बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े शंकर सिंह कोरंगा छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहे। 1998 में भाजपा की विधिवत सदस्यता ग्रहण करने वाले कोरंगा 2010 में तत्कालीन राज्यसभा सांसद भगत सिंह कोश्यारी के प्रतिनिधि और 2012 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश मंत्री रह चुके हैं। हल्द्वानी नगर निगम के प्रस्तावित चुनाव में मेयर पद के सम्भावित उम्मीदवार शंकर सिंह कोरंगा से हमारे प्रमुख संवाददाता संजय स्वार की बातचीत के अंशः
आप एक समाज सेवी और राजनीतिज्ञ की दोहरी भूमिका में हैं खुद को आप इनमें से किसमें ज्यादा सहज पाते हैं?
देखिए, समाज सेवा और राजनीति मुझे एक ही लगती है। समाज सेवा मेरा जुनून है। राजनीति मरे लिए पेशा नहीं है। राजनीति मेरे लिए सिद्धांतों का आधार है जिसे मैं जनता के हितों के लिए करता हूं। हां कभी समाज सेवा के लिए राजनीतिक आधार भी जरूरी होता है। मेरी राजनीति और समाज सेवा का मूलभूत आधार जनता का हित है। सामाजिक जीवन में आम जन के सुख-दुख में खड़ा होना, उनकी समस्याओं में उनके साथ खड़ा होना उनकी समस्याओं का निवारण यही मेरी हमेशा से प्राथमिकता रही है। मेरी दिनचर्या की शुरुआत ही समाज सेवा से होती है। जब मैं प्रातःकालीन भ्रमण पर भी निकलता हूं तो मानिए कि मेरी समाज सेवा का कार्य शुरू हो जाता है और देर रात ये सिलसिला चलता है।
आप समाज सेवा करते-करते एक राजनीतिज्ञ कैसे बन गए या कहें भाजपा से जुड़ाव कैसे हो गया?
मैं बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गया था। जहां मैं लगातार मुख्य शिक्षक रहा। संघ मेरा मातृ संगठन है। जहां कार्य करते-करते एक -दूसरे के संपर्क में आकर मेरी संघ में भूमिका बढ़ती गई। 1996 में मैं भारतीय जनता पार्टी से पूर्ण रूप से जुड़ गया। भाजपा में मेरा सक्रिय जीवन दो दशकों का है जिसमें मैं प्रदेश संगठन में विभिन्न दायित्वों में रह चुका हूं। मैं राम जन्मभूमि आंदोलन से सबसे पहले जुड़ा, फिर मैं विद्यार्थी परिषद में शामिल हुआ। छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कार्य करने के दौरान माननीय भगत सिंह कोश्यारी जी के संपर्क में आया। भगत सिंह कोश्यारी मेरे राजनीतिज्ञ गुरु तो हैं ही साथ ही जीवन के पथ प्रदर्शक हैं, अभिभावक हैं।
विकास के एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है इसका कहीं पर विराम नहीं है। समय के साथ अपेक्षाएं बढ़ती हैं तो प्रगति के नए मार्ग स्वतः ही खुल जाते हैं। देखिए पार्टी से ऊपर उठकर देखें तो नारायण दत्त तिवारी का योगदान कोई भूल सकता है उत्तराखण्ड के लिए? हमारे नेताओं ने पहाड़ के दुरूह जीवन को जिया है। इसलिए वो पहाड़ की समस्याओं से वाकिफ भी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बात करूं तो ये दोनों ही दुर्गम क्षेत्रों से आते हैं। उनको उत्तराखण्ड की प्राथमिकताओं का पता है। हमारे युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तो बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। विकास के प्रति उनका नजरिया स्पष्ट है वो भी बिना भेदभाव के जहां तक हल्द्वानी मेयर की सीट का सवाल है पार्टी कहेगी तो निश्चित तौर पर मैं तैयार हूं। मैंने कहा न कि भाजपा में दावेदारी जैसी कोई प्रथा नहीं है। भाजपा के संदर्भ में ‘दावेदारी’ शब्द मीडिया का दिया शब्द है पार्टी अपने सघन विश्लेषण से तय करती है। पार्टी में हर किसी की सीमाएं हैं। हम धरातल पर ठोस और व्यापक काम करते हैं। पार्टी नेतृत्व अपनी पैनी नजरों से सबके कामों पर नजर रखता है
आप संघ से भी जुड़े हैं और भाजपा से भी, दोनों की भूमिका में कितना अंतर पाते हैं?
संघ एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है जबकि भाजपा एक राजनीतिक दल है। भाजपा के सभी लोग संघ में ही दीक्षित हैं। संघ हमारा मातृ संगठन है और हमारा प्रेरणास्रोत है। संघ की हमारे जीवन में ऐसी है जैसी एक बच्चे के जीवन में एक मां की होती है। ‘मातृ’ शब्द अपने आप में एक ऐसा शब्द है जो हमें जुड़ाव व ममता का बोध कराता है। हम अपने देश को ‘मातृभूमि’ या ‘भारत माता’ ही कहते हैं। संघ का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण ही है। 1925 में हेडगेवार जी ने पांच लोगों के साथ मिलकर एक राष्ट्रवादी संगठन खड़ा किया था। डॉ. हेडगेवार का मानना था कि हिंदू समाज में विसंगतियां बहुत हैं और हिंदू समाज इस आजादी की लड़ाई में बिखरा हुआ है और वो इसके चलते अपने हितों की ओर देख नहीं पा रहा है। तब देश की तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए एक ऐसे संगठन की जरूरत है थी जो हिंदुओं को एक छत के नीचे लाकर उनके हितों की रक्षा कर सके। इसके चलते उन्होंने हिंदू एकता, समाज निर्माण और हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की। पांच लोगों के साथ खड़ा किया गया ये संगठन आज विशाल रूप ले चुका है संघ से निकले लोग समाज सेवा के विभिन्न क्षेत्रों में निकल गए। भाजपा को आप संघ का राजनीतिक संगठन कह सकते हैं। एक राजनीतिक दल और एक सांस्कृतिक संगठन में अंतर अवश्य है लेकिन दोनों का लक्ष्य एक ही है राष्ट्र निर्माण और भारत को परम वैभव तक पहुंचाना। 1980 में भाजपा का गठन हुआ। चरित्र निर्माण और संगठन के प्रति निष्ठा संघ के दिए इन सिद्धांतों पर आज भाजपा चल रही है। संघ का विस्तार आज पूरे विश्व में है। संघ व भाजपा का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण ही है। आप संघ को भाजपा से अलग करके नहीं देख सकते।
आप संघ और भाजपा के इतने गूढ़ संबंधों की बात कर रहे हैं। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो कहा था कि भाजपा के संगठन का इतना विस्तार हो चुका है कि उसे अब संघ की जरूरत नहीं है क्या मानते है आप?
संघ की भूमिका को कोई नहीं नकार सकता, संघ हमारा मातृ संगठन है। राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा जी के बयान का आशय ही लगत निकाला गया। उनका आशय रहा होगा कि संघ की विचारधारा भाजपा को इतना अगो ले गई कि भाजपा का पूरे देश में विस्तार हो गया। आज संघ से निकला स्वयं सेवक ही भाजपा का कार्यकर्ता है। संघ के सम्बंध में भाजपा के किसी नेता की सोच ऐसी नहीं हो सकती। संघ और भाजपा का गर्भनाल का संबंध है। नड्डा जी के वक्तव्य की व्याख्या मीडिया ने गलत ढं़ग से की।
1980 के बाद भाजपा का विस्तार हुआ और एक समय वो 2 से 303 सीटों तक लोकसभा में पहुंच गई। 1980 और 2024 की भाजपा में कितना फर्क देखते हैं आप? वो भी तब जब 2024 के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा में वर्चस्व के बाद 2014 के बाद चाल, चरित्र व चेहरा भाजपा के सब बदल गए।
देखिए, मुझे नहीं लगता कि वर्चस्व जैसी कोई बात है। न ही कहीं वर्चस्व की लड़ाई है। हर एक का अपना तरीका होता है पार्टी चलाने का। भारतीय जनता पार्टी एक विचारधारा को लेकर चली है उसमें कहीं कोई विचलन नहीं है। राम मंदिर, धारा 370, समान नागरिक संहिता सभी हमारे मुद्दे शुरूआत से ही रहे हैं। राष्ट्र निर्माण के लिए भाजपा के प्राथमिक सदस्य से लेकर शीर्ष नेतृत्व तक सबका लक्ष्य एक ही है। 1980 से 2024 के बीच विचारधारा के स्तर पर कोई फर्क नहीं है। समय के साथ जो बदलाव हुए भी होंगे वो हर राजनीतिक दल में होते हैं। बदलता समय हर राजनीतिक दल में परिलक्षित होता है। लेकिन भाजपा ने विचारधारा के स्तर पर कोई समझौता नहीं किया। आज भाजपा ही नहीं देश का स्वर्णिमकाल है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व है। हम शनैः शनैः आगे बढ़े हैं, जमीनी कार्यकर्ता की मेहनत दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी का विजन, अटल जी, आडवाणी जी, नरेंद्र मोदी का नेतृत्व ने आज भाजपा को शिखर तक पहुंचाया है। आज उत्तराखण्ड में भगत सिंह कोश्यारी, मनोहरकांत ध्यानी, भुवन चन्द्र खण्डूड़ी और वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का नेतृत्व उत्तराखण्ड भाजपा के लिए स्वर्णिमकाल से कम नहीं है।
आप भाजपा के स्वर्णिमकाल की बात कर रहे हैं, भाजपा के चाल-चरित्र-चेहरे की बात कर रहे हैं लेकिन दूसरे दलों के भ्रष्टाचार के आरोपियों को भाजपा में शामिल होने पर भाजपा की छवि खराब नहीं हो रही?
देखिए, ये गंगा है जिसने इसमें डुबकी लगाई वो पवित्र होकर निकला। ठीक है व्यक्ति के अंदर कमियां होती हैं लेकिन अगर कोई भाजपा की विचारधारा से प्रभावित होकर, विचार से मेरा आशय है, राष्ट्र निर्माण का विचार, सामाजिक सुधार का विचार, धर्म जागरण काविचार, देश को सही दिशा में ले जाकर राष्ट्र निर्माण का विचार, भ्रष्टाचार मुक्त भारत का विचार, इन विचारों को आत्मसात कर कोई प्रायश्चित करना चाहता है तो उसे अवसर दिया जाना चाहिए। जहां तक आप भ्रष्टाचारियों के भाजपा में शामिल होने की बात कर रहे हैं तो ऐसा मुझे कहीं नजर नहीं आता। कानून अपना काम करता है। भाजपा की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति रही है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के प्रति सख्त रवैया है। कई भ्रष्ट लोग पकड़े जा रहे हैं जो कांग्रेस से भाजपा में आए भी वो वापस चले गए। उत्तराखण्ड में ही आपको कई उदाहरण मिल जाएंगे जिनको भाजपा में कांग्रेस जैसी स्वच्छंदता नहीं मिली वो कांग्रेस में वापस चले गए। भाजपा ने प्रयास किया कि वो अपना मूल चरित्र बदलें लेकिन वो खुद को बदल नहीं पाए तो चले गए। भाजपा उदार दल है वो राष्ट्र निर्माण के लिए हर व्यक्ति को मौका देता है।
उत्तराखण्ड अपनी स्थापना के 25वें वर्ष में प्रवेश कर गया है क्या आपको लगता है कि उत्तराखण्ड इन 24 वर्षों में राज्य के लोगों की उन अपेक्षाओं को पूरा कर पाया है जिनकी उत्तराखण्डवासियों ने अपेक्षा की थी?
देखिए, इन्फ्रास्टक्चर क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने पौधे के रूप में उत्तराखण्ड हमें दिया था। उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य में भाजपा पूरी तन्मयता से विकास के नए आयाम गढ़ने में लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखण्ड के प्रति प्रेम जगजाहिर है। ऑल वेदर रोड, किच्छा में एम्स का सैटेलाइट, जमरानी बांध, केदारनाथ की योजनाएं, राष्ट्रीय राजमार्ग, हवाई सेवा इन सब क्षेत्रों में अच्छा विकास हुआ है। नए मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, महाविद्यालय, इंटर कॉलेज सब खुले हैं। बहुत से काम पूरे हो चुके हैं लेकिन समय के साथ बहुत किया जाना बाकी है। विकास के एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है इसका कहीं पर विराम नहीं है। समय के साथ अपेक्षाएं बढ़ती हैं तो प्रगति के नए मार्ग स्वतः ही खुल जाते हैं। देखिए, पार्टी से ऊपर उठकर देखें तो नारायण दत्त तिवारी का योगदान कोई भूल सकता है उत्तराखण्ड के लिए? हमारे नेताओं ने पहाड़ के दुरूह जीवन को जिया है। इसलिए वो पहाड़ की समस्याओं से वाकिफ भी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बात करूं तो ये दोनों ही दुर्गम क्षेत्रों से आते हैं। उनको उत्तराखण्ड की प्राथमिकताओं का पता है। हमारे युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तो बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। विकास के प्रति उनका नजरिया स्पष्ट है वो भी बिना भेदभाव के।
आप भ्रष्टाचारियों के भाजपा में शािमल होने की बात कर रहे हैं तो ऐसा मुझे कहीं नजर नहीं आता। कानून अपना काम करता है। भाजपा की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति रही है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के प्रति सख्त रवैया है। कई भ्रष्ट लोग पकड़े जा रहे हैं जो कांग्रेस से भाजपा में आए भी और वापस चले गए। उत्तराखण्ड में ही आपको कई उदाहरण मिल जाएंगे जिनको भाजपा में कांग्रेस जैसी स्वच्छंदता नहीं मिली वो कांग्रेस में वापस चले गए। भाजपा उदार दल है वो राष्ट्र निर्माण के लिए हर व्यक्ति को मौका देता है
आप स्वयं युवा हैं उत्तराखण्ड की राजनीति में आप युवाओं की क्या भूमिका देखते हैं।
युवाओं की भूमिका को मैं व्यापक रूप में देखता हूं राजनीति तो एक क्षेत्र भर है। इसे हम सिर्फ उत्तराखण्ड तक ही सीमित न करें। राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को समग्र रूप से देखा जाना चाहिए। जहां पर राष्ट्रीय नजरिए की बात आती है तो उसमें सभी क्षेत्र समाहित हो जाते हैं। हम युवाओं की जिम्मेदारी की बात करते हैं लेकिन युवाओं के प्रति समाज का भी कुछ दायित्व है। मेरी चिंता युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति की ओर है खासकर चरस, स्मैक की ओर युवाओं की बढ़ती प्रवृत्ति चिंताजनक है। हमें इसके लिए सजग रहना होगा। मैंने कई परिवारों को बर्वाद होते देखा है। इसके लिए मैंने एक बड़ा अभियान भी चलाया। एक सम्मेलन किया था हल्द्वानी में जिसमें 10 हजार लोगों ने प्रतिभाग किया था। मेरा उद्देश्य था कि नशे की इस प्रवृत्ति के प्रति युवाओं को ही नहीं उनके अभिभावकों को भी जागरूक किया जाए। हम काफी सफल भी रहे। स्मैक का नशा युवाओं को खोखला कर रहा है। मेरी चिंता यही है कि युवा पीढ़ी बचे जिससे राष्ट्र व समाज निर्माण का एक साधन तो बचा रहे। जीवन के हर क्षेत्र में युवा पीढ़ी का योगदान किसी भी देश का कायाकल्प कर सकता है। सौभाग्य से हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी युवाओं की प्रेरणा हैं। युवा पीढ़ी अपने नए नजरिए से सिर्फ राजनीति ही नहीं विनिर्माण, स्टार्टअप, नवाचार सब क्षेत्रों में अपना योगदान कर सकती है। मुख्यमंत्री धामी नशे के प्रति अपनी चिंताओं को जाहिर करते हुए पुलिस महानिदेशक से गंभीरता से कार्रवाई कर निगरानी समिति की बात की है। 2025 तक नशा मुक्त उत्तराखण्ड उनकी इसी मुहिम का हिस्सा है। राजनीति में युवाओं के आगे आने से एक ऊर्जा से भरे नेतृत्व की संभावनाएं बढ़ती हैं। भाजपा में तो युवाओं को आगे कर पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत भी कर दी है। युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
आपको भाजपा से जुड़े लगभग 2 दशक पूरे होने को हैं लेकिन पार्टी ने आपको कोई महत्वपूर्ण दायित्व न देकर आपके साथ क्या अन्याय नहीं किया है?
भाजपा का कार्यकर्ता कुछ नहीं मांगता, कार्यकर्ता रहना ही अपने आप में बड़ा दायित्व है मैं भाजपा युवा मोर्च के संगठन में रहा हूं। मैंने पार्टी से कभी कुछ नहीं मांगा।
समाज सेवा अपनी जगह है लेकिन चुनावी राजनीति राजनेताओं को ज्यादा मान्यता दिलाती है क्या कभी आपको लगता है कि चुनाव जीतकर आप राजनीति में अपनी सक्रियता बढ़ाएं?
मैं ही क्या हरेक व्यक्ति किसी भी राजनीतिक दल में हो तो उसकी इच्छा रहती है कि चुनाव लडे़। ये आपने सही कहा कि चुनाव जीतकर आपको व्यापक राजनीतिक मान्यता तो मिलती ही है और समाज सेवा का काम करना भी आसान हो जाता है। भाजपा की विशेषता है कि यहां कार्यकर्ता हो या नेता, उसकी भूमिका पार्टी नेतृत्व तय करता है फिर वो दरी बिछाने से चुनाव लड़ने तक या देश के विभिन्न क्षेत्रों में उसका कार्य। राष्ट्र के निर्माण के लिए पार्टी जो भूमिका तय करेगी हम हमेशा उसके लिए तैयार हैं। भाजपा एक कैडर वेस्ड पार्टी है जिसमें बूथ अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष एक लम्बी श्ृंखला है। हां राजनीतिक जीवन में हैं तो चुनाव लड़ने की इच्छा जरूर रहती है।
आपकी पार्टी आपको किसी दायित्व, विधायक फिर मेयर पद के लिए ऑफर देती है तो आपकी प्राथमिकता क्या होगी या फिर किस पद को पसंद करेंगे। सामान्य सीट होने पर क्या आप हल्द्वानी से मेयर के लिए दावेदारी करेंगे?
ये तय करना पार्टी का काम है। हमारी कोई इच्छा नहीं है। नेतृत्व कहेगा कि चुनाव में जाना है तो निश्चित तौर पर जाएंगे। ये संगठन तय करेगा और मुख्यमंत्री तय करेंगें। वो ही हमारी भूमिका तय करेंगे। आप बस इतना समझिए कि हमारी आस्था और निष्ठा भारतीय जनता पार्टी और अपने नेतृत्व पर है। जहां तक हल्द्वानी मेयर की सीट का सवाल है पार्टी कहेगी तो निश्चित तौर पर मैं तैयार हूं। मैंने कहा न कि भाजपा में दावेदारी जैसी कोई प्रथा नहीं है। भाजपा के संदर्भ में ‘दावेदारी’ शब्द मीडिया का दिया है पार्टी अपने सघन विश्लेषण से तय करती है। पार्टी में हर किसी की सीमाएं हैं। हम धरातल पर ठोस और व्यापक काम करते हैं। पार्टी नेतृत्व अपनी पैनी नजरों से सबके कामों पर नजर रखता है।
माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने पौधे के रूप में उत्तराखण्ड हमें दिया था। उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य में भाजपा पूरी तन्मयता से विकास के नए आयाम गढ़ने में लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखण्ड के प्रति प्रेम जगजाहिर है। ऑल वेदर रोड, किच्छा में एम्स का सैटेलाइट, जमरानी बांध, केदारनाथ की योजनाएं, राष्ट्रीय राजमार्ग, हवाई सेवा इन सब क्षेत्रों में अच्छा विकास हुआ है।
नए मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, महाविद्यालय, इंटर कॉलेज सब खुले हैं। बहुत से काम पूरे हो चुके हैं लेकिन समय के साथ बहुत किया जाना बाकी है