डबल इंजन की सरकार से त्रस्त प्रदेश की जनता का रुझान कांग्रेस की तरफ जाता स्पष्ट नजर आने लगा है तो इसका एक बड़ा कारण पूर्व सीएम हरीश रावत हैं जिनकी सक्रियता ने एक बार फिर से राज्य में कांग्रेस को पुनर्जीवित कर डाला है। संकट लेकिन विभिन्न गुटों में बंटी पार्टी में सही प्रत्याशी चयन का है। भाजपा का गढ़ कहलाई जाने वाली कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र में सबसे मजबूत कांग्रेसी नेता महेश शर्मा पार्टी भीतर अन्य टिकट दावेदारों से कहीं आगे तो हैं लेकिन बड़े नेताओं का इगो कहीं उनकी राह का रोड़ा न बन जाए। यदि ऐसा हुआ तो एक बार फिर से यहां कमल खिलना तय है
उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनावों के नजदीक आने के साथ ही भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित सभी राजनीतिक दलों में दावेदार अपनी दावेदारी पुख्ता करने के लिए जनता के साथ-साथ अपने नेताओं की परिक्रमा करने में जुट गये हैं ताकि वो अपने दावे को मजबूती के साथ पेश कर सके। प्रचार के स्तर पर भारतीय जनता पार्टी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह सहित कई नेता उत्तराखण्ड का रूख कर चुके हैं वहीं आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया उत्तराखण्ड के चुनावी मैदान में सक्रिय हो चुके हैं। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है, उसके नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, उपनेता करन माहरा सहित चारों कार्यकारी अध्यक्ष अपनी विधानसभा क्षेत्रों के दायरों से कम ही बाहर निकल पा रहे हैं। इस वक्त कांग्रेस के प्रचार की बागडोर उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने संभाल रखी है। उत्तराखण्ड के सीमांत क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों तक हर विधानसभा में उनकी उपस्थिति नजर आ रही है। चुनाव नजदीक आने के साथ कमजोर और मजबूत दावेदारों के आकलन का दौर भी कांग्रेस पार्टी के अंदर शुरू हो चुका है। केंद्र द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षक विभिन्न स्तरों पर रायशुमारी कर दावेदारों की क्षमता का आकलन करके जा चुके हैं। जिस प्रकार दावेदारों के मध्यम चयन प्रक्रिया का पैमाना कांग्रेस ने तय किया है उससे लगता है कि इस बार कांग्रेस प्रत्याशी चयन में काफी सावधानी बरतना चाहती है। लेकिन इस चयन प्रक्रिया के बीच कांग्रेस के अंदर से ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या चुनाव आते-आते प्रत्याशी चयन का पैमाना कांग्रेस के आलाकमान द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों के मानदण्डों के अनुरूप ही होगा या फिर अंत में प्रत्याशी चयन का पैमाना बड़े नेताओं की पसंद-नापसंद के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह जाएगा?
उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनावों में जोर आजमाइश का केंद्र इस वक्त कुमाऊं का क्षेत्र बन गया है जहां से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित दोनों ही पार्टियों के कई महत्त्वपूर्ण नेता आते हैं। ये चुनाव भाजपा के लिए कितना खास है, ये इस बात से ही समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक सभा 24 दिसंबर को हल्द्वानी में प्रस्तावित है। कांग्रेस की बड़ी नेता इंदिरा हृदयेश के निधन के पश्चात् नैनीताल जिले की राजनीति में जो कांग्रेस के अंदर शून्य पैदा हुआ है उसे अब हरीश रावत भरने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इस शून्य को भरने के लिए उन्हें स्थानीय मजबूत नेताओं की जरूरत होगी, जनाधारविहीन दरबारियों की नहीं जिसका खामियाजा वो 2017 के विधानसभा चुनावों में भुगत चुके हैं। आज भी हरीश रावत के चारों ओर उन तत्वों का भरपूर जमावड़ा है जो उन्हें जमीनी हकीकत से शायद रूबरू नहीं होने देते। हल्द्वानी और उसके आस-पास की विधानसभा सीटें इस बार भी कांग्रेस के लिए उतनी आसान नहीं हैं जितना कांग्रेस पार्टी के कर्णधार समझ रहे हैं। कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो ये सीट कांग्रेस के लिए कभी आसान नहीं रही। वैसे भी इसे भाजपा, खासकर कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत का गढ़ माना जाता है। कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव नजदीक आने के साथ जिस प्रकार कांग्रेस के अंदर राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं और अंतर्विरोध खुलकर सामने आ रहे हैं।
वह कांग्रेस के लिए बहुत आशाजनक नहीं कहे जा सकते हैं। दावेदारों की लंबी सूची से जाहिर होता है कि चुनावी मशक्कत से पहले कांग्रेस को दावेदारों की लंबी कतार से जूझना होगा। महेश शर्मा, भोला दत्ता भट्ट, संजय किरौला, नीरज तिवारी, तारा नेगी, दीप सती, विजय सिजवाली, भागीरथी बिष्ट, भूपेंद्र सिंह बिष्ट उर्फ भाई जी, महेश काण्डपाल और जया कर्नाटक ने अपनी-अपनी दावेदारी पर्यवेक्षकों के सामने पेश की है। 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमा चुके पूर्व राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी इस बार चुनावी राजनीति के परिदृश्य से बाहर हैं। चुनावी दावेदारों की बड़ी लिस्ट में से कई पर प्रकाश जोशी का वरदहस्त है। संजय किरौला, तारा नेगी, नीरज तिवारी और दीप सती प्रकाश जोशी के समर्थक हैं। महेश शर्मा कांग्रेस की इंदिरा हृदयेश के निकटस्थों में थे वहीं भोला दत्त भट्ट पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कैंप के माने जाते हैं। विजय सिजवाली हरीश रावत के रिश्तेदार जरूर हैं लेकिन बताया जाता है कि वो कांग्रेस पार्टी में अपने उच्च पदस्थ संबंधों के चलते दावेदारी की दौड़ में हैं। परिसीमन के बाद बनी कालाढूंगी सीट पर 2012 से ही बंशीधर भगत का कब्जा रहा है। 2012 के विधानसभा चुनावों में बंशीधर भगत की जीत का अंतर महज साढ़े तीन हजार वोटों का था लेकिन 2012 के बाद हुए 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का कालाढूंगी विधानसभा सीट से जीत का अंतर बढ़ता ही गया। 2017 के विधानसभा चुनावों में बंशीधर भगत ने प्रकाश जोशी को बीस हजार से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया था। दरअसल, 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से महेश शर्मा ही टिकट के प्रबल दावेदार थे।
लेकिन ऐन वक्त पर राहुल गांधी के निकटस्थ प्रकाश जोशी के चुनाव मैदान में उतर जाने के कारण कांग्रेस पार्टी ने महेश शर्मा को टिकट नहीं दिया जिस कारण वो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतर कर प्रकाश जोशी की पराजय का कारण बने थे। महेश शर्मा अपने बूते साढ़े बाहर हजार वोट लेकर आए थे जब कि बंशीधर भगत की जीत का अंतर महज साढ़े तीन हजार वोटों का था। भाजपा की इस सीट पर मजबूती का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी को इस विधानसभा सीट से चालीस हजार से अधिक मतों से बढ़त मिली थी। 2017 का विधानसभा चुनाव प्रत्याशी और परिणाम की दृष्टि से एक प्रकार 2012 विधानसभा चुनावों का ही दोहराव था। इस चुनाव में बंशीधर भगत लगभग छियालीस हजार मत लाए थे जबकि प्रकाश जोशी लगभग छब्बीस हजार मत लाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। महेश शर्मा ने मोदी लहर के बावजूद निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना वोट बढ़ाकर बीस हजार कर लिया था। कांग्रेस पार्टी से निष्कासन के एक लंबे समय बाद प्रकाश जोशी के विरोध के बावजूद इंदिरा हृदयेश ने महेश शर्मा की कांग्रेस में वापसी करवा दी थी। प्रीतम सिंह की टीम में वो प्रदेश महामंत्री पद पर नियुक्त हुए थे। इस बार भी महेश शर्मा अपने टिकट के लिए पूरी तरह आश्वस्त हैं। भोला दत्ता भट्ट जो हल्द्वानी के ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं वो भी अपनी दावेदारी के लिए मजबूती के साथ खड़े हैं।
पिथौरागढ़ थल के निवासी भोला दत्त भट्ट को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के निकट लोगों में शुमार किया जाता है। बताया जा रहा है कि बदलते समीकरणों के चलते हरीश रावत का रूझान इस बार भोला दत्त भट्ट की ओर है, लेकिन उनके प्रत्याशी होने पर कांग्रेस के अंदर ही सवाल कम नहीं है। कांग्रेस के एक पूर्व पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस बार चुनावों में प्रत्याशी चयन में जरा सी चूक पार्टी के सत्ता पाने के सपने को फिर धाराशायी कर सकती है। उनका कहना है कि बड़े नेता का आशीर्वाद होना जीत की गारंटी कतई नहीं है। पिछले दो बार के विधानसभा चुनाव इसके उदाहरण हैं। राहुल गांधी का करीबी होना भी प्रकाश जोशी को नहीं जितवा पाया और 2017 में तो हार का अंतर खासा बढ़ गया। भूपेंद्र सिंह बिष्ट उर्फ भाई जी पूर्व जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। वहीं संजय किरौला दुग्ध संघ के अध्यक्ष, दीप सती कालाढूंगी नगर पंचायत के अध्यक्ष रह चुके हैं और नीरज तिवारी पूर्व जिला पंचायत सदस्य के साथ युवा भी हैं। हालांकि देखा जाए तो महेश शर्मा को छोड़कर इन सबका व्यापक जनाधार कितना है, इसका आकलन भी जरूरी है। इस सीट पर प्रकाश जोशी फैक्टर बहुत महत्त्वपूर्ण है।
जोशी स्वयं तो चुनाव न लड़ने की बात कह रहे हैं लेकिन खुलकर किसी प्रत्याशी का समर्थन करते भी नजर नहीं आ रहे हैं। उनकी इस चुप्पी के कई मायने निकाले जा रहे हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो जोशी अभी तक महेश शर्मा की बगावत के चलते हुई अपनी हार को पचा नहीं पा रहे हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि कहीं वे महेश शर्मा की दावेदारी का विरोध कर एक बार फिर से यह सीट भाजपा की झोली में डालने का काम न कर दें। महेश शर्मा यूं तो सबसे दमदार प्रत्याशी के तौर पर उभरे हैं लेकिन उनकी राह में प्रकाश जोशी के साथ-साथ भोला दत्त भट्ट भी आ खड़े हुए हैं। भट्ट को पूर्व सीएम हरीश रावत का समर्थक बताया जा रहा है। पार्टी भीतर कालाढूंगी सीट को लेकर आम कार्यकर्ता से लेकर प्रदेश स्तर तक के पदाधिकारियों का कहना है कि यहां पर भाजपा प्रत्याशी को यदि कोई परास्त कर सकता है तो वह केवल और केवल महेश शर्मा ही हैं।
लेकिन उनको पार्टी का टिकट मिलना बहुत कुछ प्रकाश जोशी और हरीश रावत पर निर्भर करता है। इस क्षेत्र में व्यापक जनाधार होने के बावजूद महेश शर्मा को यदि पार्टी टिकट नहीं देती है तो न केवल यहां से भाजपा के प्रत्याशी को परास्त कर पाना लगभग असंभव होगा, वरन् गलत टिकट बंटवारे के चलते पार्टी का अगले वर्ष सत्ता में वापसी के मिशन पर भी पलीता लग जाएगा। प्रदेश कांग्रेस के एक बड़े नेता का कहना है कि ‘माना पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व में जाने का फैसला किया है लेकिन ये तो स्वीकार करना ही होगा कि उत्तराखण्ड में आज भी कांग्रेस के पास हरीश रावत जैसा करिश्माई नेता दूसरा नहीं है जो मजबूत जनाधार और मजबूत संगठन की योग्यता रखता हो लेकिन जमीनी हकीकत ये भी है कि जीतने की क्षमता न रखने वाला प्रत्याशी सिर्फ हरीश रावत के नाम पर जीत कर आ जाएगा इसमें संदेह है। सामान्य समझ तो यही कहती है कि मजबूत नेतृत्व के साथ स्थानीय मजबूत प्रत्याशी जरूरी है।’