पंचेश्वर बांध परियोजना भारत-नेपाल सीमा पर महाकाली नदी पर स्थित है। परियोजना का विकास 1996 में नेपाल और भारत के बीच हस्ताक्षरित एकीकृत महाकाली संधि के अंतर्गत होना है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद करीब 430,000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई की जा सकेगी। इस प्रोजेक्ट को दोनों देशों के लिए फायदेमंद बताया गया है। महाकाली नदी पर प्रस्तावित 6,480 मेगावाट क्षमता की पंचेश्वर बिजली परियोजना से संबंधित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए विशेषज्ञों की बैठक हो चुकी है। पिछले महीने नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की भारत यात्रा के दौरान तीन महीने के भीतर डीपीआर पूरा करने पर बनी सहमति के बाद यह पहला कदम है। बहरहाल, उत्तराखण्ड में बांध से विकास और विस्थापन को लेकर लोगों में आस जगी है

विगत माह जब नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ भारत आए थे तो पंचेश्वर बांध को लेकर चर्चा हुई थी। उसके बाद अभी हाल में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच इस संबंध में एक बैठक नेपाल में आयोजित हुई है, जिसमें बांध से संबधित कई मुद्दों पर चर्चा हुई। नेपाल में आयोजित गवर्निंग बॉडी की बैठक में भारत की तरफ से केंद्रीय जल आयोग के सचिव कुसविंदर बोहरा व नेपाल की ओर से वहां के जल एवं ऊर्जा आयोग सचिव सुशील कुमार तिवारी ने बैठक में भाग लिया। बैठक में तय हुआ कि पंचेश्वर बांध की संशोधित डीपीआर तीन माह में पूरी हो जाएगी। यह संशोधित डीपीआर पंचेश्वर विकास प्राधिकरण के समक्ष काठमांडू में पेश होगी। इसे लंबे समय से ठहरे हुए पानी में कंकड मारने का प्रयास माना जा रहा है।
महाकाली क्षेत्र की जनता में इन बैठकों के बाद हलचल होने लगी है। एक ओर बांध को आगे बढ़ाने की चर्चा है तो वहीं दूसरी तरफ बांध न बन पाने पर लोगों का कहना है कि अगर बांध को नहीं बनना है तो कम से कम पंचेश्वर घाटी क्षेत्र का विकास तो किया जाए, जो प्रस्तावित बांध के चलते नहीं हो पा रहा है। इसके साथ ही बहुत कुछ खोने का डर भी लोगों सताने लगा है। क्योंकि अगर देर-सवेर बांध बनता है तो क्षेत्र की जैव विविधता, जलीय जीव जंतु, मानवीय बस्ती, देवालय, खेत आदि का डूबना तय है। पंचेश्वर बांध बनेगा या नहीं? बनेगा तो कब? यह तो पता नहीं लेकिन बनने एवं न बनने दोनों ही स्थितियों के बीच की कीमत महाकाली क्षेत्र की जनता को चुकानी पड़ेगी। अगर बांध बनता है तो जनता को बेघर होने का डर है। अभी तक बांध नहीं बनने की स्थिति में यहां पर विकास कार्य लटके पड़े हैं। टनकपुर- जौलजीवी सड़क हो या फिर टनकपुर- बागेश्वर रेल लाइन दोनों का कार्य भी बांध की वजह से प्रभावित है।
महाकाली क्षेत्र के रहने वाले पुष्कर जेठी कहते हैं कि सरकार पंचेश्वर बांध के बहाने यहां मूलभूत आवश्यकताओं के विकास पर ध्यान नहीं दे रही है। पिछले 27 सालों से जनता दो राहे पर खड़ी है। वह इसी डर में जी रही है कि यहां बांध बनेगा, उनका विस्थापन होगा, इसके चलते वह कोई स्थाई काम नहीं कर पा रहे हैं, यहां तक कि घर भी नहीं बना पा रहे हैं। क्षेत्र के भूपेश चंद कहते हैं कि बांध तो बनना नहीं है तो फिर उन्हें सुविधाओं से वंचित क्यों किया जाए? सरकार को चाहिए कि वह क्षेत्र में अन्य विकास के कार्य करे। यहां की जनता को सुविधाएं प्रदान करे ताकि क्षेत्रीय जनता का जीवन स्तर ऊपर उठ सके। प्रस्तावित बांध के चलते क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क व अन्य विकास के ढांचें खड़े नहीं हो पा रहे हैं। पंचेश्वर प्रचुर वन सम्पदा एवं उपजाऊ भूमि वाला क्षेत्र है। यह मत्स्य आखेट व रिवर राफ्टिंग का केन्द्र भी रहा है। गोल्डन महाशीर मछली भी यहां पाई जाती है। धान, गेहूं, मक्का, उड़द, गहत के अलावा गर्म जलवायु के चलते यहां आम, लीची, केला, पपीता बहुतायत में उत्पादित होता है। यहां साल के पेड़ बहुतायत में हैं। काली व सरयू नदी घाटी में च्यूरा वृक्ष बहुतायत में पाया जाता है। यहां के लोगों का यह दर्द है कि पंचेश्वर की भूमि बहुत ही उपजाऊ है। बांध बनने से उनकी यह जमीन डूब जाएगी, फिर वह जहां भी विस्थापित होंगे वहां उन्हें ऐसी जमीन नहीं मिलेगी। यहां फलों का उत्पादन होता है। पानी भी है। जमीन से ग्रामीणों की स्थाई आजीविका भी जुड़ी है। अगर क्षेत्र से पलायन हो रहा है तो उसकी वजह भी सरकार है। क्योंकि सरकार ने आजादी के बाद से यहां के विकास पर ध्यान नहीं दिया। उल्लेखनीय है कि बांध क्षेत्र में आने वाली जनता कई दशकों से दोहरी मार झेल रही है। एक तो पंचेश्वर बांध प्रस्तावित होने पर भी लोगों को मुआवजा राशि नहीं मिल पा रही है। न ही विस्थापन हो रहा है। दूसरा इस क्षेत्र में विकास कार्य लटके हुए हैं। ग्रामीण घर बनाने जैसे काम भी नहीं कर पा रहे हैं। अगर आज घर बनाते हैं तो कल उसे डूबना है। उनकी गाढ़ी कमाई भी बांध में डूब जानी है।
क्या-क्या डूबेगा?
टनकपुर से पिथौरागढ़ तक बनाई जा रही 150 किमी की आल वेदर रोड में से 6 किमी. हिस्सा पंचेश्वर बांध में डूब जाना है। इस 6 किमी. सड़क की लागत करीब 63.36 करोड़ रुपया आंकी गई है जो हिस्सा पंचेश्वर बांध की भेंट चढ़ेगा उसमें घाट पुल से 3 किमी. पिथौरागढ़ व 3 किमी लोहाघाट की तरफ कटेगा। इस बांध के बनने से काली, गोरी, रामगंगा व सरयू नदी का नैसर्गिक प्रवाह रोक दिया जाएगा। पंचेश्वर बांध बनने से टनकपुर- बागेश्वर एवं टनकपुर-जौलजीवी रेल परियेजना भी खटाई में पड़ जाएगी। पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, हल्द्वानी, गंगोलीहाट, धारचूला को जाने वाली सड़कें प्रभावित होंगी। पंचेश्वर, रामेश्वर, घाट, पनार घाटियां इसकी भेंट चढ़ जाएंगी। घाट से अल्मोड़ा एवं गंगोलीहाट को जाने वाली सड़क का एक बड़ा हिस्सा इसमें डूब जाएगा। निर्माणाधीन टनकपुर- जौलजीवी मार्ग भी इसकी भेंट चढ़ जाएगा। अल्मोड़ा जनपद के अंतर्गत अल्मोड़ा तहसील के 9 एवं भनोली तहसील के अंतर्गत 12 गांव पूर्ण व आंशिक रूप से प्रभावित होंगे। सर्वेक्षण के मुताबिक कोला, ऊंचाबौरा गूंठ, बमौरी खालसा, धूरा लग्गाटाक पूर्ण रूप से तो बिरकोला, धनकाना, मेल्टा, नायलधूरा, पडोली, जिंगल, दशौला बडियार, कूना पोखरी, बालीखेत, चिमखोली, देवलसीढ़ी, उमैर, आरासलपड़, मयोली, तल्ली नाली, मल्ली नाली, कुंज किमौला गांव आंशिक रूप से जलमग्न होने हैं। लेकिन लोगों का आरोप है कि एक दर्जन से अधिक गांव जो प्रभावित क्षेत्र में आ रहे हैं वह सर्वेक्षण में शामिल ही नहीं किए गए हैं। सरयू व रामगंगा के किनारे स्थित पंचेश्वर, रामेश्वर, आरेश्वर, जटेश्वर तीर्थस्थल व मंदिर भी जलमग्न हो जाएंगे। रामेश्वर घाट का शिव मंदिर डूबेगा। इस मंदिर में वर्ष में चार बड़े मेले लगते हैं। शवदाह गृह के लिए भी लोगों को खोज करनी पड़ेगी। रामेश्वर घाट से सेरा तक बनी पंपिंग योजना भी डूबेगी।

कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने एक दिन यहां पर विश्राम किया था। शिवरात्रि, सिरपंचमी, माघ व बैशाखी पूर्णिमा को यहां जमकर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। यहां लोग स्नान के लिए पहुंचते हैं। इसके डूबने से लोगों की आस्था प्रभावित होगी। यहां होने वाली राफ्टिंग बंद होगी। अभी रामेश्वर घाट से पंचेश्वर तक राफ्टिंग होती है। यहां पाई जाने वाली महाशीर मछली का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। चंपावत, अल्मोड़ा पिथौरागढ़ जनपद के लोगों का शवदाह केंद्र होने से लोगों को शवदाह करने में भी दिक्कतें आएंगी। यहां बहुतायत में होने वाला च्यूरा वृक्ष जिसे कल्पतरू के नाम से जाना जाता है का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। चम्पावत, पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा का 76 वर्ग मीटर व नेपाल का 40 वर्ग किमी भूभाग प्रभावित होगा। अकेले चंपावत जिले के डूब क्षेत्र में 19 विभागों की करीब 1.60 अरब रुपए की परिसंपत्तियां प्रभावित होंगी। तीनों जिलों के 134 गांव डूब क्षेत्र में आएंगे। इसमें 31 हजार से अधिक लोग विस्थापित होंगे। चंपावत के 26, पिथौरागढ़ के 87 व अल्मोड़ा जिले के 21 गांव शामिल हैं। पंचेश्वर क्षेत्र में पेड़-पौधों की 193 प्रजातियां जिसमें 46 वृक्ष, 33 झाड़ियां, 53 जड़ी-बूटियां एवं 29 प्रकार की घास शामिल है। 43 स्तनधारी, 70 चिड़ियां, 47 तितलियां, 30 मछलियों की प्रजातियां बांध में विलुप्त हो जाएंगें। 9100 हेक्टेयर जमीन प्रभावित होगी। हालांकि वर्ष 1996 से शुरू हुई इस परियोजना को कभी गति नहीं मिली। दोनों देशों के बीच बिजली व सिंचाई को लेकर सहमति नहीं बन पाई। पंचेश्वर यानी सरयू, पनार, रामगंगा व काली नदी का संगम है। नदियों के हिसाब से देखें तो काली नदी में धारचूला, सरयू में सेराघाट, पनार में सिमखेत व रामगंगा में थल तक के क्षेत्र पर इसका प्रभाव पड़ना है। क्योंकि बांध बनने से 11,600 हेक्टेयर की कृतिम झील बनेगी जो क्षेत्रीय इलाकों के पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालेगी।
क्या चाहती है महाकाली क्षेत्र की जनता अभी तक वाप्कोस लिमिटेड की तरफ से हुई जनसुनवाई जो वर्ष 2017 में हुई थी, उसमें इसकी डीपीआर, पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन अध्ययन रिपोर्ट, सामाजिक प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरणीय प्रबंधन योजना रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया था लेकिन पंचेश्वर की जनता इन तमाम दस्तावेजों से संतुष्ट नहीं दिखी। वर्ष 2017 में जो सुनवाई हुई थी उसमें महाकाली क्षेत्र की जनता की तरफ से कई मांगें की गई थी। प्रत्येक प्रभावित परिवार को नौकरी दी जाए। एक ही सर्किल रेट पर सभी प्रभावित लोगों को मुआवजा दिया जाए। भवन निर्माण के लिए 30 लाख रुपए दिए जाए। पशु गृह निर्माण के लिए 20 लाख रुपए दिए जाएं। प्रत्येक परिवार को 5 हेक्टेयर जमीन दी जाए। 50 वर्षों तक आधी दर पर बिजली दी जाए। सर्किल रेट का 10 गुना मुआवजा दिया जाए। प्रभावित परिवार को सरकारी नौकरी में 4 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। पुनर्वास कॉलोनी को स्मार्टसिटी की तर्ज पर बनाया जाए।
क्या मिलेंगे
प्रस्तावित पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना 5040 मेगावाट की है। इस परियोजना की परिकल्पना महाकाली नदी जिसे भारत में शारदा कहा जाता है पर की गई है। यह नदी भारत व नेपाल के बीच अंतराष्ट्रीय सीमा रेखा निर्मित करती है। पंचेश्वर का मुख्य बांध महाकाली नदी पर प्रस्तावित है। इसकी परिकल्पना 300 मीटर ऊंचे व 814 मीटर लंबे रॉकफिल बांध के रूप में की गई है, जो महाकाली नदी पर पंचेश्वर के निकट बननी है। मुख्य बांध के अनुप्रभाह में एक पुनः नियमितीकरण बांध भी प्रस्तावित है, जो सिंचाई की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा, यह रूपालीगाड़ नामक स्थान पर बनना है। प्रस्तावित बांध के भूगर्भीय सर्वे के लिए चार साल पहले 625 मीटर भूमिगत सुरंग बन चुकी है। 60 हजार करोड़ रुपए की 5040 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाले इस बांध परियोजना में फिलहाल ठहराव की स्थिति है।