पड़ताल
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र भारत के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले नेताओं में शुमार थे लेकिन उनकी दृष्टि और प्राथमिकताएं कुछ मामलों में खासी भिन्न थी। भारतीय नौकरशाही को लेकर उनकी सोच में यह अंतर स्पष्ट नजर आता है। नेहरू ब्रिटिशकालीन नौकरशाही को औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतिनिधि मानते हुए इस व्यवस्था को जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं समझते थे तो दूसरी तरफ पटेल ने इसी नौकरशाही को ‘स्टील फ्रेम’ कह पुकारा था। वे इसे बदलने के पक्ष में नहीं थे। नेहरू नौकरशाही को लेकर लेकिन सही साबित हुए। उत्तराखण्ड में नौकरशाही के इसी जनविरोधी व्यवहार के चलते राज्य गठन के बाद से ही सरकारों की फजीहत होती रही है। धाकड़ धामी की सरकार भी नौकरशाहों की लाटसाहबी वाले व्यवहार चलते आमजन के रोष का सामना कर रही है
उत्तराखण्ड की नौकरशाही पर बेलगाम और मनमर्जी के फैसले लेने के आरोप लगते रहते हैं। राज्य बनने के बाद से अनेकों ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें सरकारों की फजीहत हुई है। हालात यह हैं कि राज्य सरकार को नौकरशाही की काहिली चलते कई मर्तबा हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में भी फजीहत झेलने को विवश होना पड़ा है। इन सबके बावजूद सरकारी सिस्टम अपनी कार्यशैली को बदलने के लिए तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के दूसरे कार्यकाल में भी कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिसमें राज्य के अधिकारियों की हठधर्मिता और मनमर्जी फैसलों के चलते सरकार की छवि को धक्का तो लगा ही है, साथ ही सरकार की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं। इनमें कुछ मामले नीतिगत क्षेत्र के हैं तो कई मामले परम्परागत हक-हकूकों पर कुठाराघात करने वाले हैं।
तुंगनाथ डोली प्रकरण
प्रदेश के विख्यात पंच केदार में भगवान तुंगनाथ के कपाट बंद होने के बाद तुंगनाथ मंदिर से शीतकालीन प्रवास के लिए ले जाई जा रही विग्रह डोली को वन विभाग द्वारा घंटो तक रोक दिया गया। सदियों से चली आ रही भगवान के प्रवास की परम्परा हर वर्ष शीतकाल में होती रही है। इस बार वन विभाग ने डोली के मार्ग पर ईको हट बना दिए जिससे मार्ग को बंद कर दिया गया और तुंगनाथ जी की डोली को अन्य मार्ग से ले जाने का फरमान जारी कर दिया गया।
गौरतलब है कि भगवान तुंगनाथ की पूजा उपासना शीतकाल में मांर्कंडेय मंदिर मक्कूमठ में होती है। इसके लिए भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली बड़े उत्सव के साथ स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुंओं द्वारा पैदल ही लाई जाती है। यह परम्परा पौराणिककाल से चली आ रही है। हर वर्ष इसी तरह से भगवान तुंगनाथ जी की चल विग्रह डोली को प्रवास के लिए लाया जाता रहा है, लेकिन इस वर्ष 5 नवम्बर को मक्कू मोड़ के पास वन विभाग द्वारा मार्ग को बंद करके ईको हट्स बना दिया गया जिससे मार्ग बंद हो गया। श्रद्धालुओं के लाख मिन्नतें करने के बाद भी वन विभाग ने मार्ग नहीं दिया जिससे कई घंटों विग्रह डोली को मक्कू मोड़ पर ही रूकना पड़ा। भारी जन विरोध के बाद आखिरकार 7 घंटे बाद वन विभाग द्वारा हट को हटाकर मार्ग खोला जिससे भगवान तुंगनाथ की डोली को रास्ता मिला।
इस मामले को लेकर सरकार के साथ-साथ वन विभाग के खिलाफ प्रदेश भर में आक्रोश देखने को मिला। सोशल मीडिया में भी इसको हक-हकूकों पर डाका डालने और धार्मिक आस्था पर चोट के तौर पर जमकर प्रचारित किया गया। केदारनाथ उपचुनाव के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवार मनोज रावत ने इसे भाजपा सरकार का हिंदू आस्था और परंपरा के साथ खिलावाड़ करने के आरोप लगाकर इसे मतदाताओं के सामने रखने की बात कहकर भाजपा को असहज कर दिया था। जानकारों की मानें तो इस मामले को आसानी से सुलझाया जा सकता था। लेकिन वन विभाग के नौकरशाहों की हठधर्मिता ने धामी सरकार की व्यर्थ में ही किरकिरी करा डाली।
हेलंग घसियारी प्रकरण
जुलाई, 2022 में पूर्व चमोली जिले की हेलंग घाटी में हेलंग परियोजना के चलते स्थानीय निवासियों को उनके परंरागत चारागाहों पर जाने और उसके उपयोग पर भी इसी तरह से रोक लगाई गई जिसका प्रदेशभर में भारी रोष देखने को मिला। कुछ स्थानीय महिलाएं अपने पालतू पशुआंे के लिए घास काटने गईं तो उनसे न सिर्फ बदसलूकी की गई, बल्कि पुलिस द्वारा महिलाओं के साथ मारपीट तक की गई और उनके घास के घठारों को छीन लिया गया। इस मामले के सामने आने के बाद प्रदेशभर में सरकार और प्रशासन के खिलाफ स्थानीय जनता सड़कों पर उतर आई थी और बड़ा आंदोलन तक किया गया था। जनसरोकारों से जुड़े तमाम संगठनों द्वारा ‘चलो हेलंग’ का नारा दिया जिससे आंदोलनकारियों के समर्थन में सैकड़ों लोग हेलंग घाटी जा पहुंचे थे। इससे सरकार की खासी किरकिरी हुई और प्रदेश सरकार पर राज्य के निवासियों के हकों पर कुठाराघात करने के आरोप लगे। मामले की गम्भीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को स्वयं इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा था।
लोक सेवा आयोग की हठधर्मिता
प्रदेश में बेरोजगार महासंघ सरकार पर बेरोजगारों के हकों पर कुठाराघात करने का आरोप लगाता रहा है। भाजपा संगठन और सरकार दोनों इन आरोपों से जूझते रहते हैं। लेकिन सरकार के तमाम दावांे के विपरीत बेरोजगारों के हकों पर स्वयं सरकार की संस्थाएं ही लगाम कसने का काम कर रही हैं। इसका ताजा उदाहरण उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के एक निर्णय बतौर देखा जा सकता है। लोक सेवा आयोग उत्तराखण्ड द्वारा 14 मार्च 2024 को पीसीएस मुख्य परीक्षा का कार्यक्रम घोषित करते हुए 16 नम्वबर से लेकर 19 नम्वबर तक इसकी तिथि तय कर दी। जबकि 4 नंवबर को आयोग द्वारा हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले अभ्यार्थियों के पाठ्यक्रम के तीन प्रश्न पत्रों में बदलाव कर दिया जबकि अंग्रेजी माध्यम में कोई बदलाव नहीं किया गया। इससे प्री पीसीएस परीक्षा पास करने वाले अभ्यार्थियों के सामने नए पाठ्यक्रम को समझने और अपनी तैयारी के लिए समय नहीं मिला जिस कारण वे परीक्षा को कुछ समय बाद करवाएं जाने की मांग करने लगे। इसके लिए मांग पत्र भी दिया गया लेकिन आयोग किसी भी सूरत में परीक्षा की तिथि में परिवर्तन करने को तैयार नहीं हुआ। अभ्यर्थियों का कहना है कि हिंदी माध्यम में पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया लेकिन अंग्रेजी माध्यम में कोई बदलाव नहीं किया गया। इसके चलते मेन परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों को परीक्षा की तैयारी का समय नहीं मिल रहा है। इससे उनके नम्बर कम आने की पूरी संभावनाएं हैं।
तमाम तरह के तर्क दिए जाने के बावजूद न तो आयोग और न ही राज्य का उच्च शिक्षा विभाग के साथ-साथ शिक्षा मंत्रालय भी अभ्यार्थियों की बात सुनने को तैयार हुआ। इससे विवश होकर प्रारम्भिक परीक्षा पास करने वाले हिंमाशु तोमर द्वारा हाईकोर्ट नैनीताल में याचिका दायर की गई जिस पर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने अभ्यार्थियों के हक में निर्णय देते हुए परीक्षा के लिए नई तिथि घोषित करने का आदेश जारी कर दिया। अब आयोग नई तिथि घोषित करके मुख्य परीक्षा का कार्यक्रम तय करेगा।
आयोग ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि परीक्षा को टालने से उनका परीक्षा का सायकल बिगड़़ जाएगा जिस पर हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि भले ही आयोग की परीक्षा का सायकल बिगड़ जाए लेकिन युवाओं के भविष्य का सायकल नहीं बिगड़ना चाहिए। हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से साफ है कि राज्य के युवाओं के भविष्य के साथ प्रदेश का लोक सेवा आयोग किस तरह से खिलवाड़ कर रहा है।
सवाल यह है कि यह मामला बड़ी आसानी से सुलझाया जा सकता था। अभ्यार्थी इस मामले को शासन और सरकार के साथ-साथ आयोग में कई बार दस्तक दे चुके थे। तब क्योंकर लोक सेवा आयोग हठधर्मिता दिखाते हुए अभ्यार्थियों की मांगों पर विचार करना तो दूर सुनने से भी परहेज करता रहा और शासन भी इस मामले में लापरवाह बना रहा? अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद पीसीएस मुख्य परीक्षा के अभ्यार्थियों को बड़ी राहत मिली है जबकि यह राहत सरकार द्वारा दी जा सकती थी। इसी लापरवाही या हठधर्मिता के चलते हाईकोर्ट में सरकार पर अपने युवाओं को रोजगार से वंचित करने के भी आरोप लगे।
हाईकोर्ट के इस निर्णय से पीसीएस अभ्यार्थियों को तो राहत मिल गई है लेकिन प्रदेश में पुलिस भर्ती में प्रदेश के युवा भर्ती की आयु सीमा बढ़ाए जाने की मांग को लेकर अभी भी सड़को पर आंदोलनरत हैं। देहरादून में हाल ही में बेरोजगार महासंघ के द्वारा बड़ा भारी आंदोलन किया गया है। संघ का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते राज्य में पुलिस की भर्ती नहीं हुई थी इसके चलते ज्यादातर युवाओं की आयु भर्ती मानकों से ज्यादा हो गई है इसके लिए सरकार को पुलिस भर्ती में प्रदेश के युवाओं को आयु में छूट देनी चाहिए। लेकिन अभी तक इस मांग पर शासन और सरकार किसी ने कोई निर्णय नहीं लिया है।
जनप्रतिनिधियों संग टकराव
नौकरशाही द्वारा सरकार की किरकिरी करने को एक ताजा मामला हाल ही में प्रदेश के सचिवालय में सामने आ चुका है। बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार और ऊर्जा सचिव मीनाक्षी सुंदरम के बीच विवाद से नौकरशाही की कार्यशैली पर फिर से गम्भीर सवाल खड़े किए गए हैं। इस मामले में बॉबी पंवार के खिलाफ ऊर्जा सचिव के स्टाफ द्वारा मुकदमा दर्ज करवाया जा चुका है। जबकि प्रशासनिक जानकारों की मानें तो इस मामले को सचिव द्वारा तूल देकर मामले को मुकदमे तक ले जाए जाने की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि इससे सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश की शासन व्यवस्था का ही हुआ है, साथ ही सरकार की छवि पर भी बट्टा लगा है। एक भ्रष्ट अधिकारी को दो वर्ष का सेवा विस्तार दिए जाने के बाद सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर भी गंभीर सवाल तो खड़े हो ही गए हैं, साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को मुकदमे में फंसाने का आरोप भी सरकार पर लग रहा है।
खनन निदेशक को बंधक बनाने का प्रकरण
ऐसा नहीं है कि अफसरों पर इस तरह के मामले पहले नहीं लगे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकर पर कानून व्यवस्था के खराब होने के आरोप भी नौकरशाही की इसी कार्यशैली के चलते लगते रहे हैं। कुछ माह पूर्व खनन निदेशक एसएल पैट्रिक को एक गेस्ट हाउस में बंधक बनाने और 50 लाख की फिरौती मांगे जाने के आरोपों से सरकार पर गंभीर सवाल खड़े हुए थे। हकीकत में यह मामला झूठा निकला। इस मामले में खनन निदेशक द्वारा पुलिस में मुकदमा दर्ज करवाया गया और पुलिस ने इस मामले की जांच की जिसमें बंधक बनाए जाने का आरोप संदिग्ध पाया गया। इस मामले में आरोपी ओमप्रकाश तिवारी द्वारा हाईकोर्ट में एसएल पैट्रिक पर भष्ट्राचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
वरिष्ठ विधायक का अपमान
अफसरों द्वारा नीतिगत मामलों में लापरवाही बरतने के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी अफसरों की कार्यशैली से सरकार की छवि प्रभावित हुई है। राज्य स्थापना दिवस के दिन पुलिस लाईन में धर्मपुर के विधायक विनोद चमोली को कार्यक्रम में उचित सम्मान न मिलने और उनके अपमान किए जाने का भी मामला इसका उदाहरण है। 9 नवम्बर के दिन पुलिस लाइन देहरादून में राज्य स्थापना दिवस समारोह आयोजित किया जा रहा था। विनोद चमोली स्थानीय विधायक हैं और वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भी हैं जिन पर राज्य आंदोलन के दौरान ‘रासुका’ के तहत मुकदमा दर्ज हो चुका है और वे जेल भी गए हैं। इन सबके बावजूद चमोली को बैठने का स्थान सामान्य जनता के बीच तय किया गया। विनोद चमोली ने इस पर एतराज जताया और कम से कम राज्य आंदोलनकारियों के बीच बैठाए जाने की बात कही।
एक वरिष्ठ राज्य आंदोेलनकारी और सत्ताधारी भाजपा के विधायक होने के बावजूद विनोद चमोली के साथ इस तरह का व्यवहार किए जाने से आंदोलनकारियों में भी नाराजगी देेखी गई। चमोली वरिष्ठ भाजपा नेता हैं। दो बार नगर पालिका देहरादून के अध्यक्ष, दो बार नगर निगम देहरादून के महापौर और लगातार दो बार से धर्मपुर विधानसभा से विधायक हैं। पुलिस लाइन धर्मपुर विधानसभा सीट का ही हिस्सा होने के चलते विनोद चमोली को सरकारी कार्यक्रमों में उचित सम्मान दिया जाना सरकारी प्रोटोकॉल के तहत आता है। अपने अपमान से विनोद चमोली इतने नाराज गए कि उन्होंने सार्वजनिक घोषणा कर दी है कि वे उन्हीं सरकारी कार्यक्रमों में जाएंगे जो उनकी विधानसभा में आयोजित होंगे, शेष सरकारी कार्यक्रमों में कभी नहीं जाएंगे।
बात अपनी-अपनी
प्रशासनिक सेवा में होने से चुनौतियां और भी बढ़ जाती हैं। जब सेवा के लिए हैं तो विवाद होने ही नहीं चाहिए, अगर विवाद होते हैं तो उनसे बचने का प्रयास किया जाना चाहिए। कोर्ट आदि से आदेशों पर रोक लग रही है तो यह तो आदेश या नीति को देख कर ही बता सकते हैं कि किस कंटैंट पर हुआ है। ऐसा नहीं है कि हर आदेशों को कोर्ट से रोक या फटकार लगती है।
आनंद वर्धन, अपर मुख्य सचिव कार्मिक
मैंने तो मुख्यमंत्री जी को इस पर पत्र लिखा है। अधिकारी लापरवाही से काम करते हैं इसके कारण ही विवाद होते हैं। सरकार की नीतियों का लाभ जनता को न तो समय पर मिल पाता है और न उसका सही से उपयोग हो पाता है। इससे काम भी रूक जाते हैं। जिस तरह से जनप्रतिनिधि जनता का सेवक होता है उसी तरह से अधिकारी भी जनता के लिए ही बनाए गए है। अधिकारियों को अपने काम करने के पैटर्न को बदलने की जरूतर है।
विनोद चमोली, विधायक धर्मपुर
एक अफसर का काम होता है कि वह अपना काम सही तरीके और नियम के तहत करे। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। पीसीएस परीक्षा के मामले में आप देख सकते हैं। अगर इस मामले में अधिकारियों ने सही काम किया होता तो कोर्ट से हारना न पड़ता। अफसरों और जन प्रतिनिधियों के बीच विवाद का मुख्य कारण जो मैं समझ रहा हूं कि अब अफसर भी राजनेताओं की ही तरह अपना इंटरेस्ट पाने का प्रयास कर रहे हैं। जिसकी सरकार उसके वफादार बने रहे हों, जब नेता अपना कट ले रहे हेैं तो हम भी क्यों न अपना कुछ न कुछ कट बना लें। हमारे समय में हर अधिकारी को अपने क्षेत्र में भ्रमण के लिए जाना जरूरी था लेकिन अब कोई भी अधिकारी को अपना क्षेत्र का अता-पता नहीं है। पहले एक शब्द पड़ताल होता था लेकिन अब किसी से पूछो तो पड़ताल का शब्द भी भूला दिया गया है। इसीलिए विवाद भी हो रहे हैं। विवाद पहले भी होते थे लेकिन अब राजनीति और ब्यूरोक्रेसी के बीच एक तरह का गठजोड़ बन गया है जिसके कारण एक-दूसरे के इंटरेस्ट का ध्यान रखे जाने लगा है जबकि पहले जनता के इंटरेस्ट पर ही सबका फोकस होता था।
एस.एस. पांगती, सेवानिवृत्त आईएएस उत्तराखण्ड
हम लोक सेवा में आए हैं, सेवा करने का हमें प्रतिफल मिलता है। हम लोकतंत्र व्यवस्था में रहते हैं लेकिन राजनीतिक लोग अपने हिसाब से चलते हैं। शासन और प्रशासन की व्यवस्था तो लोक सेवक द्वारा चलती है। इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप होता रहता है। जबकि व्यवस्था में साफ लिखा है कि राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा लेकिन यह मानता कौन है? इसे कथनी और करनी में बड़ा अंतर कहा जा सकता है। अफसरों में जिसकी सरकार है उसके साथ और उसके कहने अनुसार काम करने की आदत बन चुकी है। इसी के कारण नीतिगत निर्णयों में देरी होती है और कोर्ट से भी सरकार को पीछे हटना पड़ता है। उत्तराखण्ड दो मंडलों का प्रदेश है। हमने तो 16-16 मंडलांे में काम किया, बेहतर काम किया। जब ये छोटे प्रदेश में भी काम सही तरीके से नहीं कर पा रहे हैं तो भविष्य क्या होगा, यह अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
वाई.एस. पांगती, सेवानिवृत्त आईएएस
यह हर लेवल पर हैं राजनेता और नौकरशाही सभी में आज भी सामंतशाही का विचार भरा हुआ है। अगर राजनेता निस्वार्थ भाव से काम करता है तो उसका नौकरशाही पर भी होल्ड होता है वह बेहतर काम करवा सकते हैं लेकिन हो उल्टा रहा है। विधायक अपने वेतन को बढ़ाने के लिए तत्काल निर्णय ले लेते हैं। लेकिन जनता के विकास के कामों के लिए निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। अच्छे नेता या जन प्रतिनिधि हो या अफसर जो अच्छा काम करते हैं उनको किनारे कर दिया जाता है। जो भ्रष्ट हैं और घोटाले करने में माहिर होते हैं उन्हें मनमाफिक पोस्टिंग तुरंत मिल जाती है। जनता को भी इसका आंकलन करना चाहिए। सचिवालय में जो हुआ वह भी इसी का ही परिणाम है। पहले आईएएस की एसोसिएशन स्वयं ही महा भ्रष्ट का चयन कर प्रशासन को सुधारने का काम करते थे लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है। कहने का मतलब यह है कि इस पूरे नैक्सन में राजनेता और अफसरों का एक गठजोड़ बना हुआ है जिसके कारण ऐसे हालत सामने आ रहे है और आगे भी ऐसे हालात सामने आएंगे।
पी.सी. तिवारी, अध्यक्ष उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी
अलग राज्य बनने के बाद हमारा सबसे बड़ा फोकस राज्य की शासन और प्रशासनिक व्यवस्था को प्रदेश के अनुरूप खड़ा करने का होना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया। तिवारी सरकार ने इस पर कुछ कदम उठाए थे लेकिन वह नाकाफी थे और इसके बाद की सरकारों ने भी इस पर ध्याान देने की जरूरत ही नहीं समझी। आज जो कुछ भी प्रदेश की शासन और प्रसाशन में हो रहा है वह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यह होना अपेक्षित ही है। क्योंकि अब ब्यूरोक्रेट हो या अन्य, सभी सत्ता के साथ सामंजस्य रखते हुए काम करने को ही ज्यादा बेहतर मानने लगे हैं। मोदी सरकार ने एक कर्मवीर पोर्टल बनाया है जो कि पूरी तरह से शासन और प्रशासन के लिए है। इसमें हर अधिकारी को निश्चित समय पर काम करना जरूरी है। लेकिन राज्य में इसका उपयोग कोई करने को तैयार ही नहीं है। अधिकारियों को काम करने का नया अनुभव मिलेगा, अनेक निर्णयों की जानकारी मिलेगी जिससे वे अपने काम को बेहतर कर सकते हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है।
सुरेंद्र कुमार आर्य, वरिष्ठ पत्रकार