उत्तराखण्ड कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। इस समय राज्य पर 46 हजार करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है। इसके बावजूद त्रिवेंद्र सरकार सरकार न तो अपनी आय बढ़ाने के नए संसाधन तलाश पाई है और न ही राजस्व वसूली का लक्ष्य पूरा कर सकी है। विकास योजनाओं के लिए केंद्र का मुंह ताकना पड़ रहा है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का वित्तीय अनुशासन बिगड़ चुका है। वित्तमंत्री प्रकाश पंत अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रयासरत दिखाई देते हैं
रा ज्य सरकार का वित्तीय अनुशासन केंद्र सरकार के भरोसे चल रहा है, या यूं कहें कि किसी तरह से इसे चलाए जाने का प्रयास किया जा रहा है। एक ओर जहां राज्य सरकार अपने ही राजस्व को प्राप्त करने में बुरी तरह से पिछड़ रही है, तो वहीं दूसरी तरफ केंद्र से भी उम्मीद के मुताबिक राजस्व नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते सरकार कर्ज पर कर्ज लेकर किसी तरह से अपना काम चला रही है। यहां तक कि उसे अपने कर्मचारियों के वेतन और देनदारियों के लिए खुले बाजार भी से कर्ज लेना पड़ रहा है। आज राज्य पर 46 हजार 244 करोड़ का कर्ज चढ़ चुका है, जबकि वर्ष 2020 तक प्रदेश का कर्ज 56 हजार करोड़ तक पहुंचने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। जिस तरह से राज्य के हालात महज दो वर्षों में बिगड़े हैं उससे भी इन संभावनाओं को बल मिलता है।
सरकार के वित्तीय अनुशासन की बात करें तो मामला बेहद गंभीर दिखाई देता है। सरकार अपने सकल घरेलू उत्पाद पर तीन प्रतिशत ऋण तो ले रही है। लेकिन इतनी ही धनराशि उसे अपने कर्ज और ब्याज को चुकाने में खर्च करनी पड़ रही है। बावजूद इसके सरकार अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए कोई ठोस नीति बनाने में कामयाब होती दिखाई नहीं दे रही है। स्वयं सरकार के आंकड़ों से सच्चाई सामने आ गई है। पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार अपने ही राजस्व को वसूलने में कमजोर रही है। वह 36 सौ करोड़ का राजस्व लक्ष्य पूरा हासिल नहीं कर पाई है।
सरकार ने अपने दो वर्ष के कार्यकाल में पहली बार सरप्लस बजट पेश किया है। सरकार ने पहली बार आमदनी ज्यादा ओैर खर्च कम होने का अनुमान लगाया है। जानकारों की मानें तो सरकार इस सरप्लस बजट से अपने वित्तीय अनुशासन पर उठ रहे सवालों की धार को कुंद करने का प्रयास कर रही है, जबकि सरकार के ही आंकड़े हैं कि वह अपना राज्य का राजस्व तक प्राप्त करने में पिछड़ चुकी है। अपनी आय को बढ़ाने के लिए भी सरकार कोई नए स्रोत नहीं ढूंढ पाई है। बावजूद इसके सरकार जनता में बजट के जरिए एक रंगीन तस्वीर दिखाने का प्रयास कर रही है। आंकड़ों को देखें तो सरकार का अनुमान है कि वर्ष 2019-20 में वह 48689 करोड़ 43 लाख का राजस्व प्राप्त कर लेगी। जबकि 48663 करोड़ 90 लाख धनराशि खर्च होने का अनुमान लगा रही है। इन आंकड़ों से सरकार राज्य के बजट में 15 करोड़ 53 लाख सरप्लस रहने का अनुमान लगा रही है।
आर्थिक जानकारां की मानें तो सरकार हमेशा से ही ज्यादा से ज्यादा बजट का बड़ा आकार तो रखती है, लेकिन खर्च के लिए धनराशि नहीं जुटा पाती है। इसके चलते सरकार अपने बजट को पूरा खर्च तक नहीं कर पाती है। यही उत्तराखण्ड में हो रहा है। सरकार केंद्र सरकार के ही भरोसे अपने बजट का आकार बढ़ाती रही है। इस बार तो सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर सरप्लस बजट ही प्रस्तुत कर दिया, जबकि हकीकत में प्रदेश सरकार को केंद्र सरकार से ही बड़ा झटका लग चुका है। एक ओर तो सरकार अपना राजस्व पूरा प्राप्त करने में नाकाम है उस पर एसजीएसटी से भी सरकार को राजस्व उतना नहीं मिल पाया जितना सरकार ने अनुमान लगाया था। अब सरकार का अनुमान जिसमें सरकार को तकरीबन 10 हजार करोड़ अधिक आमदनी होने का अनुमान है, एक छलावा लग रहा है। सरकार इस बात को भी सही तोर पर नहीं रख पाई है कि वर्ष 2017-18 में सरकार की अपनी जो आय 27 हजार करोड़ के लगभग थी वह केसे अचानक एक वर्ष में इतनी बढ़ सकती है, जबकि प्रदेश में आय के साधन वही बने हुए हैं जो परंपरागत तरीके से चले आ रहे हैं। यानी भू- राजस्व, खनन, आबकारी तथा केंद्रीय करों में मिला अंशदान। राज्य में हर क्षेत्र से राजस्व पूरा प्राप्त नहीं हो पाया है। भू-राजस्व, खनन आबकारी सभी में गिरावट देखने को मिली है। केंद्र सरकार के जीएसटी दरों को कम करने के चलते राज्य सरकार इसे जमीनों ओैर भवनों से होने वाली राजस्व प्राप्ति का बड़ा अनुमान लगा रही है, जबकि जानकार इसमें फायदा होने में देरी बता रहे हैं।
अब केंद्र सरकार के भरोसे की बात करें तो केंद्र सरकार से जितनी उम्मीद राज्य सरकार ने लगाई हुई थी उतना राज्य को नहीं मिल पाया है। जीएसटी से होने वाले नुकसान की भरपाई में केंद्र सरकार के हाथ पीछे करने से राज्य को नुकसान हुआ है। इसके बावजूद राज्य सरकार केंद्र सरकार के ही भरोसे चल रही है। अपने खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज पर कर्ज ले रही है। राज्य सरकार के बजट को पूरी तरह से चुनावी बजट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बजट में कई घोषणाएं कर वह जनता को लुभाने का काम कर रही है, जबकि सरकार को अपनी योजनाओं के लिए खर्च करने में ही पसीने छूट रहे हैं।
केंद्र सरकार के भरोसे को देखें तो आज प्रदेश सरकार केंद्र सरकार की योजनाओं के ही सहारे चल रही है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना, राष्ट्रीय कøषि विकास योजना, राष्ट्रीय उद्यान मिशन, बाढ़ सुरक्षा, पेयजल और सिंचाई के अलावा नमामि गंगे आदि सभी योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। यहां तक कि ऑलवेदर रोड और हाईवे निर्माण की योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। जिनमें केंद्र सरकार धन खर्च कर रही है।
राज्य सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा अपने कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन, मानदेयों आदि पर ही खर्च हो रहा है। यह हिस्सा कुल बजट के 40 फीसदी से भी ज्यादा है औेर माना जा रहा है कि अपनी देनदारी, कर्ज और कर्ज के ब्याज में ही सरकार के कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। इस तरह से सरकार के पास तकरीब 13 फीसदी ही बजट बचा है जिससे सरकार राज्य में विकास कामों पर खर्च कर पाती है।
जानकारों की मानें तो आने वाले समय में राज्य सरकार के सामने सड़कों और हाईवे की मरम्मत के लिए भी बड़ी समस्या आने वाली है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईवे से 500 मीटर दूर शराब के ठेकों और कारोबार पर रोक के आदेश के बाद सरकार ने कई राज्य हाईवे को नोटिफिकेशन करके नगरीय और जिला सड़कें घोषित कर दिया था। अब आने वाले समय में सरकार को इन सड़कों के पुनर्निर्माण, मरम्मत आदि के लिए बजट जुटाना पड़ेगा, जबकि शराब से भी सरकार अनुमानित राजस्व पूरा नहीं ले पाई है। अब सरकार के सामने कई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा नगर निगमों और नगर पालिकाओं का सीमा विस्तार करने से नए क्षेत्रों में काम को लेकर भी कई समस्याएं आने वाली हैं। आज सरकार का पूरा फोकस केंद्र सरकार द्वारा नगरीय क्षेत्रों के विकास के लिए मिलने वाली मदद के भरोसे है।
खर्च को लेकर सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे और वादे किए जाते रहे हैं। खर्च कम करने के लिए सरकार कई जतन करती है तो वहीं सबको खुश करने के लिए वह एक के बाद एक कई घोषणाएं कर देती है। राज्य की माली हालत को जानते हुए भी सरकार कर्मचारियों के वेतन ओैर भत्तों में वृद्धि करने में भी पीछे नहीं रही। पहले सरकार ने सचिवालय में कई भत्तों को खत्म किया, लेकिन कर्मचारियों के दबाब में उसे अपने कदम पीछे करने पर मजबूर होना पड़ा। कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में तीन फीसदी बढ़ोतरी से राज्य के खजाने पर 390 करोड़ प्रतिमाह का बोझ पड़ेगा। एक वर्ष में ही 4680 करोड़ सरकार केवल महंगाई भत्तां के नाम पर खर्च करेगी।
इसी तरह से ऑल वेदर रोड़ के निर्माण में राज्य की वन भूमि के मुआवजे के तौर पर 8 सौ करोड़ रुपए केंद्र सरकार से नहीं लेने का निर्णय भी राज्य सरकार कर चुकी है। हालांकि राज्य सरकार का तर्क है कि केंद्र सरकार ऑल वेदर रोड के लिए प्रदेश में 22 हजार करोड़ खर्च कर रही है, तो प्रदेश का भी दायित्व है कि वह केंद्र सरकार से वन भूमि का मुआवजा न ले, जबकि राज्य की माली हालत इस कदर हो चली है कि सरकार के खजाने पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। राज्य पर मर्ज पर कर्ज बढ़ता जा रहा है ऐसे में राज्य सरकार की राजनीतिक दरियादिली समझ से परे है।
लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने केबिनेट में राज्य कर्मचारियों के मंहगाई भत्तों में 3 प्रतिशत वृद्धि करके साफ कर दिया कि वह पूरी तरह से चुनावी मोड में आकर अपना बजट प्रस्तुत कर रही है, जबकि सरकार आय की कमी से जूझ रही है। सरकार के सामने अपनी ही योजनाओं को पूरा करने के लिए धन जुटाने की चुनौती है। आज कई विभागों में वेतन के लाले पड़े हुए हैं। सरकार निर्माण एजेंसियों के ठेंकेदारों को भुगतान नहीं दे पा रही है। अपनी जिम्मदारियों से बचने के लिए राज्य सरकार
पीपीपी मोड का सहारा ले रही हे। स्वास्थ्य और चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं में सरकार पीपीपी मोड का सहारा ले रही है। साफ है कि सरकार बुनियादी राज्य के निवासियों को बुनियादी सुविधाएं देने में कमजोर साबित हो रही है, जबकि वह इसके लिए बड़े बड़े दावे कर रही है।
हैरत की बात तो यह है कि राज्य की माली हालात को देखते हुए भी सरकार वित्तीय अनुशासन को सही तरीके से लागू नहीं करवा पा रही है। राजनीतिक घोषणाओं के चलते वित्त विभाग को बाईपास करके विकास कार्य स्वीकøत करवाए जा रहे हैं। इसके चलते मुख्य सचिव द्वारा विभागों को कड़ा पत्र तक जारी करना पड़ा है। हाल में सूचना अधिकार के तहत मिली जानकारी से साफ हो गया है कि बगैर शासन की स्वीकøति के विभाग कई ऐसे काम करवा रहे हैं जिनमें लाखों का खर्च किया गया है। वन विभाग द्वारा पिछले वर्ष 2018 में कैक्टस पार्क के निर्माण में लाखों खर्च करने का मामला सामने आया है जिसमें न तो शासन और न ही वित्त विभाग से किसी प्रकार की स्वीकøति ली गई है। यही नहीं इस काम के लिए कोई भी प्रावधान नहीं अपनाए गए हैं। माना जा रहा है कि विभाग में भ्रष्टाचार के चलते ही ऐसा किया के तहत मिली जानकारी है। इसी तरह से कर्मचारियों के वेतन और पदोन्नति के मामलों में भी विभागों में मनमर्जी चल रही है जिस पर सरकार लगाम नहीं लगा पा रही है। अब देखना होगा कि सरकार किस तरह से अपने राजस्व को बढ़ाती है और किस तरह से सरप्लस बजट जो कि सरकार ने प्रस्तुत किया है, से जनता को राहत दे पाती है।