उत्तराखण्ड की सियासी पिच पर इन दिनों बैकफुट और फ्रंट फुट का खेल चल रहा है। यह खेल पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बीच खेला जा रहा है। धामी ने यूके ट्रिपल एससी घोटाले सहित 8 भर्तियों में जांच के आदेश कर मास्टर स्ट्रोक ठोक दिया है। जिन भर्तियों की जांच हो रही है उनमें से कई मामले त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल के हैं। जिस त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार पर ईमानदारी का ठप्पा लगा था फिलहाल वह छवि दरकती हुई नजर आ रही है। पुष्कर सिंह धामी के सामने चुनौती यह है कि उन्होंने जांच तो शुरू करा दी, लेकिन अगर जांच में खुलासे हुए तो यह खुलासे भाजपा की साख को भी बट्टा लगा सकते हैं या उन्हें युवाओं के रोल मॉडल बना सकते हैं। बहरहाल, युवाओं के भविष्य से जुड़े इस बेहद संवेदनशील मामले में धामी ने जोखिम उठा नई राजनीतिक परिभाषा तो गढ़ ही दी है
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि 15 अगस्त को जब लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ निर्णायक युद्ध का आह्नान किया, उसी दिन मुख्यमंत्री पु्ष्कर सिंह धामी ने भी ऐलान किया है कि उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पेपर लीक घोटाले के किसी भी भ्रष्टाचारी को बख्शा नहीं जाएगा। यही नहीं बल्कि धामी ने कहा कि कोई कितना भी ताकतवर और रसूखदार हो, अगर दोषी पाया गया तो उसे जेल के सींखचों के पीछे धकेला जाएगा।
उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में भर्ती घोटालों में सक्रिय भूमिका निभाने वाला गैंग उत्तराखण्ड की सियासत में गहरे धंस चुका है, यह बहुत कम लोगों को पता था। यूके ट्रिपल एससी भर्ती घोटाले का मामला सामने आया तो एक के बाद एक सभी घोटाले बेपर्दा होने लगे। अब हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि सभी परीक्षाओं में गड़बड़ियां पूरी तरह बेपर्दा हो गई हैं। धामी सरकार को एक के बाद एक परीक्षाओं का परीक्षण कराने पर विवश होना पड़ रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर यह जिम्मेदारी आ गई है कि जनता के मन में भर्तियों को लेकर जो अविश्वास घर कर गया है, उसे कैसे समाप्त किया जाए? 7 सितंबर को जिस तरह देहरादून में बेरोजगारों का जनसैलाब प्रदर्शन कर रहा था, उससे लग रहा है कि जनता में बढ़ रहे आक्रोश से हालात खराब होने लगे हैं। ऐसे में राज्य में बेरोजगारों के मुद्दों का एक नया सियासी संकट दिखाई दे रहा है। इस संकट को केंद्रीय नेतृत्व बखूबी महसूस कर रहा है। इसके मद्देनजर ही भाजपा आलाकमान को 2024 की चिंता सताने लगी है।
2024 की लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल कांग्रेस कहीं उत्तराखण्ड के भर्ती घोटाले को तूल न दे दे, यह भविष्य की बात है। लेकिन वर्तमान में जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भर्ती घोटालों की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है, उससे उन्होंने अपनी ही पार्टी की सरकार की घेराबंदी कर विपक्ष को मौका दे दिया है। इससे विपक्ष गदगद है। गदगद इसलिए है कि जो काम विपक्ष चाहता है वह सत्ता पक्ष के पूर्व मुख्यमंत्री कर रहे हैं। ऐसे में जब पूरी भारतीय जनता पार्टी उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पेपर लीक कांड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के त्वरित एक्शन और एसटीएफ जांच के फैसले के साथ खड़ी नजर आई तब त्रिवेंद्र सिंह रावत पार्टी लाइन से इतर जाकर बयानबाजी करते नजर आए। यही नहीं विधानसभा बैकडोर भर्ती पर बवाल मचा तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी कमीज उजली दिखाने के चक्कर में प्रेमचंद अग्रवाल से लेकर पूरी सरकार को अपने बयानों से कटघरे में खड़ा कर दिया।
हालांकि पेपर लीक कांड में जिस हाकम सिंह को मास्टर माइंड कहा गया उसके साथ फोटो तो तमाम भाजपाई नेताओं के दिखे, लेकिन जिस गर्मजोशी और खुशी से त्रिवेंद्र सिंह रावत हाकम सिंह रावत को गले लगाए नजर आए, उसने कई सवाल खड़े किए हैं। बात यहीं तक नहीं रुकती है बल्कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के राज में हाकम के गांव तक सरकारी हेलीकॉप्टर उतारने का कारनामा भी सामने आ गया। इतना ही नहीं बल्कि जब प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार थी, तब 2018 में इसी हाकम सिंह पर त्रिवेंद्र सिंह सरकार मेहरबान हो गई थी। उस दौरान वन आरक्षी भर्ती घोटाले में हाकम सिंह का नाम आने के बावजूद भी रहस्यमय तरीके से उसे क्लीन चिट दे दी गई। हाकम सिंह के साथ तस्वीरों के वायरल हो जाने के बाद बुरी तरह घिर चुके पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह अपने बचाव में उल्टे हाकम को भाजपा नेता बता अपना पिंड छुड़ाना चाहा और सीबीआई जांच को बेहतर विकल्प बता डाला। उससे पहले आयोग को भंग करने का उनका बयान भी आ ही चुका था।
शायद यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिल्ली तलब कर लिया। उत्तराखण्ड में यूकेएसएसएससी पेपर लीक, विधानसभा बैकडोर भर्ती, वन दारोगा भर्ती घोटाले सहित कई मामलों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात चर्चाओं में है। नड्डा से मुलाकात करने के बाद त्रिवेंद्र ने भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं से पार्टी कार्यालय में भी मुलाकात की है। सूत्रों की मानें तो राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी से त्रिवेंद्र की करीब एक घंटे तक बात हुई हैं। पार्टी के आला नेताओं से उनकी मुलाकात के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया है।
भाजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को सख्त हिदायत दी गई है कि वह भर्ती घोटाले मामले में ज्यादा बयानबाजी न करें। सुनने में तो यहां तक आ रहा है कि यूके ट्रिपल एससी घोटाले के मुख्य आरोपी हाकम सिंह का त्रिवेंद्र कनेक्शन भी पार्टी हाईकमान को परेशान कर रहा है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि हाईकमान के समक्ष हाकम सिंह प्रकरण पर त्रिवेंद्र सिंह सफाई देते रहे। कहा जा रहा है कि यूके ट्रिपल एससी घोटाले में हाकम सिंह के साथ अपनी मुस्कुराती तस्वीरों के मद्देनजर त्रिवेंद्र सिंह रावत बैकफुट पर हैं। इस प्रकरण से वह उबरना चाहते थे। इसी दौरान विधानसभा भर्ती प्रकरण सामने आ गया। जिसमें उन्होंने सीबीआई जांच की मांग कर धामी सरकार को निशाने पर लेने का सियासी वार चल दिया। क्योंकि प्रेमचंद अग्रवाल का विधानसभा भर्ती प्रकरण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पहले और दूसरे कार्यकाल से जुड़ा है। इसके चलते भी त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर सियासी पलटवार करते दिखते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अलावा विधानसभा भर्ती घोटाले में घिरे प्रदेश के कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से भाजपा के प्रभारी दुष्यंत गौतम की मुलाकात भी
चर्चाओं के केंद्र में है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के दिल्ली पहुंचने और कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के प्रभारी दुष्यंत गौतम से मुलाकात के सियासी मायने तलाशने शुरू हो गए हैं। इन मुलाकात के बाद दिल्ली से लेकर देहरादून तक सियासी पारा चढ़ा हुआ है।
उधर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भर्ती घोटाले में फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं। मुख्यमंत्री ने आठ विभागों में विभिन्न भर्तियों की भी जांच के आदेश देकर अपनी जीरो टॉलरेंस नीति को प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाया हैं। इसमें वी डी ओ भर्ती घोटाला, स्नातक स्तरीय भर्ती घोटाला, सचिवालय रक्षक भर्ती घोटाला, दरोगा भर्ती 2015 घोटाला, वन आरक्षी भर्ती 2015 घोटाला, कनिष्ठ सहायक न्यायिक भर्ती घोटाला, वन दरोगा भर्ती परीक्षा घोटाला तथा यूजेवीएन(एई) भर्ती घोटाला शामिल है। बहरहाल, उत्तराखण्ड के 22 सालों के इतिहास में पुष्कर सिंह धामी सरकार पहली ऐसी सरकार बन गई है जिसने एक साथ कई घोटालों की जांच के आदेश दिए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर चिंतित केंद्रीय आलाकमान को भी पुष्कर सिंह धामी के जांच के इन फैसलों में राहत मिलती दिखाई दे रही है। पुष्कर सिंह धामी जिस तरह से जांच के आदेश कर करप्शन पर सर्जिकल स्ट्राइक कर रहे हैं, उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही पार्टी मुखिया जेपी नड्डा आश्वस्त नजर आ रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि 2024 से पहले ही ऐसी व्यवस्था बना दी जाएगी कि कोई इस तरह से भ्रष्टाचार करने की कल्पना भी नहीं करेगा। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के प्रमुख नौकरशाहों से गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं।
प्रदेश की जनता का कहना है कि इन घोटालों के पीछे राजनीतिक किरदार छिपे हुए हैं, उन्हें छिपाए रखने की कवायद क्यों की जा रही है? यदि राज्य बनने के साथ ही उत्तराखण्ड में भ्रष्टाचार की गंगा बहनी शुरू हुई तो ऐसे ही राजनीतिक लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं। क्या ऐसे लोगों को बेनकाब नहीं किया जाना चाहिए? भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं को क्या सजा मिलनी चाहिए? क्या बेरोजगारों के हकों पर डाका डालने वाले ऐसे सफेदपोशो को जेल की सलाखों के पीछे नहीं होना चाहिए? फिलहाल यह ऐसे सवाल हैं जो नेताओं के द्वारा ठगी गई उत्तराखण्ड की जनता के दिलों-दिमाग में चल रहे हैं।
बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सख्त फैसलों, उनके कार्यकाल में हो रहे इन खुलासों और उनके द्वारा हर बार अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई के उनके तेवरों की जनता मुरीद हो रही है। उत्तराखण्ड के अधिकतर लोगों का कहना है कि फिलहाल पुष्कर सिंह धामी के पास राज्य में युवाओं और आम जनता के बीच हीरो बनने का बड़ा मौका है। बस वह सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे युवाओं की बात सुनें और एक बार फिर से सरकारी नौकरियों में भाई-भतीजावाद और धनबल के आधार पर सरकारी नौकरियों में सीढ़ी बनाकर घुसे कर्मियों को बाहर करने के लिए कड़े कदम उठाएं। हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है। जब तक इन भर्ती घोटालों की एसआईटी और विजिलेंस जांच तथा विधानसभा प्रकरण की जांच कमेटी निर्णय नहीं ले लेती है, तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा।
फिलहाल तो देखने में यही आ रहा है कि विधानसभा में बैकडोर से नियुक्तियों पर मुख्यमंत्री धामी के तेवर सख्त दिख रहे हैं। हालांकि सब जानते हैं किविधानसभा की नौकरियों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है और वहां तैनात ज्यादातर लोग राज्य में भाजपा, कांग्रेस, संघ, पत्रकारों के सगे संबंधी हैं। ऐसे में उन्हें नौकरी से निकालने का अगर जोखिम राज्य सरकार ले भी लेती है तो वे न्यायालय से विधान सभा अध्यक्ष के उन अधिकारों की दुहाई देकर अपनी बहाली कराने की हर संभव कोशिश कर सकते हैं। लेकिन जांच के बाद यदि सरकार उन कर्मियों को हटाने का जोखिम लेती है, भले ही इसके बाद वे कोर्ट से बहाली करवा लें, तो यह भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत संदेश माना जाएगा।
हालांकि विधानसभा भर्ती मामले में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल अपनी गलती को स्वीकार कर माफी मांग रहे हैं। प्रेमचंद अग्रवाल जो वर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं। अपने विशेषाधिकार की आड़ लेकर अपनी हनक दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं। प्रेमचंद अग्रवाल पर भर्ती के अलावा अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए एक साल के अंदर उप सचिव से सचिव बनाकर मुकेश सिंघल को तीन प्रमोशन देने का भी आरोप है, जिसे वह स्वीकार करते हैं और ऐसा करने के लिए अपने विशेषाधिकार की हनक दिखाने से भी बाज नहीं आते।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा भर्तियों में घोटालों की जांच के बड़े कदमों को उठाने के बाद अब सीबीआई जांच को लेकर भी अंदरखाने तैयारी की बात होने लगी है। विपक्ष की सीबीआई जांच के मांग के बाद धामी सरकार पर चौतरफा दबाव बनने लगा है। अगर धामी सरकार ऐसा कदम उठाएगी तो बड़े खुलासे होने तय हैं। जिससे धामी सरकार को अपनी इमेज सुधारने का मौका मिल जाएगा। गौरतलब है कि इसी साल फरवरी में ऋषिकेश स्थित एम्स हॉस्पिटल में हुए भर्ती प्रकरण में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सीबीआई जांच करा कर सुर्खियां बटोर चुके हैं। एम्स ऋषिकेश में 2018 से 2020 के बीच 800 नर्सिंग पदों पर भर्ती हुई थी, जिसमें 600 पद राजस्थान से भरे गए। इस भर्ती में घोटाले का सबूत यह है कि राजस्थान के एक ही परिवार के छह लोग भर्ती हुए हैं। इस मामले में सीबीआई गहराई से जांच कर रही है।
इन पर कसा जा सकता है शिकंजा
उत्तराखण्ड की राजनीति में इन दिनों एक के बाद एक भर्तियों के घोटाले बाहर आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर कई मंत्रियों के पत्र वायरल हो रहें हैं जिनमें उन पर अपने लोगों को नौकरियां बांटने के आरोप लग रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जहां अपनी सरकार में मंत्रियों को हिदायत देते रहे हैं कि वे भ्रष्टाचार को पनपने न दें। ऐसे में आरोपी मंत्रियों पर कार्रवाई की तलवार लटकती दिखाई दे रही है। फिलहाल, सभी की नजर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर है कि क्या वह ऐसे मंत्रियों पर लगाम लगाकर जनता की नजरों में रॉबिन हुड बन पाएंगे या किसी फ्लॉप फिल्म की कहानी बनकर रह जाएंगे।
एक मामला पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के रिश्तेदारों को नौकरी देने को लेकर सामने आ रहा है। इससे संबंधित एक पत्र वायरल हो रहा है जो सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहा है। इस वायरल पत्र में अरविंद पांडे के 8 रिश्तेदारों के नाम शामिल हैं। आरोप है कि अरविंद पांडे ने मंत्री रहते हुए अपने भाई- भतीजे और दामाद को नौकरियों पर लगवाया था। पत्र में जो दावा किया गया है उसके अनुसार अरविंद पांडे ने शिक्षा मंत्री रहते न केवल अपने सगे-संबंधियों को नौकरियों पर रखा बल्कि प्रदेश से बाहर बिहार के लोगों को भी नौकरियों की रेवड़ियां बांटी। इस पत्र के वायरल होने के बाद से प्रदेश की राजनीति में बाहरी प्रदेश के लोगों को उत्तराखण्ड में नौकरी देने के चलते स्थानीय बनाम बाहरी की बहस भी शुरू हो गई है।
कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य का मामला भी सोशल मीडिया की सुर्खियों में है। वह पहले से ही अपने पति के कारनामों की वजह से चर्चा के केंद्र में रही हैं। कभी जमीन घोटाले तो कभी बेनामी संपत्ति तो कभी किडनी कांड में रेखा आर्य के पति गिरधारी लाल साहू उर्फ पप्पू का नाम सामने आता रहा है। इससे रेखा आर्य की काफी छिछालेदार होती रही है।
इस बीच कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य का एक पत्र सोशल मीडिया में वायरल हुआ है। जिसमें वह चार लोगों को भर्ती करने का आदेश अधिकारियों को दे रही हैं। इस पत्र के सामने आने के बाद रेखा आर्य का एक बयान चर्चाओं में है, जिसमें वह कह रही हैं कि हां उन्होंने पत्र लिखा है, ऐसे ही पत्र वह आगे भी लिखती रहेंगी। यहां यह भी बताना जरूरी है कि रेखा आर्य पर पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का हाथ है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी कोश्यारी के ओएसडी रह चुके हैं। ऐसे में क्या वह कोश्यारी की शह पाए मंत्री पर शिकंजा कस पाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
इसके अलावा सहकारिता विभाग में भी सहकारी बैंकों और विभाग में भर्ती को लेकर आरोप लग रहे हैं। सहकारिता विभाग डॉक्टर धन सिंह रावत के पास है। भाजपा की पिछली सरकार में भी धन सिंह रावत ही सहकारिता मंत्री थे। बताया जा रहा है कि सहकारिता विभाग में ये भर्तियां धन सिंह रावत के उसी कार्यकाल की हैं। सहकारिता विभाग हमेशा से बदनाम रहा है। इस विभाग पर सबसे ज्यादा मनमानी के आरोप लगते रहे हैं। सरकार जिस भी पार्टी की रही हो, सहकारिता विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप हमेशा लगे हैं। इस बार सहकारिता डॉ मंत्री धन सिंह रावत पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने विभाग में घोटालों के आरोप लगाए हैं। इस बाबत वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मिले हैं। धामी ने गोदियाल को जांच कराने का भी आश्वासन दिया है। याद रहे कि डॉक्टर धन सिंह रावत संघ के खास नेताओं में शुमार हैं। वह उन नेताओं में गिने जाते हैं जिन पर संघ का आशीर्वाद रहा है।
इसी के साथ ही धन सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के शिष्यों में भी गिना जाता है। धन सिंह रावत का यही मजबूत पक्ष उन्हें राजनीतिक रूप से बल प्रदान करता रहा है। समय-समय पर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने पर भी उनके नाम की चर्चाएं चलती रही हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहकारिता विभाग में हुई अनियमितताओं के आरोपों की जांच कराने का साहस कर पाएंगे?
आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल कांग्रेस कहीं उत्तराखण्ड के भर्ती घोटालों को तूल न दे दे, यह भविष्य की बात है। लेकिन फिलहाल वर्तमान में जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भर्ती घोटालों की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है, उससे उन्होंने अपनी ही सरकार की घेराबंदी कर विपक्ष को मौका दे दिया है। इससे विपक्ष गदगद है। गदगद इसलिए है कि जो काम विपक्ष चाहता है वह सत्ता पक्ष के पूर्व मुख्यमंत्री कर रहे हैं। ऐसे में जब पूरी भारतीय जनता पार्टी उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पेपर लीक कांड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के त्वरित एक्शन और एसटीएफ जांच के फैसले के साथ खड़ी नजर आई तब त्रिवेंद्र सिंह रावत पार्टी लाइन से इतर जाकर बयानबाजी करते नजर आए। यही नहीं बल्कि विधानसभा बैकडोर भर्ती पर बवाल मचा तो त्रिवेंद्र रावत ने खुद को बेदाग दिखाने के चक्कर में प्रेमचंद अग्रवाल से लेकर पूरी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया
पेपर लीक कांड में जिस हाकम सिंह को मास्टर माइंड कहा गया, उसके साथ फोटो तो तमाम भाजपाई नेताओं के दिखे, लेकिन जिस गर्मजोशी और खुशी से त्रिवेंद्र सिंह रावत हाकम सिंह रावत को गले लगाए नजर आए उसने कई सवाल खड़े किए हैं। बात यहीं तक नहीं रुकती है बल्कि त्रिवेंद्र के राज में हाकम के गांव तक सरकारी हेलीकॉप्टर उतारने का कारनामा भी सामने आया। इतना ही नहीं बल्कि जब प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार थी तब 2018 में इसी हाकम सिंह पर त्रिवेंद्र सरकार मेहरबान थी। उस दौरान वन आरक्षी भर्ती घोटाले में हाकम का नाम आने के बावजूद भी रहस्यमय तरीके से उसे क्लीन चिट दे दी गई। हाकम सिंह के साथ तस्वीरों के वायरल हो जाने के बाद बुरी तरह घिर चुके पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपने बचाव में उल्टे हाकम को भाजपा नेता बता अपना पिंड छुड़ाना चाहा और सीबीआई जांच को बेहतर विकल्प बता डाला। जबकि उससे पहले आयोग को भंग करने का उनका बयान भी आ ही चुका था