनी स्वयं ईगास मनाने अपने गांव पहुंचे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी खटीमा में अपने परिवार के साथ ईगास मना रहे हैं। कुमाऊं क्षेत्र में भी ईगास बहुत ही धूमधाम से मनाई गई। यह पर्व अब गढ़वाल से निकल कर समूचे उत्तराखण्ड का पर्व बन गया है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD