[gtranslate]
Uttarakhand

‘मैं अच्छा शासक होने के बावजूद अच्छा राजनीतिज्ञ साबित नहीं हुआ’

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत पहली बार 2002 में राज्य की पहली विधानसभा के लिए डोईवाला सीट से विधायक बने थे। 2007 में पुनः इस सीट से विजयी हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत को खण्डूड़ी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 2012 में रायपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े रावत को हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी ने उनकी सांगठनिक क्षमता को देखते हुए उन्हें 2014 में झारखंड राज्य का प्रभारी बनाया था। 2017 में एक बार फिर से डोईवाला सीट से चुनाव जीते त्रिवेंद्र रावत राज्य के 10वें मुख्यमंत्री बनाए गए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी कहलाए जाने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत को चार बरस का कार्यकाल पूरा करने के बाद यकायक ही मुख्यमंत्री पद से मार्च 2021 में हटा दिया गया था। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनको हटाए जाने का कोई स्पष्ट कारण तब नहीं बताया था। वर्तमान में रावत प्रदेश का धुआंधार दौरा कर अपनी राजनीतिक सक्रियता को बढ़ाते नजर आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे 2024 में पौड़ी गढ़वाल सीट से चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ के रोविंग एसोसिएट एडिटर आकाश नागर ने राज्य की राजनीति समेत अनेकों मुद्दों पर त्रिवेंद्र सिंह रावत से विस्तृत बातचीत की

आपके चार साल के कार्यकाल की क्या उपलब्धि रही?

मैंने पूरी कोशिश की कि हम प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाएं और केवल विकास पर फोकस करें। राज्य में रोड इंफ्रास्टक्चर में रिकॉर्ड काम हुआ। उस समय किसी समाचार पत्र ने रिपोर्ट लिखी ‘17 साल बनाम 4 साल’। तो जो रूरल रोड्स बनी और जो बॉर्डर रोड्स बनी। वह एक रिकॉर्ड था। बॉर्डर रोड्स के रिकॉर्ड में तो हम देश में नंबर एक पर आए। शासन की दृष्टि से हमने एक स्मूथ वातावरण दिया काम करने के लिए। हमने विंडोज कम की। जैसे सचिवालय के अंदर कोई भी फाइल 6-7 विंडोज पर जाती थी तो उनको हमने कम करके 3-4 विंडोज तक सीमित किया। बहुत सारे ऐसे अधिकार थे जैसे एमएसएमई जिन पर जिलाधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर शासन निर्णय लेता था। हमने कहा क्या जरूरत है इसको शासन में ले जाने की। जब जिलाधिकारी इसके लिए सक्षम है तो उस पाइप को एक नदी से हम क्यों सागर में ला रहे हैं? फिर फाइल को ढूंढ़ते रह जाइए सागर में। तो हमने जिलाधिकारी को अधिकार दे दिया कि 10 करोड़ तक की जो भी इंवेस्टमेंट है, उस पर जिलाधिकारी अपने स्तर पर काम करे। हमने यह कोशिश की कि ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ जो कि सूत्र है माननीय प्रधानमंत्री जी का। उस सूत्र पर हमने शासन को ढर्रे पर लाने का काम किया। दूसरी बात हेल्थ के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण काम हुआ है। ‘अटल आयुष्मान उत्तराखण्ड योजना’ में हमने उन लोगों को भी जोड़ दिया जो केंद्र की योजना से जुड़े नहीं थे। यानी संपूर्ण उत्तराखण्ड के जो 23 लाख परिवार थे उन्हें स्वास्थ्य की दृष्टि से कवच देने का काम हमने उन चार सालों के दौरान किया।

हमेशा यही बात होती है कि हमारे प्रदेश के पहाड़ों में कुछ नहीं होता और यह बात काफी हद तक सही भी है। हमने सोचा कि क्योंकि यहां पर बड़ी इंडस्ट्री जा नहीं सकती है, यहां पर क्या ऐसा किया जा सकता है ताकि लोगों की आय बढ़े और राज्य की ग्रोथ में पहाड़ का भी योगदान बढ़ सके। अब देखिए पहली बार जब हमारा राज्य बना तो ‘ऊर्जा प्रदेश’ का एक नारा दिया गया और इतने सालों के अनुभव के बाद देखने में आया कि ऊर्जा की दृष्टि से जितना हमारे पास संसाधन है, उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसका मुख्य कारण पर्यावरण से जुड़ा है। तमाम एनजीओ, संस्थाएं हैं, वे कोर्ट-कचहरी चले जाते हैं, तमाम तरह के आंदोलन खड़े हो जाते हैं। हमने फोकस किया ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर। जो पहाड़ के खेत खाली हो गए हैं, उन खेतों पर हमने सोलर फार्मिंग करके शुरुआत की। आज सोलर फार्मिंग के अंतर्गत जो खेत कई वर्षों से बंजर पड़े हुए हैं, वहां पर सोलर एनर्जी पैदा हो रही है। लगभग 800 करोड़ सीधे-सीधे पहाड़ों में एक तरह से इनवेस्टमेंट किया गया। हमारे पास पहाड़ों में बड़ी मात्रा में बायोमास है। बायोमास में चीड़ की पत्तियां है। चीड़ पर हमने एक शोध कार्य करके उससे बिजली बनाने एवं अन्य काम शुरू किए। उसमें व्यापक स्कोप है। अगर हम बेहतर इस्तेमाल करें तो इसमें उत्तराखण्ड के 75000 लोगों को रोजगार देने की क्षमता है। पीरूल की वैल्यू कोयले से ज्यादा है। अगर हम उसका मूल्य देखें तो कोयले से लगभग एक तिहाई कम है और पर्यावरण के लिए कोई नुकसान नहीं है बल्कि पर्यावरण को संरक्षण करने का काम है। जो आग लग जाती है जंगलों में उसमें हमारे जंगल बचेंगे। कई बार आग बुझाने जाने वाले लोगों की मौत हो जाती है, वह भी बचेंगे। इंडोनेशिया जैसे देशों में तो चीड़ के लाभ हेतु इसकी फार्मिंग की जाती है। हमारे यहां तो यह प्राकृतिक रूप से ही उगता है, इसका लाभ हमें उठाना चाहिए।

आपने प्रदेश के लिए इतने विकास कार्य किए, कई बड़ी उपलब्ट्टियां रहीं बावजूद इसके केंद्रीय आलाकमान द्वारा आपको आपका कार्यकाल पूरा होने से एक साल पहले हटाने के क्या कारण रहे?

देखिए, कई राजनीतिक बातें होती हैं। अच्छा शासक होना बहुत अच्छी बात है लेकिन अच्छा राजनीतिज्ञ होना भी जरूरी है। शायद कुछ कमियां मेरी भी रही होंगी तभी मैं अच्छा राजनीतिज्ञ साबित नहीं हुआ। हां मैं डेवलपमेंट के बारे में कह सकता हूं, भ्रष्टाचार पर अंकुश के मामले में कह सकता हूं, विकास के मुद्दों पर कह सकता हूं कि मैंने कहीं पर भी लापरवाही नहीं होने दी।

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की आप बात कर रहे हैं तो डोईवाला विधानसभा क्षेत्र में जहां के आप विट्टायक भी रहे वहां और अन्य क्षेत्रों में आपके मुख्यमंत्रितवकाल के दौरान अवैध खनन का खेल हुआ। आपके एक ओएसडी थे जिन पर अवैध खनन कराने के आरोप लगे थे?

यह बिल्कुल गलत बात है। मैं कह सकता हूं कि 90 प्रतिशत अवैध खनन पर हमने रोक लगाई। 100 प्रतिशत तो मैं भी नहीं कह सकता हूं। अवैध खनन कभी 100 प्रतिशत नहीं रूकता, छुटपुट तौर पर होता रहता है। लेकिन अवैध खनन को हमने
बिल्कुल भी प्रश्रय नहीं दिया ये मैं कह सकता हूं।

आपके एक ओएसडी थे के.एस. पवार, उन पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे थे। इस पर आपका क्या कहना है?

बिल्कुल झूठे आरोप थे। रिजर्व बैंक ने उनको क्लीन चिट दी थी। किसी के आरोप लगाने से क्या होता है। समाज में ब्लैक मेलर हैं जो इस तरह से ब्लैक मेलिंग करना चाहते हैं। वे आरोप लगाते रहते है। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। केजरीवाल ने भी कह दिया कि प्रधानमंत्री की डिग्री फर्जी है, डिग्री दिखाओ। इससे क्या होता है। इससे कुछ नहीं होता। आरोप लगते हैं राजनीति में लेकिन एक भी आरोप साबित हुआ है क्या। सब ऑन रिकॉर्ड होता है। बिना आधार कार्ड के कोई भी बैंक एकाउंट नहीं खोल सकता है। ऐसे ब्लैक मेलर बोलते रहते हैं। उनका धंधा ऐसे ही चलता है।

पिछले दिनों कैग ने एक रिपोर्ट जारी की है। उसमें कहा गया है कि 2017 से 2020 के दौरान, जब आपका मुख्यमंत्रित्वकाल था, देहरादून की सौंग नदी, ढकरानी नदी और कुल्हाल नदी में जमकर अवैध खनन हुआ। इस अवैट्टा खनन से प्रदेश को करोड़ों के राजस्व का हानि हुआ।

अवैध खनन हुआ होगा, मैं नहीं कह रहा कि नहीं होगा। थोड़ा-बहुत हुआ होगा, मैं उसको मानता हूं लेकिन यह भी सच है कि 90 प्रतिशत अवैध खनन पर हमने रोक लगाई। कैग की रिपोर्ट जो होती है उसके पैरामीटर भी थोड़ा अलग होते हैं।

कैग की इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि समस्त सरकारी एजेंसियां एवं गढ़वाल मंडल विकास निगम सरीखे सरकारी उपक्रम भी अवैध खनन को रोकने में विफल रहे?

गढ़वाल मंडल विकास निगम राज्य का एक निगम है और आप देखिए गढ़वाल मंडल विकास निगम ने रिकॉर्ड कायम किए। पहली बार गढ़वाल विकास निगम 909 करोड़ के प्रोफिट में आया है और गढ़वाल मंडल विकास निगम ने कोई शराब नहीं बेची।

वर्तमान सरकार पर भी अवैध खनन के आरोप लग रहे हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है?

आरोप लगाना न लगाना अलग बात है। आरोप लगते हैं लेकिन सच क्या है? यह तो लोकतंत्र है कोई किसी को कुछ भी बोल देता है। इसलिए आरोपों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। धरातल में क्या है, पब्लिक क्या सोचती है। पब्लिक परसप्शन क्या है, वह बड़ी चीज होती है।

धामी सरकार को एक साल हो गया है इसे आप किस तरह से देखते हैं?

धामी जी अच्छा प्रयास कर रहे हैं ताकि बेहतर रिजल्ट दे सकें। मेहनत के साथ-साथ भाग-दौड़ भी कर रहे हैं।

आपकी भविष्य की क्या योजना है। चर्चा है कि आप 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे?

भविष्य में हम चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी यहां से पांचों लोकसभा सीट जीते। स्थानीय निकाय के चुनाव हैं वह इस साल के आखिर में होंगे, उसमें भारतीय जनता पार्टी जीतकर आए। इसके लिए हम लोग कोशिश कर रहे हैं। सरकार भी अपनी तरफ से प्रयास कर रही है, संगठन भी अपना काम कर रही है। हमारे बारे में पार्टी को डिसाइड करना है। पार्टी जो तय करेगी वह हमें मान्य होगा। पार्टी कहेगी लड़ना है, ठीक है, पार्टी कहेगी नहीं लड़ना है, तो ठीक है।

उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिला है कि प्रदेश में शासन बनाम सचिवालय संघ की जंग शुरू हो गई है। संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी ने आईएएस अट्टिकारियों को चेतावनी तक दे डाली है। इसे आप किस रूप में देखते हैं?

मुझे इसका पता नहीं है। लेकिन अब उन्होंने बोला है तो प्रशासन अपना काम करेगा और दीपक जोशी कौन है ंमैं तो नहीं जानता। लेकिन शासन-प्रशासन का अपना काम है, उसकी अपनी व्यवस्था है। यह सचिवालय के बाबू थोड़े ही तय करेंगे।

सचिवालय संघ के अट्टयक्ष दीपक जोशी ने एक वरिष्ठ आईएएस अट्टिकारी को निशाना बनाते हुए यहां तक कहा है कि पहाड़ी टोपी पहनकर कोई पहाड़ी नहीं बन जाता?

उन्होंने क्या कहा यह तो मैं नहीं जानता। लेकिन मैं यह जानता हूं कि राधा रतूड़ी बहुत एफिसिएंट और अच्छी अधिकारी हैं। उन पर कोई दाग नहीं है।

नौकरशाही पर जो नकेल आपके कार्यकाल में दिखती थी वह अब दिखाई नहीं दे रही है? ऐसा क्यों।

देखिए हर कोई नियंत्रण में रहना चाहिए। यह प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है कि अफसर मर्यादाओं में रहें।

पिछले दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह ट्टामी के सामने ही दो अट्टिकारियों की जो भिड़ंत हुई वह चर्चा का विषय बना है?

अधिकारी लड़े या न लड़े उनके लिए क्या कहना है। ये बातें तो कई बार ऐसे भी बोल दी जाती हैं। राजनीति में तो बिना बात के भी बात बना दी जाती है।

आपके शासनकाल और मुख्यमंत्री ट्टामी के कार्यकाल का आकलन करे तो अट्टिकारी पहले से ज्यादा बेलगाम दिखते हैं?

आकलन करने का काम आप लोगों का है। पत्रकार इसका आकलन करें। बुद्धिजीवी इसका आकलन करें। शासन के जो लोग हैं वे इसका आकलन करें। मुख्यमंत्री उसका आकलन करें। हमारे जो ऊपर के लोग हैं वे आकलन करें, यह मेरा काम नहीं है।

त्यूनी में चार बच्चियों की जलने से मौत हुई और वहां फायर विभाग की गाड़िया जब पहुंची तो उनके पास पर्याप्त पानी आग बुझाने के लिए नहीं था। मजबूरन हिमाचल प्रदेश से सहायता लेनी पड़ी। आपदा नियंत्रण विभाग भी कहीं नजर नहीं आया। इस पर आपका क्या कहना है?

बहुत दुखद घटना हुई है। चार मासूम बच्चियां मौत के मुंह में चली गईं। हर चीज का एक समय होता है। आपदा कब आ जाए कहा नहीं जा सकता। वे तो ऐसी घटना थी कि जब तक संभलते इतनी देर में ही सब कुछ हो गया। वहां पर लकड़ी और देवदार के मकान बने हुए थे जो कि एक तरह से पेट्रोल है। घटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार ने उस पर जांच बिठाई है। उत्तरकाशी का जो मोरी ब्लॉक है और जो हमारा आराकोट का क्षेत्र है, चकराता है यहां पर जितने भी पुराने मकान हैं सब देवदार की लकड़ी से बने हैं। ऐसी कई घटनाएं मैंने देखी हैं। जहां घटना घटी वहां तो रोड साइड में था लेकिन कई घटनाएं ऐसी जगह हो जाती हैं जहां आप चाहकर भी फायर की गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। कई जगह ऐसी हें जहां सर्दियों में लोग अपने मकान की छत को घास से ढक लेते हैं। इसलिए कि वे ठंड से बचे रहें और घास भी सुरक्षित रहे। वहां देवदार के मकान होते हैं। एक बार पूरे के पूरे गांव के 300 लोग जलकर राख हो गए थे। मैंने एक योजना बनाई थी कि जो घर है उनके लिए घास रखने की टीन शेड अलग बनाई जाए। उसके लिए मोरी ब्लॉक के हर परिवार के लिए एक व्यवस्था भी थी जिससे आग की घटनाओं से बचा जा सके।

जोशीमठ के दरकने की घटना के बाद और कई जगहों पर ऐसी ही समस्याएं सुनने को मिल रही हैं। इस पर नियंत्रण कैसे लगे?

यह बड़ा वैज्ञानिक पक्ष है। जोशीमठ को यदि हमें समझना है तो हमें पहले हिमालय को समझना पड़ेगा। हिमालय के करेक्टर को समझना पड़ेगा। जोशीमठ से 10-12 किलोमीटर ऊपर की तरफ से लास्ट बॉर्डर तक और हेलंग से लेकर गुप्तकाशी, यमुनोत्री, गंगोत्री ये पूरा क्षेत्र लगभग 2400 किलोमीटर है, ये बहुत संसेटिव जोन हैं उसको समझने की जरूरत है। जोशीमठ की घटना तो केवल एक ट्रेलर टाइप का है। तमाम निर्माण कार्य कैसे होने चाहिए उस पर भी पब्लिक को ध्यान देने की जरूरत है। विशेषज्ञ अपनी राय देते हैं। कई बार राजनीतिक कारणों से भी होता है, कई बार जनदबाव भी होता है। जनदबाव यह कि कई बार पहाड़ों में निर्माण के लिए जगह बहुत कम है लगभग 73 प्रतिशत एरिया हमारा वन भूमि का है। ऐसे में हमें बहुत कम जगह निर्माण आदि के लिए मिलती हैं। एक मजबूरी का भी दबाव होता है। थोड़ा उसे समझने की जरूरत है। पब्लिक को भी इसमें जागरूक होने की जरूरत है। पब्लिक जागरूक नहीं होगी तो इस तरह की समस्याओं की संभावना बनी रहेगी।

पहाड़ों में जो टनल बन रही हैं उसको भी जोशीमठ जैसी घटनाओं के लिए दोषी माना जा रहा है?

पहले तो बड़ा प्रश्न यह है कि टनल बनी या नहीं बनी। हम सुनी-सुनाई बाते कर रहे हैं। मेरी नॉलेज के हिसाब से अभी जोशीमठ के नीचे टनल बनी ही नहीं है। अभी टनल जोशीमठ से सवा किलोमीटर ऊपरी तरफ है। चलो मानते हैं कि टनल बन रही है। लेकिन 1935 की जो भूस्खलन की रिपोर्ट है इसके अलावा 1976 की पूरी स्टडी की रिपोर्ट है। तब तो टनल नहीं बन रही थी। कई बार क्या है कि कुछ विकास विरोधी लोग होते हैं। कुछ लोगों के कई बार निजी हित होते हैं। कई बार तमाम तरह की बातें लोग बोलते हैं। कई बार जानकारियों के अभाव में तो कई बार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लोग ऐसी बातें करते हैं। कुछ भी बोलने से पहले लोगों को धरातल पर जाकर देखना चाहिए।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना में भी कई टनल बन रही हैं। वहां भी ऐसी कई सूचनाएं आ रही हैं कि कई गांवों में मकान दरक रहे हैं। क्या सच्चाई है इसमें?

थोड़ा-बहुत संभव है। कुछ हुआ भी होगा। संभव यह भी है ऐसा कुछ नहीं हो। कई बार हम बड़े हित के लिए थोड़ा-बहुत नुकसान बर्दाश्त करते ही हैं। वहां पर जो लोग हैं उनको अच्छा मुआवजा दिया गया है। उन्हें मकानों और जमीनों का मुआवजा भी दिया जा रहा है। कुछ काम देश हित के लिए भी होते हैं। यह जो रेल परियोजना है यह सिर्फ कुछ लोगों को लाने ले जाने के लिए ही नहीं है। हमारी जो सीमा है। हमारी सेना की और सुरक्षा की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है।

हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भी प्रदेश में खनन कार्यों में जेसीबी ट्टाड़ल्ले से चल रही है। इस पर रोक संभव है क्या?

यह खनन होता ही नहीं। यह तो चुगान होता है। चुगान का मतलब यह है कि हाथ से खुदाई होती है। बेलचों से, फावड़ों से हम खुदाई कर सकते हैं। लेकिन लोग मशीनों से दुरुपयोग करते हैं। कई स्थानों पर बहुत गहरा खोद देते हैं। उससे पर्यावरणीय नुकसान हो रहा है। पर्यावरण को बचाए रखना बहुत जरूरी है। ये घर, ये महल सब ऐसे ही रह जाएंगे। पर्यावरण सुरक्षित तो हम भी सुरक्षित। मैं एक रिसर्च पढ़ रहा था कि हवा से भी कैंसर हो रहा है। इस तरह के केस आज सामने आने लगे हैं। प्लास्टिक कचरा हमारे ब्लड में चला गया है। हमारे ब्लड में प्लास्टिक के कण निकल रहे हैं। आखिर हम यह सब कर किसके लिए रहे हैं। अगर ऐसा दुष्परिणाम ही सामने आने हैं तो फिर क्यों कर रहे हैं।

पलायन आयोग की रिपोर्ट ने एक बार फिर पहाड़ों से जाने वाले लोगों के मामले बढ़े हुए बताया है। घोस्ट विलेज एक हजार पार हो चुके हैं। पलायन पर रोकथाम के क्या उपाय हो सकते हैं?

आज घरों में एक-एक, दो-दो बच्चे हैं। कोई सरकारी नौकरी में चला जा रहा है वह वहीं घर बना ले रहा है। अब उसे आप कैसे जबरदस्ती रोकोगे? पलायन का कारण क्या है यह देखना पड़ेगा। यह पलायन मजबूरी का पलायन है या समृद्धि के लिए किया गया है। पलायन आयोग मैंने ही बनाया था। मैंने ही उसकी घोषणा की थी। हमारी 600 किलोमीटर की सीमाएं अंतरराष्ट्रीय सीमाएं हैं। यह साबित हो चुका है कि सेना के साथ सिविलियंस का होना बहुत जरूरी है। इससे सेना का मनोबल भी बढ़ता है। सेना को सपोर्ट भी मिलती है। इसलिए हमारे सीमांत क्षेत्र में पलायन कम से कम हो। प्रधानमंत्री जी ने जो ‘वाइब्रेट विलेज’ योजना शुरू की है वह वही है। मैंने स्टेट बॉर्डर एरिया डेवलमेंट फंड की शुरुआत की थी। उसके पीछे यही मंशा थी कि सीमांत पर विकास हो और लोग वहां आबाद रहें। अब जो पलायन आयोग की रिपोर्ट आई है। उसमें थोड़ा ठहराव आया है लोग वापस अपने घरों की तरफ गए हैं। जैसे-जैसे सड़कें और सुविधाएं गांव तक पहुंच जाएंगी। तो मुझे लगता है कि लोग अपने गांवों में रुक जाएंगे।

अंकिता भंडारी हत्याकांड पर जनता का आक्रोश अभी भी बना है। जनता आज तक भी उस वीवीआईपी का नाम पूछ रही है। जिसका जिक्र अंकिता ने मरने से पहले मोबाइल चेटिंग में किया था?

अंकिता भंडारी ने अपनी आबरू बचाने के लिए संघर्ष किया। अगर वह समझौता कर लेती तो शायद आज जीवित होती। लेकिन उस बच्ची ने अपनी आबरू बचाते हुए उस वीआईपी का जिक्र किया। सरकार भी उसे तलाशने का काम कर रही है। न्यायालय में भी मुकदमा चल रहा है। मुझे लगता है कि वे चीजें स्पष्ट हों। यद्यपि जिनका वह रिसॉर्ट था उन्होंने कहा है कि मृतका की बात सही नहीं है। लेकिन जनता जरूर पूछेगी कि वह वीआईपी कौन था? वहां पर जो पुराने रिकॉर्ड हैं, हो सकता है कि उनमें कुछ सबूत मिले।

बेरोजगार संघ का मामला बहुत चर्चाओ में रहा है खासकर तब जब बेरोजगार युवाओं पर लाठी चार्ज हुई। आपने भी युवाओं पर लॉठीचार्ज को सही नहीं ठहराया है?

अब सरकार ने निर्णय लिया है कि जो भी उस मामले में पुलिस वाले इन्वॉल्व थे उन पर कार्रवाई होगी, उनको सस्पेंड किया जाएगा। मुझे लगा कि युवाओं के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। मेरा स्वभाव है सीधा सपाट बोलने का तो मैंने वह बात कही। विशेषकर रात को जो घटना हुई उसको लेकर कहा था कि वह उचित नहीं था। थोड़े-बहुत बच्चे थे उनको ऐसे ही हैंडल किया जा सकता था। वे कई महीनों से विधानसभा के सामने बैठे थे, बैठे रहने देते क्या फर्क पड़ता है। उनको एवाईड किया जा सकता था। यह अप्रिय घटना थी।

 

कई राजनीतिक बातें होती हैं। अच्छा शासक होना बहुत अच्छी बात है लेकिन अच्छा राजनीतिज्ञ होना भी जरूरी है। शायद कुछ कमियां मेरी भी रही होंगी तभी मैं अच्छा राजनीतिज्ञ साबित नहीं हुआ। हां मैं डेवलपमेंट के बारे में कह सकता हूं, भ्रष्टाचार पर अंकुश के मामले में कह सकता हूं, विकास के मुद्दों पर कह सकता हूं कि मैंने कहीं
पर भी लापरवाही नहीं होने दी

हरिद्वार में एक भाजपा नेता और पूर्व में भाजपा के जिला पंचायत का नाम आने से मामला चर्चा में रहा है। ऐसे में नकल विरोधी कानून लाकर नकल माफियाओं पर लगाम लगाने के दावे किए जा रहे हैं?

देखिए दो चीजे हैं एक नकल और दूसरा पेपर आउट। नकल से उत्तराखण्ड बदनाम हो रहा है। जबकि मैं कह सकता हूं कि उत्तराखण्ड में नकल बहुत कम है। नकल 100 प्रतिशत रोक पाना संभव नहीं है। नकल छुट-पुट होती रहती है। लेकिन ये जो पेपर आउट हो रहे हैं, चिंता का विषय है। कुछ ही बच्चे होंगे जो नकल कर रहे हैं और सारे अभ्यार्थी बदनाम हो रहे हैं। क्या छवि बनेगी उत्तराखण्ड की? उत्तराखण्ड के बच्चे नकल करके पास हो रहे हैं तो ऐसे में हर किसी को संदेह की दृष्टि से देखा जाएगा। पेपर आउट मामले में पता चला है कि जो एजेंसी पेपर करा रही थी वही इन्वॉल्व थी। इस पर सरकार ने सख्त कार्रवाई की है। कुछ इसमें स्थानीय लोग पकड़ लिए गए। उनको लगा कि हमारे बचाने के लिए कुछ लोग काम आएंगे क्योंकि चोर को यह तो पता है कि मैं गलत कर रहा हूं तो फिर वह बचाव का रास्ता भी ढूंढता है। उसने फिर कुछ कुर्ता-पैजामे वाले पकड़ लिए। जो वह शायद इससे बच जाए। लेकिन सरकार को बचाना नहीं चाहिए। चाहे बीजेपी का मंडल अध्यक्ष हो या फिर वह बीजेपी का जिला पंचायत सदस्य। सब अंदर गए हैं और अच्छी कार्रवाई हुई है। मैं समझता हूं इससे जो पेपर आउट करने वाला माफिया है उसके लिए यह एक कड़ा मैसेज है।

आपकी सरकार और ट्टामी जी की सरकार में आपको क्या कोई खास अंतर लगता है?

अंतर कुछ नहीं है। पहले भी भाजपा की ही सरकार थी अब भी भाजपा की ही सरकार है। देखिए जो कोई भी मुख्यमंत्री बनता है उसकी अपनी प्राथमिकता होती है उसको लगता है कि इससे ज्यादा अच्छा हो सकता है। इतना ही अंतर है, बाकी कोई अंतर नहीं है।

(साथ में नावेद अख्तर) 

 

बेरोजगार युवाओं पर हुए लाठीचार्ज की बाबत अब सरकार ने निर्णय लिया है कि जो भी उस मामले में पुलिस वाले इन्वॉल्व थे उन पर कार्रवाई होगी, उनको सस्पेंड किया जाएगा। मुझे लगा कि युवाओं के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। मेरा स्वभाव है सीधा सपाट बोलने का तो मैंने वह बात कही। विशेषकर रात को जो घटना हुई उसको लेकर कहा था कि वह उचित नहीं था। थोड़े-बहुत बच्चे थे उनको ऐसे ही हैंडल किया जा सकता था

 

अंकिता भंडारी ने अपनी आबरू बचाने के लिए संघर्ष किया। अगर वह समझौता कर लेती तो शायद आज जीवित होती। लेकिन उस बच्ची ने अपनी आबरू बचाते हुए उस वीआईपी का जिक्र किया। सरकार भी उसे तलाशने का काम कर रही है। न्यायालय में भी मुकदमा चल रहा है। मुझे लगता है कि वे चीजें स्पष्ट हों। यद्यपि जिनका वह रिसॉर्ट था उन्होंने कहा है कि मृतका की बात सही नहीं है। लेकिन जनता जरूर पूछेगी कि वह वीआईपी कौन था? वहां पर जो पुराने रिकॉर्ड हैं, हो सकता
है कि उनमें कुछ सबूत मिले

 

You may also like

MERA DDDD DDD DD