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Uttarakhand

त्रिवेंद्र सरकार की गलतियों को सुधारती धामी सरकार

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में कई अधिकारियों पर अनियमितताओं के आरोप लगे थे। तब उनका मामला प्रकाशित करने पर कई पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज कराए गए। ऐसे ही एक पत्रकार शिवप्रकाश सेमवाल हैं जिन पर पौड़ी के घुड़दौड़ी स्थित जीवी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के कुल सचिव पद पर तैनात रहे संदीप कुमार की अनियमितताएं और अवैध नियुक्ति प्रकरण को सामने लाने पर मामला दर्ज किया गया था। तब संदीप कुमार का सत्ता रसूख बल होने तथा नौकरशाही की शह होने के चलते बाल भी बांका नहीं हुआ था। फिलहाल, धामी सरकार ने जीरो टॉलरेंस नीति के तहत उक्त अधिकारी पर कार्रवाई करते हुए उसकी नियुक्ति रद्द कर दी है

उत्तराखण्ड में निजाम बदलने के साथ ही सत्ता का मिजाज भी बदल गया है। प्रदेश के दूसरी बार मुख्यमंत्री बनते ही पुष्कर सिंह धामी सरकार कई मामलों में जांच करवाए जाने के आदेश जारी कर चुकी हैं। सहकारिता विभाग में चपरासी पदां में हुई भर्ती मामले हो या कर्मकार बोर्ड तथा वन विभाग से जुड़े मामले। सभी में धामी सरकार जांच करवाने के आदेश जारी कर चुकी है। इसी कड़ी में तकनीकी शिक्षा मंत्रालय से जुड़े एक मामले में सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति को पुख्ता करती दिख रही है। तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने कड़ा रुख अपनाते हुए संदीप कुमार की नियुक्ति को ही रद्द कर दिया है। संदीप कुमार के खिलाफ विगत 16 वर्षों से भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। पिछली भाजपा की सरकार में संदीप कुमार सत्ता और शासन में पैठ बनाकर अपने कारनामों को अंजाम देता रहा और तत्कालीन मुख्यमंत्री तथा तकनीकी शिक्षा मंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने इस चहेते कुल सचिव पर कार्यवाही करने से बचते रहे।

यहां तक कि 26 फरवरी 2009 को हाईकोर्ट नैनीताल ने संदीप कुमार की नियुक्ति को निरस्त कर दिया था। लेकिन संदीप कुमार पद पर बना रहा। यह संदीप कुमार के राजनीतिक रसूख का ही जलवा था कि हाईकोर्ट के आदेशों का भी पालन नहीं किया गया। 30 नवंबर 2017 को जिलाधिकारी पौड़ी ने संदीप कुमार की एसआईटी जांच करवाने की संस्तुति शासन को भेजी थी। लेकिन इस संस्तुति को भी दबा दिया गया। पूर्व मुख्य सचिव एस रामा स्वामी द्वारा तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश को संदीप कुमार के खिलाफ जांच कर कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए। लेकिन इस फाइल को भी दबा दिया गया। यही नहीं संदीप कुमार के खिलाफ जिस अधिकारी ने कार्यवाही करने का प्रयास किया उसका भी स्थानांतरण करवा दिया गया।

  पूर्व कुल सचिव संदीप कुमार

फिलहाल, पौड़ी के घुड़दौड़ी स्थित जीवी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के कुल सचिव संदीप कुमार की नियुक्ति को रद्द कर दिया गया है। साथ ही पूर्व सरकार में राज्य के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में जिस तरह से भ्रष्टाचार और घोटालों की गंगा बह रही थी उसे खत्म करने के लिए अब सभी तकनीकी शैक्षणिक संस्थानों-कॉलेजों आदि के लिए अलग से एक्ट बनाए जाने की कवायद धामी सरकार द्वारा शुरू कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि जीवी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में तैनात कुल सचिव संदीप कुमार पर कई गंभीर आरोप लगते रहे हैं। लेकिन सत्ता और शासन में बैठे उच्चाधिकारियों का खास औेर चहेता होने के चलते संदीप कुमार पर कोई कार्यवाही तक नहीं हुई। गौर करने वाली बात यह है कि त्रिवेंद्र रावत सरकार में तकनीकी शिक्षा विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास था और इसके प्रमुख सचिव ओम प्रकाश थे।

जिस कुल सचिव संदीप कुमार की नियुक्ति को धामी सरकार ने निरस्त किया है उसके कारनामे बेहद चोंकाने वाले हैं। संदीप कुमार 2006 से लेकर 2022 तक अपने राजनीतिक और शासन के उच्चाधिकारियों के रसूख के बल पर फर्जी तरीके से संस्थान में नियुक्ति पाने में तो सफल रहा ही है, साथ ही अपने रसूख के बल पर कई घोटालों और अनियमितताओं के आरोपों में घिरा रहा। लेकिन उस पर कार्यवाही कभी नहीं हुई। अगर कोई कार्यवाही हुई भी है तो उसे रोक दिया गया। साथ ही कार्यवाही करने वाले सक्षम अधिकारियों यहां तक कि उच्चाधिकारियों तक का तबादला कर दिया गया।

कभी देहरादून में तकनीकी संस्थानों और सरकारी विभागों में कम्प्यूटर की सप्लाई करने वाला संदीप कुमार 2006 में जीवी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी घुड़दौड़ी में ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया। गौर करने वाली बात यह है कि संस्थान में यह पद 2006 में सृजित ही नहीं था लेकिन अपने रसूख के बल पर संदीप कुमार इस पर नियुक्ति पाने में सफल रहा। जब यह मामला सुर्खियों में आया तो तब 2008 में संस्थान में ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी का पद सृजित कर दिया गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि संदीप कुमार की नियुक्ति को वैधानिक साबित करने के लिए ही 2008 में ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी का पद सृजित किया गया। हैरानी की बात यह है कि संदीप कुमार को ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी के पद पर बिठाने के लिए जरूरी शैक्षणिक योग्यता को भी ताक पर रख दिया गया। जबकि संस्थान में प्रवक्ता पद के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के मानकों के अनुसार बीटेक की डिग्री इस पद के लिए अनुमन्य थी। जबकि संदीप कुमार थर्ड डिविजन से हाईस्कूल पास और तीन वर्ष का डिप्लोमा होल्डर ही था। बावजूद इसके संदीप कुमार को संस्थान में नियुक्ति मिल गई।

संदीप कुमार को नियुक्ति दिए जाने के मामले की जानकारी संस्थान की गवर्निंग बॉडी को दी गई तो 7 सितंबर 2007 को ही संस्थान के प्रशासकीय परिषद की बॉडी ऑफ गवर्नर में इस नियुक्ति को अवैध मानते हुए निरस्त करने का अनुमोदन किया गया। लेकिन संदीप के रसूख के बल पर इस अनुमोदन को दबा दिया गया। वह 2006 से लेकर 2019 तक लगातार बगैर वैध चयन प्रक्रिया के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट अधिकारी के पद पर न सिर्फ कार्यरत रहा साथ ही कुल सचिव के पद पर भी तेनात रहा। यानी थर्ड डिग्री से हाई स्कूल पास व्यक्ति को जीवी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी घुड़दौड़ी का कुल सचिव तक बना दिया गया।

ऐसा नहीं है कि यह कारनामा पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार में ही हुआ बल्कि 2006 से लेकर 2021 के दौरान प्रदेश में कांग्रेस की तिवारी सरकार, भाजपा की बीसी खंडूड़ी और निश्ांक सरकारें रही है। 2012 में कांग्रेस की बहुगुणा और हरीश रावत सरकार भी आई। लेकिन कोई भी सरकार संदीप कुमार का बाल बांका नहीं कर पाई। 2017 में भाजपा की प्रचंड बहुमत से सरकार बनी और त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री बने। त्रिवेंद्र ने तकनीकी शिक्षा विभाग अपने ही पास रखा और बेहद करीबी नौकरशाह ओम प्रकाश को प्रमुख सचिव तकनीकी शिक्षा बनाया। साथ ही उन्हें राज्य के मुख्य सचिव के पद पर भी पहुंचाया।

अक्टूबर 2016 में कुल सचिव का पद रिक्त हुआ तो तकनीकी शिक्षा प्रमुख सचिव ओम प्रकाश ने संदीप कुमार को कार्यवाहक कुल सचिव के पद पर तैनाती दे दी। गौर करने वाली बात यह है कि संस्थान में कुल सचिव का पद रिक्त चल रहा था और इस पद को शीघ्र भरने की कार्यवाही का दबाव भी था लेकिन स्थाई कुल सचिव का पद नहीं भरा गया। इसका एक ही कारण था कि अगर संस्थान को स्थाई कुल सचिव मिल जाता तो संदीप कुमार को इस पद से स्वतः ही हटना पड़ सकता था। संदीप कुमार इस पर बना रहे इसके लिए जानबूझ कर स्थाई कुल सचिव पद पर नियुक्ति नहीं करवाई गई।

इसी बीच विभागों के अधिकारियों का तबादला हुआ तो डी सैंथिल पांडियन तकनीकी शिक्षा विभाग में अपर सचिव बनाए गए। पांडियन को जब संदीप कुमार के कारनामे पता चले तो उन्होंने संदीप कुमार को तत्काल हटाए जाने के आदेश प्राचार्य को दिए। जिस पर प्राचार्य ने 14 दिसंबर 2016 को संदीप कुमार को कार्यवाहक कुल सचिव के पद से हटा दिया। संदीप कुमार को इस तरह से हटाया जाना शासन में बैठे संदीप कुमार के आकाओं को रास नहीं आया और उन्होंने पांडियन को ही अपर सचिव तकनीकी शिक्षा के पद से ही चलता कर दिया। प्रमुख सचिव तकनीकी शिक्षा रहे ओम प्रकाश ने महज 9 दिनों के बाद यानी 23 दिसंबर 2016 को संदीप कुमार को एक बार फिर से कार्यवाहक कुल सचिव पद पर तैनात कर दिया गया।

तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह सरकार के चहेते संदीप कुमार के कारनामों पर नजर डालें तो उस पर कई मामलों में आरोप लग चुके हैं। 2019 में कुल सचिव का पद रिक्त हुआ तो संदीप कुमार ने शासन और सत्ता के बड़े गठजोड़ के चलते अपनी नियुक्ति इस पद पर करवा ली। कुल सचिव बनने के बाद बड़े पैमाने पर संस्थान में शिक्षकों की भी भर्ती करवाई गई। जबकि इससे पूर्व भी जनवरी 2013 में संस्थान में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर तथा असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के लिए भर्ती की गई थी। जिसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और लेन-देने के आरोप लगाए गए थे। इस मामले में अनेक शिकायतें भी सरकार और शासन के अलावा सिंस्थान की गवर्निंग बॉडी को दी गई। जिसके चलते इन सभी भर्तियों को निरस्त कर दिया गया।
इसके अलावा विश्व बैंक द्वारा संचालित टी क्यूब योजना के अंतर्गत उपकरणों की खरीद में भी अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप संदीप कुमार पर लग चुके हैं। सभी आरोपों की शिकायतें हुई। इस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, अध्यक्ष प्रशासकीय परिषद द्वारा संदीप कुमार को तत्काल निलंबित करते हुए 8 अक्टूबर 2021 को आरोप पत्र जारी कर दिया गया और 15 दिनों का समय जवाब देने के लिए दिया गया।

संस्थान में शिक्षकों की नियुक्ति से संबंधित मूल पत्रावलियां गायब किए जाने के विरुद्ध उपाध्यक्ष प्रशासकीय परिषद के निर्देश पर संस्थान प्रशासन द्वारा 20 अक्टूबर 2021 को थाना पौड़ी में आईपीसी की धारा 409, 477 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई जा चुकी है। इस दौरान संदीप कुमार द्वारा अपने ऊपर लगाए गए आरोप पत्रों का कोई जबाब नहीं दिया गया और न ही संस्थान में उपस्थित हुआ। यही नहीं संस्थान के कुल सचिव होने के चलते सभी महत्वपूर्ण पत्रावलियां संदीप कुमार ने अपने ही पास रखी और संस्थान को उपलब्ध तक नहीं करवाई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संदीप कुमार के निलंबन के बाद उन पर लगाए गए सभी आरोपों की जांच के लिए एसआईटी का गठन करने का आदेश दिया। लेकिन सचिवालय में ही उन आदेशों को एक माह तक दबा के रखा गया। अब सवाल यह उठता है कि संदीप कुमार के खिलाफ विगत 16 वर्षों से जो भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। जिसमें संस्थान के कई बड़े पदाधिकारी भी शामिल बताए जाते हैं उन पर क्या कार्यवाही होगी।

संदीप कुमार ने अपने खिलाफ शिकायत करने वालों और संस्थान में हो रहे भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा करने वालों को भी भयभीत करने के लिए अनेक जतन किए हैं। ‘पर्वतजन’ पत्रिका के संपादक शिव प्रसाद सेमवाल ने संदीप कुमार और प्रमुख सचिव ओम प्रकाश के गठजोड़ के चलते हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ समाचार प्रकाशित किया तो संदीप कुमार ने उनके खिलाफ मानहानी का मुकदमा तक दर्ज करवा दिया। सूत्रों की मानें तो इस प्रकार से मुकदमा दर्ज करवाए जाने के पीछे शासन के बड़े अधिकरियों और सत्ता के सूत्रों का दबाव था जिसके चलते मीडिया को भयभीत करने के लिए इस प्रकार की कार्यवाही की गई।

एसआईटी जांच चल रही है, सिर्फ ये ही नहीं सभी मामलों की जांच होगी। जो भी दोषी होगा उस पर सरकार कठोर कार्यवाही करेगी।
सुबोध उनियाल, तकनीकी शिक्षा मंत्री

सच परेशान हो सकता है पराजित नहीं हो सकता। ये आज फिर से साबित हो गया है। जीवी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के कुल सचिव संदीप कुमार के भ्रष्टाचार और घोटालों का हमने खुलासा किया था तो सरकार और शासन के बड़े लोगों ने दबाव बनाने के लिए हम पर मानहानि का केस दर्ज करवाया। केस तो चल ही रहा है लेकिन अब तो साफ हो गया है कि संदीप कुमार की नियुक्ति ही अवैध तरीके से अपने हित साधने के लिए की गई थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के इशारों पर ही हमारे ऊपर कई मुकदमे किए गए हैं जो कि झूठे ही साबित हुए। इस संस्थान में जो भी घोटाले हुए हैं उसमें तकनीकी शिक्षा मंत्री और सचिव को पूरी जानकारी थी और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत तकनीकी शिक्षा मंत्री थे। ये उनके कार्यकाल में हुए कई घोटालों में से एक है। सिर्फ संदीप कुमार की नियुक्ति निरस्त की गई है लेकिन जो घोटाले हुए हैं उनके जिम्मेदार लोग तो अभी भी संस्थान में ही काम कर रहे हैं। सरकार उनके खिलाफ कार्यवाही करेगी इसमें हमें संदेह है।
शिव प्रसाद सेमवाल, वरिष्ठ पत्रकार

 

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