- संतोष सिंह
आस्था का सबसे बड़ा केंद्र देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखण्ड अपने धार्मिक स्थलों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां ऐसे बहुत से मंदिर हैं जिनकी महिमा पूरे विश्वभर में फैली हुई है। इनमें से एक है पंचकेदारों में चतुर्थ केदार के रूप में प्रसिद्ध रुद्रनाथ का मंदिर। पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय पांडवों ने किया था। यहां दूर-दूर से लोग भगवान शिव के मुखाकृति के दर्शनार्थ आते हैं। लेकिन यात्रा में समुचित व्यवस्था न होने के चलते यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है
नैसर्गिक सौंदर्य के बीच स्थित पंचकेदारों में प्रसिद्ध चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ का मंदिर विराजमान है। हर वर्ष ग्रीष्मकाल में कपाट खुलने पर हजारों श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। पंच केदारों में भगवान रुद्रनाथ की सबसे कठिन यात्रा है। प्रशासन द्वारा यहां के पैदल मार्ग में किसी भी तरह की मूलभूत सुविधाएं की व्यवस्था नहीं की गई है जिससे यहां पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन एवं वन विभाग पैदल ट्रैक पर मूलभूत सुविधाओं को विकसित करती है तो इससे जहां तीर्थयात्रियों को लाभ मिलेगा वहीं स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा। जरूरत है तो केवल इच्छा शक्ति की। हालांकि इस बाबत कोई कदम अभी तक प्रशासन की ओर से नहीं उठाए गए हैं। बहरहाल, जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते तीर्थयात्रियों में भी नाराजगी है।
हिमालय में मखमली बुग्यालों के मध्य चतुर्थ केदार भगवान रूदनाथ का मंदिर संपूर्ण भारत में शिव का यह एक मात्र मंदिर है जहां उनके मुखारविंद के दर्शन श्रद्धालुओं को होते हैं। लगभग 2290 मीटर की उंचाई पर स्थित भगवान रुद्रनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालु लालायित रहते हैं। 22 किमी की कठिन यात्रा कर भगवान के दर तक पहुंचना हर किसी श्रद्धालु के लिए आसान नहीं होता है जिसके चलते यहां यात्राकाल में अन्य धामों से कम तीर्थयात्री एवं पर्यटक पहुंच पाते हैं। गोपेश्वर- सगर गांव होते हुए 22 किमी की पैदल यात्रा में कई किमी खड़ी चढ़ाई पार कर पनार बुग्याल पहुंचते हैं। चार-पांच किमी के क्षेत्र में फैले पनार बुग्याल पहुंच कर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को स्वर्ग-सा अहसास होता है। पनार बुग्याल चारों ओर से मखमली हरी घास के साथ दर्जनों किस्म के रंग-बिरंगे फूलों से भरा रहता है। जहां पहुंच कर श्रद्धालु की थकावट कुछ पलों में ही गायब हो जाती है। पनार बुग्याल के बाद चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ के लिए हल्की चढ़ाई के साथ सीधा मार्ग पड़ता है। पनार बुग्याल में वन विभाग का हट और एक-दो दुकानें हैं जहां पर श्रद्धालुओं द्वारा चाय-नाश्ता और खाना खाया जाता है। कुछ तीर्थयात्री यहां पर रात्रि विश्राम भी करते हैं, लेकिन 10-20 तीर्थयात्रियों से अधिक ठहरने की व्यवस्था नहीं है। लिहाजा अधिकतर श्रद्धालु धीरे-धीरे हल्के कदमों से आगे बढ़ते हुए रात्रि विश्राम के लिए मंदिर परिसर में पहुंचते हैं। जहां पर मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओं को ठहरने की उचित व्यवस्था है।
भगवान रुद्रनाथ ट्रैक पर घोड़े-खच्चर की भी ज्यादा व्यवस्था नहीं है, केवल स्थानीय लोगों के लगभग दर्जन भर घोड़े-खच्चर ही यहां चलते हैं। जबकि अधिकतम तीर्थयात्रियों और पर्यटकों द्वारा पैदल ही इस मार्ग पर आगे बढ़ा जाता है। तीर्थयात्रियों को सबसे अधिक परेशानी तब होती है जब यहां हर समय मौसम बदलता रहता है। पैदल रास्ते पर चमोली प्रशासन एवं केदारनाथ वन प्रभाग द्वारा किसी तरह के स्थाई-अस्थाई टेंट तक की व्यवस्था नहीं की गई है और न ही कहीं पीने के पानी की व्यवस्था है। भगवान रुद्रनाथ की यात्रा पर सभी श्रद्धालु बाजार से या घर से ही अपनी व्यवस्था करके दर्शन के लिए पहुंचते हैं। प्रशासन द्वारा इस कठिन मार्ग पर सुरक्षा और मेडिकल की भी कोई व्यवस्था नहीं है। जिस पर देश-प्रदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। अभी दो सप्ताह पूर्व ही तमिलनाडु की एक महिला श्रद्धालु घोड़े से गिर गई थी, मेडिकल व्यवस्था न होने पर उसे किसी तरह उपचार के लिए गोपेश्वर जिला अस्पताल पहुंचाया गया। जहां इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज किया गया। दूसरी ओर पैदल मार्ग पर अधिकतर समय बारिश होती रहती है, ऐसे में श्रद्धालुओं को बारिश से बचने के लिए अस्थाई टेंट तक की व्यवस्था प्रशासन और वन विभाग द्वारा नहीं की गई है जिससे तीर्थयात्रियों के खाने के सामान के साथ ही अन्य बदलने वाले कपड़े भी रास्ते में भीग जाते हैं।
रुद्रनाथ यात्रा पर गई महिला तीर्थयात्री ज्योति कंडारी द्वारा पैदल रास्ते में मूलभूत सुविधा न होने पर शासन-प्रशासन एवं वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। ज्योति कंडारी अपने साथियों के साथ रूद्रनाथ पैदल मार्ग पर भारी बारिश से पूरी तरह भीग गए थे, साथ ही उनके खाने का सामान और कपड़े भी भीग गए थे। तब उन्होंने एक पहाड़ी के नीचे शरण लेकर अपना बचाव किया। उन्होंने कहा कि वन विभाग इतनी बड़ी मात्रा में टैक्स लेता है कम से कम पैदल मार्ग पर बारिश से बचने के लिए कुछ अस्थाई टेंट या अन्य व्यवस्थाएं कर सकता है। धामों में बुजुर्ग लोग तीर्थयात्रा के लिए आते हैं, यहां पैदल मार्ग पर कोई भी व्यवस्था नहीं होते हैं। ऐसे में कैसे लोग धाम के दर्शन कर पाएंगे?
रुद्रनाथ मंदिर: प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रुद्रनाथ मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई थी। इस मंदिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में किया गया था। रुद्रनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में बताया गया है कि महाभारत युद्ध के दौरान जब पांडवों ने कौरवों को मार कर विजय प्राप्त की। तब पांडवों को गोत्र हत्या और ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया था। वह इस पाप का प्रायश्चित करना चाहते थे। उन्होंने अपने राज्य की बागडोर परिवार के अन्य सदस्यों को सौंप दी और धर्मगुरुओं की सलाह पर भगवान शिव की खोज के लिए निकल गए। भगवान शिव की तलाश में वे सर्वप्रथम काशी में गए लेकिन उन्हें वहां भगवान शिव नहीं मिले तो उनकी खोज में वे हिमालय पर्वत की ओर निकल पड़े। भगवान शिव महाभारत युद्ध के कारण पांडवों से नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। वे एक बैल का रूप धारण कर हिमालय की पहाड़ियों पर चले गए। भीम ने भगवान शिव को बैल के रूप में पहचान लिया और उनके पैर एवं पूंछ को पकड़ लिया लेकिन भगवान शिव वहीं समा गए। जिस स्थान पर भगवान शिव के शरीर के भाग गिरे उन्हें पंच केदार कहा जाता है। इन्हीं पंच केदारों में से एक रुद्रनाथ भी है। रुद्रनाथ में भगवान शिव का चेहरा प्रकट हुआ था। भगवान शिव से आशीर्वाद मिलने के बाद जिस स्थान पर भी भगवान शिव के शरीर के भाग गिरे थे उस स्थान पर पांडवों ने मंदिर का निर्माण किया था।
रुद्रनाथ मंदिर का महत्व: भगवान रुद्रनाथ मंदिर का अपना खास महत्व है। इस मंदिर के चारों ओर सूर्य कुंड, चंद्र कुंड, तारा कुंड और मानस कुंड विराजमान हैं। रुद्रनाथ मंदिर के आस-पास नंदा देवी, त्रिशूल और नंदा घुंटी जैसी चोटियां हैं। जो इसकी सुंदरता को और बढ़ा देती हैं। पंच केदार के अन्य मंदिरों की तुलना में यहां पर पहुंचना अधिक कठिन है। मंदिर में दर्शन से पहले सभी नारद कुंड में स्नान करते हैं। रुद्रनाथ मंदिर में मानव चेहरे के आकार वाला शिवलिंग विराजमान है। इस मंदिर के पास ही बैतरणी नदी बहती है। कहा जाता है कि इस नदी में नहाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शीतकाल में गोपीनाथ मंदिर में होते हैं दर्शन
ग्रीष्मकाल में हिमालय में स्थित भगवान रूद्रनाथ के दर्शन श्रद्धालुओं को छह माह में होते हैं, वहीं शीतकाल में रूद्रनाथ के कपाट बंद होने के बाद छह माह गोपेश्वर गोपीनाथ मंदिर में दर्शन होते हैं। जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं और पूजा- अर्चना करते हैं। गोपेश्वर के भट्ट और तिवारी लोग यहां के मुख्य पुजारी होते हैं।
रक्षाबंधन व महाशिवरात्रि पर्व
हर वर्ष रक्षाबंधन और महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान रूदनाथ में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और यहां भव्य मेला आयोजित होता है। सदियों से आ रही अपनी मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन पर्व पर बेमरू और डुमक गांव वाले यहां पूजा-अर्चना करते हैं। एक वर्ष रक्षाबंधन पर बेमरू गांव के ग्रामीण लाटा लिंग जाख देवता के सान्निध्य में पूजा लेकर रूद्रनाथ मंदिर पहुंच कर भव्य पूजा- अर्चना करते हैं। वहीं दूसरे वर्ष डुमक गांव के ग्रामीण बजीर देवता के सान्निध्य में भगवान रुद्रनाथ में पूजा-अर्चना करते हैं। यह परम्परा सदियों से होकर आ रही है जिसे आज भी अनवरत निभाया जा रहा है।