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Uttarakhand

विकास की पोल खोलता स्वास्थ्य केंद्र

राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं का मजाक उड़ाया जाता रहा है। कालाढूंगी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इसका जीता जागता नमूना है। सरकारों ने वाह-वाही लूटने के लिए इस स्वास्थ्य केंद्र का उच्चीकरण तो किया, लेकिन सुविधाओं में कटौती भी करती रहीं

कालाढूंगी (नैनीताल)। उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है। कालाढूंगी की जनता को उम्मीद थी कि इस क्षेत्र के नाम से विधानसभा सीट बनने के बाद यहां स्थित मुख्य सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) की हालत में सुधार आएगा, मगर हुआ इसके विपरीत। इस स्वास्थ्य केंद्र को 14 साल पहले सीएचसी का दर्जा तो दे दिया गया, लेकिन सीएचसी की जो सुविधाएं इसे मिलनी चाहिए थी उसके लिए जनप्रतिनिधियों ने कभी आवाज नहीं उठाई। जिसका खामियाजा क्षेत्रीय जनता को भुगतना पड़ रहा है। यह सीएचसी आज भी डॉक्टरों, स्टाफ और उपकरणों के आभाव में सिर्फ रेफर सेंटर बना हुआ है।

सरकार एवं क्षेत्र के चुने हुए जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत बेहद खराब हो गई है। यहां एक फिजिशियन और सर्जन की अति आवश्यकता है। जिन डॉक्टरों का यहां से तबादला किया जाता है, उनकी जगह खाली ही रह जाती है। 8 वर्ष पूर्व महिला रोग विशेषज्ञ तो 6 वर्ष पूर्व हड्डी रोग विशेषज्ञ का तबादला हुआ, लेकिन इनके स्थान पर आज तक किसी को नहीं भेजा गया। 16 अगस्त 2006 को राज्य के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री तिलकराज बेहड़ ने अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र का उच्चीकरण करते हुए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के रूप में इसका शिलान्यास किया। उसके बाद 3 दिसंबर 2011 को तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने इसका लोकार्पण भी कर दिया। फिर 28 मार्च 2015 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे संयुक्त चिकित्सालय बनाने की घोषणा कर दी। लेकिन मानकों के अनुसार जो सुविधाएं इस अस्पताल को मिलनी थी, आज तक नहीं मिल सकीं। राजनीति के तहत इसका उच्चीकरण तो किया जाता रहा, पर सुविधाएं देने के लिए किसी ने भी प्रयास नहीं किये। कालाढूंगी के इस मुख्य सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर कालाढूंगी सहित आस-पास के सैकड़ों गावों के लोगों के इलाज की जिम्मेदारी है, पर सरकार और जनता के प्रतिनिधि यहां सुविधाएं देने में लापरवाह हैं। महिला रोग विशेषज्ञ न होने के कारण डिलीवरी का केस राम भरोसे ही छोड़ दिया जाता है। अगर बच्चा हो गया तो ठीक वर्ना जान जोखिम में डालकर हल्द्वानी दौड़ना पड़ता है। ऐसे में गर्भवती महिला तथा बच्चे की जान खतरे में पड़ जाती है। इस तरह के कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं। नॉर्मल स्थिति और परिवार की रजामंदी पर यहां की स्टाफ नर्सों द्वारा ही डिलीवरी की जाती है।

सबसे अधिक परेशानियों का सामना उस समय करना पड़ता है जब कोई सड़क दुर्घटना का मामला अस्पताल आ जाए। क्षेत्र के नैनीताल मार्ग पर होने के कारण आए दिन यहां सड़क दुर्घटनाएं होती रहती हैं। ऐसे में अस्पताल में संसाधनों की कमी के कारण घायलों को तड़पना पड़ता है। गंभीर घायलों को हल्द्वानी रेफर किया जाता है। कई घायल रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। 108 वाहन सेवा तो है, लेकिन एक और एंबुलेंस की भी अति आवश्यकता है। चिकित्सालय में एक्सरे मशीन तो है, लेकिन हड्डी रोग चिकित्सक नहीं होने से एक्सरे कराने का कोई लाभ नहीं मिल पाता। हड्डी टूटी होने पर प्लास्टर के लिए मरीजों को हल्द्वानी जाना पड़ता है। अस्पताल के हालात ऐसे हैं कि इस समय यहां मुख्य चिकित्सक सहित स्टाफ के 16 पद रिक्त पड़े हुए हैं। इधर जरूरी उपकरण न होने के अभाव में भी मरीजों को परेशानियों से गुजरना पड़ता है। ईसीजी उपकरण तो है, लेकिन दशक भर से जंक खा रहा है क्योंकि उसे चलाने वाला कोई नहीं है। आईसीयू तथा अल्ट्रा साउंड की व्यवस्था नहीं है। यह सीएचसी महज मरहम पट्टी, गलूकोज चढ़ाने और कुछ दवाइयां मिल जाने के काम ही आ रहा है। अधिकांश मरीजों को हल्द्वानी रेफर कर दिया जाता है। मानकों के अनुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों के लिए 35 बेड होने चाहिए, लेकिन यहां 10 बेड ही उपलब्ध हैं। मानक के अनुसार वाहन चालक का पद तो है, पर वाहन नहीं है। इसी के साथ एक बड़ा जनरेटर भी नहीं है। एक छोटा जनरेटर है जो सिर्फ इंजेक्शन तथा पोलियो ड्रॉप के लिए फ्रीजर के ही काम आ सकता है।

अस्पताल में रात्रि सेवा की कोई गारंटी नहीं है। इसी बात को लेकर अस्पताल कर्मियों एवं क्षेत्रीय लोगों में बहस होती रहती है। लोगों का कहना है कि रात्रि को स्वास्थ्य खराब हो जाने पर जब अस्पताल आते हैं, तो डॉक्टर या स्टाफ मिलने की कोई गारंटी नहीं है।

बात अपनी-अपनी

कालाढूंगी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सुविधाएं बढ़ाने एवं चिकित्सकों की मांग को लेकर सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। यह शासन स्तर का मामला है। स्थिति से शासन को अवगत कराया जा चुका है। अब शासन से ही डॉक्टर व उपकरण भेजे जाने की व्यवस्था है।
डॉ. भारती राणा, मुख्य चिकित्साधिकारी नैनीताल

अस्पताल में डॉक्टरों, स्टाफ तथा उपकरण संबंधी सूचना जब-जब मांगी जाती है विभाग को भेज दी जाती है। यह सूचना विभाग द्वारा शासन को भेजनी होती है। सुविधाएं देना तो शासन के हाथ में ही है। यहां आने वाले मरीजों की सेवा करना स्टाफ कर्तव्य है जो वह करता है, फिर रात हो या दिन। कोई लापरवाही नही बरती जाती है।
डॉ. अमित मिश्रा, प्रभारी चिकित्साधिकारी

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