घोटालों का निगम/भाग-दो
देहरादून नगर निगम में पिछले कुछ दिनों से सरकारी जमीनों की बंदरबांट का खेल चल रहा है। निगम पार्षद पहले भी कई मामलों में भूमि अनुभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। ताजा प्रकरण में अधिकारियों की मिलीभगत से निगम के संरक्षण वाली एक जमीन का हाउस टैक्स मोहम्मद तारिक के नाम पर नौ नवंबर 2021 को निगम में जमा कर दिया जाता है। डालनवाला में जिस विवादित जमीन का हाउस टैक्स निगम अधिकारियों द्वारा जमा कर भूमाफिया को शह दी गई उसे कब्जामुक्त कराने को तत्कालीन महापौर विनोद चमोली को धरने पर बैठना पड़ा था। फिलहाल इस मामले में सूचना आयुक्त ने अधिकारियों को फटकार लगाते हुए एसआईटी जांच की जरूरत पर बल दिया है
देहरादून शहर में स्थित माधोराम बिल्डिंग का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आया है जिसमें करोड़ों की बेशकीमती जमीन को निगम के अधिकारियों द्वारा लुटवाने में सहयोग किया जा रहा है। यहां तक कि जो भूमि प्रामाणिक तौर पर निगम की है उसे निगम अपनी मानने से इसलिए इनकार कर रहा है क्योंकि उसका फायदा बाहरी प्रदेश के भू माफियाओं को मिल सके।
नगर निगम द्वारा लगभग साढे़ तीन बीघा भूखंड में सहारनपुर निवासी तारिक अतहर नाम के व्यक्ति के नाम हाउस टैक्स जमा कर किया गया जबकि उक्त भूमि 90 वर्ष से नगर निगम की संपति में दर्ज है। बावजूद इसके निगम के अधिकारियों द्वारा न सिर्फ हाउस टैक्स जमा किया गया यहां तक कि सूचना आयोग में निगम के अधिकारी ऐसा कोई प्रमाण तक प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं जिससे यह प्रामाणिक हो कि उक्त भूमि निगम की है। गौर करने वाली बात यह है कि इस भूमि पर सौ वर्ष से पूर्व नगर निगम की संपत्ति रजिस्टर है जिसमें उक्त सभी खसरों का उल्लेख है। पूर्व पार्षद विनय कोहली ने नगर निगम से इसकी जानकारी लेने का प्रयास किया लेकिन उनको भी सही और स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। इसके बाद विनय कोहली द्वारा इस मामले में सूचना का अधिकार के तहत जानकारी लेने के लिए निगम को पत्र लिखा जिसके बाद निगम में हड़कंप मच गया और इस मामले को दबाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने लगे। जिसमें सबसे पहले भवन कर पोर्टल में मोहम्मद तारीक अतहर द्वारा भवन कर की बाबत दी गई जानकारी को ही हटा दिया गया लेकिन नगर निगम द्वारा जारी की गई रसीद का कुछ नहीं किया जा सका।
सूचना के अधिकार में भी जो सूचना मांगी गई उसको देने के बजाय अन्य सूचना दी गई लेकिन भवन कर किस आधार पर लगाया इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया और सिर्फ सेल्फ असिसमेंट स्कीम के तहत नामांतरण एक्ट की धारा 213 के तहत कार्यवाही की जानकारी दी गई। इस पर विनय कोहली द्वारा 18 अप्रैल 2022 को प्रथम अपील दायर की गई जिस पर भी उनको स्पष्ट सूचना नहीं दी गई। नगर निगम द्वारा प्रथम अपील में यह सूचना दी गई कि संबंधित संपत्ति के भवन कर निर्धारण संबंधी प्रपत्र एवं संबंधित भू अभिलेख नगर निगम में धारित नहीं हैं। इसके अलावा नगर निगम भवन कर तो जमा कर देता है लेकिन भवन कर किस अभिलेख के आधार पर जमा किया गया वह अभिलेख नगर निगम में मौजूद ही नहीं है।
प्रथम अपील में भी स्पष्ट सूचना नहीं मिली तो पार्षद विनय कोहली ने सूचना आयोग में अपील दायर की जिसमें अपील संख्या 36121 के अनुसार राज्य सूचना आयुक्त द्वारा अपनी सुनवाई की गई और सुनावाई में नगर निगम द्वारा किए गए कारनामां की भी पोल खुल गई।
प्रथम अपील से पहले ही नगर निगम द्वारा इस मामले में एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी बना दी गई। जांच रिपोर्ट के आधार पर डाटा एंट्री को निरस्त कर दिया गया। गौर करने वाली बात यह है कि 1 दिसंबर 2021 को डाटा एंट्री निरस्त कर दी गई और जांच में यह पाया गया कि संबंधित अभिलेख निगम से गायब हैं।
बावजूद इसके निगम को इस मामले में मुकदमा दर्ज करवाने में तीन माह से भी ज्यादा का समय लगा। 3 मार्च 2022 को थाना डालनवाला में एफआईआर दर्ज करवाई गई। साथ ही इस मामले में दोषी पाए गए तीन आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। हाउस टैक्स जमा करने के लिए सेल्फ असिसमेंट स्कीम के तहत प्रस्तुत किए गए प्रपत्र की एक लंबी प्रक्रिया होती है जो डाटा एंट्री से लेकर ऑपरेटर कर अधीक्षक से होते हुए नगर आयुक्त तक पूरी फाइल जाती है और फिर इस पर अंतिम निर्णय लिया जाता है। इस मामले में भी ऐसा ही किया गया लेकिन कार्रवाई सिर्फ आउटसोर्सिंग कर्मचारियों पर की गई।
राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने अपनी टिप्पणी में भी इसका उल्लेख करते हुए लिखा है कि ‘यदि उल्लेखित नंबरों पर गलत तरीके से भवन कर जमा किया गया है तो इस पर महज कार्रवाई की औपचारिकता क्यों की गई। क्या यह कूट रचना/ षड्यंत्र सरकारी संपति को खुर्द-बुर्द करने, अभिलेखों को नष्ट करने का बड़ा गंभीर आपराधिक मामला नहीं है। क्या यह नगर निगम के प्रभावशाली पदां पर बैठे अफसरों/कर्मियों एवं जन प्रतिनिधियों की मिलीभगत के बिना संभव है। क्यों नहीं इसकी जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करवाई गई।’
सूचना आयुक्त ने मामले के सामने आने के दो माह बाद जांच करने की बात पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि ‘जब पार्षदों द्वारा हल्ला किया गया तब जांच समिति गठित की गई। इसके अलावा सूचना आयुक्त द्वारा नगर निगम के लेक सूचना अधिकारी को फटकार लगाते हुए अपने आदेश में सवाल उठाया है कि किस आधार पर कहा गया कि पत्रावली खो गई है। इससे यह साबित होता है कि लोक सूचना अधिकारी को पता था कि आवेदक किस संबंध में सूचना मांग रहा है। नगर निगम के प्रतिनिधि द्वारा बिल प्रस्तुत करते हुए बताया गया है कि बिल में भूमि संख्या लिखा हुआ है इस आधार पर पता लगाया गया कि अपीलार्थी द्वारा भूमि संख्या 495, 497, 508, 583, 792, 796 से संबधित सूचना मांगी जा रही है। परंतु प्रश्न यह है कि जब तारिक अतहर की पत्रावली खो गई है तो बिल कहां से आया। यदि बिल नगर निगम के कार्यालय में उपलब्ध है तो संभवतः पत्रावली भी नगर निगम कार्यालय में अवश्य होनी चाहिए।’
फिलहाल सूचना आयोग द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 अगस्त की तिथि तय की है जिसमें निगम को स्पष्ट निर्देश देते हुए सभी पत्रावलियों को आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश जारी किया गया है। साथ ही लोक सूचना अधिकारी पर 25 हजार का जुर्माना क्यों न लगाया जाए इसका भी जबाब मांगा गया है। अब इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए माधोराम बिल्डिंग के इतिहास को भी जानना होगा। वर्ष 1923 में रायपुर रोड स्थित कोतवाली डालनवाला के पीछे साढ़े 14 बीघा भूमि तत्कालीन नगर पालिका देहरादून द्वारा राय साहब जानकी दास एंड कंपनी को 90 वर्ष की लीज पर दी गई। इसके लिए लीज डीड बनाई गई जिसमें पूरे भूखंड का सीमांकन यानी चौहद्दी का उल्लेख किया गया। साथ ही लीज की अवधि समाप्त होने के बाद भूमि का स्वामित्व नगर पालिका देहरादून को वापस मिलने का भी उल्लेख किया गया।
अग्रेजों द्वारा देहरादून में भवन निर्माण के लिए कठोर नियम बनाए गए जिसमें कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां कम से कम पांच बीघा भूमि से कम भूखंड में आवासीय भवनों का निर्माण नहीं हो सकता था। आज डालनवाला में अनेक ऐसे बंगले हैं जो कि पांच बीघा भूमि से कम के नहीं हैं। इसी तरह से बसावट होती गई तो नियमों में कुछ ढील भी दी गई जिसमें पांच बीघा से लेकर दो बीघा तक के नियम बनाए गए। इस नियम के चलते आम आदमी के लिए देहरादून में आवास बनाना बेहद कठिन हो गया तो नगर पालिका द्वारा नियमों में कुछ ढील दी गई जिसमें भूखंडों पर आवासीय कॉलोनियों और क्वार्टर बनाने के लिए नियम बनाए गए। इसी नियम के तहत अनेक स्थानां पर भवन बनाने के लिए अनुमति दी गई लेकिन इस अनुमति में यह शर्त रखी गई कि उक्त आवासों को प्रशासन द्वारा किराया नियंत्रण के तहत आवंटित किया जाएगा और किराए का अधिकार आवास निर्माता को मिलेगा।
इसी नियम के तहत जानकी दास एंड कंपनी द्वारा साढ़े चौदह बीघा भूखंड में 32 भवनों का निर्माण करवाया गया और उन आवासों को निगम प्रशासन द्वारा रेट कंट्रोल के तहत जरूरतमंदों को आवंटित किए गए। शेष साढे़ तीन बीघा भूमि भविष्य में आवास बनाए जाने के लिए खाली छोड़ दी गई। इन 32 भवनों में पार्क की सुविधाएं भी दी गईं। शेष खाली पड़ी साढे़ तीन बीघा भूमि का उपयोग भवनों में रहने वाले निवासी खेल-कूद के लिए उपयोग करते रहे। राय साहब जानकी दास के निधन के बाद उनके चार पुत्रां और एक पुत्री के बीच जमीन-जायदाद को लेकर आपसी सेटलमेंट हुआ जिसमें 32 भवनां का माधोराम क्वार्टर उनके चार पुत्रां को मिला और खाली पड़ा साढे़ तीन बीघा भूखंड उनकी पुत्री को मिला जो कि उनके निधन के पश्चात् उनके पुत्र अनूप मित्तल को मिला। हैरत की बात यह है कि राय साहब जानकी दास की जमीन-जायदाद का सेटलमेंट हुआ लेकिन उसी सेटलमेंट में लीज पर दी गई भूमि का भी सेटलमेंट कर दिया गया। जो कि गैर कानूनी था। यह भूखंड नगर पालिका द्वारा 90 वर्ष लीज पर दिया गया था और भूमि पर बनाए गए आवास भी नगर पालिका द्वारा रेट कंट्रोल के माध्यम से आवंटित किए गए थे। राय साहब जानकी दास को केवल उक्त भवनों का किराया पाने का ही कानूनी अधिकार था जो कि विरासत में उनकी संतानों को मिल सकता था। लेकिन उनको इस पूरे भूखंड का सेटलमेंट प्राप्त कैसे हो गया यह सबसे बड़ा सवाल है।
पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद देहरादून नगर में जमीनों के भाव आसमान छूने लगे और हर जगह खाली पड़ी भूमि का उपयोग में लेने की होड़ सी मच गई। शहर के बीचों-बीच यह भूमि कई भू कारोबारियों की नजरों में खटकने लगी। चर्चा है कि इस भूमि को हड़पने के लिए कई बार प्रयास किए गए जिसमें सरकार से इसे आवंटित करवाने का भी जुगाड़ लगाया गया। बहरहाल वर्ष 2013 में माधोराम बिल्डिंग की लीज की अवधि समाप्त हो गई तो यह भूमि नगर निगम देहरादून के
स्वामित्व में स्वतः ही आ गई। इसके बाद इसमें खेल शुरू होने लगा। अचानक ही एक व्यक्ति मोहम्मद तारीक अतहर पुत्र सैय्यद मोहम्मद ताहिर निवासी 9/433 मोहल्ला मुफ्ती नगर सहारनपुर की एंट्री देहरादून में होती है और वह व्यक्ति खाली पड़ी साढे़ तीन बीघा भूमि का मलिकाना हक जताते हुए इस भूमि पर कब्जा लेने का प्रयास करता है।
भूमि को अपनी विरासत में पाई गई बताने के लिए दावा किया गया कि उक्त भूमि अब्दुल रज्जाक पुत्र जान अली एवं श्रीमती नसीबन पुत्री जान अली की थी जिसे नसीबन द्वारा 17 दिसबंर 1892 में अपने सगे भाई अब्दुल रज्जाक के हक में पंजीकृत किया गया था। फिर इस भूमि को अब्दुल रज्जाक द्वारा अपनी जीवनकाल में 1 मार्च 1945 में वसीयत द्वारा अपने भांजे मोहम्मद ताहिर के हक में कर दी गई क्योंकि अब्दुल रज्जाक की कोई संतान नहीं थी। मोहम्मद ताहिर द्वारा 30 अगस्त 1974 को अपने पुत्र मोहम्मद तारीक अतहर के हक में वसीयत कर दी।
मोहम्मद ताहिर की मौत के बाद मोहम्मद तारीक अतहर इस भूमि का मालिक है। 2017 में मोहम्मद तारीक अतहर न्यायालय से अपने पक्ष में निर्णय करवाने में सफल रहा और उक्त भूखंड को अपने कब्जे में लेने के लिए बड़े लाव-लक्सर के साथ भूमि पर आ धमका। इस तरह से भूखंड पर कब्जा करने को लेकर स्थानीय निवासियों और नगर निगम के करणपुर पार्षद विनय कोहली तथा वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व बार एसोसिएशन अध्यक्ष राजीव शर्मा द्वारा भारी विरोध किया गया। माधोराम बिल्डिंग के सभी निवासियों द्वारा हंगामा किया गया। हंगामे के चलते मुख्य नगर आयुक्त विजय जोगदंडे द्वारा भूखंड पर किए जा रहे कब्जे को लेकर डालनवाला थाने में शिकायत दर्ज करवाई गई और मामले को रोकने का प्रयास किया गया।
हैरत की बात यह है कि नगर निगम के साथ-साथ स्थानीय निवासियों द्वारा कब्जे की कार्यवाही का विरोध करने पर थाना डालनवाला पुलिस के तत्कालीन थानाध्यक्ष द्वारा स्थानीय निवासियों पर बल का प्रयोग तो किया ही गया साथ ही नगर आयुक्त के साथ भी अभद्रता की गई। इस मामले ने बड़ा तूल पकड़ा और एक आईएएस अधिकारी के साथ पुलिस अधिकारी के संग अभद्रता करने पर राज्य की आईएएस लॉबी ने इसे गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई की मांग की। आखिरकार सरकार ने डालनवाला थाना अध्यक्ष को निलंबित कर दिया और नगर निगम द्वारा मोहम्मद तारीक अतहर के मामले में न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। इस मामले में अधिवक्ता राजीव शर्मा ने नगर निगम को पूरा सहयोग करते हुए कानूनी लड़ाई बगैर किसी शुल्क के लड़ी और स्टे ऑर्डर प्राप्त किया। अधिवक्ता राजीव शर्मा स्वयं माधोराम आवासीय परिसर के एक भवन में रहते हैं। जहां उनका जन्म हुआ है। इसलिए वे इस भूमि के मालिकाना मामले को बेहतर जानते हैं।
मोहम्मद तारीक अतहर को उक्त भूखंड का कब्जा तो नहीं मिला लेकिन उसके प्रयास जारी रहे। इसके लिए फिर से एक नया खेल रचा गया और इसमें नगर निगम के अधिकारियों को उसका पूरा सहयोग मिला। 9 नवंबर 2021 को नगर निगम के भवन कर पोर्टल पर मोहम्मद तारीक अतहर द्वारा खसरा संख्या 497, 508, 576, 583, 792, 796 का 39671 रुपए भवन कर जमा करवाए गए जिसकी उसे रसीद भी जारी की गई।
जमीन नगर निगम की है, पहले भी वे लोग इस पर अपना अधिकार बता रहे थे। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से भी आदेश लाए थे, लेकिन तब हम उसके खिलाफ कोर्ट में गए, अब वे लोग हाइकोर्ट में चले गए हैं और अब मामला हाईकोर्ट में है। हाऊस टैक्स के मामले में पूरी जांच की गई थी जिस पर कार्रवाई की गई है।
मनुज गोयल, मुख्य नगर आयुक्त देहरादून नगर निगम
इस जमीन की लीज डीड में चौहद्दी दर्ज है। लीज समाप्त होने के बाद अचानक से मोहम्मद तारीक अतहर कैसे सामने आ गया जबकि पहले इस पर किसी ने कोई दावा नहीं किया था। नगर निगम कभी भी अपनी जमीनां के मामलों में न्यायालय में वकील खड़ा ही नहीं करता और न ही मुकदमे को मजबूती से लड़ता है। 2017 में मैंने स्वयं नगर निगम के पक्ष में स्टे दिलवाया था लेकिन नगर निगम आज भी अपनी जमीन को बचाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। हमने उत्तराखण्ड इसलिए नहीं बनाया कि कोई भी बाहरी आकर हमारी जमीनों को लूट सके। हम इंतजार कर रहे हैं कि नगर निगम इस मामले में स्वयं कार्रवाई करे, नहीं तो हम ही इस मामले को कानूनी तरीके से निपटाएंगे चाहे इसके लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े, हम पीछे नहीं हटेंगे।
राजीव शर्मा बंटु, वरिष्ठ अधिवक्ता, देहरादून
यह पूरी जमीन नगर निगम की है जो लीज पर दी गई थी। लीज की अवधि समाप्त होने के बाद स्वतः ही सारी भूमि नगर निगम को वापस मिल गई है लेकिन नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी बाहरी प्रदेश के एक भू माफिया को इस जमीन का मलिकाना हक देने के लिए षड्यंत्र कर रहे हैं। राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने इस मामले को अपनी सुनवाई में कड़ी फटकार भी लगाई है लेकिन नगर निगम फिर भी प्रयास कर रहा है कि यह भूमि मोहम्मद तारीक अतहर को मिल जाए। सूचना में भी जानकारी नहीं दी जा रही है। जान-बूझकर फाइलें गायब की जा रही हैं। हम इस जमीन को किसी भी सूरत में बिकने नहीं देंगे चाहे जो कुछ हो जाए।
विनय कोहली, पूर्व पार्षद, करणपुर देहरादून
जमीन नगर निगम की है, उसकी लीज खत्म हो गई और निगम ने लीज आगे नहीं बढ़ाई तो स्वतः ही जमीन और भवन सभी निगम की है। मेरे कार्यकाल में इसे कब्जाने के प्रयास हुए लेकिन हमने सख्ती से कार्रवाई की और जमीन को बचाया, अब नगर निगम से जमीन की फाइल गायब हो गई है तो यह बेहद गंभीर विषय है। फाइल गायब होना कोई छोटी बात नहीं है। इससे तो यह प्रतीत होता है कि इसमें नगर निगम की
मिलीभगत है। इसकी जांच होनी चाहिए और कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
विनोद चमोली, पूर्व मेयर एवं विधायक, धर्मपुर