धर्मनगरी हरिद्वार में कुंभ मेला-2021 का आयोजन कोरोना महामारी चलते सीमित और कई शर्तों के साथ संचालित किया गया था। राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा मेले के दौरान श्रद्धालुओं के बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हरिद्वार और दून अस्पताल में एक-एक एमआरआई मशीन लगाए जाने का निर्णय लेते हुए मशीनां की खरीद की टेंडर प्रक्रिया आरंभ की गई थी। टेंडर की औपचारिकता पूरी होने के बाद ‘वोस्टन आईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन’, मुंबई की कंपनी से मशीनें खरीदी गईं। इस खरीद में उत्तराखण्ड प्रोक्योरमेंट पॉलिसी के हिसाब से टेंडर किए गए थे, जिसमें खरीदी जाने वाली मशीन तीन वर्ष से भारत में लगी हुई तथा अच्छी तरह से काम करने वाली हालत में होनी चाहिए थी। जिसके लिए टेंडर डालने वाली कंपनी को अपने सीए से स्टाम्प पेपर में सिग्नेचर करवाकर एक प्रमाण-पत्र भी दिया जाना आनिवार्य किया गया था। इन तमाम शर्तों को दरकिनार कर कंपनियों से मशीनें खरीदी गई। ये मशीनें चीनी कंपनी द्वारा निर्मित हैं जिनकी एक भी मशीन संपूर्ण भारत में नहीं लगी थी। इससे लगता है कि टेंडर प्रक्रिया से लेकर मशीनों की खरीद और इंस्टॉल तक में कहीं न कहीं बड़ा झोल है
उत्तराखण्ड में एक बड़ा संयोग है कि भाजपा सरकारां में जब भी कुंभ मेला हुआ है तो इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और घोटाले होने के आरोप चस्पा हुए हैं। 2010 के कुंभ मेला में तमाम तरह के घोटाले और अनियमिताओं पर गंभीर सवाल स्वयं सीएजी अपनी रिपोर्ट में उठा चुका है। घोटालों की यह परंपरा 2021 के कुंभ मेले में भी बरकरार रही जिसमें सबसे बड़ा घोटाला फर्जी कोविड टेस्टिंग के रूप में सामने आ चुका है। ऐसे हजारों लोगों का कोरोना टेस्ट किया गया था जो हरिद्वार कुंभ में आए ही नहीं थे। अब इस आयोजन के दौरान एमआरआई मशीनों की खरीद को बड़ा घोटाला किए जाने का मामला सामने आया है जिसमें बाजार भाव से कई गुना कीमत पर मशीनें खरीदे जाने की बात कही जा रही है। कांग्रेस के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने तत्कालीन त्रिवेंद्र रावत सरकार और स्वास्थ्य विभाग के अलावा मेला प्रशासन पर कुंभ मेला जैसे धार्मिक आयोजन की आड़ में भ्रष्टाचार करने का यह गंभीर आरोप लगाया है।

करण माहरा द्वारा उपलब्ध कराए गए अभिलेखों के अनुसार एमआरआई मशीनों की खरीद में बड़े पैमाने पर करोड़ों का घोटाला किया गया है। जो एमआरआई मशीन वोस्टन आईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन मुंबई से 9 करोड़ में खरीदी गई है, वही मॉडल की मशीन स्वयं कंपनी अन्य स्थानों पर महज 3 करोड़ 20 लाख में दे रही है। उल्लेखनीय है कि 2021 में हरिद्वार कुंभ मेल का आयोजन किया गया था। हालांकि कारोना महामारी के चलते मेले को सीमित करने और अनेक शर्तों के साथ संचालित किया गया था। राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा मेले के दौरान श्रद्धालुओं और प्रदेश की जनता के बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हरिद्वार और दून अस्पताल में एक-एक एमआरआई मशीन लगाए जाने का निर्णय लेते हुए एमआरआई मशीनां की खरीद की टेंडर प्रक्रिया आरंभ की गई थी। टेंडर की औपचारिकता पूरी होने के बाद वोस्टन आईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन, मुंबई कंपनी से एमआरआई मशीनें खरीदी गई। गौर करने वाली बात हे कि इस खरीद में उत्तराखण्ड प्रोक्योरमेंट पॉलिसी के हिसाब से टेंडर किए गए थे, जिसमें खरीदी जाने वाली मशीन तीन वर्ष से भारत में लगी हुई तथा अच्छी तरह से काम करने वाली हालत में होनी चाहिए थी। जिसके लिए टेंडर डालने वाली कंपनी को अपने सीए से स्टाम्प पेपर में सिग्नेचर करवाकर एक प्रमाण पत्र भी दिया जाना अनिवार्य किया गया था। इसके साथ ही उक्त मशीन जहां काम कर रही है उस स्थान, कार्यालय या अस्पताल में मशीन का भौतिक परीक्षण करना अनिवार्य था। अगर ऐसा नहीं किया गया तो टेंडर निरस्त किए जाने की शर्त भी थी। यह मशीनें चीनी कंपनी द्वारा निर्मित हैं जिनकी एक भी मशीन संपूर्ण भारत में ही नहीं लगी थी।
बावजूद इसके सीए की रिपोर्ट और सभी औपचारिकताएं निभाने का दावा किया गया। करण महरा इसी बात को लेकर आरोप लगा रहे हैं कि अगर सर्टिफिकेट कंपनी द्वारा नहीं लगाया गया था तो उसका टेंडर कैसे पास कर दिया गया? अगर लगाया गया था तो किस आधार पर लगाया गया जबकि भारत में एक भी एमआरआई मशीन नहीं लगी हुई थी? राज्य की मशीनरी किस कदर इन मशीनों की खरीद के लिए बेचैन थी। इसका प्रमाण इस बात से ही चता चल जाता है कि टेंडर की शर्तों का खुला उल्लंघन करते हुए सीए द्वारा प्रमाणित प्रमाण पत्र के बगैर ही मशीनें खरीद ली गईं। टेंडर के साथ जमा किए गए इस प्रमाण पत्र में सिर्फ कंपनी के सीए और अन्य पांच के हस्ताक्षर तो हैं लेकिन इसमें कुछ भी नहीं लिखा गया है। जबकि इसी फार्म में महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य के हस्ताक्षर और मुहर लगी हुई है। इसके चलते इस खरीद के दौरान एक बड़े खेल किए जाने की आशंका दिखाई दे रही है। माहरा का आरोप है कि इसी तरह से इस पूरे मामले मेंं फर्जी कागजातों का सहारा लिया गया है। इस घोटाले की तह में तमाम तरह के खेल रचे गए हैं जिनके चलते दूसरी अन्य कंपनियां खरीद प्रक्रिया से ही बाहर हो गई और विभागीय अधिकारियों की मनमाफिक कंपनी को टेंडर मिल गया।
कुंभ मेला के लिए खरीदी गई इन मशीनों को तीन माह के भीतर हरिद्वार में लगाए जाने की जरूरी शर्त रखी गई थी। फिलिप्स कंपनी ने भी इसके लिए टेंडर भरा लेकिन तीन माह के भीतर मशीन को इन्सटॉल करने से कंपनी ने मना कर दिया। कंपनी के अनुसार कम से कम चार से पांच महीने के भीतर ही एमआरआई मशीन का इन्सटॉल किया जा सकता है। तीन माह के भीतर मशीनों को इन्सटॉल कर पाने में असमर्थता के चलते फिलिप्स और अन्य दो ऐसी कंपनियां जो एमआरआई मशीनों का निर्माण करती थी, टेंडर से बाहर हो गई। तब ऐरबिस और वोस्टन ईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन मुंबई का ही टेंडर शेष रहा। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि ये दोनों ही कंपनियां एमआरआई मशीनों का नि
र्माण नहीं करती है। दोनों ही एक तरह से दूसरी कंपनियों की मशीनों के विक्रेता है।
बहरहाल, वोस्टन आईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन मुंबई को तीन माह के भीतर इंस्टॉल किए जाने की शर्त के साथ मशीन का टेंडर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि तीन माह के भीतर मशीनें इंस्टॉल नहीं हो पाई और 8 माह के बाद हरिद्वार में एमआरआई मशीन का इंस्टॉल किया गया। यह तब हुआ जब कुंभ मेला को समाप्त हुए कई महीने बीत चुके थे। जिस मॉडल 1.5 टेस्ला एमआर 580 को राज्य सरकार ने नौ करोड़ में खरीदा उसी मॉडल और क्षमता की एमआरआई मशीन की इंस्टॉलेशन को दूसरी अन्य कंपनी भी कर रही है जिसका प्रमाण कंपनी की जीएसटी बिल की एक कॉपी से पता चल रह है। यह मशीन अन्य स्थानों पर 3 करोड़ 60 लाख 84 हजार 2 रुपए में बेची गई है। हालांकि इस जीएसटी बिल की सत्यता का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन जिस तरह से इस बिल में सभी जरूरी तथ्य और दरें अंकित की गई हैं उससे यह स्पष्ट है कि असल कीमत और सरकारी खरीद के बीच बड़ा अंतर जरूर है।
इस खरीद के प्रकरण में एरबिस कंपनी जो कि वोस्टन की ही तरह डीलर थी उसे इससे बाहर कर दिया गया और तीन माह की शर्त के भीतर मशीन का इंस्टालेशन न होने के बावजूद वोस्टन को राहत देते हुए समय दिया गया। इसी बीच एरबिस कंपनी के रीजनल मैनेजर महेश शर्मा ने स्वास्थ्य सचिव के अलावा स्वास्थ्य महानिदेशक के साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जिनके पास स्वास्थ्य विभाग भी था, को इसकी तथ्यों के साथ शिकायत की। शिकायत पत्र में स्पष्ट किया था कि वोस्टन आईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन मुंबई द्वारा जिस यूनाइटेड इमेजिंग हेल्थकेयर कंपनी लि शंघाई की मशीन को इंस्टॉल करने का आदेश दिया गया है, उस कंपनी द्वारा भारत में कोई भी मशीन इंस्टॉल नहीं हुई है। इसलिए बगैर किसी डैमो यानी भौतिक निरीक्षण के किस आधार वोस्टन कंपनी से मशीन खरीदी जा रही है? नाम न छापने की शर्त पर एरबिस कंपनी के एक अधिकारी का कहना है कि भारत में इस तरह की एमआरआई मशीनें 4 करोड़ तक में लाई जा रही है। स्पष्ट है कि मेला प्रशासन ने जानबूझ कर चीनी कंपनी से न सिर्फ उपकरण खरीदा बल्कि बाजार भाव से कई गुना ज्यादा कीमत चुकाई गई।
इसके बाद देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में एमआरआई मशीन लगाए जाने की प्रक्रिया आरंभ की गई। इसमें भी फिर से विभाग द्वारा वही खेल रचा गया जो हरिद्वार कुंभ में किया गया था। आपात या विशेष परिस्थितियों के चलते अगर कोई खरीद की जाती है तो पूर्व में जिस कंपनी से खरीद की गई हो तथा उसी वस्तु या उपकरण की खरीद करनी हो तो पूर्व कंपनी को इसके लिए अधिकृत कर नियम का अनुपालन किया जाता है। इसी नियम को अपनाते हुए वोस्टन आईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन मुंबई को दून अस्पताल के लिए एमआरआई मशीन खरीदने के लिए पर्चेज ऑर्डर संख्या दिनांक 24-09-2021 को जारी कर दिया गया। इस पर्चेज ऑडर में निर्माता के बतौर चीनी कंपनी का नाम लिखा जाना स्पष्ट करता है कि स्वास्थ्य विभाग और दून अस्पताल प्रशासन अच्छी तरह से जानता था कि उसके द्वारा खरीदी गई एमआरआई मशीन चीन की कंपनी द्वारा निर्मित है और वोस्टन आईवीवाई हेल्थकेयर सॉल्यूशन मुंबई सिर्फ इसकी विक्रेता यानी डीलर है। बावजूद इसके हरिद्वार में किया गया खेल फिर से दून अस्पताल में भी किया गया। दून अस्पताल के लिए खरीदी गई एमआरआई मशीन की खरीद प्रक्रिया के दौरान स्वास्थ्य मंत्री धनसिंह रावत बन चुके थे और उनके कार्यकाल में दून अस्पताल में करोड़ां की मशीन का खेल रचा गया।
दिलचस्प बात यह हे कि जब दून अस्पताल के लिए मशीन खरीद की प्रक्रिया आरंभ की गई तो धनसिंह रावत स्वास्थ्य मंत्री थे और जब 6 माह के बाद दून अस्पताल में मशीन का इंस्टॉलेशन हुआ तो धन सिंह रावत फिर से स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। साथ ही उनको चिकित्सा शिक्षा विभाग भी दिया गया जिसके अंतगर्त दून मेडिकल कॉलेज आता है। हाल ही में एम्स ऋषिकेश में फर्जी भर्तियों के मामले में सीबीआई का छापा पड़ चुका है जबकि दो दिन पूर्व फिर से सीबीआई द्वारा एम्स ऋषिकेश में मेडिकल उपकरण और दवा खरीद के मामले में बहुत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने की आशंका के चलते फिर से कार्यवाही की है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय देशभर में इस तरह की कार्यवाहियों को अंजाम दे रहा है जिसकी जद में दून मेडिकल अस्पताल भी आ सकता है। सूत्रों की मानें तो इसकी पटकथा लिखी जा रही है, यदि ऐसा हुआ तो एमआरआई मशीन की खरीद के अलावा अनेक मामले सामने आ सकते हैं।
भाजपा सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है। पिछली सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दिखावा करते रहे लेकिन उनके ही स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों का घोटाला होता है तो मुख्यमंत्री भी इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार थे। उन पर कार्यवाही होनी चाहिए। मुझे आश्चर्य होता है कि किस तरह से अधिकारियों ने कोरो फार्म पर हस्ताक्षर करके कंपनी को दिए जिससे जो चाहो वह लिखे ओैर जो चाहे अपने अनुसार विभाग लिखे। इसी मशीन को दूसरी कंपनी भी बेच रही है जिसकी जीएसटी बिल कॉपी से साफ हो जाता है कि यह मशीन तीन करोड़ 60 लाख की है। और सरकार इसे मनमाफिक कंपनी से 9 करोड़ में खरीद रही है। इससे साफ है कि करोड़ां की बंदरबांट और कमीशनखोरी की गई है। वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री धनसिंह रावत के कार्यकाल में दून अस्पताल में एमआरआई मशीन की खरीद प्रक्रिया शुरू की गई थी तो उनके संज्ञान में यह मामला है लेकिन तमाम शिकायतों और अनियमिताताओं पर उन्होंने चुप्पी साधे रखी। इसका एक ही मतलब है कि स्वास्थ्य मंत्री भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। हमें जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार केवल दो एमआरआई मशीनों की खरीद का ही नहीं है कई ऐसे मामले हैं जिनमें जमकर भ्रष्टाचार हुआ है और इसके लिए सीबीआई जांच होने की संभावनाएं है। कांग्रेस इसके लिए पूरा प्रयास करेगी।
करण माहरा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उत्तराखण्ड
एमआरआई मशीन का जो भी मेन मैटर था वह हरिद्वार कुंभ मेले का था। उसमें हमारा कोई रोल नहीं था। हमने तो सरकार के शासनादेश पर दून अस्पताल के लिए एमआरआई मशीन खरीदी है उसका टेंडर दिया था। गर्वमेंट ने आदेश दिया तो हमने खरीदा।
डॉ. आशुतोष सयाना, प्राचार्य राजकीय दून मेडिकल कॉलेज देहरादून
यह मामला बहुत टेक्निकल स्तर का है जिसके कारण सारी बातें तो बताई नहीं जा सकती लेकिन कई ऐसी शर्तें रख दी गई जो किसी भी सूरत में कोई निर्माता कंपनी पूरा नहीं कर सकती थी। जैसे तीन माह के भीतर मशीन का इन्सटॉल करने की शर्त रख दी गई जबकि भारत के अलावा विदेश में भी कोई भी ऐसी कंपनी जो एमआरआई मशीन का मैन्युफैक्चरिंग करती उसे मशीन को इन्सटॉल करने के लिए कम से कम चार से पांच महीने का समय लगता है। इसके बाद कुछ समय उसका संचालन और उसका निरीक्षण करने में लगते हैं तब जाकर मशीन मरीजों के लिए शुरू की जाती है। अगर आपातकाल में मशीन लग भी जाए तो उसकी क्षमता और उसकी गुणवत्ता पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
कमल उप्रेती, रीजनल मैनेजर फिलिप्स कंपनी
यह मामला वही तो नहीं है कि जिसमें चाईनीज कंपनी से मशीन खरीदी गई है। मुझे याद आ रहा है। लेकिन इसकी खरीद का पूरा मामला तो स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया गया है। मेरे द्वारा इसकी कोई प्रक्रिया नहीं की गई थी। मेला अधिकारी के तौर पर मेरे कार्यकाल में केवल दो टेंडर हुए थे जो फर्नीचर आदी के थे। कुंभ मेला प्रशासन फंड जारी करता है जो किया गया लेकिन खरीद और टेंडर आदी स्वास्थ्य विभाग ने ही की है। मुझे याद है कि तब यह कहा गया था कि चाईनीज कंपनियों से कोई समान नहीं खरीदना है लेकिन इसके लिए तो कैबिनेट से मंजूरी ली गई थी।
दीपक रावत, तत्कालीन कुंभ मेला अधिकारी एवं जिलाधिकारी हरिद्वार